Mind Over Money

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Mind Over Money

Claudia Hammond
The Psychology of Money and How To Use It Better (साइकोलॉजी ऑफ़ मनी को समझिए और उसका बेहतरीन उपयोग करना सीखिए)

दो लफ्ज़ों में 
साल 2016 में रिलीज हुई किताब “माइंड ओवर मनी” बताती है कि कैसे हम पैसों को लेकर अपनी सोच को बदल सकते हैं?  किस तरह कई सदियों पुरानी सोच आज भी पैसों को लेकर हमारे डिसीजन को प्रभावित करती है? इस किताब की मदद से हम फाइनेंशियल फ्रीडम को अचीव कर पाएंगे.  इस किताब में हमें ऐसी  कई टिप्स और ट्रिक्स के बारे में जानकारी दी गई है जिसकी मदद से हमें पता चलेगा कि किस तरह हम अपने बैंक में जमा पैसों का सही इस्तेमाल कर सकते हैं? अगर आप भी पैसों को लेकर कंफ्यूज रहते हैं या फिर ये  सोचते हैं कि आप के जितने पैसे आते हैं उससे ज्यादा खर्च हो जाते हैं या फिर आपको भी मनी मैनेजमेंट का गुरु बनना है तो फिर यह किताब आपके लिए ही लिखी गई है. इस किताब में ऐसी स्ट्रेटजीज़  के बारे में बात की गई है जिनसे आपको पता चलेगा कि किस तरह आपका पैसा आपके लिए काम कर सकता है? इसलिए आज से ही पैसों का सही इस्तेमाल शुरू कर दीजिए.

  ये किताब किसके लिए लिखी गई है? 
- फाइनेंशियल स्टुडेंट्स के लिए 
- ऐसे लोगों के लिए जिन्हें पैसों की दिक्कत है 
- ऐसे लोग जो मनी मैनेजमेंट सीखना चाहते हों 
- ऐसे लोग जिन्हें साइकोलॉजी में इंटरेस्ट हो 

लेखक के बारे में 
आपको बता दें कि इस किताब का लेखन“Claudia Hammond” ने किया है. यह अवॉर्ड विनिंग ऑथर होने के साथ-साथ साइकोलॉजिस्ट और पॉडकास्टर  भी हैं. इन सभी के साथ-साथ यह साइकोलॉजी लेक्चरर अभी बीबीसी 4 रेडियो प्रोग्राम की होस्ट भी रही है.  इन्होंने अपने सालों के अनुभव का सार इस किताब में लिख दिया है जिसका फायदा आप एक पाठक और लिसनर  के तौर पर उठा सकते हैं. 

इस किताब में मेरे लिए क्या है? 
दोस्तों, जब आज के दौर में हर चीज की कीमत लगाई जाती है तो फिर किसी भी चीज की शुरुआत इस सवाल के बिना कैसे हो सकती है? कि  इस  बुक समरी  को पढ़ने या सुनने के बाद मुझे क्या फायदा होगा? अगर आपको इस किताब के फायदे के बारे में बारे में जानना है तो उसके लिए आपको इस किताब को सुनना या पढ़ना पड़ेगा. 
क्या आपने न्यू ईयर रेजोल्यूशन बनाया है? क्या आप भी हर साल खूब सारा पैसा बचाने की सोचते हैं लेकिन साल के अंत में आपके पास कुछ नहीं बचता?  क्या आप भी अपनी ज्यादा खर्च करने वाली आदत से परेशान हैं? अगर ऐसा है तो इस किताब में आपको ऐसी थिंकिंग के बारे में पता चलेगा जो आपकी पैसों को लेकर पूरी सोच ही बदल कर रख देगी. आपको पता चलेगा कि किस तरह आप आज तक पैसों के बारे में गलत सोचते हुए आए हैं? 
अब ज्यादा सोचने और समझने में समय  को बर्बाद मत करिए और चलिए शुरू करिए इस बुक समरी के सफर की.. 

इन चैप्टर्स में हमें ये भी सीखने को मिलेगा 
- मनी से बड़ा मोटिवेशनल कुछ नहीं होता 
- पैसों को देखने का नज़रिया बदलना होगा पैसों से हमारे अंदर फीलिंग्स का भी जन्म होता है
चलिए कल्पना की दुनिया में चलते हैं, सोचिए कि आप आग में जलते कई लाखों रूपये को देख रहे हैं. अब आप खुद ही बताइए कि उस आग के धुंए को देखकर आपको कैसा लगेगा? हो सकता है कि इस सवाल को सुनने के बाद ही आपको गुस्सा आ रहा हो? आपको लग रहा हो आखिर कोई कैसे लाखों रूपये को आग लगा सकता है? 

लेकिन आपको बता दें कि साल 1994 में ब्रिटिश आर्ट के k.foundation ने ऐसा कारनामा किया था. उन्होंने करीब 1 मिलियन pound को आग के हवाले कर दिया था. उन्हें एक आर्ट पीस तैयार करना था, इसलिए उन्होंने ऐसा किया था. 

