Jiddu Krishnamurti
अपने जिंदगी के कुछ मुश्किल सवालों के हह जवाब ढ़ूंढिये
दो लफ्जों में
वाट आर यु डूइंग विथ योर लाइफ(2001) जिंदगी के कुछ मुश्किल सवालों का जवाब देने की कोशिश करती है. खुशियों की अहमियत से लेकर पर्सनल ट्रांसफॉरमेशन तक, यह समरी जिंदगी के हर स्टेज पर आपको गाइड करने के लिए एक फिलॉसफी सेट करती है.
किन लोगों को यह समरी ज़रूर पढ़नी चाहिए
- वह लोग जो अपने आप को खोया हुआ महसूस करते हैं और किसी मकसद की तलाश में हैं
- जो लोग फिलॉसफी में दिलचस्पी रखते हैं और गहराई से सोचते हैं
- गुरू और लाइफ टीचर बनने की ख्वाहिश रखने वाले
लेखक के बारे में
जिद्दू क्रिश्नमूर्ति 1895 में साउदर्न इंडिया में पैदा हुये थे. वह एक फिलॉसफर, स्पीकर और राइटर थे. "द थ्योसोफिकल सोसायटी" नाम की एक ग्लोबल फिलॉसफिकल ऑर्गेनाइजेशन ने उन्हें "वर्ल्ड टीचर" का लकब दिया, जिसका वह इंतजार कर रहे थे. उन्होंने यह लकब एक्सेप्ट नहीं किया और अपनी जिंदगी दुनिया भर में तरह-तरह के लोगों से बातचीत करने में बितायी. 1986 में उनकी मौत हो गई थी.
इसमें आपके लिए क्या है?
कभी ना कभी हम सबके मन में यह सवाल जरूर उठा है, कि आखिर हमारी जिंदगी का मकसद क्या है? हो सकता है आपने यह भी सोचा हो कि कैसे कुछ लोग अपनी जिंदगी में खुशियां ढूंढने और उसे बनाए रखने में कामयाब होते हैं. हो सकता है आपने सोसाइटी में मौजूद प्रॉब्लम्स के बारे में खूब सोचा हो और कुछ सल्यूशन भी निकालने की कोशिश की हो. इस समरी में आप ऐसे ही कुछ बुनियादी सवालों के जवाब पाएंगे. हलांकि यहां पर आपको कोई आसान जवाब नहीं मिलेंगे. आगे चलकर इस समरी में आप जो कुछ जानें, हो सकता है वह आपको प्रोवोक कर दे. मिसाल के तौर पर 'सस्टेंड हैप्पिनेस' नाम की कोई चीज होती ही ना हो तो? जिंदगी के मकसद की तलाश करना चीजों को समझने का गलत तरीका हो तो? आगे आप जो भी जानेंगे वह आपकी पहले से बनी सोच को चैलेंज करने के साथ ही आपको इंस्पायर भी करेगा. इस समरी में आप जानेंगे, कि आपके कल्चर की कंडीशंस ने आप पर क्या असर डाला है? क्यों रिवॉल्यूशन से कुछ नहीं बदलेगा और इंटलेक्ट और इंटेलिजेंस में क्या फर्क है।
तो चलिए शुरू करते हैं!
आप की कंडीशंस की वजह से आप चीजों को वैसे नहीं देख पाते जैसी असल में वह हैं।
कुछ पल के लिए ठहरिये और सोचिए आप इस दुनिया को कैसे समझते हैं या क्या समझते हैं. मिसाल के तौर पर,
लव या प्यार को ही ले लीजिए. जब से आप पैदा हुए हैं आपने इस शब्द के बारे में जाना है और इसी जानकारी की वजह से लव को लेकर आपकी एक सोच डिवेलप हुई है. हो सकता है, लव शब्द सुनते ही आपके मन में एक हैप्पी कपल और उनके वेडिंग डे का ख़याल आ जाता हो या फिर ढेर सारे फूलों का सरप्राइस गिफ्ट के तौर पर मिलना ही आप लव समझते हों। चाहे जो भी हो, आप लव को अपने सोशल, इकोनॉमिक, कल्चरल बैकग्राउंड पर डिपेंडेंट, एक कंडीशन के तहत ही देखते हैं. इससे पता चलता है, कि लव को लेकर आपकी समझ बहुत छोटी है. और इसका जो एक कांपलेक्स कांसेप्ट है आप उसके बारे में नहीं जानते. जब आपकी पहले वाली जानकारियां आपके सामने कंडीशन रख देती हैं कि हां दुनिया ऐसी ही है तो आप दुनिया को इसकी हकीकत और कंपलेक्सिटी के साथ नहीं समझ पाते. जिंदगी कभी भी एक जैसी नहीं होती लेकिन दुनिया को लेकर आपकी खास सोच की वजह से आप समझते हैं की लाइफ फिक्स्ड है. आपका दिमाग आपके कल्चरल बैकग्राउंड और बिलीव सिस्टम से बंधा हुआ है.
