Catherine Price
The 30-Day Plan to Take Back Your Life
दो लफ्ज़ों में
साल 2018 में रिलीज़ हुई किताब “How to Break Up With Your Phone” बताती है कि हमें कैसे हमारे ही फोन का नशा हो चुका है? ये किताब आपके बिहेवियर की जांच करती है. इस किताब के चैप्टर्स बताते हैं कि हम अपने फोन का इस्तेमाल ज्यादा सही ढ़ंग से कैसे कर सकते हैं? फोन को इस्तेमाल करने से सही तरीके भी इस किताब में बताए गए हैं.
ये किताब किसके लिए है?
- ऐसे लोग जिन्हें फोन का एडिक्शन हो चुका हो
- ऐसे लोग जो डिस्ट्रेकशन की बीमारी से जूझ रहें हैं
- ऐसे लोग जिन्हें इस लत से मुक्ति चाहिए
लेखिका के बारे में
आपको बता दें कि इस किताब की लेखिका ‘Catherine Price’ हैं. ये ऑथर होने के साथ-साथ साइंस जर्नलिस्ट भी हैं. इन्होने ‘The New York Times’ ‘the Washington Post’ जैसे पब्लिकेशन के लिए भी लेखन किया है. इस किताब में मेरे लिए क्या है?
जब कभी भी आप बस में सफर कर रहे होते हैं, या फिर सड़क किनारे चल रहे होते हैं, क्या आप तब भी अपने फ़ोन में बिज़ी रहते हैं?
इस सवाल का जवाब बताता है कि आप दिन भर में कितना टाइम अपने फ़ोन पर बिताते हैं. सच्चाई ये भी है कि इतना ज्यादा समय फोन की स्क्रीन के साथ बिताना ज़रा सा भी हेल्दी नहीं है. आपको पता होना चाहिए कि फोन की भी लत यानि आदत लगती है. ऐसा होना स्वाभाविक भी है क्योंकि फोन कम्पनियां डिजाइन ही ऐसे करती हैं. इसलिए इनका थोड़ा बहुत उपयोग करना तो ठीक है. लेकिन दिन भर अपने फ़ोन पर ही लगे रहना. एक बहुत बड़ी प्रॉब्लम को न्योता देने जैसा है.
इन चैप्टर्स की मदद से आपको फोन एडिकशन की बेसिक साइकोलॉजी के बारे में पता चल जाएगा. इसके बाद आप अपने फोन के साथ अपने रिश्ते को और ज्यादा बेहतर भी कर पाएंगे. ये किताब के चैप्टर्स एक प्रैक्टिकल गाइड की तरह हैं. जिनकी मदद से आप अपने फोन से ब्रेक-अप भी कर पाएंगे. इस फैसले से फायदा क्या होगा? इस फैसले को लेने के बाद आपको पता चलेगा कि आपके पास खुद के लिए कितना ज्यादा समय बच रहा है? इस समरी में आप स्लीप साइकिल के बारे में बहुत कुछ जानेंगे, फोन एडिक्शन से होने वालीं दिक्कतों के बारे में जानेंगे और मॉडर्न फोन हैबिट्स ने कैसे लाइफ को खराब करके रखा है?लोगों के अंदर फोन की लत लगातार बढ़ती जा रही है
खुद के आस-पास देखने की कोशिश करिए, अगर आप खुद के आस-पस ही ओब्सर्व करेंगे तो आपको पता चलेगा कि लोग तो बाथरूम में भी फोन का यूज करते हैं. बड़ों से लेकर बच्चों तक को फोन की बुरी लत लग चुकी है. बस में सवारी की बात हो या फिर गार्डन में टहलने की बात हो, हर जगह लोग फोन के साथ ही नज़र आते हैं.
ये बस अनुमान नहीं है बल्कि इसके ऊपर पूरा डेटा मौजूद है.
Deloitte ने अमेरिका में साल 2016 में एक रिर्सच करवाई थी. इस रिसर्च में निकलकर सामने आया था कि अमेरिका में एक आम इंसान दिन भर में 47 बार अपने फोन को चेक करता है. इसी के साथ जब इस रिसर्च को 18 से 24 साल के उम्र वालों के ऊपर किया गया. तो रिजल्ट परेशान करने वाले थे. तब पता चला कि उस उम्र के लोग दिन भर में 100 से ज्यादा बार अपने फोन को चेक करते हैं.