अब आप सोच में पड़ सकते हैं कि आखिर दो इंसान इतना पैसा कैसे जला सकते हैं? उन्होंने ना जाने कितने लोगों के खाने को जला दिया. उस पैसे से बहुत कुछ सार्थक किया जा सकता था. 

 

इस बारे में art duo’s members, में से एक  Bill Drummond ने जवाब दिया था कि उन्होंने कुछ भी रियल नहीं जलाया है. उन्होंने बस पेपर के बड़े टुकड़ों को आग लगाई है. 

दूसरे नज़रिए से देखा जाए तो  Bill Drummond का कांसेप्ट सही है. अगर कोई डीजर्ट में रहने चला जाए, जहाँ कुछ भी खरीदने को ना हो, तो करेंसी केवल पेपर का टुकड़ा ही है. किसी भी पैसे की वैल्यू तभी तक है. जब तक कुछ खरीदने को मिल रहा है. 

लेकिन सच्चाई ये है कि हम उस तरह के आइलैंड में नहीं रह रहे हैं. जहाँ कुछ भी खरीदने को ना मिले, हम एक ऐसी धरती में रह रहे हैं. जहाँ लाखों रूपये से बहुत कुछ खरीदा जा सकता है. उतने रुपयों से बहुत लोगों के घर में खाना पहुँचाया जा सकता है. 

अगर k.foundation ने उतने रूपये के किसी सामान को आग लगा दी होती, तो उन्हें कम गुस्से का सामना करना पड़ता. लेकिन उन्होंने पैसों को आग लगाया, जिसकी वजह से उन्हें बहुत ज्यादा गुस्से का सामना करना पड़ा. ऐसा इसलिए क्योंकि पैसों  से ना जाने कितने लोगों के सपने जुड़े रहते हैं. ये कहना गलत नहीं होगा कि पैसों को लेकर लोग काफी ज्यादा इमोशनल होते हैं. लोगों की फीलिंग्स पैसों से जुड़ी हुई होती है. 

इसलिए ऑथर कहते हैं कि साइकोलॉजी ऑफ़ मनी को समझने के लिए बहुत ज़रूरी है कि हम मनी और खुद के बीच के रिश्ते को भी बेहतर समझने की कोशिश करें. अगर आप सोचते हैं कि पैसों से दिक्कतों की शुरुआत होती है. तो आपको समझना चाहिए कि पैसों में कोई दिक्कत नहीं है. सारी दिक्कत की शुरुआत हमारे दिमाग में ही होती है. अगर हम सही ढ़ंग से पैसों का इस्तेमाल करना सीख जाएँ तो हमारी लाइफ की सारी परेशानी खत्म हो जाएगी. इसलिए बहुत ज़रूरी है कि हमें पैसों और अपने बीच के रिश्ते को समझना भी होगा और उसे बेह्तर से बेहतरीन बनाना भी होगा. 

आने वाले कुछ चैप्टर्स में हम अपने और पैसों के बीच के रिश्ते को बारीकी से देखने की कोशिश करेंगे. हम समझने की कोशिश करेंगे कि हम इस रिश्ते को बेहतर कैसे बना सकते हैं?

हम “Financial socialization” को काफी कम उम्र से सीखने लगते हैं
हम पैसों के बारे में काफी कम उम्र से सीखने लगते हैं. इसे हम अपने पैरेंट्स के बिहेवियर और रिस्पॉन्स की मदद से सीखते हैं. 

ऑथर यहाँ एक किस्सा बताना चाहती हैं, ये किस्सा एक थियेटर ग्रुप का है. इस ग्रुप में एक बार एक्सपेरिमेंट हुआ, इस एक्सपेरिमेंट में 6 साल के बच्चों को थियेटर प्ले डिजाईन करने को कहा गया. उन्हें सभी फैसले लेने की छूट दी गई, मतलब प्ले में क्या कास्टिंग होगी, उसकी स्टोरी लाइन कैसी होगी? ये सब फैसला उन्ही बच्चों को लेना था. 

6 हफ्तों के बाद जब बच्चों के फैसलों को ओब्सर्व किया गया, तो ये बात निकलकर सामने आई कि बच्चों के फैसलों में पैसों का रोल काफी ज्यादा था. रिसर्चर को ये देखकर आश्चर्य हुआ कि मात्र 6 साल की उम्र में बच्चों के पास पैसों को लेकर काफी ज्यादा ज्ञान था. 

