F*ck Feelings

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F*ck Feelings

Michael Bennett MD, Sarah Bennett
ज़िंदगी की सारी नामुमकिन लगने वाली परेशानियों को मैनेज करने के लिए, एक साइकोलोजिस्ट की प्रैक्टिकल एडवाइस

दो लफ़्ज़ों में 
F*ck Feelings (2015) पॉजिटिव-थिंकिंग और सेल्फ-इम्प्रूवमेंट के बुलबुले तोड़ने की कोशिश करती है और ऐसा रीयलिस्टिक गाइडेंस देती है जिसको आप सच में अपना सकते हैं।  कभी-कभी हमें ये स्वीकार करना पड़ता है कि हमारे पास कुछ न सुलझने वाली परेशानियां हैं, कि ज़िंदगी मुश्किल है, और ये कि हममें कोई खास टैलेंट नहीं है। इस  किताब में, माइकल और सारा बेनेट हमें सलाह देते हैं कि कि हम जो बदल सकते हैं उस पर काम करें और जो हमारे पास है उसकी कीमत समझें। 

  किसके लिए है 
- उन लोगों के लिए जिन्होंने सेल्फ-हेल्प ट्राई किया और पाया कि इससे काम नहीं चलेगा।  
- उन सभी के लिए जिन्हें थोड़े टफ लव की ज़रुरत है।  
- उन थेरेपिस्ट्स के लिए जिन्हें इंस्पिरेशन चाहिए। 

लेखक के बारे में 
डॉ. माइकल बेनेट एक बोर्ड-सर्टिफाइड साइकाइट्रिस्ट हैं जिन्होंने हार्वर्ड कॉलेज और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में पढाई की है। वे एक रेड सॉक्स फैन और सारा बेनेट के पिता हैं। सारा बेनेट एक हास्य लेखिका हैं, जिन्होंने न्यूयॉर्क शहर के अपराइट सिटीजन्स ब्रिगेड थिएटर में एक मंथली स्केच कॉमेडी शो के लिए दो साल लिखा। उन्होंने टेलीविज़न के लिए भी  लिखा है और वे भी अपने पिता की तरह रेड सॉक्स की फैन हैं। सबसे ज्यादा बिकने वाली F*ck Feelings, के साथ ही पिता-पुत्री टीम ने F*ck Love भी लिखा है।

सेल्फ-इम्प्रूवमेंट हमें एक हद तक ही आगे ले जा सकता है।
हम में से कई लोग अपनी परेशानियों का कम्पलीट सोल्यूशन ढूंढने के लिए सेल्फ-हेल्प की किताबों की  मदद लेते हैं। लेकिन क्या हो अगर हमेशा परफेक्ट जवाब ना मिले तो? क्या हो अगर दुनिया उससे कहीं ज़्यादा कॉम्प्लिकेटेड, मुश्किल और केयोटिक हो, जितनी की ये अलमारी भर सेल्फ-इम्प्रूवमेंट की किताबें  हमें बताती हैं।  क्या हो अगर हम लीडर बनने के लायक ही ना हों या दुनिया में पॉजिटिव थॉट्स नहीं ला सकते हों? या अपने लिए परफेक्ट प्यार ढूंढने या परफेक्ट माँ-बाप बनने के काबिल ना हों?

हममें से ज़्यादातर लोगों के लिए सच थोड़ा मिला-जुला है।  और ये भूलकर हम अपने लिए बहुत बड़ी परेशानी खड़ी कर रहे हैं। कभी-कभी हमारे पास लिमिटेशंस या ऐसे मानसिक हालात होते हैं जिन्हें सॉल्व करना नामुमकिन है।  कभी-कभी हमारे रिश्ते उलझे हुए होते हैं, जिन बच्चों को हम बड़ा कर रहे हैं, वे बिगड़ैल होते हैं और हमारे कलीग्स एक नंबर के बेवक़ूफ़ होते हैं। अगर हम ये मान लें कि ये चीज़ें कभी नहीं बदलेंगी, तो हम इन बातों से होने वाली निराशा से बच सकते हैं और इसपर फोकस कर सकते हैं कि हम क्या बदल सकते हैं।  तो भले ही आपको लग रहा हो कि आपका आज फ़िलहाल पूरी तरह ट्रैक पर नहीं है या आपको सेल्फ-एस्टीम इश्यूज हैं, ये देखने के लिए इसे पढ़ें कि जैसी भी ज़िंदगी है, उसमें से आप क्या बेहतर कर सकते हैं।  

इस समरी में आप जानेंगे कि जब हम प्यार की तलाश कर रहे हों, तो हमें मेथॉडिकल क्यों होना चाहिए? सेल्फ-एस्टीम किस तरह ओवरवैल्यूड हो सकती है? और ये भी कि कुछ लोग गधे के गधे ही होते हैं। 

तो चलिए शुरू करते हैं!