साल 2015 में हैकरनून नाम की वेबसाइट ने भी अमेरिकन्स के ऊपर ही एक सर्वे करवाया था. उस सर्वे के रिजल्ट में पता चला था कि एक पार्ट टाइम जॉब के बराबर लोग फोन के साथ समय बिताते हैं.
अब सवाल ये उठता है कि आपको कैसे पता चलेगा कि आपको फोन की लत लग चुकी है? इसके लिए University of Connecticut’s के Dr. David Greenfield ने एक ऑनलाइन टेस्ट की शुरुआत की है. इस टेस्ट का नाम स्मार्टफोन कम्पलशन टेस्ट है. इस टेस्ट की मदद से आपको पता चल सकता है कि आपको स्मार्टफोन की लत लगी है या नहीं लगी है.
इस टेस्ट में आपको कुछ सवालों से गुज़रना होगा. वो सवाल कुछ इस तरह के होंगे- क्या आप आज कल फोन के साथ ज्यादा रहने लगते हैं? क्या आप लोगों से सिर्फ और सिर्फ फोन पर ही बात करते हैं? फोन के बिना आपको घबराहट होती है? क्या आप रात को भी फोन यूज करते रहते हैं?
अगर इन सवालों के जवाब हाँ में हैं. तो फिर आपको समझ लेना चाहिए कि आपको फोन की लत लग चुकी है.
लेकिन इस समय आपको पैनिक होने की ज़रूरत नहीं है. इस तरह की सिचुएशन से अधिकांश लोग जूझ रहे हैं.
डोपामीन हॉर्मोन की वजह से लत लगती है, सोशल मीडिया को डिजाइन ही इस तरीके से किया जाता है।
आपको पता होना चाहिए कि इंसानी दिमाग के सेल्स से एक ‘Dopamine’ नाम के हॉर्मोन का भी रिसाव होता है. इसी के साथ क्या आपको पता है कि इस हॉर्मोन के रिलीज़ होने से हमारे शरीर में क्या रिएक्शन होते हैं?
आपको बता दें कि जब Dopamine नाम का हॉर्मोन रिलीज़ होता है. तो ये एक ख़ुशी देने वाले रिसेप्टर की तरह होता है. इस हॉर्मोन की वजह से हमारे दिमाग को खुश रहने की संकेत मिल जाते हैं. अगर किसी भी काम को करने से ये हॉर्मोन रिलीज़ होता रहता है. तो हमें उस काम को करने में मज़ा आने लगता है. हम उस एहसास के लिए उस काम को बार-बार करना चाहते हैं. इसी हॉर्मोन की वजह से पहले के समय में लोग जंगल में शिकार करने भी जाया करते थे. उस काम में भी उन्हें थ्रिल का एहसास होता था. इसलिए वो शिकार के लिए बार-बार जाया करते थे.
लेकिन इस हॉर्मोन का एक नेगेटिव इफ़ेक्ट भी है. वो ये है कि इससे हमें चीज़ों की लत लग जाती है. हमें उन चीज़ों की आदत लग जाती है. जिसकी वजह से ये हॉर्मोन रिलीज़ होता है.
अभी तक आपने इस हॉर्मोन के साइंटिफिक इफ़ेक्ट के बारे में जाना है. अब देखिए कि हमारे आस-पास के सोशल मीडिया को कैसे डिजाइन किया गया है?
Ramsay Brown जो कि स्टार्टअप Dopamine Labs के फाउंडर हैं. इन्होने कई सोशल मीडिया एप्स के लिए अल्गोरिथम को तैयार किया है. ये बताते हैं कि हर एप को तैयार ही इस तरीके से किया जाता है कि वो यूज करने वाले के दिमाग से Dopamine हॉर्मोन को रिलीज़ कर सके. यही कारण है कि यूज़र किसी भी सोशल मीडिया एप्स की लत में फंस जाते हैं. वो हर घंटे सोशल मीडिया के एप्स को स्क्रॉल करते रहते हैं.
