Luvvie Ajayi Jones
The Fear-Fighter Manual (डर के आगे जीत है, इसलिए खुद को मज़बूत बनाइए)
दो लफ्ज़ों में
साल 2021 में रिलीज़ हुई किताब ‘Professional Troublemaker’ बताती है कि कैसे ज़िन्दगी के डर को पीछे छोड़ते हुए ख़ुदको अपना सकते हैं? ये बुक हमें बताती है कि वैल्यूज़ के साथ लाइफ जीने में एक अलग ही सुख मिलता है. इसलिए कुछ भी हो जाए लेकिन अपनी वैल्यू सिस्टम को नहीं भूलना चाहिए. इस किताब में ऑथर ने friendships से honesty तक और responsibility से kindness तक.. सभी पहलुओं को छूने की कोशिश की है. मीनिंगफुल लाइफ के सभी नुस्ख़े इस किताब में बताए गए हैं.
ये किताब किसके लिए है?
- ऐसा कोई भी जिसे ज़िन्दगी को समझना हो
- किसी भी फील्ड के स्टूडेंट्स के लिए
- मीनिंगफुल लाइफ की समझ रखने वालों के लिए
लेखक के बारे में
आपको बता दें कि इस किताब का लेखन ‘Luvvie Ajayi Jones’ ने किया है. Luvvie Ajayi Jones एक award-winning writer, podcast host, और public speaker, रह चुकी हैं. इन्होने अपने सालों के अनुभव का सार इस किताब में लिख दिया है.
अपनी रियल पर्सनालिटी के बारे में जानना बहुत ज़रूरी है
हम इस बात को एक्सेप्ट करें या ना करें, लेकिन ज्यादातर समय हम लोग किसी ना किसी डर में जी रहे होते हैं. उसी डर की वजह से हम खुद से एक लड़ाई लड़ रहे होते हैं. हमें पता रहता है कि इसका सीधा नुकसान हमें हो रहा है. लेकिन फिर भी हम खुद को उस डर से बाहर नहीं कर पाते हैं. बल्कि उस डर का बुरा असर हमारी सोच पर भी पड़ने लगता है. इसलिए अंग्रेज़ी में कहा भी गया है कि “fear is a dead end...” इसलिए बहुत ज़रूरी हो जाता है कि आप अपनी लाइफ की कद्र करें और उसे बेहतर नज़रिए से देखने की शुरुआत करें. अगर आपको भी किसी अंजाने डर से बाहर निकलना है? तो ये बुक समरी आपकी मदद करने को तैयार है.
-kindness के महत्व के बारे में
-लाइफ की जर्नी को डिज़ाइन करने की टिप्स
तो चलिए शुरू करते हैं!
एक बहुत सिम्पल सी बात है कि अगर आप ख़ुद के रियल वर्ज़न को समझ लेंगे. तो इस मतलबी दुनिया को आपकी रियल पर्सनालिटी नज़र आ जाएगी. इसलिए अपने आपको समझने की कोशिश सभी को करनी चाहिए.
लेकिन ये बात भी सच है कि हम सभी किसी ना किसी डर का सामना कर रहे होते हैं. ये डर किसी भी तरह का हो सकता है. और यही डर आगे चलकर स्ट्रेस का रूप ले लेता है.
कई लोग अपने लुक्स की चिंता में रहते हैं.. इन्हीं सब चिंता की वजहों से हम कभी अपने आपको समझ ही नहीं पाते हैं. हमारा पूरा समय दूसरों से खुद की तुलना करने में ही निकल जाता है.
इससे आगे बात करते हुए ऑथर कहते हैं कि भले ही ब्रेकअप शब्द सुनने में भले ही सामान्य लगे, लेकिन यह वास्तव में उतना भी सामान्य नहीं है. इसका एक गहरा असर किसी भी इंसान के जीवन पर पड़ता है. जब आप किसी से बेहद प्यार करते हैं और उसके साथ अपने जीवन बिताने के सपने देख रहे होते हैं, तब अचानक आपको उसे अलग होना पड़ जाए तो यकीनन आपको काफी दुख होता है..कई बार तो लोग निराशा के अंधकार में इस कदर डूब जाते हैं कि उसे बाहर निकलने का रास्ता ही नजर नहीं आता.. ब्रेकअप के बाद तनाव व अवसाद की स्थिति भी बन जाती है.