यह जानने के लिए जिंदगी हकीकत में कैसी है, इसके उतार-चढ़ाव को समझने के लिए आपको अपना ज़ेहन और नजरिया बदलना होगा. अगर आप खुद को जिंदगी के बदलते हुए नेचर से नहीं जोड़ेंगे तो पूरी तस्वीर कभी नहीं देख पाएंगे, बस अपने बनाए हुए छोटे से दायरे में भंसकर रह जाएंगे.
मिसाल के तौर पर अगर आप किसी फूल को खेलते और फिर मुरझाते हुए देखते हैं तो इसे लेकर हर दिन आपकी सोच बदलती रहेगी, ईमानदारी से एनालिसिस किया जाए तो. एकदम वैसे ही जिंदगी है. इसके बारे में कोई एक सोच लंबे वक्त तक नहीं चल सकती, इसे बहुत तवज्जो देने की जरूरत है. जिंदगी को और इसकी सच्चाई को समझने के लिए आपको उन सभी थ्योरीज़ और सिस्टम को नजरअंदाज करना होगा जो जिंदगी को पूरी तरह से समझने का दावा करते हैं. यह काम थोड़ा मुश्किल हो सकता है खासतौर पर तब जब आप अपनी पहचान को एक सोशलिस्ट, कैपिटलिस्ट, क्रिश्चियन या हिंदू के तौर पर समेट लेते हों. अगर आप किसी रिलिजन या आइडलोजी को फॉलो करते हैं तो आप किसी भी सिचुएशन को दुनिया को लेकर अपने नज़रिया में फिट करने की कोशिश करेंगे, चाहे वह सिचुएशन आपके बिलीव सिस्टम से पूरी तरह अलग ही क्यों ना हो.
तो, आप अपने आप को दुनिया से कैसे जोड़ेंगे? आपको यह चीज नोटिस करनी होगी कि आपका दिमाग किस तरफ जाता है. आपको इसके काम करने का तरीका ऑब्ज़र्व करना होगा जैसे आप कहीं दूर से देखकर ऑबज़र्व कर रहे हों. तभी आप समझ पाएंगे कि कैसे आप की कंडीशन दुनिया को लेकर आपके नजरियों को लिमिटेड कर देती हैं. इसी तरीके से ही आप अपने आप को और दुनिया के साथ अपने रिश्ते को समझना शुरू कर देंगे. और यही जिंदगी की तरफ हर रोज़ बदलती और बढ़ती प्रॉब्लम्स को सॉल्व करने का पहला स्टेप है.
दुनिया को बदलने से पहले, खुद को बदलना होगा
एक रिवॉल्यूशन के बारे में सोच कर देखिए. इनजस्टिस के खिलाफ लड़ने की बात से इंस्पायर होकर लोग अपने ऊपर जुल्म ढा रहे सिस्टम के ख़िलाफ़ इकट्ठे हो जाते हैं. वह एक जनरल स्ट्राइक प्लान करते हैं और सब कुछ रोक देते हैं. वह अपनी सरकार और सरकार के साथ काम कर रहे लोगों को उखाड़ फेंकते हैं. वह एक ऐसा कॉन्स्टिट्यूशन पेश करते हैं जिसमें, ट्रांसपैरेंसी लाने, कमज़ोर तबके को आगे लाने और वायलेंट कनफ्लिक्ट खत्म करने का दावा किया जाता है. जब लोग "दुनिया बदलो" सुनते हैं तो उनके ध्यान में कुछ ऐसी तस्वीरें आ जाती हैं. लेखक कहते हैं अगर हम ऐसी किसी चीज का इंतजार कर रहे हैं तो हालात कभी नहीं बदलेंगे.