इंसानी दिमाग का ध्यान आसानी से भटकाया जा सकता है, स्मार्टफोन्स ये करने में माहिर हैं
आम तौर पर लोग डिस्ट्रेकशन को निगेटिव समझते हैं. लेकिन असलियत कुछ और ही है. लेखक कहते हैं कि डिस्ट्रेकशन पूरी तरह से नेचुरल है. अगर आप ह्यूमन हिस्ट्री को पढ़ेंगे तो आपको पता चलेगा कि पहले डिस्ट्रेकशन के कारण ही लोगों के अंदर प्रोग्रेस हुआ करता था. ऐसा इसलिए होता था क्योंकि ज्यादा समय तक एक ही माहौल में रहने से इंसान की सेल्फ ग्रोथ खत्म होने लगती है. इसलिए लाइफ में डिस्ट्रेकट होना भी ज़रूरी था. लेकिन ये पूरी सच्चाई नहीं है. इस फैक्ट को बताकर फोन से होने वाले डिस्ट्रेकशन को सही नहीं ठहराया जा सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि अब समय बदल चुका है. अब कई रिसर्च में ये बताया जा चुका है कि इंसानी दिमाग को कंसंनट्रेट करने में काफी ज्यादा समय लगता है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि स्मार्टफोन्स आपको लक्ष्य से डिस्ट्रेकट करने में माहिर हैं. इसको समझने के लिए हमें फोन्स को किताबों से कम्पेयर करके देखना चाहिए.
एग्जाम्पल के लिए अगर आप किताब पढ़ रहे होते हैं. तो फिर आपको डिस्ट्रेकट बाहरी चीज़ ही कर सकती है. जैसे कि किसी ने दरवाज़ा खटखटा दिया या फिर किसी का फोन आ गया. उन डिस्ट्रेकशन के बाद भी आपके दिमाग को पता रहेगा कि उसे फोकस कहाँ पर करना है?
लेकिन जब हम फोन यूज कर रहे होते हैं. तो फिर पूरी तस्वीर ही बदल जाती है. हम स्क्रीन की तरफ ध्यान लगाने की कोशिश करते हैं. और उसी स्क्रीन पर बार-बार एड्स या फिर नोटिफिकेशन आते रहते हैं. उस दौरान होता कुछ ऐसा है कि हमारे दिमाग को फोकस करने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है. जिसकी वजह से वो जल्दी-जल्दी थकने लगता है. धीरे-धीरे ऐसा भी समय आ जाता है कि हमसे किसी भी काम के ऊपर फोकस ही नहीं हो पाता है. इन्ही सब कारणों की वजह से आज के समय में लोगों का ध्यान बड़ी आसानी से भटकने लगा है. इस चैप्टर से हमें ये सीख लेनी चाहिए कि हमें स्क्रीन पर ज्यादा वक्त बिताना बंद करना होगा. अगर हमारी किताबों को पढ़ने की आदत है. तो फिर हमारी कोशिश रहनी चाहिए कि हम उनकी हार्डकॉपी ही पढ़ें.
शॉर्ट टर्म मेमोरी और लॉन्ग टर्म मेमोरी के ऊपर भी फोन असर डालता है। मेमोरी यानि याद्दाश्त ही वो चीज़ है जो हमें ‘हम’ बनाती है. इंसानी शरीर की कल्पना भी बिना याददाश्त के नहीं की जा सकती है. इसलिए ज्यादा उम्र के लोगों को ये चिंता लगी रहती है कि कहीं उनकी मेमोरी कमजोर ना हो जाए. लेकिन आज का समय ऐसा होता जा रहा है कि जवान लोगों की याद्दाश्त भी कमजोर होती जा रही है. क्या कभी हमने इसके पीछे की वजह को जानने की कोशिश की है? आपको बता दें कि इसके पीछे की वजह भी हमारे साथ रहने वाले फोन ही हैं. आपको पता होना चाहिए कि फोन का हमारी शॉर्ट टर्म मेमोरी पर बहुत बुरा असर होता है.
