John Wood
एक करिश्माई इंसान की कहानी!
दो लफ्ज़ों में
साल 2006 में रिलीज़ हुई किताब “Leaving Microsoft to Change the World” एक ऐसे इंसान की कहानी के ऊपर रोशनी डालती है जिसने माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनी के हाईकमान से इस्तीफ़ा देकर बच्चों के एजुकेशन और जेंडर इक्वलिटी के लिए एन.जी.ओ में काम करने की शुरुआत की थी. वो शख्स कोई और नहीं बल्कि John Woodथे. और इस किताब में आपको इन्हीं की ज़िन्दगी की दिलचस्प और मोटिवेशनल स्टोरी जानने को मिलेगी.
ये किताब किसके लिए हैं?
-ऐसे लोग जिन्हें ग्लोबल एजुकेशन में दिलचस्पी हो
-सभी फील्ड के स्टूडेंट्स के लिए
-ऐसे लोग जो नॉन प्रॉफिट आर्गेनाईजेशन के बारे में जानना चाहते हों
लेखक के बारे में
इस किताब का लेखन जॉन वुड ने किया है. ये लेखक होने के साथ-साथ जाने-माने बिजनेसमैन भी हैं. इन सभी के साथ ये “रूम टू रीड” और “रूम टू ग्रो” जैसे नॉन प्रॉफिट आर्गेनाईजेशन के संस्थापक भी हैं.
जॉन वुड की लाइफ का टर्निंग पॉइंट नेपाल यात्रा से जुड़ा हुआ है
ज्यादातर लोग छुट्टियों में एन्जॉय करना पसंद करते हैं. इसके लिए वो वैकेशन पर निकल जाते हैं. और वहां से लौटकर ताज़गी से काम पर वापस लग जाते हैं. लेकिन जॉन वुड की नेपाल यात्रा ने उनके जीवन को पूरी तरह से बदल दिया था. उस यात्रा से उनके नज़रिए में पूरी तरह से बदलाव आ गया था. इसके बाद वो दुनिया के साथ-साथ अपने करियर को भी पूरी तरह से बदल देना चाहते थे.
किताब “Leaving Microsoft to Change the World” में बताया गया है कि कैसे नेपाल की ग़रीबी ने लेखक के दिमाग में गहरा असर छोड़ा था. उस यात्रा के दौरान उन्हें अपनी ज़िन्दगी के नए मकसद के बारे में पता चल गया था. उन्हें पता चल गया था कि गरीब बच्चों को शिक्षा की ज़रूरत है. और इस नेक काम के लिए कई लोगों को आगे आना होगा.
आपको इन चैप्टर्स में जॉन वुड की मोटिवेशनल कहानी की बारीकियों को जानने का मौका मिलेगा. आपको पता चलेगा कि लाइफ में सही दिशा कभी भी और कहीं भी मिल सकती है.
इस समरी में आप यह भी जानेंगे कि किसी भी सामाज के लिए औरतों की शिक्षा कितनी ज़रूरी है? और बदलाव की शुरुआत कहीं से भी हो सकती है
तो चलिए शुरू करते हैं!
मिलिए जॉन वुड से, ये माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनी में साल 1991 से 1998 तक टॉप एग्जीक्यूटिव की तरह काम कर रहे थे. इन्होंने माइक्रोसॉफ्ट में काबिले तारीफ़ सफलता पाई, लेकिन फिर एक वेकेशन आया. जिसने इनकी लाइफ को 360 डिग्री बदलकर रख दिया. वो वेकेशन नेपाल में था, जहाँ इन्होंने इतनी बदत्तर एजुकेशन सिस्टम देखा कि इन्हें शिक्षा के महत्व का एहसास हो गया.
एक दिन की बात है, वुड नेपाल में हाईकिंग के लिए निकले थे. तब इन्होने फैसला किया कि ये नेपाल की स्कूल्स को देखने जाएंगे. लेकिन इन्हें नहीं मालुम था कि स्कूल की कंडीशन इनकी लाइफ को पूरी तरह से बदलने वालीं हैं.
दरअसल, वुड की मुलाक़ात एजुकेशन रिसोर्स गाइड पसुपति से हुई, उन्होंने इन्हें बताया कि नेपाल में लिट्रेसी रेट केवल 30 परसेंट ही है. और वो इस हालात को बदलना चाहता है.