हम यह बात पहले ही जान चुके हैं कि अगर हम बड़े-बड़े आइडियाज़ और पिछली कहानियों के आधार पर दुनिया को समझने की कोशिश करते हैं, तो हम इसे साफ तौर पर कभी नहीं समझ पाएंगे. यह हमें किसी भी तरह के पॉजिटिव चेंज लाने से भी रोक सकता है. अगर हम दुनिया को बेहतर बनाने के लिए किसी रिवॉल्यूशन, स्प्रिचुअल ट्रांसफॉरमेशन का इंतजार कर रहे हैं तो हम हकीकत नहीं समझ पा रहे हैं, हकीकत यह है कि बदलाव हमारे अंदर से आता है बाहर से नहीं. इस दुनिया में बहुत सारे लोग एक दूसरे से मिल-जुल रहे हैं. हमारी दिक्कतें कोई बहुत बड़े पॉलिटिकल या रिलीजियस लेवल से नहीं बल्कि इन्हें छोटे-मोटे मस्लों से शुरू होती हैं. हमारी दिक्कतों की वजह फासिज्म, कैपिटलिज्म या रिलीजन नहीं बल्कि हमारे दिमाग का सही से काम ना करना है. चाहे हम इकोनामिक इनिक्वालिटी की बात करें, जंगो की बात करें या फिर साइक्लोजिकल बीमारियों की, प्रॉब्लम्स की असल वजह हम खुद हैं. लेखक के मुताबिक सबसे बड़ी प्रॉब्लम हमारी अपनी बनावट है, जो हमें दुनिया में चल रही हर चीज के ख़िलाफ़ खड़ी कर देती है. एक इंसान के तौर पर हमें पावर, पोजीशन और तरह-तरह के इनफ्लुएंस की ख्वाहिश होती है, जो हमारे आसपास प्रॉब्लम क्रिएट करती हैं. अपने खुद के फायदे के लिए हम सारी चीजें बर्बाद करते हैं. लेखक का मानना है कि हमें 'मैं' वाली फीलिंग से बाहर निकल कर आगे बढ़ना चाहिए. लेकिन सिर्फ इसके बारे में बहुत ज्यादा सोच कर अपने आप को इस 'ईगोस्टिक' प्रॉब्लम से बाहर नहीं निकाला जा सकता. इसके लिए जो काम खासतौर पर करने की जरूरत है वह यह कि अपने दिमाग के काम करने के तरीके को ऑब्जर्व कीजिए. उसके बाद सिर्फ अपने आप को अच्छे से समझ कर आप यह बात जान सकेंगे कि कब अपने ईगो की वजह से आप गलत काम या दूसरों को नुकसान पहुंचाने वाला काम करते या कर रहे हैं.
खुशियां बहुत कम वक्त के लिये आती हैं, जितनी जल्दी हम यह समझ लेंगे उतने ही खुशहाल रहेंगे। खुशियां एक ऐसी चीज है जिसकी तलाश में हम में से हर शख्स घूम रहा है. आखिरकार खुशियों की तलाश ही तो जिंदगी का मकसद है? चाहे वह प्यार, करियर या फैमिली, किसी भी ज़रिये से मिले खुशी इकलौती ऐसी चीज है जिसके लिए हम सब कुछ करते हैं. यहां पर दिक्कत यह है कि वह खुशियाँ ढूंढना मुश्किल है जो ठहरें. और जब हम इसकी तलाश कर रहे होते हैं तो ऐसा लगता है यह कहीं छिपी हुई है. खुशियों को ढूंढने और उन्हें अपने काबू में करने का तरीका क्या है?