अफ़सोस की बात है कि एक बार ग्रोथ रुकने के बाद आप फिर लंबे नहीं हो सकते, हां अगर आप हील्स पहनने के लिए तैयार हैं तो और बात है। और इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि आप कितनी मेहनत करते हैं या कितनी किताबें पढ़ते हैं - ये सच नहीं बदल सकता कि आपकी फिजिकल स्ट्रेंथ और इंटेलेक्चुअल एबिलिटी की अपनी हदें हैं। कभी न कभी हम सबको हमारे अंदर की दीवार का सामना करना पड़ता है। सच यही है कि हम सबकी हदें होती हैं। जितनी जल्दी हम इस बात का एहसास कर लेंगे, उतना ही ज़्यादा ज़िंदगी में आने वाली परेशानियों से निपटने के लिए तैयार रहेंगे। हमारी कुछ परेशानियां जेनेटिक होती हैं और भले ही हम कितनी भी कोशिश कर लें, हम एक हद तक ही उसे सुधार सकते हैं। असल में हम जितना डिसफंक्शनल बिहेवियर के बारे में जानेंगे, उतना ही एहसास होगा कि हम हम सबके पास यूनिक और अजीब दिमाग है। 

उदहारण के लिए, उन लोगों को लें जो टर्मिनल प्रोकास्टिनेटर्स हैं, जो हमेशा जरूरी काम आखरी वक़्त के लिए छोड़ देते हैं और उनकी डेस्क पर हमेशा बिल और कागजात का ढेर लगा होता है। कितना भी सेल्फ-करेक्शन क्यों न कर लें, वो ज़्यादा दिन नहीं टिकता - और ये पुरानी आदत एक अभिशाप की तरह वापस आ जाती है।  ऐसा क्यों होता है? मॉडर्न न्यूरोसाइंस हमें बताता है कि इस तरह की कई व्यव्हार से जुडी दिक्कतें, जिन्हें पहले माना जाता था कि परवरिश या माहौल की वजह से हैं, असल में हममें हार्डवायर्ड हैं। इसका मतलब है कि सेल्फ-इम्प्रूवमेंट हम में से कुछ लोगों के लिए मुश्किल या नामुमकिन भी हो सकता है।  

और कभी-कभी ज़िंदगी का दांव इतना बुरा होता है कि दीपक चोपड़ा का कोई भी ज्ञान हमारी मदद नहीं कर पाता। कभी-कभी, मान लीजिये इकॉनमी रुक जाए और आपपर शायद बुरा वक़्त आ जाए, उन कई निर्दोष लोगों की तरह जो अमीर पैदा नहीं हुए थे।  या शायद आप गंभीर बीमारी के शिकार हो जाएं और वो सारे फोकस्ड थॉट्स या मेडिटेशन आपके सामने ताश के पत्तों से बिखर जाएँ।  

तो आपको उसी से काम चलाना सीखना चाहिए जो आपके पास है और अपनी हदों को ध्यान में रखते हुए खुद के लिए रीयलिस्टिक टारगेट सेट करने चाहिए। मान लीजिये आप उन लोगों में से हैं जो ज़िंदगी में कुछ बुरा होता ही, तुरंत ही शराब का सहारा लेने लगते हैं। अगर आप अपने बारे में ये जानते हैं, तो शायद इस बात को मानने का वक़्त आ चुका है कि आप इस आदत को सिर्फ विलपॉवर की मदद से नहीं छोड़ पाएंगे। इस बात को ध्यान में रखते हुए, इस आदत को छोड़ने के लिए कुछ ठोस कदम उठायें। अपने लिए एक रिहैब प्रोग्राम तलाशें जो आपकी ज़िंदगी में कुछ इस तरह से कंट्रोल लेकर आए जो आप खुद से नहीं ला सकते। 

जब उन स्टैंडर्ड की जगह जो हासिल करना नामुमकिन लगता है, आप अपने बनाए स्टैंडर्ड्स को हासिल करेंगे - तो खुद को थोड़ी इज़्ज़त के साथ नवाज़ें।  थोड़ा थोड़ा करके, दिन पर दिन, आप खुद को ऐसा इंसान बना लेंगे, जिसपर आपको गर्व हो।

आपको अपने स्टैंडर्ड्स के हिसाब से खुद की कीमत समझनी चाहिए। अपना आकलन वेस्टर्न सोसाइटीज में कीमती समझी जाने वाली सुपरफिशियल क्वालिटीज़ को देखते हुए न करें।
किसी इंस्टाग्राम इन्फ्लुएंसर या फैशन शूट को देखें - क्या आप फ़र्क़ बता सकते हैं? अक्सर आप ऐसी तस्वीरों में एक बेहद खूबसूरत इंसान को एक्वामरीन समंदर के किनारे सफ़ेद नर्म रेत पर लुभावने पोज़ में देखते हैं। ये पूरी तस्वीर कहती है, "मेरे पास खूबसूरती और दौलत है।" लेकिन क्या ऐसा सच में है?

बतौर सोसाइटी, हम अमूमन सेल्फ-वर्थ के ऐसे पैमानों को देखते हैं जो हमारे कंट्रोल में नहीं हैं। सोसाइटी के स्टैंडर्ड्स के हिसाब से हम सभी खूबसूरत,  अमीर या कॉन्फिडेंस का बंडल नहीं होते। तो अगर आपका चेहरा मॉडल जैसा नहीं है या आपके पास पुश्तैनी दौलत नहीं है तो आपको शायद लगेगा कि आप सोसाइटी के हिसाब से पिछड़ रहे हैं। हालांकि सच ये है कि ऐसी चीज़ों पर खड़ी सेल्फ-एस्टीम बहुत ही नाज़ुक होती है। तब क्या होगा जब खूबसूरती ढल जायेगी या पैसे ख़त्म हो जाएंगे?