बच्चों के दिमाग के ऊपर कई स्टडीज़ बताती हैं कि बच्चों को काफी कम उम्र से ही मनी के सोशल स्टेट्स के बारे में पता रहता है. बच्चों के बिहेवियर के ऊपर काफी ज्यादा रिसर्च हो चुकी है. उसमें ये पता भी चला है कि बच्चें अपने शुरूआती दौर से ही अपने पैरेंट्स की आदतों को ओब्सर्व करने लगते हैं. वो धीरे-धीरे वैसे ही बनते जाते हैं, जैसे वो अपने पैरेंट्स को देखते हुए आए हैं. 

इसलिए पैसों के मामले में पैरेंट्स को काफी केयरफुल रहने की ज़रूरत है. उन्हें कोशिश करनी चाहिए कि वो बच्चों को बचपन से ही पैसों के बारे में सही जानकारी दें. 

इसी के ऑथर सलाह देती हैं कि पैसों के साथ-साथ डर और घबराहट बच्चों पर न थोपें

पैरेंट के तौर पर अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर हम अक्सर ख़ुद को लाचार पाते हैं. अक्सर डर और घबराहट की स्थिति बनी रहती है. लेकिन अपने भय और ग़ुस्से का बोझ हम अपने बच्चे पर नहीं लाद सकते, जो वैसे ही काफ़ी संकट झेल रहे हैं.

हमें अन्य लोगों से मदद लेनी चाहिए. सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारा बच्चा हमारे बिना जितना सुरक्षित महसूस करता है, उससे ज़्यादा सुरक्षित हमारे साथ रहते हुए महसूस करे.

जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हममें से ज़्यादातर लोग अपने माता-पिता के ग़ुस्से को खुद में उतार लेते हैं. कई बार हम ख़ुद को ऐसी स्थितियों में पाते हैं कि लगता है, अपने माता-पिता के पास मुश्किलें झेलना बाहरी दुनिया में मुश्किलें झेलने से कहीं ज्यादा ख़तरनाक है.

ये अगर पैरेंटिंग की सबसे बड़ी नाकामियों में से एक नहीं तो और क्या है? हमारे लिए सबसे सुरक्षित जगह हमारा घर-परिवार होना चाहिए. लेकिन ऐसा हमेशा नहीं हो पाता.

जैसा कि इस चैप्टर में हम लोगों ने चर्चा कर ली है कि बच्चे बहुत कुछ बचपन में सीख लेते हैं. उसी में एक पहलू फाइनेंशियल भी है. आज से बच्चे के सामने पैसों की बात करते समय ये मत सोचियेगा कि ये तो बच्चा है. इसे तो कुछ नहीं मालुम? आपको ध्यान रखना है कि आप जो भी बातें कर रहे हैं. उन बातों से वो बहुत कुछ सीख रहा है. 

इसलिए एज़ अ पैरेंट्स ये ज़िम्मेदारी बनती है कि आप बच्चों को पैसों के बारे में सही और सटीक जानकारी देने की कोशिश करिए. ऐसा करने से आप उनके फ्यूचर को बेहतर करने का काम करेंगे. 

इसकी शुरुआत आप बच्चों के साथ ज्यादा ओपन और ऑनेस्ट बनकर कर सकते हैं. कई रिसर्च ये भी बताती हैं कि ज्यादातर बच्चे जब टीनेज में पहुँचते हैं. तो उन्हें पता ही नहीं होता है कि उनके माता-पिता कितना कमाते हैं? इसकी वजह से उन्हें नहीं मालुम होता है कि एक घर को कैसे चलाया जाता है. ना ही उन्हें ये मालुम रहता है कि पैसे असल में कैसे काम करते हैं? 

अगर अभी भी आपको पैसे मज़ाक लगते हैं तो आप संभल जाइए और बच्चों को पैसों के बारे में सही जानकारी देने का काम शुरु कर दीजिए.पैसों से हमारे अंदर फीलिंग्स का भी जन्म होता है
चलिए कल्पना की दुनिया में चलते हैं, सोचिए कि आप आग में जलते कई लाखों रूपये को देख रहे हैं. अब आप खुद ही बताइए कि उस आग के धुंए को देखकर आपको कैसा लगेगा? हो सकता है कि इस सवाल को सुनने के बाद ही आपको गुस्सा आ रहा हो? आपको लग रहा हो आखिर कोई कैसे लाखों रूपये को आग लगा सकता है? 

लेकिन आपको बता दें कि साल 1994 में ब्रिटिश आर्ट के k.foundation ने ऐसा कारनामा किया था. उन्होंने करीब 1 मिलियन pound को आग के हवाले कर दिया था. उन्हें एक आर्ट पीस तैयार करना था, इसलिए उन्होंने ऐसा किया था. 

अब आप सोच में पड़ सकते हैं कि आखिर दो इंसान इतना पैसा कैसे जला सकते हैं? उन्होंने ना जाने कितने लोगों के खाने को जला दिया. उस पैसे से बहुत कुछ सार्थक किया जा सकता था. 