अमूमन लड़कियां अधिक इमोशनल होती हैं, इसलिए ब्रेकअप का अधिक गहरा असर उन पर ही पड़ता है. कुछ लड़कियों को तो कुछ भी करने का मन नहीं करता, यहां तक कि उन्हें खुद पर ही गुस्सा आने लगता है. अक्सर वह ब्रेकअप के लिए खुद को ही जिम्मेदार मानती हैं और इस तरह उनकी सोच उनके जीवन को नकारात्मक दिशा में ले जाती हैं.
जब आप रिश्ते में थीं, तब आपने यकीनन अपने पार्टनर की खुशियों को खुद से पहले रखा होगा. लेकिन अब जब आप रिश्ते में नहीं है तो यह वक्त है कि आप खुद पर ध्यान देना शुरू करें. खुद को पैम्पर करना शुरू करें.
जब कोई व्यक्ति खाली होता है, तो हमेशा उसे अपनी पुरानी यादें ही कचोटती रहती हैं. इसलिए खुद को व्यस्त रखने की कोशिश करें. इसके लिए आप कुछ नई हॉबीज की तरफ बढ़ाएं या फिर जिस काम को आप लंबे समय से करने की सोच रही थीं, उसे ही शुरू करें.
अब समय “too much” is just right के कांसेप्ट को समझने का आ गया है
भले ही आपको एहसास हो चुका हो कि आपकी एक unique identity है. लेकिन फिर भी लोग आपको कह देते हैं कि यार तुम तो too something – too loud, too bossy,too sensitive हो.. इस तरह के शब्दों से लोग बताते हैं कि उन्होंने आपको जज किया है? इसी के साथ वो ये भी कहते हैं कि अब समय आपके बदल जाने का आ गया है?
लेकीन इसका बुरा असर ये पड़ता है कि आप लोगों की बातों को कुछ ज्यादा ही सीरियसली ले लेते हैं. आप उन बातों को नेगेटिव ले लेते हैं. जिसका असर आपकी पर्सनालिटी में नज़र आने लगता है.
उस नीगेटिविटी की वजह से आप अपनी कोर वैल्यूज़ को भूलने लगते हैं. धीरे-धीरे आप खुद को ही भूलने लगते हैं.
यहाँ पर अब सवाल ये उठता है कि आखिर दूसरों को satisfy करने के लिए खुद की पर्सनालिटी को क्यों पीछे छोड़ा जाए? अगर आप too something – too loud, too bossy,too sensitive हैं भी, तो क्या दिक्कत है? कम से कम आप नकली तो नहीं है. इसलिए याद रखिए कि इस ज़िन्दगी में सबसे ज़रूरी बात रियल रहना ही है. ये दुनिया मक्कार लोगों से भरी हुई है, लोग इस मक्कारी की वजह से अपने घर-परिवार, शादी-ब्याह, काम-काज.. हर जगह बस धोखा ही दे रहे हैं. इसलिए अगर आप रियल हैं तो आप सबसे अलग हैं.
इसी के साथ आपको एक महीन सी लाइन खींचनी होगी.. जिस रेखा में आपको तय करना होगा कि कोई दूसरा आपके कैरेक्टर को सही या ग़लत नहीं बता सकता है. कोई दूसरा ये तय नहीं कर सकता है कि आपको अपनी लाइफ कैसे जीनी है? क्योंकि ये ज़िन्दगी आपकी है और इसे सही आपको ही बनाना है.
जल्द से जल्द अपनी लाईफ की ज़िम्मेदारी अपने कंधो पर उठाईये, अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो दूसरे आपकी ज़िन्दगी को कंट्रोल करने लगेंगे.
किसी दूसरे के नज़रिए को अपनी पर्सनालिटी पर इतना मत ले लीजिए कि आप डिप्रेशन में जीने लगें.. आज के दौर में डिप्रेशन और एंग्जायटी की सबसे बड़ी वजह ही इच्छा होती है. हम ऐसी चीज़ों की इच्छा अपने मन में पाल लेते हैं. जो हमारे लिए बनी ही नहीं है. फिर उनके ना मिलने से हमारे मन में फ्रस्टेशन का जन्म होता है. जिससे हमारी लाइफ बेचैनी के आस-पास बीतने लगती है.
इसी के साथ याद रखिएगा कि "यार आज का दिन अच्छा नहीं था, मैं बहुत डिप्रेस फ़ील कर रहा हूं"
ये बात-बात पर ख़ुद को 'डिप्रेस्ड' बताना दरअसल डिप्रेशन नहीं है, हां ये हमारी डिप्रेशन को लेकर कम जानकारी को ज़रुर दर्शाता है.क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. पूजाशिवम जेटली कहती हैं, "ये एक विडंबना ही है. हम ऐसे शब्दों का इस्तेमाल इतनी आसानी से कर देते हैं लेकिन मेंटल हेल्थ के प्रति जागरुक नहीं हैं."
हालाँकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ दुनियाभर में अलग-अलग उम्र के 26 करोड़ से ज़्यादा लोग इससे पीड़ित हैं.हालांकि कई मनोवैज्ञानिक ये मानते हैं कि ये संख्या इससे बहुत ज़्यादा हो सकती है क्योंकि कई लोगों को पता ही नहीं होता कि वो डिप्रेशन में हैं.
इसके बारे में अगर बारीकी से चर्चा करें तो पता चलता है कि किसी बुरी ख़बर के आने पर, या कुछ काम के बिगड़ जाने पर जब हम ये कहते हैं कि हम डिप्रेस्ड फ़ील कर रहे हैं, वो दरअसल डिप्रेशन नहीं, उदासी है.विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ डिप्रेशन एक आम मानसिक बीमारी है. डिप्रेशन आमतौर पर मूड में होने वाले उतार-चढ़ाव और कम समय के लिए होने वाले भावनात्मक प्रतिक्रियाओं से अलग है.
लगातार दुखी रहना और पहले की तरह चीज़ों में रुचि नहीं होना इसके लक्षण हैं.
डब्लूचओ के मुताबिक़ एंग्ज़ाइटी डिसऑर्डर डर और घबराहट के लक्षण वाली एक मानसिक बीमारी है. इसके कई प्रकार हैं. डिप्रेशन के शिकार कई लोगों में एंग्ज़ाइटी के लक्षण भी होते हैं.
बोलचाल की भाषा में समझें तो , "सुशांत सिंह राजपूत की ख़बर सुनने के बाद हम सब उदास थे, कुछ लोग कुछ घंटों के लिए उदास रहेंगे, कुछ लोग कुछ दिनों तक उदास रहेंगे, फिर ठीक हो जाएंगी. ये डिप्रेशन नहीं है."
डिप्रेशन के शिकार लोगों को अपना ध्यान बंटाने के लिए उन कामों पर ध्यान देने को कहा जाता है, जो उन्हें पसंद है. कई लोग इस दौरान म्यूज़िक, पेंटिग या दूसरे तरह के क्रिएटिव काम करते हैं.
उपलब्धि सिर्फ़ जो समाज की नज़र में है वो नहीं है, बड़ी उपलब्धि वो है जब आप अपने दिमाग़ में बनाए गए दायरों को तोड़ें और आप समझें कि ये भी एक संभावना मेरे लिए मौजूद है. यहीं से बदलाव की शुरुआत होती है.
हमेशा सच के साथ खड़े रहें, इससे आप सही इंसान बनने में कामयाब होंगे
आपको University of Massachusetts की स्टडी हैरानी में डाल सकती है. ये स्टडी बताती है कि average person दस मिनट की बातचीत में एक बार झूठ बोलता है.
लेकिन क्यों? इसका मतलब ये नहीं है कि हम झूठ बोलने के लिए ही पैदा हुआ हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि हम कभी भी मुश्किलों का सामना नहीं करना चाहते हैं. हम हमेशा पतली गली पकड़कर निकल जाना चाहते हैं.
इसी पतली गली की वजह से लॉन्ग टर्म में हमें कई दिक्कतों का भी सामना करना पड़ जाता है. इसलिए कहा भी गया है कि सत्य के साथ खड़े रहने के लिए जिगरा चाहिए, अगर आपके पास हिम्मत नहीं है तो आप कभी भी सत्य का साथ नहीं दे सकते हैं.
हिटलर के प्रचार मंत्री जोसेफ़ गोयबल्स की एक बात बड़ी मशहूर है. गोयबल्स ने कहा था कि किसी झूठ को इतनी बार कहो कि वो सच बन जाए और सब उस पर यक़ीन करने लगें.
आप ने भी अपने आस-पास ऐसे लोगों को देखा होगा, जो बहुत ही सफ़ाई से झूठ बोल लेते हैं. वे अपना झूठ इतने यक़ीन से पेश करते हैं कि वह सच लगने लगता है. हमें लगता है इंसान इतने भरोसे से कह रहा है, तो बात सच ही होगी.
झूठ हमारी पुख़्ता जानकारी पर असरअंदाज़ नहीं हो सकता. किसी झूठ के सच में तब्दील होने की गुंजाइश तभी होती है जब जानकारी में झोल होता है, या खुद अपने आप पर यक़ीन कमज़ोर होता है.