जब वुड ने नेपाल की स्कूल का दौरा किया तो उनके होश उड़ गए. उन्हें किसी भी स्कूल में किताबें नज़र नहीं आ रही थीं. जहाँ भी कुछ किताबें थीं तो वो भी तिजोरी में बंद थीं.
इसके बाद वुड ने स्कूलों को कितीबें देने का फैसला किया, उन्होंने वापस लौटने के बाद 200 से 300 किताबें नेपाल की स्कूलों को भेजीं. साथ ही साथ वुड ने वहां के हालातों को सुधारने के लिए लोगों से बात करने की भी शुरुआत कर दी.
इसका रिज़ल्ट इतना बढ़ियां था कि कुछ महीनों के अंदर वुड ने 3 हज़ार से ज्यादा किताबें नेपाल भेज दीं.
बच्चों की शिक्षा के लिए जॉन वुड ने अपनी जॉब छोड़ने का फैसला कर लिया था
नेपाल की स्कूलों में किताबें भेजने के बाद वुड को काफी संतुष्टि का अनुभव हुआ. ऐसा अनुभव उन्हें पहले कभी नहीं हुआ था. कई सालों से माइक्रोसॉफ्ट में काम करने के बावज़ूद उन्हें इतनी ख़ुशी कभी नहीं मिली थी. उन्हें पता था कि उनके इस कदम से कई बच्चों को फायदा मिलेगा.
इस ख़ुशी के बाद से ही उन्होंने तय कर लिया कि अब वो जॉब छोड़ देंगे और खुद को बच्चों की एजुकेशन के लिए समर्पित कर देंगे. इसी के साथ उन्होंने सोच लिया था कि अब से वो नॉन प्रॉफिट करियर को फॉलो करेंगे. फिर उन्होंने नेपाल की दूसरी ट्रिप प्लान की, नेपाल पहुँचने के बाद उन्होंने देखा कि यहाँ की स्कूल्स की बहुत ज्यादा खराब है. यहाँ काफी काम की ज़रूरत है.
अब उनके दिमाग में क्लियर हो चुका था कि उन्हें आगे क्या करना है? इसलिए सबसे पहले उन्होंने अपने ऑफिस में इन्फॉर्म किया कि अब से वो काम नहीं करेंगे.
अब उनके दिमाग में एक नॉन प्रॉफिट आर्गेनाईजेशन का नाम घूम रहा था. ये नाम रूम टू रीड था, वो इसी नाम से आर्गेनाईजेशन की शुरुआत करना चाहते थे. लेकिन इस नए करियर में सफलता की कोई गारंटी नहीं थी. उन्होंने माइक्रोसॉफ्ट की तरफ से मिली सारी सुख सुविधा छोड़ दी.
वो San Francisco शिफ्ट हो गए, यहाँ उनके काम में आसानी होने वाली थी. इस शहर में रहकर वो कई डोनर्स से बात चीत करना चाहते थे. वुड्स के करियर में चेंज आने की वजह से उनकी रोमांटिक रिलेशनशिप भी बदल गई. वुड्स के करियर के चुनाव को देखते हुए उनकी गर्ल फ्रेंड ने उनसे ब्रेक अप कर लिया. लेकिन इसके बाद भी वुड्स ने अपने फैसले को नहीं बदला.
इन्वेस्टमेंट के लिए वुड्स ने बड़ी शिद्दत से तैयारी की
किस एक फैक्टर से पता चलता है कि नॉन प्रॉफिट आर्गेनाईजेशन सफल होगी? इसका सीधा सा जवाब पैसा ही है.
नॉन प्रॉफिट आर्गेनाईजेशन को इन्वेस्टमेंट की ज़रूरत पड़ती है. बिना इन्वेस्टमेंट के नॉन प्रॉफिट आर्गेनाईजेशन नहीं चल सकती है. साथ ही साथ इस आर्गेनाईजेशन को एक अच्छी तगड़ी टीम की भी ज़रूरत पड़ती है.
वुड के पास सही एटीट्यूड था, उन्हें इन्वेस्टर्स से बात चीत करते आता था. उन्हें मालुम था कि कैसे इन्वेस्टर की ना को हाँ में बदला जा सकता है?