इन स्टैंडर्ड्स पर खुद को जज करने की जगह, बेहतर होगा कि आप अपना आत्मसम्मान वो करते हुए ढूंढें जो आपको लगता है कि काम का है।  मसलन, अगर आप बेहद शर्मीले हैं, लेकिन अपने रोज़गार की खातिर आप दूसरों से बात करने की हिम्मत जुटाते हैं, तो आप ज़रूर कुछ ऐसा कर रहे हैं जो आपकी नज़र में फायदेमंद है। और अगर आप सोचते हैं कि आप खूबसूरत नहीं हैं, फिर भी आप लोगों से मिलते-जुलते  रहते हैं क्योंकि आप दूसरों के साथ पॉजिटिव रिलेशन्स चाहते हैं, तो भी आप सही कर रहे हैं। ये तय बात है कि अगर आप अपनी किसी कमी, जिसकी वजह से आपका आत्मसम्मान हिला रहता है, के बावजूद अपना लक्ष्य हासिल कर लेते हैं, तो आपके पास खुद पर गर्व करने की ज़्यादा मज़बूत वजह है। शर्मीले लोग जो अपनी हिचक से लड़ाई करके खुद की मदद करते हैं, या खुद को खूबसूरत न मानने वाले भी अगर प्यार तलाश लेते हैं, तो उनके पास खुद की कीमत आंकने के लिए ज़्यादा सॉलिड फाउंडेशन है। क्योंकि उनकी चुनौतियां ज़्यादा बड़ी थीं। और वैसे भी, आत्मसम्मान अपने आप में एक सैटिस्फैक्ट्री एंड नहीं है।  डोनाल्ड ट्रम्प को ही देखिये। वो एक ऐसा इंसान है जिसे देखकर लगता है कि उसके पास आत्मसम्मान की कोई कमी नहीं है - बेशक किसी भी इंसान के पास पाए जाने वाले सेल्फ-एस्टीम से कहीं ज़्यादा।  लेकिन क्या आप वाकई ऐसे इंसान बनना चाहते हैं? जो अपने फेलियर से ही बेखबर है, बेहद अनरिफ्लेक्टिव है, खुद को ही नहीं सुधार सकता? ये दुनिया डोनाल्ड ट्रम्प जैसे लोगों से भरी हुई है।  

इस तरह का सेल्फ-लव पैदा करने की जगह,  बेहतर होगा अगर आप आत्मनिर्भर और शालीन बनने की कोशिश करें और अपने वैल्यूज पर खरे उतरें।  अपने अंदर के ट्रम्प का आनंद लें, लेकिन सेल्फ-एस्टीम को अपना लक्ष्य न बनायें, क्योंकि ये इमारत अक्सर रेत पर बनी होती है। सच का साथ दें और खुद को मौके के मुताबिक ढालने के लिए तैयार रहें, और देखिएगा कि आपके पास खुद की इज़्ज़त करने की और भी वजहें होंगी।  

आपको एक ऐसी कपटी और खतरनाक दुनिया के लिए तैयार रहना चाहिए जिसमें हमेशा इंसाफ नहीं होता और जहां कुछ भी बुरा घट सकता है।  

कभी-कभी कुछ बुरा हो जाता है और ऐसा लगता है कि कोई इंसाफ है ही नहीं। आपका क्रूर बॉस अपने तानाशाही बर्ताव के बावजूद बच निकलता है। आपके खूबसूरत से बिल्ली के बच्चे को बाहर निकलते ही मार डाला जाता है। और ऐसे दिनों में आप चिल्लाना चाहते हैं, "मैं ही क्यों?"

इस कपटी दुनिया में, इंसाफ मांगना अच्छे से ज़्यादा नुकसान कर सकता है।  

मान लीजिये, परेशान करने वालों का सामना करके काफी चैन मिलता है। हालांकि आपको याद रखना चाहिए कि ऐसा करने के दौरान आप खुद को और अपनों को तकलीफ पहुंचा सकते हैं। हम सभी ने स्टेयरकेस विट का अनुभव किया है, जब हम पल गुज़र जाने के बाद वापस उसके बारे में सोचते हैं कि काश हमने ऐसा कहा होता या वैसा किया होता। काश हमने अपने बॉस को बदतमीज़ी करने पर गेट लॉस्ट के दिया होता या लुटेरे को वहीं दो मुक्के मार दिए होते। लेकिन ऐसे सामना करने से अक्सर हमारे करियर को नुकसान हो सकता है या हमें गहरी चोट लग सकती है। इसलिए अक्सर यही बेहतर होता है कि थोड़े दांत पीस लिए जाएं, खून का घूंट पीकर इस पल को जाने दें। ये नौकरी गंवाने या मार खाने का खतरा लेने से बेहतर होगा।  