शॉर्ट टर्म मेमोरी जिसे वर्किंग मेमोरी भी कहा जाता है. इसका काम हमें ये बताना होता है कि हमारे चारों तरफ अभी फ़िलहाल क्या-क्या चल रहा है? इसी की वजह से आपको सारी जानकारियां भी याद रहती हैं. लेकिन हमें पता होना चाहिए कि फोन की वजह से हमारी शॉर्ट टर्म मेमोरी खराब होती जा रही है. फ़ोन से पैदा होने वाले डिस्ट्रेकशन हमारी शॉर्ट टर्म मेमोरी के ऊपर बुरा प्रभाव डाल रहे हैं. जितनी बार भी आप फोन के अंदर देखते हैं. आपके दिमाग के अंदर तुरंत बहुत सारी जानकारियाँ जाने लगती हैं. लेकिन हमारी शॉर्ट टर्म मेमोरी की इतनी शक्ति नहीं होती है. जितना प्रेशर हम उसके ऊपर डालने की कोशिश करते रहते हैं.
इससे बस हमारी शॉर्ट टर्म मेमोरी पर ही बुरा असर नहीं पड़ता है. बल्कि लॉन्ग टर्म मेमोरी पर भी बुरा असर पड़ने की शुरुआत हो चुकी है.
लॉन्ग टर्म मेमोरी की वजह से ही हम पुरानी से पुरानी बातों को भी याद रख पाते हैं. हमें पता होता है कि पिछले हफ्ते या कई सालों पहले क्या-क्या हो चुका है? लेकिन जिस तरह से फोन हमारी शॉर्ट टर्म मेमोरी को इफ़ेक्ट कर रहा है. वो वक्त आने में देर नहीं लगेगी जब हमारी पूरी याददाश्त फोन की वजह से प्रभावित होने लगेगी. सिम्पल सी बात है, वो ये है कि हर चीज़ की एक लिमिट होती है. इसी तरह हमें अपने दिमाग की लिमिट का भी ख्याल रखना चाहिए. दिन भर फोन से चिपककर अपने दिमाग के अंदर कुछ भी नहीं डालते रहना चाहिए. फ़िज़ूल की कचरा इनफार्मेशन से दिमाग खराब ही होगा.
इसलिए अपने दिमाग को बचाने की ज़िम्मेदारी भी हमारी ही है. हमें समझना चाहिए कि इन डिजिटल डिवाइस से हमारी मेंटल हेल्थ पर भी असर पड़ता है. फोन से, कई तरह की एप्स से, जिनसे आपकी लाइफ में कोई वैल्यू एड ना हो रही हो, उनसे दूरी बनाने की कोशिश करें.
फोन के ज्यादा इस्तेमाल से स्लीप पैटर्न भी डिस्टर्ब होते हैं
डिजिटल दुनिया से इंसान के जीवन में कई खुशियाँ भी आई हैं. इन्ही खुशियों में से एक का नाम सोशल मीडिया भी है. इसकी मौजूदगी के कई सारे फायदे भी हैं. लेकिन इसके ज्यादा इस्तेमाल से होने वाले नुकसान को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. इसका बुरा प्रभाव सीधे तौर पर हमारी हेल्थ पर पड़ता है. सोशल मीडिया के ज्यादा इस्तेमाल से हमारे अंदर एंग्जायटी जैसी मानसिक बीमारी भी हो सकती है. आज के समय में नींद ना आना काफी आम सी बीमारी हो गई है. अक्सर लोग इसे काफी सामान्य समझते हैं. लेकिन हमें पता होना चाहिए कि कम नींद लेने से हमारी हेल्थ काफी ज्यादा खराब हो सकती है. रिसर्च लैब्स में ये बात साबित हुई है कि फोन्स से हमारी नींद पर बुरा असर पड़ता है. इसके पीछे का रीजन यही है कि फोन को कुछ इसी तरह से डिजाईन किया जाता है कि उसमे हमारा ध्यान लगा रहा करे. आज के समय में लोग फोन को साथ में रखकर सोने की कोशिश करते हैं. ये कुछ उसी तरह की बात हो गई कि आप टीवी चालू करके और सोफे में अच्छी नींद लेने की कोशिश करें. लेकिन इन आदतों को पालने से पहले याद रखिएगा कि इनके परिणाम बहुत बुरे होने वाले हैं. अगर आप रात में चैटिंग करना पसंद करते हैं. तो फिर आपको पता होना चाहिए कि आपको नींद ना आने की दिक्कत शुरू हो जाएगी. इसके पीछे फोन की स्क्रीन से निकलने वाली लाइट है. ये लाइट हमारे दिमाग को ट्रिगर करती रहती है कि अभी हमें जगे रहना है. इस लाइट की वजह से दिमाग को ऐसा लगता है कि अभी तो सोने का टाइम ही नहीं हुआ है.
