21 Lessons for the 21 st Century.... __🍀

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21 Lessons for the 21st Century

Yuval Noah Harari
21वीं सदी के लिए खुद को तैयार कीजिए।

दो लफ्जों में 
21 लेसन्स फार 21स्ट सेंचुरी (21 Lessons for 21st Century) में हम आज के वक्त के बारे में कुछ बातें जानेंगे। यह किताब हमें इस सदी से संबंधित वो जानकारियाँ और सबक देती है जिसकी आज हमें सख्त जरूरत है। अलग अलग मुद्दों पर यह किताब हमें बताती है कि हमारे लिए आज के और आने वाले वक्त में क्या जरूरी है और हमें किसपर अपना ध्यान लगाना चाहिए।

यह किसके लिए है 
- वे जो कंप्यूटर पर कुछ ज्यादा निर्भर रहते हैं।
- वे जो 21वीं सदी के बारे में कुछ खास बातें जानना चाहते हैं।
- वे जो सोचते हैं कि उन्हें बहुत कुछ आता है।

लेखक के बारे में 
यूवाल नोह हरारी (Yuval Noah Harari) एक लेखक के रूप में दुनिया भर में जाने जाते हैं। उनकी किताब सैपियन्स और होमो ड्युस बेस्ट सेलर किताबें हैं। वे आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफेसर हैं।

यह सबक आपको क्यों पढना चाहिए?
आज के वक्त में जो बदलाव हमारे आ रहें हैं उससे ज्यादातर लोग वाकिफ नहीं हैं। बहुत से लोग पुराने तरीकों को अब भी अपनाते आ रहे हैं और कुछ को तो यह भी नहीं पता कि उनके देश के फैसले किस तरह से लिए जा रहे हैं। आज की इस दुनिया में जानकारी हर जगह मौजूद है, लेकिन हम उसका इस्तेमाल करना नहीं जानते।

21वीं सदी में बदलाव बहुत तेजी से आ रहे हैं और आने वाले वक्त में अगर हमें जिन्दा रहना है या अपने बच्चों को जिन्दा रखना है तो हमें उन्हें कुछ नए तरीके सिखाने होंगे। हमें उन्हें वो तरीके सिखाने होंगे जो उन्हें आने वाले वक्त में काम दें, ना कि वो जो इस समय इस्तेमाल किए जा रहे हैं। यह किताब हमें कुछ ऐसे ही बदलाव के बारे में बताती है। यह किताब हमें बताती है कि किस तरह से हम इस सदी के लिए खुद को और अपने बच्चों को तैयार कर सकते हैं।

 

- कंप्यूटर का बेहतर बनना हमारे लिए किस तरह से नुकसानदायक है।

- आतंकवादी किस तरह से अपने मकसद में कामयाब हो जाते हैं। और 

- स्कूलों को बच्चों को क्या सिखाना चाहिए।

कंप्यूटर के आ जाने से लोगों की नौकरियां जा रही हैं और लोग इसके गुलाम हुए जा रहे हैं।
आज के वक्त में हम कंप्यूटर को हर जगह देखते हैं। उसके बिना आज जिन्दगी के बारे में सोच पाना भी मुश्किल है। लेकिन इसके बहुत से नुकसान भी हैं जिसके उपर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। आज के वक्त में हम लोकतंत्र में तो हैं, लेकिन फिर भी हम कंप्यूटर के गुलाम हुए जा रहे हैं।

हमारे फाइनेंस और पैसों को भी आज कंप्यूटर संभाल रहा है। जब यह सारे काम कंप्यूटर से करवाए जा रहे हैं तो सिर्फ कुछ लोगों को पता होता है कि यह असल में काम कैसे कर रहा है और किस तरह से इससे काम करवाना है। बाकी के लोग सिर्फ इनकी दी गई सुविधाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन जब आने वाले वक्त में सारे काम रोबोट करने लगेंगे, तब तो हम और भी नहीं समझ पाएंगे कि हमारे पैसों का इस्तेमाल किस तरह से हो रहा है और किस तरह से उसे काबू करना है। इसका मतलब तब सिर्फ कुछ लोगों के हाथ में ही इतने सारे पैसों की बागडोर होगी।