अफ़सोस कि असल ज़िंदगी वैसी नहीं होती जैसा हम फिल्मों में देखते हैं, जहां अंत में हीरो विलन को आखिरी घूंसा मारता है या उसे हथकड़ियां पहनाकर ले जाता है। असल ज़िंदगी में आमतौर पर जो सबसे बड़ा और सबसे ज़्यादा अग्रेसिव होता है वही हाथापाई में जीतता है और गुनहगार अक्सर जेल से रिहा कर दिए जाते हैं, और वो फिर से अपराध करते हैं।  

ऐसी दुनिया में, बेहतर की आप तैयार होकर आएं। आप जितनी जल्दी समझ जाएंगे कि दुनिया अनप्रेडिक्टेबल और खतरनाक है, उतना ही आपके लिए अच्छा होगा।  

अगर आप कुछ बुरा होने से रोकने के लिए छोटे लेकिन सावधानी भरे कदम लेंगे, तो आप ज़िंदगी में आने वाली सभी परेशानियों के लिए बेहतर तरीके से तैयार रहेंगे। हालांकि याद रखिये कि आप खुद को हर खतरे और परेशानी से नहीं बचा सकते हैं।  

इसलिए बिलकुल, अपने खतरे की घंटी को बार-बार परखिये, सेल्फ-डिफेंस सीखिए, लेकिन खुद को खतरनाक लोगों से दूर रखिये और ऐसी जगह मत जाइये जहां खतरा हर वक़्त मौजूद रहता है।  लेकिन याद रखिये, कुछ बुरा हो  सकता है, और कई बार होता ही है।  आपकी खिड़की से लुटेरा आ ही सकता है, भरी दोपहरी में सड़क चलते आप पर हमला हो सकता है। 

इस बुनियादी सच को स्वीकार कर लेने से, अगर कभी कुछ बुरा घटे, तो आप मानसिक रूप से इसके लिए तैयार रहेंगे। आप मान लेंगे कि इसमें आपकी कोई गलती नहीं है - कि आपके साथ खासतौर पर कुछ गलत नहीं है और आप इस हमले से हारे नहीं हैं।

जब हम दूसरों की मदद करते हैं, हम अनजाने में उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं अगर हम इस बारे में न सोचें तो।
हमें अच्छा लगता है जब हम लोगों की मदद करते हैं। मदद करने से हमें यह महसूस होता है कि हमारे पास भी दुनिया को देने के लिए कुछ है। हालांकि, किसी की मदद करने से पहले अगर हमारे ऑब्जेक्टिव क्लियर ना हों, तो पता चलेगा कि करने कुछ और गए थे और कुछ और ही हो गया।  

क्योंकि, बदकिस्मती से सच ये है कि नीयत अच्छी होने के बावजूद भी, हम बहुत नुकसान कर सकते हैं। दादा-दादी या नाना-नानी लाड़-प्यार के नाम पर बच्चों को इतनी चॉकलेट खिला सकते हैं कि उनके दांत ख़राब हो जाएं। हमारा डर दूर करने के लिए कोई दोस्त हमसे कह सकता है कि कुछ नहीं हुआ, मामूली सी बात है, जबकि हमें डॉक्टर को तुरंत दिखाने की ज़रूरत हो। फिर, बहुत बड़े पैमाने पर, उन ईसाई मिशनरियों के बारे में सोचें जो दूरदराज़ के कस्बों में "मदद" करने पहुंचे, लेकिन साथ में घातक बीमारियां भी ले गए, या पेनकिलर ईजाद करने वालों को ही देखिये। दर्द के इलाज के एवज़ में उन्होंने ऐसी दवाई बनाई जो एडिक्टिव है।  

मदद करने को लेकर एक बड़ी दिक्कत ये है कि हम में से कई लोगों के दिमाग में ऑन/ऑफ स्विच होता है।  जब ये ऑन हो, तो हम उन लोगों के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार महसूस करते हैं जिन्हें मदद की ज़रूरत होती है, लेकिन जब यह बंद हो जाता है, तो हम उनके बारे में सोचते तक नहीं। आप कहेंगे, ये तो बहुत गलत बात है। लेकिन इसमें हम कुछ नहीं कर सकते।  

और बिलकुल मदद ना करने के अपने अलग नुकसान हैं, लेकिन ऐसे बिना सोचे समझे किया गया परोपकार भी खतरनाक है। ऐसे बच्चे के बारे में सोचें जिसे महंगे इलाज की ज़रूरत है। मान लीजिये कि बच्चे के फैमिली फ्रेंड्स उसकी मदद करना चाहते हैं, लेकिन ऐसा करने का एक ही तरीका है, बहुत सारा क़र्ज़ लेना। और मान लीजिये कि इन दोस्तों के अपने बच्चे हैं, जिनकी ज़िंदगी इस क़र्ज़ की वजह से बर्बाद हो सकती है। 

मदद करने के लिए करो-या-मरो की सोच रखने के बजाय, ठंडे दिमाग से सोचें। शांत होकर सोचने पर सही मददगार तरीके सूझते हैं। सबसे अच्छी चीज जो आप कर सकते हैं वह है अपने लिए कुछ रियलिस्टिक स्टैंडर्ड और टारगेट सेट करना। आप उस बीमार बच्चे की मदद के लिए ऐसे कौनसे कदम उठा सकते हैं, जिससे आपके खुद के बच्चों पर कोई मुसीबत न आये? आप फंडरेज़र का इंतज़ाम कर सकते हैं। आप इस परेशान परिवार के लिए कुछ काम करने की पेशकश कर सकते हैं। फिर, अगर आपको पता हो कि आपने खुद को या अपनों को किसी खतरे में डाले बगैर वो सब किया है जो आप कर सकते थे, तो इसके लिए आप खुद की पीठ थपथपा सकते हैं।  