 

इस बारे में art duo’s members, में से एक  Bill Drummond ने जवाब दिया था कि उन्होंने कुछ भी रियल नहीं जलाया है. उन्होंने बस पेपर के बड़े टुकड़ों को आग लगाई है. 

दूसरे नज़रिए से देखा जाए तो  Bill Drummond का कांसेप्ट सही है. अगर कोई डीजर्ट में रहने चला जाए, जहाँ कुछ भी खरीदने को ना हो, तो करेंसी केवल पेपर का टुकड़ा ही है. किसी भी पैसे की वैल्यू तभी तक है. जब तक कुछ खरीदने को मिल रहा है. 

लेकिन सच्चाई ये है कि हम उस तरह के आइलैंड में नहीं रह रहे हैं. जहाँ कुछ भी खरीदने को ना मिले, हम एक ऐसी धरती में रह रहे हैं. जहाँ लाखों रूपये से बहुत कुछ खरीदा जा सकता है. उतने रुपयों से बहुत लोगों के घर में खाना पहुँचाया जा सकता है. 

अगर k.foundation ने उतने रूपये के किसी सामान को आग लगा दी होती, तो उन्हें कम गुस्से का सामना करना पड़ता. लेकिन उन्होंने पैसों को आग लगाया, जिसकी वजह से उन्हें बहुत ज्यादा गुस्से का सामना करना पड़ा. ऐसा इसलिए क्योंकि पैसों  से ना जाने कितने लोगों के सपने जुड़े रहते हैं. ये कहना गलत नहीं होगा कि पैसों को लेकर लोग काफी ज्यादा इमोशनल होते हैं. लोगों की फीलिंग्स पैसों से जुड़ी हुई होती है. 

इसलिए ऑथर कहते हैं कि साइकोलॉजी ऑफ़ मनी को समझने के लिए बहुत ज़रूरी है कि हम मनी और खुद के बीच के रिश्ते को भी बेहतर समझने की कोशिश करें. अगर आप सोचते हैं कि पैसों से दिक्कतों की शुरुआत होती है. तो आपको समझना चाहिए कि पैसों में कोई दिक्कत नहीं है. सारी दिक्कत की शुरुआत हमारे दिमाग में ही होती है. अगर हम सही ढ़ंग से पैसों का इस्तेमाल करना सीख जाएँ तो हमारी लाइफ की सारी परेशानी खत्म हो जाएगी. इसलिए बहुत ज़रूरी है कि हमें पैसों और अपने बीच के रिश्ते को समझना भी होगा और उसे बेह्तर से बेहतरीन बनाना भी होगा. 

आने वाले कुछ चैप्टर्स में हम अपने और पैसों के बीच के रिश्ते को बारीकी से देखने की कोशिश करेंगे. हम समझने की कोशिश करेंगे कि हम इस रिश्ते को बेहतर कैसे बना सकते हैं?



हमारे अंदर बैंक नोट्स और सिक्कों को लेकर एक अलग ही ज़ुनून है
क्या आपको याद है कि पैसों के बारे में आपको सबसे पहले कब पता चला था? हो सकता है कि इस बारे में आपको अपने ग्रैंड पैरेंट्स से पता चला हो, या फिर बड़े भाई बहन के पिगी बैंक से.. इसको लेकर हर किसी की अलग-अलग कहानियां हो सकती हैं. 

ऐसा भी हो सकता है कि आपको याद ही ना हो कि पैसों के बारे में सबसे पहले आपको कहाँ से पता चला था? 

ये ओब्सर्व किया गया है कि छोटे बच्चे पैसों को ऑब्जेक्ट की तरह देखते हैं. उन्हें नोट्स में छपे चित्र को देखने में मज़ा आता है. उन्हें सिक्कों के साथ खेलने में मज़ा आता है. ऐसा बचपन में आप भी किया करते होंगे. 

नोट्स और सिक्कों से खेलते-खेलते कब हमें उनसे प्यार या लगाव हो जाता है, हमें पता भी नहीं चलता है. यही वजह है कि लोग आज भी कैश के ऊपर ज्यादा भरोसा करते हैं. उन्हें डिजिटल करेंसी के ऊपर उतना भरोसा नहीं है. जितना कैश के ऊपर है. 

यही वजह है कि जब “के फाउंड डेशन” ने नोट्स को आग लगाया था, तो उसे दुनिया भर से हेट्स का सामना करना पड़ा था. क्योंकि हमारे दिलों दिमाग में फिजिकल करेंसी के प्रति प्यार बस गया है. 

लेकिन अब देखने को मिल रहा है कि हम वर्चुअल मनी की तरफ बढ़ने की शुरुआत कर दिए हैं. इसी के साथ इस सवाल का भी जन्म हो गया है कि जब हम पूरी तरह से वर्चुअल मनी की तरफ बढ़ जाएंगे? तब पैसों को लेकर हमारी सोच कैसी हो जाएगी? 