नॉन प्रॉफिट आर्गेनाईजेशन चलाने के लिए नेवर गिवअप एटीट्यूड होना चाहिए और इसी एटीट्यूड के साथ वुड्स ने काम किया था.
फंड्स जनरेट करने के लिए वुड्स ने सोची समझी स्ट्रेटजी बनाई थी. ये स्ट्रेटजी उनकी पिच में साफ़ तौर पर नज़र आती थी. वुड्स जानते थे कि फंड्स देने वाले एजुकेटेड लोग होंगे. इसलिए उन्होंने अपनी पिच में एजुकेशन को विशेष तौर पर शामिल किया था.
पिच की शुरुआत में ही वो अपनी एजुकेशन बताते थे. जिससे फंडर्स और उनके बीच एक रिश्ता बन सके. इसके बाद वो इन्वेस्टर्स को एजुकेशन के महत्व को याद दिलाते थे. और उन्हें अपने विज़न के बारे में भी बताते थे.
इसके साथ ही साथ वुड्स डोनेशन और उसके पॉजिटिव इफेक्ट्स के बीच क्लियर लिंक भी दिखाते थे. जिससे इन्वेस्टर्स को यकीन होता कि वो इस डोनेशन की मदद से कोई नेक काम करने वाले हैं.
इनके अलावा वुड अपनी पिच में इन्वेस्टर्स को खुद के पैशन के बारे में भी बताना नहीं भूलते थे. वो बताते थे कि कैसे उन्होंने इस पैशन के लिए लाखों की नौकरी छोड़ दी है. इससे इन्वेस्टर्स को यकीन हो जाता था कि वो अपना पैसा सही हांथों में सौंप रहे हैं.
अब किस्सा वियतनाम का आने वाला है
जब वुड माइक्रोसॉफ्ट में काम किया करते थे. तब उनका बिजनेस ट्रिप के लिए वियतनाम आना हुआ था. और उनकी मुलाक़ात एक 17 साल के पैशनेट लड़के Vu से हुई थी.
Vu होटल में काम करता था और इंग्लिश सीखना चाहता था. लेकिन उसके पास इंग्लिश की किताब नहीं थी. तब वो कम्प्यूटर सीख रहा था क्योंकि उसे लगता था कि दुनिया से जुड़ने के लिए वियतनाम क कम्पूटर सीखने की ज़रूरत है.
यही कारण है कि जब वुड ने Room to Read की स्थापना की, तो उन्हें वू नाम के इस लड़के की याद आई. जिसकी वजह से उन्होंने अपनी मुहीम को वियतनाम ले जाने का भी फैसला किया.
वुड वियतनाम जाने का सोच ही रहे थे कि उन्हें Erin नाम की औरत का कॉल आया, वुड इन्हें नहीं जानते थे. लेकिन वो उनकी मदद करने को तैयार थी.
Erin को वुड का नंबर किसी दोस्त से मिला था. वो वुड के नेपाल में किए काम से काफी प्रभावित थी. इसलिए वो सी मुहीम से जुड़कर वुड की मदद करना चाहती थी. Erin वुड के साथ इस मुहीम के लिए फ्री में काम करना चाहती थी. बाद में उसकी इच्छा पूरी भी हुई और वो रूम टू रीड के साथ परमानेंट जुड़ गई.
इस कहानी का सार यही है कि अच्छे काम के लिए अच्छी टीम अपने आप बन जाती है. आपको बस पहला कदम उठाने की ज़रूरत होती है.
वुड को माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के दौर में भी बहुत कुछ सीखने को मिला था
वुड ने माइक्रोसॉफ्ट में कई स्किल्स सीखी थी. जिसकी कीमत उन्हें नई फील्ड में पता चल रही थी. रूम टू रीड को चलाने के दौरान वुड को एहसास हुआ कि माइक्रोसॉफ्ट ने उन्हें कई स्किल्स से नवाज़ा है.
इसलिए आपको अपने आज के काम की कद्र करनी चाहिए. भले ही आज आपको कम पैसे मिल रहे हों, लेकिन इस काम से आप सीख बहुत कुछ रहे हैं. और आने वाले समय में यही काम आपको प्रसिद्धी और पैसे दोनों दिलवाएगा.
