Robert Greene
हमारी हर दिन की जिन्दगी पर कौन सी बातें असर
डालती हैं।
दो लफ्जों में
द लाज़ आफ ह्यूमन नेचर ( The Laws of Human Nature ) हम इंसानों के स्वभाव के बारे में कुछ खास बातें जानेंगे। यह किताब हमें बताती है कि किस तरह से सोचने समझने की काबिलियत रखने के बाद भी हम उसका इस्तेमाल बहुत कम करते हैं और वे कौन से नियम हैं जिनके हिसाब से हम काम करते हैं। साथ ही हम यह भी देखेंगे कि किस तरह से हम इन नियमों को तोड़कर अपनी काबिलियत का पूरा इस्तेमाल कर सकते हैं।
यह किसके लिए है
-वे जो इंसान के दिमाग और स्वभाव के बारे में जानना चाहते हैं।
-वे जो अपने स्वभाव के होने की वजह जानना चाहते हैं।
-वे जो साइकोलाजी पढ़ने में दिलचस्पी रखते हैं।
लेखक के बारे में
रोबर्ट ग्रीनी ( Robert Greene ) अमेरिका के एक लेखक हैं जो शक्ति का इस्तेमाल करने के पर और लोगों को आकर्षित करने के पर किताबें लिखते हैं। उनकी 6 किताबें दुनिया भर में बेस्ट सेलर हैं जिसमें 48 लाज़ आफ पावर और मास्टरी शामिल है।
यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए
इंसान इस धरती पर न जाने कितने सालों से रह रहे हैं। उन्होंने तरह तरह की प्राकृतिक तबाहियां देखी हैं और तरह तरह की तबाहियां मचाई भी हैं और वे सब कुछ सह कर आज भी जिन्दा हैं। इतना लम्बा सफर तय करने में हमारी मानसिकता का एक खास योगदान था। हम कुछ खास तरह के नियमों पर काम करते थे जिन्हें मानकर हम जंगलों में जिन्दा रहते थे। लेकिन कुछ नियम ऐसे भी हैं जिनसे आज हमें बिल्कुल फायदा नहीं है, लेकिन वो नियम हमारे अंदर कुछ इस तरह से बस गए हैं कि हम अनजाने में उनका इस्तेमाल करते रहते हैं।
यह किताब हमें कुछ ऐसे ही नियमों के बारे में बताती है। यह किताब हमें बताती है कि क्यों हम वही काम करने लगते हैं जो सब लोग कर रहे होते हैं, क्यों हम उन चीज़ों की ख्वाहिश करते हैं जिनके हम काबिल नहीं हैं और क्यों हम खुद को कुछ ज्यादा काबिल समझने लगते हैं। इसके अलावा हम अपने स्वभाव के बारे में बहुत सी बातें जानेंगे।
-वो कौन से नियम हैं जिनके हिसाब से हम काम करते हैं।
-हम अपनी ही खूबियों को कभी कभी क्यों दबाने लगते हैं।
-अपने गुस्से को किस तरह से अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
हम सोच समझ कर नहीं बल्कि कुछ खास तरह के नियमों के हिसाब से काम करते हैं।
अक्सर हम सारे फैसले सोच समझ कर नहीं बल्कि अपनी भावनाओं के हिसाब से करते हैं। हम सिर्फ यह देखते हैं कि फैसला लेते वक्त हम कैसा महसूस कर रहे थे। हम कुछ समय सोचकर , सही गलत को ध्यान में रखकर और नतीजों के बारे में सोचकर फैसला नहीं करते।
इसलिए अगर आपको कोई सही या बेहतर फैसला लेना है तो सबसे पहले तुरंत फैसला लेना छोड़ दीजिए बल्कि कुछ समय लीजिए और फिर फैसला लीजिए।
अगर हम कुछ खास तरह के नियमों की बात करें जिनके हिसाब से हम अपने फैसले लेते हैं तो वे नीचे दिए गए हैं