इसी कांसेप्ट को हम आने वाले चैप्टर्स में और बारीकी से समझने की कोशिश करने वाले हैं. इसलिए मनी की साइकोलॉजी को समझने के सफर में साथ बनाए रखिए. और सुनते रहिए “येबुक” एप में मौजूद इस शानदार बुक समरी को.. ..

पैसों के प्रति रवैया सही नहीं रहेगा तो कभी भी अच्छी सेविंग नहीं कर पाएंगे
बचपन से ही हमें पैसों को बचाने के लिए कहा जाता है. जिस दिन हमें पिगी बैंक गिफ्ट में मिलता है. उसी दिन हमें सेविंग्स के महत्व को भी सिखा दिया जाता है. जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं. ये मैसेज हमें बार-बार दिया जाता है कि सेविंग्स की शुरुआत कर दो.. नहीं तो देर हो जाएगी. 

इतनी सीख के बाद भी, हम लोगों में से ज्यादातर लोग सेविंग्स में काफी ज्यादा बुरे रहते हैं. हमें समझ में ही नहीं आता है कि आखिर सेविंग कैसे करें? 

जब भी हम अपने पर्सनल फाइनेंस की बात करते हैं, उसमें सेविंग्स यानी बचत अहम हिस्सा है. यानी, बिना सेविंग्स के आपके लिए आगे की प्लानिंग करना मुश्किल ही होगा. समझदारी के साथ की गई सेविंग्स आपको मुश्किल हालात में प्रोटेक्ट करती है, साथ ही जीवन के अहम लक्ष्यों को भी आप आसानी से हासिल कर लेते हैं.

हमारा पैसों के प्रति सही रवैया नहीं रहता है. इसलिए हमारी सेविंग्स भी नहीं हो पाती है. 

सेविंग्स की रास्ते में सबसे बड़ी दिक्कत आपकी बेतरतीब बजटिंग हो सकती है. अगर आप अपना बजट सही तरीके से बनाते हैं, तो आप पैसा नहीं बचा पाएंगे. हमेशा बजट बनाते समय आपको जरूरतें और इच्छाओं में फर्क करना होगा. 

आप अपनी इच्छाओं को कम करके या गैर-जरूरी खर्चे कम करके सेविंग कर सकते हैं. बजट बनाते समय हमेशा 50-30-20 का रूल फॉलो करना चाहिए. इसमें आपकी इनकम का 50 फीसदी आपकी जरूरतों के लिए, 30 फीसदी जो आप चाहते हैं, और शेष 20 फीसदी बचत है.

सेविंग्स करने के लिए हमें आज से ही अपनी आदतों को ठीक करना होगा. अगर हम पैसों को लेकर सही आदतें नहीं डालेंगे. तो हम कभी भी बेहतर फाइनेंशियल प्लानिंग नहीं सीख पाएंगे. इसलिए आज से ही क्रेडिट कार्ड के सही इस्तेमाल को भी सीखना शुरू कर दीजिए. क्योंकि ज्यादातर लोगों का कर्ज़ क्रेडिट कार्ड के गलत इस्तेमाल से भी बढ़ता जा रहा है.

पैसों के मामले में “मेंटल अकाउंटिंग” का रोल भी काफी ज्यादा है
अगर आप नॉर्मल दिनों में सुपर मार्केट जायेंगे, और कोई चीज़ आपको पसंद आ जाएगी, लेकिन अगर उसकी कीमत ज्यादा होगी. तो आप उस चीज़ को नहीं खरीदेंगे. 

लेकिन अगर उसी की ज़रूरत आपको हॉलिडे के समय लगेगी तो आप बिना प्राइज़ टैग को देखे ही उस चीज़ को खरीद लेंगे. इस छोटी सी बात से लेखिका समझाना चाहती हैं कि हम कैटगरी के हिसाब से अपने पैसों को खर्च करते हैं. 

इस बारे में बात करते हुए Richard Thaler ने कहा था कि हमारे दिमाग के ऊपरी हिस्से में “mental accounts” है. जिसकी मदद से हम अपने पैसों को कैटगरी के हिसाब से खर्च करते हैं. 

लेखिका बताना चाहती हैं कि इसी “mental accounts” की वजह से इंसान अलग-अलग जगह अलग-अलग तरीके से पैसों को खर्च करता है. अधिकत्तर देखा गया है कि इंसान ट्रेवलिंग के समय ज्यादा पैसे खर्च करने लगता है. उससे ऐसा उसका मेंटल अकाउंट ही करवाता है. 

आपको बता दें कि मेंटल अकाउंटिंग का कांसेप्ट ह्यूमन साइकोलॉजी से निकलकर आया है. ये कांसेप्ट हमें बताता है कि अगर हमें पैसों को अच्छे से समझना है. तो हमें ह्यूमन साइकोलॉजी को भी अच्छे से समझना होगा. 