अगले लेसन में, हम इस मुद्दे पर सोचेंगे कि हमें रोमांस को भी इसी तरह प्रैक्टिकल क्यों अप्रोच करना चाहिए।

जब प्यार की तलाश हो, तो जोश में कोई कदम उठाने की जगह प्रैक्टिकल होकर सोचना बेहतर है।  

प्यार ज़िंदगी की सभी परेशानियों का अल्टीमेट सॉल्यूशन माना जाता है। आखिर प्यार सबको जीत लेता है। अक्सर, ये आपके लिए सिरदर्द भी हो सकता है। हम या तो गलत इंसान के प्यार में पड़ जाते हैं, या हमें ऐसा कोई नहीं मिलता जो हमसे प्यार करे। आइए देखें कि आप चीजों को कैसे आसान बना सकते हैं।

अगर आपको सही इंसान ढूंढने में मुश्किल हो रही है, तो प्रैक्टिकल स्टेप्स की एक लिस्ट तैयार करें जो आपको वापस सही ट्रैक पर ले आएगी।  

मान लीजिये कि आप हमेशा ऐसे लोगों से प्यार कर बैठते हैं, जिनके और आपके उसूल या भविष्य को लेकर सोच नहीं मिलते, या जिन्हें ज़िंदगी भर के कमिटमेंट से दिक्कत है। ये सुनने में बहुत अनरोमांटिक लग सकता है, लेकिन आपको प्यार पाने के लिए थोड़ा ज़्यादा कैलक्युलेटिव अप्रोच अपनाना चाहिए।  अपनी डेट्स को रोमांटिक पार्टनर के लिए इंटरव्यू की तरह सोचें। पोटेंशियल पार्टनर ढूंढने के लिए जिन लोगों को आप पसंद करते हैं, उनसे उन मामलों में सीधे सवाल पूछें जो सबसे ज़्यादा मायने रखते हैं, जैसे ज़िंदगी भर की कमिटमेंट के बारे में वो क्या सोचते हैं, परिवार के बारे में उनका क्या ख्याल है, या वो किस तरह की ज़िंदगी जीना चाहते हैं। असल में मिलकर ये सब सीधे पूछने में अजीब लग सकता है, लेकिन इंटरनेट डेटिंग में ये ज़्यादा आसान हो जाता है।  

और अगर फिर भी पार्टनर मिलने में बहुत मुश्किल हो रही हो, तो आप ज़्यादा मेथॉडिकल अप्रोच अपनाकर अपने चान्सेस बढ़ा सकते हैं। अगर आपके बहुत ज़्यादा दोस्त  नहीं हैं या आप बहुत ज़्यादा सोशल जगहों पर नहीं जाने वाले, जहाँ लोगों से मिलने की उम्मीद हो, तो आप स्पेशल इंटरेस्ट क्लब ज्वाइन कर सकते हैं, जहां आपको आप जैसी सोच वाले लोग मिल सकते हैं। ट्रिक यही है कि ऐसे लोगों से मिला जाए जो दुनिया को आपकी तरह ही देखते हों। चाहे वो पॉलिटिक्स हो या ज़ुम्बा या पेट्स - इन सबके बारे में वो वैसे ही सोचते हों, जैसे आप सोचते हैं।  

और अगर आप पहले से ही एक ऐसे रिश्ते में हैं, जो ज़िंदगी भर की कमिटमेंट के लिए तैयार है, तो इस रिश्ते के लिए बिज़नेस जैसा अप्रोच रखना सही होगा।  यही अक्लमंदी है क्योंकि, कई बार म्यूच्यूअल अट्रैक्शन, एक जैसे शौक और एक-दूसरे के लिए बेहद प्यार होने के बावजूद, ऐसे रिश्ते मुश्किल में आ जाते हैं क्योंकि वो भविष्य को लेकर अपनी ईमानदार राय एक-दूसरे को नहीं बताते।  

उदहारण के लिए, अगर किसी एक को बच्चे चाहिए और दूसरा इस बारे में बहुत दिलचस्पी नहीं रखता, तो इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता कि रिश्ता 10 साल चला या नहीं, रिश्ते में गहरी दिक्कतें होना लाज़मी होगा और हो सकता है कि रिश्ता टूट ही जाए।  

ज़ाहिर है, इस परेशानी को अवॉइड करने का बेस्ट तरीका है कि आप रिश्ते की शुरुआत में ही इस बारे में बात कर लें। अपनी ओर से जितने साफ़ और ईमानदार आप हो सकते हैं, रहें। ये सोचकर झूठ न बोलें कि रिश्ता टूट सकता है और तब आपको बहुत दर्द होगा, क्योंकि अगर ये रिश्ता इन बातों की वजह से बाद में जाकर टूटता है, तब ज़्यादा दर्द होगा।