कन्फर्मेशन बिएस - हम अपने जैसे लोगों की सहमती लेते हैं ताकि हमें यह भरोसा हो सके कि हम जो सोच रहे हैं वो सही है, लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि हमारे जैसे लोग हमारी तरह ही सोचते हैं।
अपियरेंस बिएस - इसका मतलब यह है कि हम अंदर ही अंदर यह सोचने लगते हैं कि अगर कोई व्यक्ति खूबसूरत दिख रहा है तो वो अच्छा व्यक्ति होगा।
ग्रुप बिएस - इसका मतलब है कि हम जिस ग्रुप के सदस्य हैं उस ग्रुप की सारी बातें हमें अच्छी लगती हैं। एक पार्टी के लोग हमेशा अपने लीडर की बातों को सही मानते हैं और वे सामने वाले की बात सुनते ही नहीं हैं।
इस तरह की चीजें हमें सोच समझ कर फैसले लेने से दूर रखती है। लेकिन यह भी जरूरी नहीं है कि फैसले लेते वक्त हम अपनी सारी भावनाओं को भूल जाएं।
एक व्यक्ति का स्वभाव उनके काम से दिखता है ना कि उसकी सोच से।
हम सभी लोग कहीं न कहीं खुद को बहुत पसंद करते हैं। हमें अक्सर लगता है कि हम समझदार हैं, खूबसूरत हैं और जो भी कर रहे हैं सही कर रहे हैं। इसलिए हम चाहते हैं कि लोग भी हमारे बारे में कुछ वैसा ही सोचें और हमें पसंद करें। कुछ लोग इसे खुद से प्यार करना कहते हैं लेकिन यह उसके मुकाबले बहुत अलग है।
खुद को हद से ज्यादा पसंद करने वाले लोगों को लगता है कि बाकी सभी लोग उनके एक हिस्से हैं। वे खुद को एक आजाद व्यक्ति की तरह नहीं देखते बल्कि वे खुद को कुछ इस तरह से देखते हैं जैसे बाकी के लोग उनके अंदर से निकले हों। इस तरह का व्यवहार उनमें बहुत छोटी उम्र में ही आ जाता है। ऐसा तब होता है जब कोई माता पिता उनकी कुछ ज्यादा ही देखभाल करने लगते हैं जिससे बच्चे के दिमाग में यह बात उतरती ही नहीं है कि वो एक आजाद व्यक्ति है।
या फिर अगर उनके माता पिता उसकी बिल्कुल देखभाल नहीं करते ,इस तरह से वे लोगों से नफरत करने लगते हैं और हमेशा अपने बारे में सोचने लगते हैं। जहाँ तक बात है खुद से प्यार करने की, तो आप किसी से प्यार तब करेंगे जब वो व्यक्ति आपको अच्छा लगेगा, लेकिन इस तरह के लोग खुद को पहले से बेहतर नहीं बनाते जिससे वे खुद से प्यार नहीं करते।
इस तरह के लोगों के पास सहानुभूति नहीं होती। सहानुभूति का मतलब है दूसरों की भावनाओं को समझ कर उनकी जिन्दगी को उनकी नजर से देखना। अगर आपको खुद को पहले से बेहतर इंसान बनाना है तो आपको दूसरों की तकलीफों को समझना होगा।
इसके अलावा हम हमेशा अपने ऊपर एक मास्क लगाकर घूमते हैं। हम लोगों को खुश कर के अपना काम करवाने के लिए वो बोलते हैं जो उन्हें अच्छा लगता है, ना कि वो जो सही है या हमें सही लगता हैऐसे आपका असल स्वभाव नहीं दिखता कुछ अच्छा कर उसे आप दिखा पाते हैं।
हम सभी के अंदर जलन की और प्रतियोगिता करने की भावना होती है।
हमारी कुछ खूबियां हमारे अंदर बचपन से ही होती हैं और कुछ खूबियों को हम अपनी जिन्दगी में अपनी जरूरत और हालात के हिसाब से अपनाते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप जिन खूबियों के साथ पैदा हुए हैं अब आपको उसी के साथ जीना है। आप उन खूबियों को काबू करना या बदलना सीख सकते हैं।