आने वाले वक्त में सरकार भी कंप्यूटर की मदद से यह तय करेगी कि उसे कितना टैक्स जनता से लेना चाहिए और किस तरह से देश चलाना चाहिए ताकि पैसों का बहाव अच्छे से हो सके। क्या यह किसी तरह से सही लगता है कि कल को देश के इतने बड़े फैसले एक कंप्यूटर से लिए जाएं?

कंप्यूटर के आ जाने से बहुत से लोग अपनी नौकरियां खो रहे हैं। इस बात पर कोई भी नेता ध्यान नहीं दे रहा है। इसका नाम कोई अपने राजनीतिक अजेंडा में नहीं लेता जबकि यह इस समय का सबसे बड़ा मुद्दा है। क्योंकि आज सब कुछ कंप्यूटर की मदद से हो रहा है और सरकार इसके लिए कुछ नहीं कर रही है, इसलिए बहुत से लोगों का सरकार पर से भरोसा उठ रहा है।

आम लोग कंप्यूटर के आ जाने से हर दिन डर रहे हैं। उन्हें डर लग रहा है कि कहीं वे भी अपनी नौकरियों को ना खो दें। पहले के वक्त में मजदूर चिंता करते थे कि उनके बॅास कहीं उनका फायदा ना उठा लें लेकिन आज के वक्त में वे एक मशीन से डरकर जी रहे हैं।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आ जाने से आने वाला वक्त कंप्यूटरों का हो सकता है।
आज के वक्त में हम इंसान के दिमाग को समझने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। हम उसे समझ कर रहा पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि किस तरह से हम हालात को देखते हुए फैसले ले सकते हैं। साइंटिस्टों ने यह खोज निकाला कि हमारे दिमाग की यह काबिलियत होती है कि वो पैटर्न को देखते हुए किसी घटना के होने की संभावना निकाल सकता है। यही वो वजह है जिससे हम यह पता पाते हैं कि बारिश होगी या नहीं या कोई व्यक्ति जिस तरह से काम कर रहा है उस तरह से काम करने पर वो कामयाब होगा या नहीं।

अब जब वे इस बात को धीरे धीरे समझने लगे हैं कि हमारा दिमाग किस तरह से काम करता है, तो वे कंप्यूटर के अंदर यह सब कुछ प्रोग्राम कर के उसे भी इस काबिल बना रहे हैं ताकि वो भी इस तरह के फैसले ले सके। इसका मतलब यह कि आने वाले वक्त में कंप्यूटर भी इंसानों की तरह सोचने लगेगा।

19वीं सदी में जब इंडस्ट्रीज़ का बनना शुरू हुआ और तरह तरह की मशीनें आने लगी तब बहुत से मजदूरों ने अपना काम खो दिया। जो काम 5 मजदूर मेहनत कर के 2 दिन में करते थे वो काम एक मशीन 2 घंटे में करने लगी। इस तरह से बहुत से लोगों ने अपनी नौकरी खो दी। लेकिन क्योंकि वे मशीनें सोच नहीं सकती थी, इसलिए उन्हें चलाने के लिए इंसानों की जरूरत पड़ती थी। कुछ नौकरियां गई, लेकिन उनकी जगह पर कुछ अलग तरह की नौकरियां आ गई।

लेकिन जो बदलाव इस समय हो रहा है उसे देखकर ऐसा लग रहा है कि आने वाले वक्त में सोचने समझने वाले काम भी कंप्यूटर ही करेगा। वो हम से भी बेहतर बन जाएगा और वही एक वकील का, एक इंजीनियर का और एक डाक्टर का काम करेगा। तब न जाने कितने लोग अपने काम खो देंगे और कंप्यूटर पूरी तरह से राज करने लगेंगे।