कभी-कभी, बात करना काफी नहीं होता, और कुछ रिश्तों में संवाद या कम्युनिकेशन सबसे ज़रूरी चीज़ भी नहीं होती।
"जो भी महसूस करें, कह दें।" वेस्ट में ये एक मंत्र बन चुका है।  हमें अपनी भावनाओं पर बात करने के लिए लगातार एनकरेज किया जाता है। लोग ऐसे प्रोफेशनल्स पर बेहिसाब पैसा खर्च करते हैं, जिनसे वे अपने डर और लालसाओं के बारे में बात कर सकें।  

हालांकि कभी-कभी, हमारा ये मानना कि संवाद ही सारी परेशानियों का एक मात्र हल है, काफी नहीं होता। कभी-कभी बात करने से हम सिर्फ एक सीमा तक ही पहुंच पाते हैं, उससे आगे नहीं जा पाते।  

उदहारण के लिए, हमें अपने मतभेदों पर बात करने के लिए एनकरेज किया जाता है, लेकिन कभी-कभी जो बेहद ज़रूरी मुद्दे होते हैं, उनपर बात करने से भी एक राय नहीं बन पाती। हम रोज़ाना जिनसे मिलते हैं, उनके साथ ऐसा होने पर हम बीच का रास्ता ढूंढने की भी कोशिश करते हैं, लेकिन कभी-कभार हमारे कोर बिलीफ एक ऐसी दीवार खड़ी कर देते हैं जिसे तोडना नामुमकिन हो जाता है।  कभी-कभी हमारे पास ये मानने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रह जाता कि हमारे कलीग या सुपरवाइजर की सोच सामाजिक, राजनितिक या सांस्कृतिक बातों पर हमसे मेल नहीं कहती - जैसे जिनकी रूढ़िवादी सोच है, वो कभी भी सोशलिस्ट की बातों से सहमत नहीं हो पाएंगे या शाकाहारी और मांसाहारी कभी खाने को लेकर एकमत नहीं हो पाएंगे।  

इसी तरह, कॉर्पोरेट टीम-बिल्डिंग शायद दफ्तर में दो लोगों के बीच कुछ हद तक एक ब्रिज बनाने में कामयाब हो जाए। कभी-कभी आपको ये बस मान लेना पड़ता है कि आप ऐसे लोगों के साथ काम कर रहे हैं, जो एक-दूसरे को बिलकुल भी पसंद नहीं करते। चाहे आप इन्हें कितना भी बोलिंग के लिए ले जाएँ या ऑफिस गेम्स खिलवा लें, ये सच नहीं बदल सकता। 

लेकिन अगर आप इस तरह के वर्कप्लेस में मैनेजर हैं, और आप फिर भी लोगों को एक-दूसरे का गला पकड़ने से रोक पाएं हैं और आपके यहां की प्रोडक्टिविटी भी डीसेंट है, तो ये अपने आप में एक अचीवमेंट ही है।  इसका मतलब है कि हर कोई एक सभ्यता बरक़रार रख पाया है, जिसकी वजह से वे अपनी निजी पसंद-नापसंद को अलग रखकर काम कर पाए हैं।  

अब बाहरी दुनिया से हम अपने आत्मीय संबंधों की ओर चलते हैं, कम्युनिकेशन बेशकीमती है। लेकिन अगर आपका साथी अपनी बात नहीं रख पाता है, तो इससे कोई क़यामत नहीं आने वाली है।

हालांकि इससे ज़ाहिर तौर पर मदद मिलती है अगर आप अपनी ज़रूरी फीलिंग्स बयां कर पाएं, लेकिन कुछ लोगों के बीच रिश्ता इतना गहरा होता है, जिसमें एक इंसान अपनी बात लफ़्ज़ों की जगह हाव-भाव और हरकतों से बयां कर देता है। मान लीजिये, कुछ ऐसे मर्द हैं (और ये अक्सर मर्द ही होते हैं) जो अपने पार्टनर के प्रति एप्रिसिएशन दिखाने के लिए घर की मरम्मत का कुछ काम कर देते हैं।  

इसके अलावा, कभी-कभी बहुत ज़्यादा बातचीत से रिश्तों में खटास आ सकती है। आपको ये समझना होगा कि कहां पर बोलना है और कहां पर रुक जाना है, जिसके बाद एक और शब्द ना कहा जाए - खासतौर पर जब भावनाएं हिलोरें मार रही हों।  आपको अपने पार्टनर से हर शिकायत या मन में आने वाला हर अप्रिय ख्याल कहने की ज़रूरत नहीं है। असली खूबी यही जानने में है कि कब अपनी बात पर लगाम लगानी है।  

पेरेंटहुड को लेकर हमें शांत होना होगा।  ये कहना लगभग मना है, लेकिन पेरेंटहुड हमेशा जादुई अनुभव नहीं होता है।  

बेशक, ये आपकी ज़िंदगी का सबसे सार्थक काम हो सकता है - और हो सकता है कि अपनी आंखों के सामने अपने खून को बढ़ते हुए देखना आपको ऐसी ख़ुशी दे जो बयां नहीं की जा सकती।  