खामियां और खूबियां सब में होते हैं । लेकिन फिर से, हमें अपनी कमियों को सुधार कर पहले से बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए सबसे पहले आपको यह मानना होगा कि आपके अंदर कमियां हैं। आपको अपनी ताकत और अपनी कमजोरियों पर ईमानदारी से एक नजर डालनी होगी।
एक्ज़ाम्पल के लिए बहुत से लोगों को गुस्सा बहुत जल्दी आ जाता है। ऐसे लोगों को यह सुनकर गुस्सा नहीं करना चाहिए कि उनके अंदर खराबियाँ हैं बल्कि उन्हें सबसे पहले यह मानना चाहिए कि उनमेकुछ खामियांहैं। इसके बाद ही वे खुद को सुधार सकते हैं।
वो एक खराबी जो हम सबमें है दूसरों से जलन करना। हम हमेशा वो हासिल करना चाहते हैं जो दूसरों के पास है और अगर हमें वो नहीं मिलता तो हम दुखी हो जाते हैं। हमारी भावना प्रतियोगिता करने की होती है और हम किसी मामले में किसी से पीछे नहीं होना चाहते। लेकिन बहुत से लोग यह मानने के लिए भी तैयार नहीं हैं कि उन्हें जलन हो रही है।
काफी लोग इसे स्वीकारते नहीं बल्कि इसे कमजोरी करार देते हैं लेकिन सच ये है की यह भावना हर किसी के अंदर है हम इसे बाहर निकाल कर अपने हिसाब से इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
हम उन काम पर ध्यान देते हैं जो हमारे आँखों के सामने होता है।
अगर आप कोई काम करने जा रहे हैं और आपको रास्ते में किसी का फोन आ जाए तो आप फ़ौरन वो काम रोक कर फोन पर बात करने लगते हैं। और उस काम को भुला देते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम हमेशा से ही उस काम पर ध्यान देते आए हैं जो हमारी आँखों के सामने है।
आदिवासियों का भी यही हाल था सिर्फ खाने के बारे में और खुद को जानवरों से सुरक्षित रखने के बारे में सोचते थे। वे किसी जगह पर लम्बे समय तक रहने की प्लानिंग नहीं करते थे बल्कि जब तक खतरा ना हो तब तक किसी जगह पर रहते थे
लेकिन आज तुरंत फैसले लेना या दूर तक ना सोचना आपके लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। आपको कुछ देर रुक कर आपको अपने ऑप्शंस और रिजल्ट के बारे में सोचना होगा। इसके बाद ही आपको कोई फैसला लेना चाहिए। जरूरी नहीं है कि आप हमेशा कोई फैसला लें, क्योंकि कभी कभी कुछ ना करना भी बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है। चाइना और जापान के लोग इस तरीके को काफी वक्त से अपनाते आएँ हैं। वे कुछ नहीं करते थे और उनका दुश्मन थक कर खुद भाग जाता था।
इसके अलावा बहुत से लोग अपनी बात को हमेशा सही मानते हैं और दूसरों से भी वो मनवाते रहते हैं। हम अक्सर दूसरों को अपनी बात कुछ इस तरह से बताते हैं जिससे उन्हें यह लगे कि वे भी यही चाहते हैं। बहुत से लोग इसका फायदा उठा कर अपना काम कर जाते हैं। यह भी हमारी एक खामी है जिसे हमें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