सोने के पीछे भी साइंस होता है. जब आँखों में कोई भी लाइट नहीं पड़ती है. तो दिमाग में melatonin नाम का हॉर्मोन रिलीज होता है. जिससे दिमाग को ऐसा लगता है कि अब सोने का समय हो गया है और आपको नींद आ जाती है. इन सबका मतलब ये है कि रात को ज्यादा समय तक फोन की स्क्रीन को देखना बंद कर दें. अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो फिर आपके लिए सोना और भी ज्यादा मुश्किल होता चला जाएगा. फोन की वजह से कम नींद आना एक छोटी सी दिक्कत हो सकती है. लेकिन धीरे-धीरे इसकी वजह से गम्भीर बीमारियाँ भी हो सकती हैं. वो छोटी सी दिक्कत नहीं होगी. इसलिए फोन को कम इस्तेमाल करने की आदत को अपने अंदर लाने की शुरुआत कर दीजिए. साल 2008 में Harvard Medical School में एक स्टडी हुई थी. इस स्टडी में पता चला था कि “नींद ना आने के पीछे सबसे बड़ा कारण फोन और सोशल मीडिया का ज्यादा यूज ही है. इसके लॉन्ग टर्म इफ़ेक्ट बहुत ज्यादा खतरनाक हैं. इससे इंसान के फैसले लेने की क्षमता भी खत्म हो सकती है. कई ऐसी बीमारियों की शुरुआत भी हो सकती है, जिससे निकल पाना इंसानी शरीर के लिए बहुत मुश्किल है.”
समान्य तौर पर इंसान को 7 से 8 घंटे रात को सोना चाहिए. ऐसा बहुत समय तक ना करने से दिमागी बीमारियाँ अपना घर बनाने लगती हैं. इसका छोटा सा नमूना केवल 24 घंटे ना सोकर ही पता चल जाता है. इसलिए याद रखना बहुत ज़रूरी है कि लाइफ में सोना कितना ज़रूरी है?
फोन से ब्रेकअप करने के लिए मज़बूत मोटिवेशन की ज़रूरत है। एक बात आपको समझ लेना चाहिए कि किसी के कहने पर ही फोन से दूरी बनाने की ज़रूरत नहीं है? किसी भी चीज़ का फायदा तब तक नहीं हो सकता है. जब तक वो चीज़ आपके अंदर से ही ना आए, इसलिए शुरुआत में आप ट्रायल के लिए कुछ समय के लिए ही सही लेकिन फोन से ब्रेकअप कर सकते हैं. इसके बाद आपको एहसास होगा कि कौन सी आदत आपके लिए बेहतर है? फिर आपको पता चल जाएगा कि दिनभर फोन पर लगे रहने से कोई भी फायदा नहीं हो रहा था. उससे बस आपके दिमाग और शरीर को बहुत सारे नुकसान ही हो रहे थे.
अगर आप फोन से दूर नहीं रह पाते हैं. तो भी परेशान होने की ज़रूरत नहीं है. इसके लिए आप एक-दो घंटे ही फोन से दूर रहने की शुरुआत कर सकते हैं. कुछ दिनों में आपको पता चल जाएगा कि बिना फोन के ही लाइफ का असली मज़ा है. इसी के साथ-साथ अगर आप फोन से दूर रहने का फैसला करते हैं. तो फिर आपको ये बात भी क्लियर रहनी चाहिए कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं? मतलब इसके पीछे आपका मोटिवेशन क्या है?