यूरोप में कई सारे देशों के नागरिकों के आ जाने से लोगों में तनाव बढ़ रहा है।
आज के वक्त में हम जब चाहें जहाँ जा सकते हैं। दुनिया बहुत छोटी हो गई है और हर देश का नागरिक हर देश में जा सकता है। इससे अलग अलग सभ्यताएं आपस में मिल जा रही हैं जिसकी वजह से लोगों में तनाव बढ़ रहा है।

यूरोप में यह सबसे ज्यादा हैं। यहाँ पर आने वाले लोग अपने देश की सभ्यता को अपने साथ लेकर आते हैं जो कि यूरोप के लोगों को पसंद नहीं आता। उनका मानना है कि अलग अलग तरह की सभ्यताओं के आ जाने से उनकी सभ्यता उनके ही देश में कहीं गायब हुई जा रही है। वे चाहते हैं कि जो भी व्यक्ति यहां पर आए वो यहाँ के रहन सहन को अपनाए, ना कि अपने देश के रहन सहन के हिसाब से रहे।

यूरोप के कुछ लोगों का कहना है कि यूरोप में आने वाले लोगों को वहाँ के धर्म को अपनाना चाहिए और चर्च में जाना चाहिए। लेकिन बाहर से आने वाले लोग कहते हैं कि ज्यादातर यूरोपियन खुद चर्च नहीं जाते तो वे क्यों जाएं। यूरोप के लोगों का कहना है कि बाहर से आने वाले लोग अपने यहां के खाने की रेसिपी को यूरोप में ना लेकर आएँ और यूरोप का खाना खाएँ। जब कि बाहर से आने वाले लोग बोलते हैं कि बहुत से यूरोपियन खुद उनके यहाँ के डिश पसंद करते हैं और मन से खाते हैं।

इस झगड़े का कोई अंत नहीं दिख रहा है। हालांकि बहुत पहले यह समझौता हो चुका था कि फ्रांस, जर्मनी, इंगलैंड के दरवाजे सारे देशों के लिए हमेशा खुले रहेंगे, लेकिन अब लग रहा है कि यह समझौता नाकाम हो जाएगा।

हमें इस झगड़े को यूरोप की सभ्यता बचाने या किसी दूसरे की सभ्यता को अपनाने की नजर से नहीं देखना चाहिए। बल्कि हमें इसे एक राजनीतिक मुद्दे की तरह देखकर इसे साथ मिलकर सुलझाना चाहिए।

आतंकवादी कमजोर होने पर भी अपने मकसद में कामयाब हो जा रहे हैं।
2001 में जब 9/11 का हमला हुआ था तो उसमें 3000 अमेरिकी मारे गए थे। उसके बाद से हर साल यूरोप में 50 लोग और अमेरिका में 10 लोग आतंकवादियों के हाथों मारे जाते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि इसी बीच अमेरिका में 40000 लोग और यूरोप में 80000 लोग ट्रैफिक एक्सिडेंट में मारे गए? लेकिन हम गाड़ी चलाने से ज्यादा आतंकवादियों से डरते हैं जबकि इसके मुकाबले वे बहुत कम लोगों को मारते हैं।

आतंकवादियों का काम है आतंक फैलाना और वो यह काम बड़े अच्छे से कर पा रहे हैं। अगर देखा जाए तो अमेरिका के मुकाबले वे बहुत कमजोर हैं, और जब 9/11 का हमला हुआ था तो उन्होंने सिर्फ कुछ लोगों को मारा। हमले के बाद भी अमेरिका के पास लगभग उतने ही सैनिक, तोप और जहाज थे जितने हमले के पहले थे। वहाँ की सड़कें और बातचीत के साधनों को कोई नुकसान नहीं हुआ। लेकिन सिर्फ 2 टावर गिराकर उन्होंने पूरे अमेरिका को खौफ में डाल दिया। वे चाहते थे कि यहाँ की राज्यव्यवस्था में उथल पुथल आ जाए और वे कामयाब हुए।