हम जैसा पैसों को लेकर बिहेव करते हैं, उस बिहेवियर के पीछे ह्यूमन साइकोलॉजी का भी बहुत बड़ा योगदान होता है.

इस टेकनीक से किसी के भी Perception को भी बदला जा सकता है
अब कहानी एक ऐसे लड़के की आने वाली है. जिसने वाइन बेचकर काफी दौलत कमाई थी. उसने वाइन्स को आम लोगों को नहीं बल्कि करोड़पतियों को बेचा था. 

अब आप सोच रहे होंगे कि इसमें क्या ख़ास बात है? बहुत से लोग एलीट्स लोगों को शराब बेचते हैं. और पैसे कमाते हैं. आप सही सोच रहे हैं, लेकिन इस इंसान, जिसका नाम Rudy Kurniawan था. इसने अमीर लोगों को नकली शराब बेची थीं. 

अमीर लोग अपने आपको वाइन्स का महारथी समझते थे. उनका दावा था कि वो स्वाद लेकर ही महंगी वाइन्स का पता लगा लेते हैं. 

लेकिन Rudy Kurniawan ने उन्हें कई साल रेड वाइन सर्व की थी और उन्हें ये विश्वास दिलाता रहा कि वो एलीट वाइन का सेवन कर रहे हैं. 

जब इस राज़ से पर्दा उठा तो कई लोगों ने सोचा कि आखिर इतने अमीर लोगों को कई सालों तक पीने के बाद भी पता क्यों नहीं चला कि उन्हें एलीट वाइन के नाम पर रेड वाइन सर्व की जा रही है? 

जब इस बात पर कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी ने रिसर्च की, तो पता चला कि ये सब “confirmation bias” की शक्ति के कारण हुआ है. ह्यूमन साइकोलॉजी ही ऐसी होती है कि उसे जो बार-बार बता दिया जाए, वो उसी के ऊपर विश्वास करने लगती है. 

“confirmation bias” की मदद से ही अमीरों को ये विश्वास दिलाया गया था कि उन्हें महंगी वाइन सर्व की जा रही है. फिर उनके दिमाग ने रेड वाइन्स को ही महंगी वाइन समझने का काम शुरु कर दिया. जिसकी वजह से किसी को कभी शक ही नहीं हुआ कि वो महंगी बोतल में सस्ती शराब का सेवन कर रहे हैं. 

इसलिए लेखिका कहती हैं कि “confirmation bias” की मदद से किसी के भी परसेपशन को बदला जा सकता है. 

लेखिका कहती हैं कि ऐसा ही कुछ फार्मा कम्पनीज भी करती हैं. उन्होंने ब्रांडिंग की वजह से ऐसे बिलीफ को पैदा कर दिया है कि अब लोग सेम कम्पोजीशन की जेनरिक दवाइयों पर भरोसा ही नहीं करते हैं. उन्हें लगता है कि जो ब्रांड की दवाई महंगी है. वही ज्यादा फायदा करती है. लेकिन ऐसा सिर्फ और सिर्फ बिलीफ सिस्टम की वजह से हो रहा है. अब आपको पता चल चुका होगा कि बिलीफ सिस्टम में कितनी ज्यादा शक्ति होती है. 

“Confirmation bias” के बारे में पता चल चुका है तो इसका मतलब ये भी नहीं है कि हमेशा सस्ती चीज़ों पर ही भरोसा करते रहिए. इसका मतलब ये है कि हमेशा अपने दिमाग का सही इस्तेमाल करते रहिए. 

आपको “Confirmation bias” के बारे में जानकारी इसलिए दी गई है कि आप सही और सटीक फैसले तक पहुँच सकें. अगली बार जब भी कोई फैसला करना हो तो इस कांसेप्ट को भी ज़रूर याद रखिएगा.

क्या पैसा मोटिवेशनल फैक्टर भी बन सकता है? इस चैप्टर में होगी इस पहलू पर भी बात
आम तौर पर लोग ऐसा बोलते हैं कि पैसा लोगों को कुछ भी करने के लिए प्रेरित कर सकता है. अगर आप जॉब करने वाले लोगों को देखें तो ये बात सही भी लगती है. अब आप खुद ही सोचिए कि अगर पैसा नहीं दिया जाए तो क्या कोई काम पर जाएगा? 

इसका जवाब सभी को मालुम है, कई रिसर्च भी बता चुकीं हैं कि काम के लिए पैसा मोटिवेशन का काम करता है. 

लेकिन अगर आप काम करवाने वाले हैं, मतलब अगर आप कंपनी के मालिक हैं. तो आपको पैसों को लेकर ध्यान रखना चाहिए कि पेचेक और प्रोडक्टीविटी का मिलान ज़रूर होना चाहिए. अगर ऐसा नहीं होगा तो आपको घाटा लग सकता है. 