इसलिए ऑथर सलाह देते हैं कि हमें “नथिंग बट ट्रुथ” के कांसेप्ट को अपना लेना चाहिए.
वर्क लोड को मैनेज करना सीखिए
दफ्तर कोई भी हो काम हर जगह बराबर होता है, यानी कि ज्यादा से ज्यादा से होता है. टाइम पर ऑफिस पहुंचना, वक्त पर हर काम निपटाना और फिर वक्त पर घर लौटना। कभी काम ज्यादा हो तो वो भी घर ले आते है.
वहीं अगर काम ना हो तो बॉस की डांट और ऑफिस पॉलिटिक्स का अलग से सामना करना..इन सब परेशानियों को केवल हम नहीं,हमारा दिमाग भी बराबरी से झेलता है. वक्त पर काम करने के लिए हम इतना प्रेशर में आ जाते हैं कि कई बीमारियों हमें घेर लेती हैं. बीमारियों का इलाज तो डॉक्टर कर देगा लेकिन काम के प्रेशर को कैसे कम करेंगे?
तो ये अच्छे से समझ लीजिए की वर्कलोड का प्रेशर आपको ही कम करना है.
हर काम को करने के लिए एक वक्त तय कर लें और उस समय तक काम पूरा करने का टारगेट रख लें.... शुरू में टारगेट परेशान करेगा लेकिन हफ्ते भर के अंदर टारगेट पूरा करने में मजा आने लगेगा. इससे आपका मन काम करने में ज्यादा लगेगा और वक्त पर पूरा होगा.
ये सोचना गलत है कि सारा काम आप खुद करेंगे तभी सही तरीके से होगा. .. . टीम पर भरोसा करें और वाहवाही के चक्कर में सारा लोड खुद पर ना लें. . . अगर आप काम को पूरा करने में पूरी टीम की सलाह लेंगे और साथ मिलकर काम करने को कहेंगे तो आपका काम सही तरीके और सही समय पर पूरा होगा. . . . टीमवर्क हमेशा फायदेमंद होता है. . . .
अगर आपके पास पहले से ही काम बहुत ज्यादा है, तो कोई नया काम हाथ में न लें. ना कहना सीखें.. . अगर आप न नहीं कहेंगे तो काम का बोझ बढ़ता ही जाएगा और उसके साथ ही आपका तनाव भी बढ़ेगा.
हमेशा अच्छा बनने का दिखावा करने से बेहतर है कि दयालु बनने की कोशिश की जाए
कई बार हमारे अंदाज़ सही साबित हो जाते हैं, लेकिन कभी कभी ये हमें गुमराह भी कर देते हैं. इसलिए रिसर्चर इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि अगर कोई बात कही जाए तो इसके पक्ष में मज़बूत दलील भी दी जाए ताकि दावों की सच्चाई का पता लगाया जा सके.
कोई दावा इसलिए लोगों का यक़ीन ना बन जाए कि वो बार बार कहा जा रहा है. बल्कि उसकी कोई ठोस दलील हो.
हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं, जहां सच सबसे ऊपर है और होना भी चाहिए. अगर सच और झूठ का फ़र्क़ किए बिना सिर्फ़ अपनी बात मनवाने के लिए कोई बात बार-बार दोहराई जाए तो यह इंसानियत के लिए सही नहीं है.
अगर आप ऐसा करते हैं तो आप एक ऐसी दुनिया बना रहे हैं जहां झूठ और सच का फ़र्क ही मिट जाएगा. लोग गुमराह होने लगेंगें. इसलिए ज़रूरी है कि किसी भी बात पर यक़ीन करने के बजाय उसे हर तरह से जांच-परख लें.
कभी भी सिर्फ और सिर्फ दूसरों की गुड बुक्स में आने के लिए किसी भी बात को हाँ ना कह दें, इसलिए ऑथर कहते हैं कि हमें अच्छा बनने का ढोंग नहीं करना चाहिए. अगर हमें कोई ख़ूबी सीखनी ही है तो दयालु बनने की कोशिश करें. जो इंसान दूसरे के दुःख को महसूस कर सकता है और उसके प्रति इमोशन्स प्रकट कर सकता है. असल मायनों में वही दूसरों की मदद कर रहा है. इसलिए हमें कभी भी इतना कठोर नहीं बन जाना चाहिए कि हम दूसरों की पीड़ा समझना ही बंद कर दें.