अपनी नेगेटिव भावनाओं पर जीत हासिल कर के हम खुद को डूबने से बचा सकते हैं।
हद से ज्यादा नेगेटिव सोचना खुद अपनी बर्बादी की बड़ी वजह है,इसका मतलब यह कि अगर आप हर वक्त यह सोचते रहेंगे कि हारना या नाकाम होना आपकी किस्मत में लिखा है तो आप वाकई नाकाम हो जाएंगे और इसमें दोष किस्मत का नहीं बल्कि आपकी सोच का होगा। अपने हालात को बदलने के लिए सबसे पहले आपको अपनी सोच को बदलना होगा।
एक्ज़ाम्पल के लिए आए लेखक एंटन शेकाव को ले लीजिए जिन्दगी अपनी नेगेटिव भावनाओं को छोड़कर खुद को आजाद किया। बचपन में उनके पिता उन्हें मारा करते थे और उनसे जबरदस्ती अपनी दुकान का काम करवाया करते थे। उनके पिता को बिजनेस करना नहीं आता था जिसकी वजह से जब नुकसान हुआ तो उन्हें सब कुछ छोड़कर भागना पड़ा। उनके पिता ने शेकाव को पीछे ही छोड़ दिया और उसे साथ नहीं लेकर गए।
इसके बाद शेकाव ने एक नेगेटिव भावना को अपना लिया। उसे लगने लगा कि उसकी किस्मत वाकई बहुत खराब है। लेकिन बाद में उन्होंने अपने पिता को समझने की कोशिश की। उन्हें लगा कि उनके पिता को भी वही परवरिश मिली और इसलिए वो ऐसे हैं
जब शेकाव ने अपने पिता के प्रति सहानुभूति जताना शुरू किया तो उसे लगने लगा कि वो आजाद हो गया है। अपने पिता के लिए गुस्सा और हर तरह की नेगेटिव भावना उसे छोड़कर चली गई और उसे सुकून मिला। इसके बाद उसने एक टीचर की तरह काम किया और बाद में एक बहुत कामयाब लेखक बना।
अगर आपको भी अपनी नेगेटिव भावनाओं पर जीत हासिल करनी है तो सबसे पहले आपको यह मानना होगा कि वो भावनाएं आपके अंदर हैं। उन भावनाओं को दबा कर रखने से वे ज्यादा ताकतवर हो जाएंगी और समय के साथ आप के ऊपर हावी हो जाएंगी। उन्हें खत्म करने के लिए उन्हें पहचानना बहुत जरूरी है।
सिर्फ खुद को ज्यादा काबिल समझना कोई अच्छी बात नहीं है।
हम कभी कभी उस काम को करने लगते हैं जो हमें नहीं आता। हमने असल में वो काम कभी नहीं किया होता लेकिन फिर भी हम यह सोचते हैं कि वो काम आसान है और हम भी कर सकते हैं। लेकिन यही वो वक्त है जब हम मुश्किल में पड़ जाते हैं। हम खुद को ज्यादा काबिल समझने लगते हैं और थोड़ी सी कामयाबी भी हमारे सिर चढ़ जाती है।
एक्ज़ाम्पल के लिए आप माइकल आइस्नर को ले लीजिए। उन्होंने टीवी शो से पैरामउंट फिल्म स्टूडियो का हेड बनने तक का सफर किया। उनके समय में पैरामउंट की बहुत सी हिट फिल्में निकली। फिर 1984 में वे डिस्नी के सीईओ बन गए और उसे भी कामयाबी की ऊँचाइयों पर ले गए। उन्होंने उसके होम वीडियो मार्केट को काफी सुधारा।
लेकिन इसके बाद वे कुछ ऐसे काम करने लगे जिसके बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी। वे फ्रांस में यूरो डिस्नी बनाने लगे क्योंकि उन्हें लग रहा था कि वे यूरोप के लोगों की पसंद को जानते थे। उन्होंने जैफ्री कैटज़ेंबर्ग को 1994 में निकाल दिया जिनकी वजह से बहुत सी फिल्में हिट हुई थी। कैटज़ेंबर्ग ने बाद में डिस्नी के ऊपर 280 मिलियन डॉलर की रकम चुकाने का केस कर दिया जो कि डिस्नी को चुकाना पड़ा।