इसके बाद अमेरिका के प्रेसिडेंट जार्ज बुश ने अफगानिस्तान पर हमला करने का आदेश दिया जिससे दुनिया में और तबाही आ गई। आतंकवादियों का आधा काम हमने खुद पूरा कर दिया।

आतंकवादी कमजोर होने पर भी हमारे दिमाग से खेलना जानते हैं। वे कुछ ज्यादा नुकसान कर पाएं, उनके अंदर इतनी ताकत नहीं होती। मान लीजिए कि एक मक्खी है जो चाहती है कि वो किसी दुकान में जा कर वहाँ के सामान तोड़े। लेकिन उसके पास इतनी ताकत नहीं है। इसलिए वो पास बैठे बैल की आँख और कान के पास भिनभिना कर उसके उकसाती हैं और बैल को जब गुस्सा आता है, तो वो मक्खी को मारने की कोशिश में पूरी दुकान तोड़ देता है। आतंकवादियों ने कुछ ऐसा ही तरीका अपनाया और वे कामयाब भी हुए। जब भी हम कुछ ज्यादा हरकत करेंगे, आतंकवादी जीत जाएंगे।

आज के वक्त में हमें लगता है कि हम सोच समझ कर काम कर रहे हैं।
एल्बर्ट आइंस्टाइन ने कहा था कि ज्ञान का सबसे बड़ा दुश्मन अज्ञानता नहीं है बल्कि ज्ञान का भ्रम है। अगर आप अज्ञान हैं, तो आप बहुत कुछ सीख कर ज्ञानी बन सकते हैं।  लेकिन अगर आपको कुछ नहीं आता और आपको लगता है कि आपको सब कुछ आता है, तो आप सारी उम्र बेवकूफ बने रहेंगे। हैरानी की बात यह है कि आज बहुत से लोगों को लगता है कि उन्हें सब कुछ आता है।

पहले के वक्त के आदिवासियों को पता था कि शिकार कर के खाना कैसे पकाना है, जानवरों की चमड़ी को कपड़े में कैसे बदलना है और खुद को कैसे बचाना है। उन्हें हर रोज के कामों के बारे में पता था। लेकिन जब एक रीसर्च में कुछ लोगों से पूछा गया कि उनके पर्स का ज़िप किस तरह से काम करता है, तो उन्हें नहीं पता था।

आज के वक्त में हमें पता ही नहीं है कि हमारी दुनिया काम कैसे कर रही है। हम दूसरे एक्सपर्ट्स के भरोसे रहते हैं और उनके ज्ञान को अपना ज्ञान मानते हैं। आज के वक्त में सरकार ने लोगों को वोट करने का अधिकार दिया है क्योंकि उन्हें लगता है कि लोगों को पता है कि उनके लिए क्या अच्छा है और उन्हें क्या करना चाहिए। लेकिन क्या आपको वाकई पता है कि आपके लिए क्या अच्छा है?

इसका नतीजा यह है कि दुनिया भर के लोगों को नहीं पता कि यह दुनिया काम कैसे करती है। वे घर में बैठकर वाट्सऐप के जरिए कोई सुधार करने का मैसेज सेंड करते हैं और लिखते हैं - "इसे इतना शेयर कीजिए कि हर अधिकारी के पास यह मैसेज जाए ताकि भारत में यह बदलाव आ सके"। उन्हें नहीं पता कि ज्यादातर लोग उसे पढ़ने के दो मिनट बाद उसे भूल जाते हैं और अधिकारी के पास वाट्सऐप चलाने का समय नहीं है। उन्हें नहीं पता कि सरकार में किस तरह से कोई नियम लागू होता है या किस तरह से फैसले लिए जाते हैं,  लेकिन वे अपनी राय देते रहते हैं।