लेकिन कभी-कभी ये एक ऐसा दुःख बन जाता है जिसपर आपको ज़िंदगी भर पछतावा हो। कॉमेडियन बिल हिक्स इसको अपने अंदाज़ में इस तरह कहते हैं, कि बच्चा होना उतने ही आश्चर्य की बात है, जितना खाना खाकर पॉटी जाना। ये एक आम सा बायोलॉजिकल फंक्शन है, कोई समंदर को बांटने जैसा नामुमकिन काम नहीं। और अक्सर नए मां-बाप पर इस बात का बहुत दबाव होता है कि वो पेरेंटहुड के अनुभव को एक चमत्कारिक अनुभव के तौर पर महसूस करें, लेकिन बच्चे को बड़ा करने की सच्चाई जानकर उनका दिल टूट जाता है और वे खुद से भी डिसपॉइन्ट हो जाते हैं कि वे कुछ अलग या खास महसूस क्यों नहीं कर पा रहे। जब हर सुबह 4 बजे रोते हुए बच्चे, जिसने अभी अभी गंदगी भी कर दी है, की वजह से नींद खुलती है तो वो जादुई एहसास न जाने कहां गायब हो जाते हैं।  

हालांकि, रियलिज़्म के एक शॉट के साथ, एंटीक्लाइमेक्स वाली फीलिंग से बचा जा सकता है - अगर आप नींद की क़ुरबानी, एक थका देने वाले रूटीन और कभी कभी होने वाली खीज के लिए तैयार हैं, तो आप पेरेंटहुड से जुडी अच्छी चीज़ों को बेहतर तरीके से अप्रीशिएट कर पाएंगे। एक और बात: आप बच्चे की ज़िंदगी और उसके विकास के हर पहलु को कंट्रोल नहीं कर सकते, इसलिए कोशिश भी मत कीजिए। बेशक आप ये देख सकते हैं कि आपके बाचे के पास ज़िंदगी शुरू करने के लिए हर ज़रूरी चीज़ और मौके हों। और ये बेहद ज़रूरी है कि बच्चे के बेहतर विकास के लिए माता-पिता उसे एक महफूज़ और भरा-पूरा माहौल दें। 

हालांकि, आपके हाथ में सबकुछ नहीं है। जो डिफिकल्ट बच्चे होते हैं, उनके ऐसा होने के पीछे अक्सर बड़ी वजह जेनेटिक मानी जाती है, ना कि माहौल की गलती समझी जाती है।  और फिर बचपन में होने वाली बीमारी और चोट जैसे खतरे भी होते हैं - खासकर शुरुआती सालों में।  आप अपने बच्चे के लिए बेस्ट स्ट्रॉलर खरीद सकते हैं, उन्हें शुद्ध और आर्गेनिक सब्ज़ियां खिला सकते हैं और उनपर 24 घंटे गिद्ध की तरह नज़रें जमाए रह सकते हैं, लेकिन फिर भी आप उन्हें बीमारी से हमेशा के लिए नहीं बचा सकते। जैसा की हम पहले ही देख चुके हैं, हम एक खतरनाक और अराजक दुनिया में रहते हैं और कभी-कभी बुरा घट ही जाता है।  मगर इसका ये मतलब नहीं कि आप चौकन्ने न रहें, बल्कि इसका मतलब है कि अगर आपने खतरे और बीमारी से बच्चे को बचाने के लिए सारी सावधानियां अपनाई हैं, तो आपको बच्चे के बीमार होने या उसे चोट लगने पर खुद को दोष नहीं देना चाहिए।

ये ठीक है कि बच्चा पैदा करना कोई चमत्कार नहीं है, लेकिन खतरों से भरी दुनिया में एक स्वस्थ बच्चे को बड़ा करने के इंतज़ाम करना किसी चमत्कार से कम भी नहीं है।

दुनिया में कुछ लोग हैं जो शर्तिया गधे हैं, और हम इस बारे में कुछ नहीं कर सकते।
आपने जो कुछ भी ज्ञानियों, काउंसलर से सुना है, या टीवी ड्रामा में देखा होगा, उससे उलट, कुछ बुरे लोग बुरे काम करना बंद नहीं कर सकते। वे तो बस एक नंबर के गधे होते हैं - उनकी वायरिंग इसी तरह की गई होती है। वे कोबरा, तूफान और मुहांसे की तरह होते हैं - यानि वो जो हैं, उसे बदलने के लिए कुछ नहीं कर सकते। ये वो लोग हैं जो डिस्ट्रक्टिव, मतलबी, बेइज़्ज़ती करने वाले और मैनीप्युलेटिव होते हैं।  ये लोग बहुत सारी परेशानियों की जड़ होते हैं - वे एक तरफ लोगों को थेरेपी लेने की सलाह देंगे, और दूसरी ओर बेपनाह कानूनी मसले खड़े कर देते हैं और बहुत सारे अवॉइड होने वाली दुर्घटनाएं पैदा करते हैं। दिन में दिखाए जाने वाले टॉक-शो के लिए ऐसे लोग काफी मटेरियल देते हैं और इसी वजह से कई स्क्रीनराइटरों की प्रेरणा भी बन जाते हैं। 