मान लीजिए कि आपको जामुन को इकट्ठा करने के लिए लोगों को हायर करना है. तो आपको हर एक बास्केट पर पैसा देना चाहिए ना कि हर एक घंटे पर.. अगर आप ऐसा करेंगे तो प्रोडक्टिविटी अपन आप ही काफी ज्यादा बढ़ जाएगी. 

हमें समझना चाहिए कि काम के लिए पैसा मोटिवेशन बन सकता है. लेकिन इसकी कहानी भी अलग-अलग फील्ड के लिए अलग-अलग ही है. कई लोग अपने काम के लिए इतने ज्यादा पैशनेट होते हैं. कि पैसा उनके लिए बस एक पहलू ही होता है. उनको उनके काम से भी काफी ज्यादा मोटिवेशन मिलता रहता है. 

इसको समझाने के लिए Edward Deci ने एक एक्सपेरिमेंट किया था, उन्होंने जर्नलिज्म के स्टूडेंट्स को दो भागों में बाँट दिया था. एक ग्रुप से उन्होंने कह दिया था कि उन्हें शाम तक अच्छी-अच्छी हेडलाइंस देनी है. 

इसके बदले उन्हें अच्छे पैसे दिए जाएंगे, यही टास्क उन्होंने दूसरे ग्रुप्स को भी दिया था. लेकिन उन्हें पैसा देने का वादा नहीं किया था. शाम होने के बाद उन्होंने सबसे हेडलाइंस पूछीं, उन्होंने ओब्सर्व किया कि जिन लोगों को पैसे नहीं मिले थे. उन्होंने ज्यादा बेहतर काम किया था. ये एक्सपेरिमेंट बताता है कि पैशन से बड़ा मोटिवेशन कुछ नहीं हो सकता है.

पैसों की मदद से सोशल प्रॉब्लम भी सॉल्व की जा सकती हैं
वर्क परफॉरमेंस बस एक एरिया नहीं है, जहाँ मनी को मोटिवेटर समझा जाता है. लेकिन अब सवाल ये भी उठता है कि क्या पैसों की मदद से सोशल प्रॉब्लम सॉल्व हो सकते हैं? 

इसे हम पब्लिक एजुकेशन सिस्टम से समझने की कोशिश करते हैं. क्या इसकी मदद से पब्लिक एजुकेशन सिस्टम को बेहतर किया जा सकता है? साल 2007 की बात है यूनाइटेड स्टेट्स में एक कंट्रोवरसियल एक्सपेरिमेंट कन्डक्ट किया गया था. इस एक्सपेरिमेंट के दौरान 36 हज़ार स्टूडेंट्स के बीच में 9.1 मिलियन डॉलर को बाँट दिया गया था. इस कंडीशन में कि उन्हें टेस्ट पास करना है. लेकिन एक्सपेरिमेंट के बाद कोई ख़ास फायदा देखने को नहीं मिला था. 

लेकिन कोलंबिया में जब बच्चों को कहा गया कि अगर वो हाई स्कूल पास कर लेंगे तो उन्हें एक तय रकम उपहार के तौर पर दी जाएगी. तो रिजल्ट 22 परसेंट से 72 परसेंट में पहुँच गया था. 

आखिर ऐसा क्यों हुआ था? क्योंकि कोलम्बिया में हर बच्चे को 300 डॉलर देने को कहा गया था. वहां के हिसाब से ये काफी ज्यादा रकम थी. इतने में किसी की भी पूरे कॉलेज की पढ़ाई हो सकती थी. ये रिवॉर्ड इतना ज्यादा बड़ा था कि इसमें मनी ने मोटिवेटर का काम किया. इस मोटिवेशन की वजह से बच्चों को यकीन हो गया था कि अब उन्हें पढ़ाई बीच में नहीं छोड़नी पड़ेगी. इसलिए उन्होंने पैसों के लिए खूब जान लगाकर मेहनत की थी. 

इसलिए ये समझना ज़रूरी है कि लोगों को केवल पैसों की मदद से ही मोटिवेट नहीं किया जा सकता है. इसके पीछे सिचुएशन का भी बहुत बड़ा हाँथ होता है. इसलिए इस चैप्टर में ह्यूमन साइकोलॉजी की भी बात हो रही है. बिना साइकोलॉजी को समझे हुए पैसों को समझ पाना मुश्किल है. 

कई जगह सिगरेट जैसे नशे को भी पैसों की मदद से छुड़ाया जाता है. वहां सिगरेट छोड़ने के लिए नशा करने वाले के बैंक अकाउंट में पैसे डाले जाते हैं. इन सब बातों से हमें समझना चाहिए कि पैसों की मदद से सामाज के लिए भी काफी बेहतर काम किए जा सकते हैं. इसलिए आज से ही हमें पैसों के महत्व को समझना चाहिए. हमें समझना चाहिए कि इसकी मदद से हम अपनी और दूसरों की लाइफ को काफी ज्यादा बेहतर बना सकते हैं. इसलिए आज से ही फाइनेंशियल ज्ञान को बढ़ाने की शुरुआत कर दीजिए.