जब हम बच्चे होते हैं तो हमें बहुत छोटी छोटी चीज़ों में और बहुत आसानी से खुशियां मिल जाती हैं. हम बिना कोशिश किए ही खुश रहते हैं खेलने, दौड़ने, स्वीमिंग करने और नेचर से मिलने वाले अलग-अलग एहसासों में हमें खुशियां महसूस होती हैं. जैसे जैसे हम बड़े होते हैं ऐसी वक्ती खुशियों को जी पाना हमारे लिए मुश्किल हो जाता है. इसलिए खुशियां हासिल करने के लिए हम कॉम्फलेक्स तरीका अपनाते हैं हमें लगता है कि पावर, रुतबा, पैसा हासिल करने से हमें वही खुशियां मिलेंगी. प्रॉब्लम यह है कि हमें जैसे ही वह चीज मिलती है जिसे हम पाने की कोशिश कर रहे थे उसके मिलते ही हमें उसे खो देने का डर सताने लगता है चाहे वह परफेक्ट पार्टनर हो, खूबसूरत घर हो या किसी बड़ी कंपनी में बढ़िया सी नौकरी. आप किसी के प्यार में पड़ते वक्त बहुत खूबसूरत महसूस कर सकते हैं, लेकिन उसके बाद उस प्यार के खत्म हो जाने या उस पर बहुत ज्यादा डिपेंडेंट हो जाने का डर सताने लगता है. जो चीज बहुत सिंपल और खूबसूरत थी वह नाराज़गी और डर के एक मिक्स्चर में बदल जाती है. जैसे जैसे हम बड़े होते हैं खुशियों को पाने की चाहत बद्दुआ में तब्दील होने लगती है. जब हम खुशियों की तलाश करते हैं तो उसमें एक तरह की सिक्योरिटी की भी तलाश होती है, जैसे कोई हमें हमेशा अपनी बाहों में थामे रहे. हम हमेशा साइकोलॉजिकली बेहतर और सेफ महसूस करना चाहते हैं. और इसकी तलाश हम दूसरों के साथ अपने रिश्ते में करते, शादी, फैमिली और दोस्ती के जरिए.
लेकिन जिंदगी की हकीकत यह है कि इसमें किसी भी तरह की लंबे वक्त तक ठहरने वाली सिक्योरिटी नहीं है. जिंदगी हवा की तरह बदलती है और हम असल में अकेले ही होते हैं. यहां तक की हमारे पेरेंट्स, पार्टनर और बहुत करीबी दोस्त भी वह सिक्योरिटी हमें नहीं दे सकते क्योंकि वह भी इस दुनिया में अकेले ही हैं. तो इसका इलाज क्या है? लेखक का मानना है कि इस निराशा से बचने का एकलौता तरीका यह है कि हम ऐसी किसी खुशी की तलाश छोड़ दें जो लंबे वक्त तक ठहरे. इसका मतलब अपनी उस पहचान से अपने उस वजूद से बाहर निकलना है जिसका मकसद ही खुशियां इकट्ठा करना है. अगर आप अपना हर पल इस हकीकत की रोशनी में गुजारते हैं कि कुछ भी परमानेंट नहीं है यहां तक की खुशियां भी नहीं, तभी आप असल में खुश रह पाएंगे.
इंटलेक्ट और इंटेलिजेंस में फर्क होता है
इंटलेक्ट का क्या मतलब होता है? यह शब्द सुनते ही हमारे मन में कॉन्प्लेक्स प्रॉब्लम सॉल्व करते हुए साइंटिस्ट्स की तस्वीर और ए ग्रेड के स्टूडेंट्स का ख्याल आता है. इंटलेक्ट का मतलब एक तरह की एनालिटिकल और डिडक्टिव थिंकिंग होता है. इसका मतलब ऐसी कोई चीज भी होता है जिसे किसी डायरेक्शन में ट्रेन किया जा सके. असल में, मॉडर्न एजुकेशन सिर्फ यही काम करती है. मिसाल के तौर पर एजुकेशन के जरिए किसी दिमाग को मैथमेटिक्स, फिजिक्स या इकोनॉमिक्स में ट्रेन करके शार्प नहीं कर सकते. हालांकि, लेखक का मानना है अगर आप सिर्फ अपने इंटलेक्ट का इस्तेमाल करते हैं तो इस दुनिया को पूरी तरीके से नहीं समझ पाएंगे. इस दुनिया को पूरी तरीके से समझने के लिए आपको अपने इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करना होगा.