अगर कोई व्यक्ति आपको कोई बात बताए तो उसे मानने से पहले थोड़ा रीसर्च कीजिए।

आज के वक्त के स्कूल बिल्कुल भी काम के नहीं हैं और आपको वाकई लगता है कि जो आप ने अपने वक्त में स्कूल में पढ़ा था उसका थोड़ा सा भी हिस्सा आप आज अपनी जिन्दगी में इस्तेमाल कर रहे हैं?  आज के वक्त में बच्चों को जो पढ़ाया जाता है वो आने वाले वक्त में उनके लिए काम का नहीं होगा। हम उन्हें जितनी भी जानकारी दे रहे हैं, वो उनके किसी काम की नहीं रह जाएगी।

इस तरह से पढ़ने का तरीका हम 19वीं सदी से अपनाते आ रहे हैं। उस समय जानकारी का मिलना बहुत मुश्किल हुआ करता था। उस समय ना तो रेडियो था और ना ही टीवी। इसलिए लोगों को इतिहास, साइंस और दूसरे सब्जेक्ट के बारे में कुछ नहीं पता था। जब स्कूल चलना शुरू हुए तो लोगों को बहुत सारी जानकारी मिली जिससे कि उनकी जिन्दगी में काफी सुधार हुआ।

लेकिन क्या आज के वक्त में हमें जानकारी की जरूरत है? बिल्कुल नहीं। जानकारी तो हम कहीं से भी निकाल सकते हैं। हमें यह सीखना है कि उस जानकारी को अपने काम के लिए इस्तेमाल कैसे करें। हमें यह सीखना है कि उस डाटा का मतलब किस तरह से निकालें। हमें यह सीखना है कि सोचें किस तरह से ताकि हम आने वाले वक्त से खुद को बचा सकें। अगर भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू थे और महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं तो यह जानकर हम आने वाले वक्त में कुछ भी नहीं करेंगे। यह जानकारी हम जब चाहें हासिल कर सकते हैं। 

जानकारी हमारी समस्या नहीं है। हमारी समस्या है वो गलत जानकारी जो इंटरनेट पर घूम रही है। दुनिया भर में आज फेक न्यूज़ घूम रही है और बहुत से लोग इसे मान भी ले रहे हैं क्योंकि उन्हें नहीं पता है कि यह कैसे पता करें कि कोई जानकारी सच है या झूठ। 

हमें अपने स्कूलों में बच्चों को यह सिखाना चाहिए कि किस तरह से बेकार की जानकारी को काम की जानकारी से अलग करें और किस तरह से सामने रखे गए सारे डाटा का मतलब निकाल कर उसे अपने काम के लिए इस्तेमाल करें। हमें उन्हें जानकारी देना बंद कर देना चाहिए और उन्हें जानकारी का इस्तेमाल करना बताना चाहिए।

कुल मिलाकर
आज के वक्त में हम कंप्यूटर पर हद से ज्यादा निर्भर हो रहे हैं। हम इसे खुद से ज्यादा समझदार बना रहे हैं जिससे आने वाले वक्त में वो हमारी जगह और हमारा काम ले सके। आतंकवादी हमारी मानसिकता समझते हैं और उसका इस्तेमाल कर के अपने मकसद में कामयाब हो जाते हैं और लोगों को लगता है कि वे बहुत कुछ जानते हैं। जानकारी आज के वक्त में हमारे काम की नहीं है बल्कि उसका इस्तेमाल कर पाने की काबिलियत हमारे लिए बहुत जरूरी है।

 

लीडर्स हमेशा सच बोलें यह जरूरी नहीं है।

आज कल हम यह समझ लेते हैं कि अगर कोई लीडर या कोई कामयाब व्यक्ति कुछ बोल रहा है तो वो सच बोल रहा होगा। लेकिन उसे यह बातें अपने आस पास के लोगों और कर्मचारियों से पता लगती हैं। वे कर्मचारी अक्सर अपने फायदे के लिए झूठ बोलकर लीडर को खुश करने की कोशिश करते हैं। इसलिए लीडर्स के पास आज के वक्त में सही जानकारी पहुँचे यह जरूरी नहीं है। तो किसी पर भरोसा करने की बजाय खुद बाहर जा कर सच जानने की कोशिश कीजिए।


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