दयालुता आपके लिए क्या कर सकती है? इससे शायद आपको खुशी मिलती है या आपमें भलाई करने की भावना आती है, यह एक तरह की हक़ीक़त हो सकती है.
हालांकि एक नए शोध में वैज्ञानिकों और टीचर्स का कहना है कि दयालु बनने से इंसान को और भी बहुत कुछ प्राप्त हो सकता है. माना जा रहा है कि इससे आपका जीवनकाल बढ़ सकता है.
यह शोध यूसीएलए के बेडारी काइंडनेस इंस्टीट्यूट के सदस्यों ने किया है.
संस्थान के निदेशक डैनियल फेस्लर ने बताया, "हम अपने शोध में वैज्ञानिक दृष्टिकोण की बात कर रहे हैं. हम मनोविज्ञान, जीव विज्ञान में मौजूद सकारात्मक सामाजिक सहभागिता के बारे में बात कर रहे हैं."
ऑथर कहते हैं कि "जब मैं कहता हूं, 'एक दूसरे के प्रति दयालु रहें,' तब मेरा मतलब सिर्फ़ उन लोगों के प्रति दयालु रहने से नहीं है जो आपके साथ दयालु रहते हैं. मेरा मतलब है कि सबके प्रति दयालु रहें."
सभी को अच्छे और दिलेर दोस्तों की ज़रूरत है
क्या आपको पता है कि किसी भी जेल में सबसे खतरनाक सज़ा क्या होती है? ये होती है किसी भी कैदी को अकेले बैरेक में रखना. ऐसा क्यों?
ऐसा इसलिए क्योंकि ह्यूमन नेचर ही company-keepers है. हमें अकेलापन खाने को दौड़ता है. इसका सीधा सा डेटा आत्महत्या के केसेज़ में भी देखने को मिलता है. हज़ारों लोग केवल अकेलेपन की वजह से मौत को चुन लेते हैं.
भले ही आजकल कई लोग अपने आपको “lone wolves.” दिखाते हैं. लेकिन कहीं ना कहीं उन्हें भी दोस्तों की ज़रूरत पड़ती है. इसलिए हमें इस बात को मान लेना चाहिए कि अच्छी ज़िन्दगी के लिए अच्छे दोस्तों का होना बहुत ज़रूरी है.
दोस्त एक-दूसरे को भावनात्मक सहायता प्रदान करने के लिए हैं. जब हम कमज़ोर महसूस करते हैं तब वे हमें खुश करते हैं, पढ़ाई में हमारी सहायता करते हैं, खरीदारी के लिए हमारे साथ लंबी दूरी तय करते हैं और विभिन्न मजेदार गतिविधियों में हमारे साथ शामिल होते हैं. मित्र हमारी ज़िन्दगी का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं.
मित्रता क्या होती हैं ये तो सब जानते हैं. लेकिन दुनिया में दोस्ती यानि मित्रता एक रिश्ता बनाया गया है जोकि हर उम्र के लोगों के लिए है. यह विभिन्न प्रकारों में होता है.
हम सभी के जीवन में दोस्त की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती हैं. सच्ची दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है जो इंसान के किसी भी रिश्ते पर भारी पड़ सकती है. इसलिए लाइफ में खुश रहने के लिए अच्छे और दिलेर दोस्तों की पहचान करिए. ऐसा करने से आपकी लाइफ में ख़ुशियों का इंडेक्स काफी बढ़ जाएगा.
कुल मिलाकर
ज़िन्दगी में डर का होना ज़रूरी है लेकिन उतना ही जितना खाने में नमक का होना, अगर खाने में ज्यादा नमक की आदत पड़ जाएगी तो बीपी जैसी बीमारी गले पड़ जाएगी. इसलिए अपनी लाइफ को तरह-तरह के डर से मुक्त करने का समय आ गया है. इसलिए याद रखिएगा कि उपलब्धि सिर्फ़ जो समाज की नज़र में है वो नहीं है, बड़ी उपलब्धि वो है जब आप अपने दिमाग़ में बनाए गए दायरों को तोड़ें और आप समझें कि ये भी एक संभावना मेरे लिए मौजूद है. यहीं से बदलाव की शुरुआत होती है.
क्या करें?
ख़ुद से दोस्ती करिए और खुद की पहचान करिए, आपको पता होना चाहिए कि आपको लाइफ से क्या चाहिए? इसके बाद अपने गोल की तरफ छोटे-छोटे कदम उठाइये.
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