अगर इंटेलेक्ट और इंटेलिजेंस एक ही चीज नहीं है, तो आखिर इंटेलिजेंस का क्या मतलब है? इसका मतलब फील करने के साथ-साथ उसके पीछे के लॉजिक का भी इल्म होना है, फीलिंग और रीजन के साथ सुकून से बसर करना है. दुनिया को लेकर एकेडमिक अंडरस्टैंडिंग पूरी तरह से इंटेलिजेंस का इस्तेमाल नहीं करती, क्योंक यह फीलिंग को नजरअंदाज करती है. तो आप सिर्फ इंटलेक्ट के बजाए अपने इंटेलिजेंस का भी इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं? लेखक का मानना है की सबसे पहले आपको अपने दिमाग को शांत करना होगा. आप तभी कोई चीज समझ पाएंगे चाहे वह कोई इंसान हो, पेंटिंग हो या शहर जब आपका दिमाग और खयाल शांत होंगे.
अगर आप बिज़ी माइंड के साथ चीजों को समझने और उसके पीछे की वजह जानने की कोशिश करेंगे तो आप पूरी तरह से कुछ भी नहीं समझ पाएंगे. सच तभी सामने आता है जब आप इसे कंट्रोल करने की कोशिश नहीं करते, यह बहुत गहरा होता है और इसे पकड़ा नहीं जा सकता. अगर आपके अंदर कुछ ऐसा मौजूद है जो लगातार आपको दुनिया के बारे में बताता रहता है तो आप कभी भी कुछ भी पूरी तरह से नहीं समझ पाएंगे. तो आप उफान मारते अपने ख्यालों से कैसे बच सकते हैं? यह नामुमकिन है? ऐसा तभी मुमकिन है जब आप अपने दिमाग को बहुत गहराई से समझ लेंगे. आप को समझना होगा कि आपका इंटलेक्ट आपकी एजुकेशन और आपके बैकग्राउंड की वजह से जो कंडीशन क्रिएट हुई है उसका एक प्रोडक्ट है, ना कि ऐसी कोई क्वालिटी जो आपको सच दिखाएगा. इन सभी कंडीशन की वजह से आप चीजों को वैसे ही समझते और एनालाइज करते हैं जैसे आप करते आ रहे हैं. जब आप इस सच को, जान लेंगे तो आप अपने इंटलेक्ट और जिस चीज को समझने की कोशिश कर रहे हैं उसके बीच कुछ डिस्टेंस क्रिएट कर पाएंगे. और हो सकता है पहली बार आप किसी चीज की सच्चाई को समझ सके.
जब आप बोरियत महसूस कर रहे हो तो आपको इस से पीछा छुड़ाने के बजाय अपने आप को इस बोरियत में खो देना चाहिए
आप बोर हो गए हैं. आप एकदम मुरझाया हुआ महसूस कर रहे हैं और कुछ भी करने की वजह नहीं है. आप क्या करेंगे? आप मूवी का इंतजाम करते हैं, जॉगिंग पर जाने की कोशिश करते हैं या अपने किसी फ्रेंड को कॉल करके पूछते हैं कि क्या वह आपके साkथ ड्रिंक के लिए चलेगा. लेकिन अगर आप अपनी जिंदगी से ही बोर हो गए हैं तो? आपको अपनी जिंदगी में ही कुछ नजर नहीं आता तो? आप इसे बदलने के लिए नई जॉब ढूंढते हैं, कहीं दूर घूमने जाते हैं. बेसिकली जल्द से जल्द उस बोरियत से बाहर निकलना चाहते हैं. लेकिन अगर मैं कहूं कि ऐसा करके आप गलत करते हैं तो? क्या पता यह बोरियत आपको आपकी पहचान और वजूद के बारे में कोई बुनियादी बातें बताने की कोशिश कर रही हो? अगर ऐसा है तो आपको इसका सामना करना चाहिए और इससे अपने बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की कोशिश करनी चाहिए.
अगर आप बोर हो गए हैं तो बेहतर यही है कि इससे बाहर निकलने के बजाय आप इसे समझने की कोशिश करें. इसके अलावा अगर आप कुछ करते हैं तो वह फिर से बोरियत से निकलने की एक कोशिश होगी जो कि डिस्ट्रैक्शन से ज्यादा और कुछ नहीं. और क्या अपने आप को डिस्ट्रैक्ट करने के लिए कुछ करना उस काम की वजह के लिए काफी है, खास तौर पर कोई बड़ा काम जैसे कि पॉलिटिकली एक्टिव होना या अपना करियर बदलना? नहीं, बिल्कुल भी नहीं. इस तरह से बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है.