आपको पता होना चाहिए कि फोन से दूरी बनाने के बाद आप उस समय में क्या करने वाले हैं? क्या आप उस समय में कुछ नया सीखने वाले हैं? या फिर आप अपने परिवार के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करेंगे. यही सब चीज़ें आपके लिए मजबूत मोटिवेशन का भी काम करेंगी. याद रखिएगा बिना मोटिवेशन के आपकी लाइफ में अच्छे बदलाव नहीं आएंगे, इसलिए लाइफ को बेहतर बनाने के लिए, एक अच्छे उद्देश्य के साथ अपने फोन से ब्रेकअप करने की शुरुआत कर दीजिए.
ऐसा करने बस से आपकी लाइफ बेहतर होने लगेगी.
सोशल मीडिया एप्स को डिलीट करने के भी कई फायदे हैं
फोन के अंदर सबसे ज्यादा लत लगाने वाली चीज़ क्या है? वो हैं सोशल मीडिया एप्स, इनकी बहुत बुरी लत लगती हैं. ये जंक फूड्स की तरह होती हैं. इनके यूज की शुरुआत के बाद इन्हें बंद करना बहुत मुश्किल सा हो जाता है. लेकिन इनके एप्स को डिलीट करना मुश्किल नहीं है. दिल को मज़बूत करिए और इन्हें डिलीट करने की शुरुआत कर दीजिए. वो आपको कई बार बोलेंगे कि सारे डेटा भी खत्म हो जाएंगे. लेकिन आपको उनकी बातों में आना नहीं है. आपको तुरंत उन्हें अपने फोन से डिलीट कर देना है. अगर फिर भी कन्फ्यूजन आए, तो सोचियेगा कि इनको देने वाले समय में आप क्या-क्या कर सकते हैं? आप कहीं घूमने जा सकते हैं, आप गार्डनिंग कर सकते हैं, या फिर आप ऐसे ही खुद से दोस्ती भी कर सकते हैं. तब आपको मोटिवेशन मिलेगा कि अब रियल वर्ल्ड से दोस्ती करने की शुरुआत करते हैं. बहुत हो गया सोशल मीडिया की डिजिटल दुनिया से प्यार करना.
रियल दुनिया से, अपने दोस्तों से, अपनी प्रेमिका से, मिलने का मोटिवेशन लीजिए और इन फेक सोशल मीडिया एप्स को डिलीट करने की शुरुआत कर दीजिए. भले ही ऐसा करने का पॉजिटिव असर तुरंत ना दिखे, लेकिन इसका लॉन्ग टर्म में बहुत अच्छा असर होने वाला है. अगर आपको सोशल मीडिया एप्स को डिलीट करने के डर लग रहा हो, तो फिर आपको पता होना चाहिए कि वो आपकी एक्स नहीं है. जिसकी शादी कहीं और हो गई है और वो वापस नहीं आएगी. ये सोशल मीडिया है, इसे आप अगले महीने भी फिर से इंस्टाल कर सकते हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि इन्हें इंस्टाल करने के आपका कोई पैसा भी नहीं लगेगा. इसलिए डरना नहीं है और फोन से ब्रेक अप करने की तैयारी की शुरुआत कर देना है.
फोन से ब्रेकअप के बाद अपने टाइम को सही जगह इन्वेस्ट करना है।
फ़ोन से ब्रेक के बाद आपको उसकी याद आ सकती है. मतलब आपको “Fear of Missing Out,” हो सकता है. इसलिए इस बात का ख़ास ख्याल रखना है कि आप ब्रेक अप के बाद अपने टाइम को कहाँ स्पेंड करने वाले हैं? इसलिए फोन से ब्रेक अप करने से पहले ही डिसाइड कर लेना है कि टाइम को कहाँ स्पेंड करना है? नहीं तो आप बोर होंगे और फ़ोन के पास वापस चले जाएंगे. अगर ऐसा हुआ तो, फोन भी आपके ऊपर हंसेगा कि “गया तो हीरो बनकर था, देखो फिर मुहं उठाकर वापस लौट आया.”