जहां ज़्यादातर लोग शायद नैतिक दुविधाओं और नुकसान पहुंचाने वाले अंजाम की भनक पा लेते हैं, वहीं एक गधा सिर्फ ऐसी दुनिया देख पाएगा जिसमें उसे सताया गया है और उसकी बेइज़्ज़ती की गई है, जहां उसके पास इस बेइज़्ज़ती और नाइंसाफी के खिलाफ खुद को बचाने का हक़ है। ऐसे तंग प्रिज़्म से दुनिया को देखना ही ऐसे बेवक़ूफ़ के डिस्ट्रक्टिव बिहेवियर के बारे में सबकुछ बता देता है। जितनी जल्दी आप ये बात समझ जायेंगे कि ऐसे बेवकूफों को बदला नहीं जा सकता और किसी भी तरह की थेरेपी या बातचीत उन्हें बदल नहीं सकती है, उतनी जल्दी आप मान लेंगे ये लोग इस दुनिया का एक हिस्सा हैं।  

ऐसे गधों को पहचानना मुश्किल है, लेकिन अगर आपको ऐसा लगे कि आप ऐसे किसी गधे के करीब हैं, तो अपने फैक्ट्स पर डटे रहना और उनसे दूरी बनाए रखना ही मुनासिब है। ये हर शेप और साइज में मौजूद हैं, और हो सकता है कि शुरू में ये तारीफ़ करने वाले, अच्छे श्रोता या ऐसे लोग मालुम हों, जिनसे इमोशनल कनेक्शन बन सकता है। हालांकि वक़्त के साथ साथ, ये साबित कर ही देंगे कि ये  कितने बड़े बेवक़ूफ़ हैं। अगर आपको शक हो कि आप ऐसे किसी इंसान के साथ रिश्ते में हैं, जिसका डिस्क्रिप्शन ऐसे बेवकूफों से मिलता हो- तो शायद आप उसके अतीत को ज़रा करीब से देखना चाहेंगे। खासकर अगर उसके अतीत में झगड़े, कड़वे ब्रेकअप या टूटा हुआ परिवार हो। ऐसा इसलिए क्योंकि गधे अपने बर्ताव का पैटर्न बदल नहीं सकते, चाहे वे कहीं भी जाएं। वो सारे खौफनाक लोग, जिनके बारे में इन गधों ने शिकायत की थी, शायद इतने खौफनाक ना हों, जितना उन्हें बताया गया है।  

अगर आपको पता चल जाए कि आप जिस इंसान के काफी करीब हैं, वो एक गधा है, तो शांत रहें। उसकी तोड़-फोड़ वाली आदत में घुसने की ज़रूरत नहीं है। उसकी ताज़ा हरकतों का बदला लेने की न सोचें या उसके जैसा ग्रज भी ना पालें: आप कभी नहीं जीत पाएंगे। ये एक्शन लेने का वक़्त है - चाहे वो तलाक हो या प्रोफेशनल डिस्टेंस - ज़रूरत के मुताबिक एक्शन लें, वो भी ये समझते हुए कि इसमें आपकी कोई गलती नहीं है। और याद रखिये: हम सभी कभी ना कभी गधों की तरह पेश आते हैं।  लेकिन अगर आपको ये दिखे कि आप खुद से ये सवाल कर रहे हैं कि क्या आप बेसिकली एक गधे हैं, तो आप बिलकुल भी नहीं हैं। एक गधा कभी ऐसा नहीं करेगा।

कुल मिलाकर
कभी-कभी, आप चाहे अपनी सोच को  कितना भी पॉजिटिव क्यों न रखें, इससे ना बुरे हालात सुधर पाते हैं और न ही आप कुछ बुरा होने से रोक पाते हैं। हम वैसी ही दुनिया का सामना कर रहे हैं जैसी वो है, न कि वैसी जैसी हम चाहते हैं - भले चाहे वो हमारी फिजिकल एपीरिएंस की बात हो, रिश्तों का मामला हो या फिर करियर की बात। इस बात को नकारने की जगह, हमारे लिए बेहतर होगा, अगर हम अपने लिमिटेशंस को एक्सेप्ट कर लें और उनके साथ काम करें। इस तरह हम ज़्यादा निराशा से बच सकेंगे और अपनी ज़िंदगी में ज़्यादा असली और ठोस सुधार कर पाएंगे।  

 

क्या करें

हासिल हो सकने वाली कामयाबी के साथ अपनी निराशा को पीछे छोड़ दें।  

अगली बार अगर आपको वो प्रमोशन, ग्रेड या एक्सेप्टेन्स लेटर नहीं मिलता, तो किसी ऐसी चीज़ पर फोकस करें जो आप हासिल कर सकते  उससे आपको बेहतर महसूस होगा। ये आइसक्रीम पार्लर तक जाकर एक महंगी आइसक्रीम खरीदने जितना आसान काम भी हो सकता है या कुछ और ज़्यादा एम्बीशियस, जैसे अपनी नॉवल के पहले 500 शब्द लिख लेना। ये जो भी हो, उसे एक अचीवेबल टारगेट की तरह सेट करें और उसे हासिल करें। अपनी निराशा को पछाड़ने का ये बेहतरीन तरीका है।  

येबुक एप पर आप सुन रहे थे F*ck Feelingsby Michael Bennett MD, Sarah Bennett

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