इसलिए कुछ पल के लिए ठहरिये, और उस बोरियत को महसूस कीजिए. इसमें कोई बड़ी बात नहीं है. उसके बाद अपने आप को अंदर से खंगालने की कोशिश कीजिए और पूछिए कि आखिर मैं बोर क्यों हूं? अक्सर सच यही होता है, कि हम खुद से ही अपने आप को एकदम मुरझा देते हैं. बहुत सारे काम करके या किसी और वजह से अपने आप को थका देते हैं. उसके बाद जब आप यह चीज समझ ले तो भी भागने की कोशिश करने के बजाय, बैठकर उसको महसूस कीजिए. अपने आप को थका हुआ और अनइंटरेस्टेड महसूस होने दीजिए. ऐसा करके आप उन फीलिंग्स के साथ जीना सीख जाएंगे और फिर वह सिर्फ एक फीलिंग ही रह जाएगी ना कि ऐसी कोई चीज जो आपको कुछ अलग करने पर मजबूर करे. अगर आप अपनी बोरियत को फेस करके इसे एक्सेप्ट कर लेते हैं तो आप इससे पीछा भी छुड़ा सकते हैं. क्योंकि जैसे ही आप इस फीलिंग को इसकी हकीकत के साथ एक्सेप्ट करते हैं तो आप ठीक होना शुरू हो जाते हैं. अगर आप ऐसा नहीं कर पाते तो आप भटकते ही रह जाएंगे. आपको यह समझना होगा कि बोरियत से भागने के लिए तरह-तरह की चीज करने की कोशिश और ज्यादा बोरियत क्रिएट करती है. एक बार आप कुछ हासिल कर लेते हैं, चाहे कोई इंटरेस्टिंग इंसान कोई नौकरी या फिर बहुत सारा पैसा, उसे हासिल करने के बाद आप उससे बोर ही हो जाएंगे. और इस बात को समझ कर आप अपने आप में ही कंफर्टेबली जी सकते हैं.
जिंदगी का मकसद खुद जिंदगी ही है
जिंदगी का मकसद क्या है? यह सवाल लोग सदियों से अपने आप से पूछते आए हैं. बहुत सारे फिलॉसफर, रिलिजियस लीडर और अलग-अलग ग्रुप के गुरूज़ ने संतोषजनक जवाब देने की कोशिश की है. बहुत सारे आम लोगों ने भी इसी सवाल के जवाब की तलाश में खूब माथापच्ची की है. शायद आप भी अपने आप से यही सवाल कर रहे हों. लेखक के मुताबिक ऐसे क्वेश्चन के साथ शुरुआत करना ही गलत है. हम सोचते हैं कि थिंकर्स और कामयाब लोगों को फॉलो करके हम जिंदगी का मकसद जान सकेंगे. हम अपनी जिंदगी को शेप और मकसद देने के लिए हम से पहले आए लोगों और अपने कल्चरल ट्रैडिशन की तरफ देखते हैं. हमारे दिमाग में जिंदगी जीने के बहुत सारे एग्जांपल भरे हुए हैं जिसे हम अपनी जिंदगी के लिए मॉडल की तौर पर देखते हैं. हम यह सब इसलिए करते हैं क्योंकि हमें हमारी जिंदगी के लिए किसी रोड मैप की तलाश होती है, हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर परपजफुल लाइफ होती कैसे हैं. लेकिन जब हम परपजफुल लाइफ के एग्जांपल ढूंढने में बिजी रहते हैं तो हम इसकी हकीकत को पहचानने से चूक जाते हैं. जिंदगी हमारी पर्सनल होती है, और हर किसी की जिंदगी अलग होती है. इस मामले में ऐसी कोई अथॉरिटी है ही नहीं जो परपजफुल जिंदगी समझने में आपकी मदद कर सके.