वुड ने माइक्रोसॉफ्ट से कई स्किल्स सीखी थीं. उनमे से एक स्किल रिज़ल्ट को हासिल करना भी था. रूम टू रीड तेजी से आगे बढ़ रहा था. इसके पीछे का एक बड़ा रीज़न ये था कि वुड के अंदर रिज़ल्ट की भूख थी. उन्हें किसी भी हालत में पॉजिटिव रिजल्ट चाहिए था.
इसी के साथ वुड अपने साथ काम करने वालों की काफी ज्यादा रिस्पेक्ट किया करते थे. ये सीख भी उन्हें माइक्रोसॉफ्ट से ही मिली थी.
ईमानदारी से काम करने से अच्छे रिजल्ट मिलते हैं. ये बात वुड्स को मालुम थी क्योंकि माइक्रोसॉफ्ट में उनके कई मैनेजर्स ने उन्हें सीख दी थी. यही वजह थी कि वुड अपने गोल की तरफ ईमानदारी से बढ़ते चले जा रहे थे. जिसका पॉजिटिव रिजल्ट भी नम्बर्स में दिख रहा था.
रूम टू रीड का दायरा बढ़ाने के लिए वुड को मज़बूत लोकल नेटवर्क की ज़रूरत थी
वुड रूम टू रीड को दुनिया के हर कोने तक लेकर जाना चाहते थे. लेकिन उन्हें डर था कि कहीं इसे बढ़ाने के चक्कर में मुहीम की आत्मा ही खत्म ना हो जाए?
तब वुड ने फैसला किया कि आर्गेनाईजेशन को बढ़ाने से पहले, वो डोनर्स का लोकल नेटवर्क मज़बूत करेंगे. वो आर्गेनाईजेशन में नए लोकल कर्मचारी एड ऑन करना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने कई एफर्ट्स करने की शुरुआत कर दी, समय बीतते-बीतते वुड को नए-नए लोग मिलने भी लगे.
वुड को ज़रा सा भी अंदाज़ा नहीं था कि उनके द्वारा शुरू किया गया सफर धीरे धीरे कारवां का रूप ले लेगा.
समय के साथ वुड की एक मज़बूत टीम तैयार हो चुकी थी. जिसका काम बुक्स का चयन करके उसे डिलीवर करना होता था. धीरे-धीरे रूम टू रीड प्रोजेक्ट को लोकल्स का सपोर्ट भी मिलने लगा. अब समय आ चुका था कि वुड की मेहनत को पूरी दुनिया देखने वाली थी.
वुड को इस बात का भी अंदाज़ा था कि पुराने लोगों को भी साथ लेकर चलना है. इसलिए वो पुराने लोगों का भी पूरा ध्यान रखा करते थे. किसी भी काम को बढ़ाने का ये मतलब नहीं होता है कि पुराने डेवलपमेंट को पूरी तरह से भूल जाएँ.
इसलिए वुड खुद नेपाल की स्कूलों से बात किया करते थे कि उन्हें किताबें मिल रही हैं ना? उनका मानना था कि एजुकेशन पर सबका बराबर हक है. इसलिए सामाज में जिन लोगों के पास सामर्थ्य है. उन्हें अपने से आगे आकर दूसरों की मदद करनी चाहिए. एक दूसरे की मदद करके ही हम पूरी दुनिया को रहने लायक बना सकते हैं.
“रूम टू ग्रो” की स्थापना औरतों को पढ़ाने के लिए की गई थी
क्या आपको पता है कि विश्व की दो तिहाई औरतें पढ़ी लिखी नहीं हैं? इसलिए वुड ने औरतों की पढ़ाई में विशेष ध्यान दिया. उन्हें समझ में आ चुका था कि किसी भी देश का विकाश बिना औरतों के शिक्षित हुए नहीं हो सकता है.
इसलिए उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए स्पेशल प्रोग्राम बनाया. उस प्रोग्राम का नाम रूम टू ग्रो रखा. इसमें महिलाओं को पढ़ने के लिए स्कालरशिप दी जाती थी.
इस प्रोग्राम की मदद से गरीब परिवारों की लड़कियों को पढ़ाया जाता था. रूम टू ग्रो का मकसद ही सामाज में बराबरी लाने का था. इस मुहीम को चलाने के लिए वुड को काफी मेहनत करनी पड़ी थी.