पैसा हमें खुश कर सकता है - लेकिन केवल एक सीमा तक.. ..
अब तस्वीर में एक ऐसे शख्स की कहानी आने वाली है. जिसने इतना ज्यादा पैसा जीता था, जितना कि लोगों को सपने में भी नहीं आता है. अब कहानी William “Bud” Post III की आ रही है. इसनें लाटरी में 16 मिलियन डॉलर से भी ज्यादा पैसा जीता था. 

आप सोच रहे होंगे कि इतने पैसे में तो इंसान की 7 पुश्तें आराम से खा सकती हैं. लेकिन ये इंसान इतने पैसों के बाद भी खुशियों तक नहीं पहुँच पाया था. बल्कि इसके ऊपर बैंक का कर्ज़ भी चढ़ गया था. 

5 सालों के भीतर ही इसका जीवन नर्क में जीने जैसा हो गया था. ये कंगाल हो चुका था, जेल भी जा चुका था और इसकी शादी भी टूट चुकी थी. 

इस कहानी से साफ़ होता है कि पैसे सबके लिए खुशियाँ नहीं खरीद सकते हैं. 

कई लाटरी विनर्स के ऊपर हुई रिसर्च बताती है कि अचानक बहुत सारे पैसे जीत लेने के बाद भी लोग ख़ुशी नहीं खरीद पाते हैं. 

कहा जाता है कि Lottery winners को बहुत जल्दी नई दौलत की आदत हो जाती है. इसी कांसेप्ट को hedonicadaptation भी कहा जाता है. अगर आप किसी लग्जरी होटल में पहली बार रुकते हैं. तो वो एक्सपीरियंस आपको बहुत नया सा लगता है. लेकिन अगर आप वहां हर हफ्ते जाने लगेंगे तो वो जगह आपको काफी आम सी लगने लगेगी. ऐसा बस इसलिए होगा क्योंकि वहां की आपको आदत हो जाएगी. 

इन सब बातों का ये भी मतलब नहीं है कि ख़ुशी के लिए पैसों की ज़रूरत ही नहीं है. इन बातों का सिम्पल सा मतलब ये है कि हमें पैसों को खर्च करते आना चाहिए. हम पैसों से खुश भी हो सकते हैं और उनसे बर्बाद भी हो सकते हैं. ये हमारे ऊपर है कि हम पैसों की पॉवर का इस्तेमाल कैसे करते हैं? 

हमें ये समझना होगा कि सोसाइटी के बनाए नियम के हिसाब से लाइफ को नहीं जीना है. अगर आपके पास अभी खुद का घर नहीं है. तो केवल इसलिए लोन नहीं ले लेना कि सबके पास खुद का घर है? आपको अपने लिए खुद का घर तभी लेना है. जब आपका बजट और सैलरी आपको अलाऊ करे. इसलिए आज से ही अपने आपको समझा दीजिए कि आपकी लाइफ है और आपको ही इसे डिजाइन करनी है. 

ज़िन्दगी आसान बनाई जा सकती है लेकिन हम सोसाइटी के प्रेशर में आकर, अपनी ही लाइफ को और ज्यादा कठिन बनाते चले जाते हैं. 

हमें ये कोशिश करनी चाहिए कि पैसों की मदद से हम अपनी क्वालिटी ऑफ़ लाइफ को बेहतर कर सकें. लेकिन इसके लिए ई.एम्.आई के बोझ तले मरने की ज़रूरत नहीं है. 

इस पूरे चैप्टर का सार यही है कि पैसे हमारी मदद के लिए हैं. उन्हें अपना दुश्मन बनाने की गलती हम खुद करते हैं. इसलिए हमें सही फैसले करना सीखना होगा. इसी के साथ खुश रहने के लिए ठीक ठाक पैसे भी बहुत हैं. ज़रूरी नहीं है कि करोड़ों की लाटरी जीतकर ही हम खुश रह सकते हैं. 

लाइफ का मकसद केवल और केवल खुश रहना ही होना चाहिए.

कुल मिलाकर
पैसों को समझने के लिए, हमे हमारी साइकोलॉजी को भी समझने की ज़रूरत है. पैसों के मामले में सही फैसले करना बहुत ज़रूरी है. इसकी शुरुआत हम सही सेविंग्स की आदत से डाल सकते हैं. सेविंग्स हमारे फ्यूचर के लिए भी ज़रूरी हैं. 

क्या करें? 

आज से ही अपने खर्चों का हिसाब लगाना शुरू कर दीजिए, आपको पता होना चाहिए कि आपकी कमाई कितनी है? और खर्चे कितने है? बिना हिसाब के पैसों के गणित को समझ पाना मुश्किल ही है. 

 

येबुक एप पर आप सुन रहे थे Mind Over Money By Claudia Hammond

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