अपने टाइम को इन्वेस्ट करने के लिए आप एक लिस्ट भी बना सकते हैं. इस लिस्ट में आपको उन सब चीज़ों को शामिल करना है. जिन्हें आप बचपन में किया करते थे? जिन चीज़ों को करने का आपका मन करता है, लेकिन समय की कमी के कारण आप नहीं कर पाते थे. अब आपके पास टाइम की कोई कमी नहीं है. आपका ज्यादातर समय खाने वाला फोन ही आपके पास नहीं है. आईडिया निकालने के बाद, उन पर अमल करने के लिए एक अच्छा सा प्लान भी बनाइए. आपका प्लान कंक्रीट की तरह मजबूत होना चाहिए. मान लीजिए कि आपने फोन से 2 हफ्ते का ब्रेक अप किया है. इन हफ्तों में आप खेल खेल सकते हैं, पज़ल सोल्व कर सकते हैं. कहीं घूमने जा सकते हैं, या फिर कहीं जंगल में जाकर नेचर को भी निहार सकते हैं. इन सब चीज़ों में एक चीज़ कॉमन है. वो ये है कि इन दो हफ्तों के सफर में आपकी मुलाक़ात खुद से होगी. उसी इंसान से होगी, जिसको आप डिजिटल वर्ल्ड के कारण भूलते जा रहे थे. याद रखिए इन दो हफ्तों के एक्सपीरियंस को आप कभी नहीं भूलना चाहेंगे. इसलिए देर मत करिए और जल्द से जल्द प्लान बनाइए कि आप कब अपने फोन से ब्रेकअप करने वाले हैं?
“फर्स्ट हाफ”-30 डे-ब्रेकअप प्लान के पहले 15 दिन कुछ इस तरह रहेंगे
अभी तक हमने ये समझने की कोशिश की है कि फोन से क्या-क्या दिक्कतें हो रहीं हैं? इसी के साथ हमें ये भी पता चल गया है कि ब्रेकअप से क्या-क्या फायदे हो सकते हैं? लेकिन हमें ये भी पता होना चाहिए कि 30 दिनों के ब्रेकअप प्लान के लिए हमें हमारी कई आदतों को भी बदलना होगा. इन आदतों को बदलना इतना भी आसान नहीं होने वाला है. ये एक बहुत बड़ा चैलेंज होने वाला है. क्या हम इस चैलेंज के लिए तैयार हैं?
सबसे पहले तो पहले और दूसरे दिन आपको ये ट्रैक करना होगा कि दिन भर में आप कितनी देर फोन पर होते हैं? ये वादा है कि इसके रिजल्ट से आपको बहुत हैरानी होने वाली है. इस प्रोसेस से आपके अंदर अवेयरनेस बढ़ेगी. तीसरे और चौथे दिन आपको अपनी फीलिंग्स के ऊपर ध्यान देना है कि फोन को यूज करते समय और करने के बाद आपको कैसा लगता है? इससे आपको पता चलेगा कि फोन का दिमाग पर क्या असर पड़ता है. आपको डोपामीन हॉर्मोन का भी एहसास होगा.
5, 6, 7 वें दिन से सोशल मीडिया को यूज करना बंद कर देना है. उस समय को किसी भी नई और बेहतर चीज़ में इन्वेस्ट करने की कोशिश करनी है. 8 वें और 9 वें दिन तक सभी नोटिफिकेशन को बंद कर देना है. याद रहे कि फोन के नोटिफिकेशन आपके ध्यान को खुद की ओर खींचने के लिए ही होते हैं. 10 वें दिन से फोन को कमरे से बाहर रखकर चार्ज करना है और बाहर रखकर ही सोना है. इसके बाद से आपके दिमाग में एक अलग ही लेवल की एनर्जी रहने लगेगी. 12 वें दिन तक खुद के लिए कुछ अच्छी किताबें खरीद लें, अब ज्यादा समय किताबों को ही देना है. 15 वें दिन तक आपको घर के अंदर फोन फ्री ज़ोन बना लेना है. इसकी शुरुआत खाना खाने वाली जगह से भी हो सकती है. या फिर ये फैसला कर लेना है कि शाम को 7 के बाद फोन को यूज ही नहीं करना है. ऐसा करने से फोन को चेक करने की लत से मुक्ति मिलने की शुरुआत भी हो जाएगी. इसी के साथ आप रियल लाइफ के और भी ज्यादा करीब भी आ जाएंगे. बधाई हो, आप 30 डे प्लान के फर्स्ट हाफ को पूरा कर चुके हैं. सेकंड हाफ के लिए आखिरी चैप्टर की तरफ चलते हैं.