महिलाओं की शिक्षा पर बात करते हुए वुड कहते हैं कि “महिलाओं की शिक्षा की आवश्यकता को बताने से पहले हमे यह जानना चाहिए की शिक्षा क्या होती है और इसकी हमारे समाज में क्या आवश्यकता है? शिक्षा, एक ऐसा गहना है जो मनुष्य को संस्कारवान और सुशील बनाता है, जैसे हमारे जीवन के लिए ऑक्सीजन जरूरी है उसी तरह इंसान की ज़िन्दगी में शिक्षा की ज़रूरत होती है. अगर बच्चों को सही शिक्षा नहीं दी गई तो एक दिन ये विश्व खत्म हो जाएगा.”
वुड को साल 2005 की सुनामी ने भी बहुत कुछ सिखाया था
रूम टू रीड की पांचवी सालगिरह के आस पास की बात है. वुड लॉन्ग वीकेंड का प्लान बना रहे थे. फिर उन्होंने उसे बदलकर एक लंबी छुट्टी ही ले ली. वो काफी थक चुके थे इसलिए वो रिलैक्स करना चाहते थे.
लेकिन तभी उन्हें एक फोन कॉल आया, जिसमें बताया गया कि भयानक सुनामी ने एशिया को टच किया है. इस वजह से वुड को काम पर वापस लौटना पड़ा कि वो स्कूल और लाइब्रेरी को री बिल्ड कर सकें.
वुड को पता था कि सुनामी के बाद स्कूल्स में भारी नुकसान हुआ है. उन्हें ये भी मालुम था कि उनकी टीम इस मुसीबत का सामना कर लेगी. लेकिन उनके पास फंड की कमी थी. सुनामी ने कई स्कूल्स को पूरी तरह से तबाह कर दिया था. उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि फंड का इंतजाम कहाँ से होगा?
लेकिन फिर कुछ दिनों बाद सीएनएन न्यूज़ चैनल में उनका एक इंटरव्यू हुआ. उस इंटरव्यू में उन्होंने अपने आर्गेनाईजेशन की दिक्कत का ज़िक्र किया. उन्होंने अपने काम के बारे में भी बताया. इंटरव्यू के कुछ दिन बाद ही वुड को पूरी दुनिया से सपोर्ट मिलने लगा.
उनके फोन की घंटी लगातार बज रही थी, फोन के उस पार से कई लोग वुड की आर्गेनाईजेशन की मदद करना चाहते थे. लोग चाहते थे कि वो बच्चों की एजुकेशन में अपना छोटा सा योगदान दे सकें.
इसके बाद क्या पैसा? और क्या किताबें? लोगों ने भर भर कर वुड की आर्गेनाईजेशन को सपोर्ट किया. उन्हें इतना ज्यादा डोनेशन मिला, जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी. लोगों का प्यार देखकर वुड की आँखें नम थीं.
आज उन्हें माइक्रोसॉफ्ट की नौकरी को छोड़ना अच्छा लग रहा था. उन्हें एहसास तो पहले से था लेकिन आज लोगों के प्यार ने उन्हें प्रमाण भी दे दिया था. उन्हें पता चल चुका था कि उनकी राह सही है. सही राह में मुश्किलें आती हैं लेकिन अगर आप ईमानदारी से काम करते रहिए तो सफलता भी आपको ज़रूर मिलेगी.
सुनामी वाले चैप्टर्स से वुड ने एक बात सीखी, वो ये थी कि आंत्रप्रेन्योर को हमेशा बड़ा सोचना चाहिए. छोटी सोच वालों के लिए ये लाइन नहीं है. धीरे-धीरे वुड की कहानी ने लाखों लोगों को इंस्पायर किया, लोग अपने घरों से बाहर आने लगे और दूसरों की मदद करने लगे. यही वुड की असली ख़ुशी और जीत है.
कुल मिलाकर
जॉन वुड के अंदर पैशन था और उन्होंने अपने पैशन को पूरी शिद्दत से फॉलो किया. जॉब छोड़ने के बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्हें पता था कि ईमानदारी से मेहनत करने के बाद सफलता ज़रूर मिलेगी. आप भी जॉन वुड की कहानी से बहुत कुछ सीख सकते हैं. सबसे पहली चीज़ तो गोल की तरफ पैशनेट होना सीखिए. आपको आपका जूनून ही सफल बनाएगा.
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