अगर आप जिंदगी को लेकर किसी जस्टिफिकेशन की तलाश में रहते हैं तो आप उन चीजों से चूक जाते हैं जो पहले से ही एक्स्ट्राऑर्डिनरी हैं. जब आप अपने आप से जिंदगी के मकसद का सवाल करते हैं तो ऐसा महसूस होता है कि आपकी जिंदगी पहले से ही बहुत डल और रिपिटेटिव है. मिसाल के तौर पर, अगर आपको ऐसा लगता है कि जिंदगी का मकसद "ऊपर वाले की तलाश करना" या फिर "कामयाब होना है", तो मुमकिन है कि आपकी नजर में जिंदगी कोई ऐसी चीज है जिसे एक्सेप्ट और एप्रिशिएट करने के बजाय आप इससे भागने की कोशिश कर रहे हैं. जिंदगी को कई तरह के मकसद से भरा हुआ समझने के बजाय उस चीज पर ध्यान दीजिए जो फिलहाल आपकी नजर के सामने है. अगर आप अपनी जिंदगी को बहुत करीब से देखते हैं और आपको इसमें कुछ गलत नजर आता है तो इसके पीछे की वजह जानना आपका फर्ज है. अपनी तकलीफ, कन्फ्यूजन जैसी फीलिंग का सामना करके ही आप अपने मकसद की तलाश की ख्वाहिश से आगे बढ़ पाएंगे. जिंदगी अपने आप में की बहुत खास और गहरी है. जिंदगी अपने आप में ही काफी है.
कुल मिलाकर
दुनिया को बदलने के लिए आपको खुद से शुरुआत करनी होगी, कोई भी रिवॉल्यूशन या पोलिटिकल थ्योरी आपके आसपास मौजूद दिक्कतों को नहीं सुलझा सकती. आप को समझना होगा कि जिस तरीके से आपने अपना नजरिया बना रखा है उसकी वजह से आप दुनिया को क्लियरली नहीं देख पा रहे हैं. इसका मतलब है बुनियाद चीजों के बारे में आपके मन में पहले से ही एक सोच मौजूद है, जैसे कि जिंदगी में खुशियों की अहमियत और साइक्लोजिकल सिक्योरिटी. और अगर आप पहले से मौजूद इस सोच से आगे बढ़कर नहीं देखेंगे तो आपको निराशा ही हाथ लगेगी. कुल मिलाकर जिंदगी अपने आप में ही काफी है. इसका मकसद ढूंढने की कोशिश एक गलत कदम है.
क्या करें?
अपने दिमाग के सोचने के तरीके को ऑब्ज़र्व कीजिए और दुनिया को लेकर अपने दिमाग में पहले से फीडेड सोच को नोट कीजिए।
अगली बार जब आपके ज़ेहन में किसी चीज को लेकर बहुत पैशेनेट ओपिनियन हो चाहे वह पॉलिटिकल हो या पर्सनल तो ज़रा ठहरिये. उसके बाद जरा सा सोचने की कोशिश कीजिए कि आखिर आपके मन में उस पर्टिकुलर चीज को लेकर ऐसा ख्याल आया कहां से. आप के मामले में ऐसा क्या है, जो आपके इस ओपिनियन की वजह बना? यह कलचरल या इकनोमिक बैकग्राउंड, नेशनलिटी या सेक्स ओरियंटेशन कुछ भी हो सकता है. क्या यह चीजें आपको अपने ओपिनियन के बारे में एक बार फिर से सोचने के लिए इनकरेज करती हैं? क्या आप सिक्के का दूसरा पहलू देख पा रहे हैं? हो सकता है आप गलत भी हो?
येबुक एप पर आप सुन रहे थे What Are You Doing with Your Life? By Jiddu Krishnamurti
ये समरी आप को कैसी लगी हमें yebook.in@gmail.com पर ईमेल करके ज़रूर बताइये.
आप और कौनसी समरी सुनना चाहते हैं ये भी बताएं. हम आप की बताई गई समरी एड करने की पूरी कोशिश करेंगे.
अगर आप का कोई सवाल, सुझाव या समस्या हो तो वो भी हमें ईमेल करके ज़रूर बताएं.
और गूगल प्ले स्टोर पर ५ स्टार रेटिंग दे कर अपना प्यार बनाएं रखें.
Keep reading, keep learning, keep growing.