“सेकंड हाफ”- 30 डे ब्रेकअप प्लान के आखिरी 15 दिन ऐसे होंगे
30 डे प्लान का पहले दो हफ्ते पूरी तरह से फोन को लेकर थे. इसलिए आखिरी दो हफ्ते पूरी तरह से आपको लेकर होंगे. 15 वें और 16 वें दिन आपको अपने दिमाग को कंट्रोल करना है. उसे शांत करना है. अगर उसका मन फोन की तरफ जाने का करे तो गहरी सांस लेकर सवाल करिएगा कि क्या ये इतना ज़रूरी है? इससे आपकी आदत बनती जाएगी कि फोन से दूर रहना ही अच्छा है.
17 वें और 18 वें दिन से आपको रोज म्यूजिक सुनने की कोशिश करनी है. इससे आपकी फोकस करने की क्षमता बेहतर होगी.
19वां और 20 वां दिन बहुत महत्वपूर्ण है, इन दो दिनों को वीकेंड की तरह लेना है. इन दो दिनों के लिए फोन को स्विच ऑफ करके रख देना है. इन दो दिनों को पूरी तरह से किताबों के साथ बिताने की कोशिश करें.
22 वें और 23 वें दिनों तक आपको काफी अच्छा लगने लगेगा. आपको पता चल चुका होगा कि फोन फ्री ज़ोन के समय आपको कैसा लगता है?
24 से लेकर 26 वें दिन तक फोन से सभी गैर ज़रूरी चीज़ों की सफाई करनी है. जिन चीज़ों की ज़रूरत नहीं है. उन्हें सबस्क्राइब करने की भी कोई ज़रूरत नहीं है. अपने आस पास से डिजिटल दुनिया को कुछ समय के लिए छुट्टी पर भेज दें और किताबों से प्यार करने की शुरुआत करें.
27 से 30 वें दिन तक खुद की फोन की आदतों को ओब्सर्व करें. आपको पता चल जाएगा कि अब आपको फोन की ज्यादा ज़रूरत ही नहीं पड़ती है. आपको अब नींद भी बेहतर आने लगी है और आप अपने आपसे बहुत खुश रहने लगें हैं.
इन 30 दिनों के बाद भी आपको अपनी आदतों का ध्यान रखना है. आपको अपने समय का ख्याल रखना है. फोन के लिए भी एक अच्छा सा टाइम टेबल बनाने की शुरुआत करना है.
कुल मिलाकर
हमारे चारों तरफ लोग फोन की लत में आते जा रहे हैं. उन्हें पता भी है लेकिन फिर भी वो इसे छोड़ नहीं पा रहे हैं. लेकीन अब इसकी ज़रूरत आ चुकी है कि हम अपने आस पास की चीज़ों पर ध्यान दें. हमें अपने फोन से कुछ दिनों का ब्रेकअप करना ही होगा.
क्या करें?
फोन को बेड पर ले जाना बंद कर दें, ध्यान रखने की कोशिश करें कि आप दिनभर में कितनी देर फोन का यूज कर रहे हैं? खुद के दिमाग का ख्याल रखें और फोन को खुद से दूर कर दें.
येबुक एप पर आप सुन रहे थे How to Break Up with Your Phone By Catherine Price
ये समरी आप को कैसी लगी हमें yebook.in@gmail.com पर ईमेल करके ज़रूर बताइये.
आप और कौनसी समरी सुनना चाहते हैं ये भी बताएं. हम आप की बताई गई समरी एड करने की पूरी कोशिश करेंगे.
अगर आप का कोई सवाल, सुझाव या समस्या हो तो वो भी हमें ईमेल करके ज़रूर बताएं.
और गूगल प्ले स्टोर पर ५ स्टार रेटिंग दे कर अपना प्यार बनाएं रखें.
Keep reading, keep learning, keep growing.