आइस्नर ने याहू को खरीदने से मना कर दिया और उसके बदले अपना सर्च इंजन गो बना दिया जो कि एक फ्लाप प्रोजेक्ट था। पिक्सर के सीईओ स्टीव जाब्स डिस्नी से हट गए क्योंकि उन्हें आइस्नर की हरकतें अच्छी नहीं लग रही थी। इसके बाद 2005 में आइस्नर को सीईओ के पद से हटा दिया गया।
आइस्नर टीवी शो में कामयाब हुए, पैरामाउंट में कामयाब हुए और उन्होंने डिस्नी को भी कामयाब बनाया। लेकिन यह सारे काम उन्होंने अमेरिका में रहकर किया था। उन्हें लग रहा था कि वे यूरोप के लोगों को भी अच्छे से समझ रहे हैं और उनकी पसंद नापसंद के हिसाब से काम कर सकते हैं जो कि उनकी गलती थी।
कैटज़ेंबर्ग को डिस्नी से निकालने से पहले उन्हें सोचना चाहिए था कि अगर उसके जैसी काबिलियत वाले को कंपनी से निकाला गया तो वो उनका प्रतियोगी बन जाएगा जो कि सच हुआ। कैटज़ेंबर्ग ने ड्रीमवर्क्स की खोज की।
अगर आप कामयाब हो रहे हैं तो उसमें आपके टीम के लोगों का खास योगदान रहा है। आपको बहुत से लोगों से उस काबिल बनाया है। कामयाबी को सिर पर मत चढ़ने दीजिए।
हम सभी अपने अंदर की कुछ खूबियों को दबाते हैं क्योंकि हमें लगता है वो हमारे लिए ठीक नहीं है।
क्या आप से कभी किसी ने कहा कि लड़कियों की तरह नाटक करना बंद करो? या शायद आप ने लोगों को कहते हुए सुना होगा कि लड़के रोते नहीं हैं। हम सभी लोग कहीं ना कहीं अपनी कुछ खूबियों को दबाने की कोशिश करते हैं क्योंकि हमें लगता है कि वो चीजें हमारे जेंडर के हिसाब से हम पर अच्छी नहीं लगती। कुछ लड़कियाँ खेल कूद में अच्छी होती हैं लेकिन फिर भी वे इसमें भाग नहीं लेती क्योंकि उन्हें लगता है कि लड़कियों को यह शोभा नहीं देता।
1463 में कैटरीना स्फोर्जा नाम की एक महिला मिलान वंश में पैदा हुई थी जो कि उस समय का सबसे ताकतवर साम्राज्य था। इसलिए वे जो चाहे वो कर सकती थी। उन्होंने लड़ने की और कला की शिक्षा ली। उन्होंने अपने हुनर को यह कह कर नहीं दबाया कि लड़ने का काम उन्हें शोभा नहीं देता। इसका नतीजा यह हुआ कि वो दोनों में ही महारत हासिल कर पाई।
उनकी तरह ही बहुत से लोगों के अंदर यह काबिलियत होती है कि वे अलग अलग तरह के कामों को करने में काबिल बन सकें , लेकिन वे उस हुनर को दबा देते हैं। जबकि यह खूबियाँ हमारे शरीर का ही एक हिस्सा है और इन्हें अपनाने से लड़के लड़कियों को और लड़कियाँ लड़कों को अच्छे से समझ पाते हैं। वे यह देख पाते हैं कि दुनिया उनकी नजर से कैसी दिखती है और इस तरह से वे उनके साथ अपने रिश्तों को मजबूत बना पाते हैं।
पुरुष अक्सर इस दुनिया को अलग अलग कर के देखते हैं और उन्हें अलग अलग कैटेगरी में रखकर उन्हें समझने की कोशिश करते हैं जबकि महिलाएं हर चीज़ में एक पैटर्न खोजने की कोशिश करती हैं और उनके बीच के संबंध को जानने की कोशिश करती हैं। अगर आप दोनों तरह से इस दुनिया को देख सकें तो कुछ ज्यादा अच्छा होगा।
इसके अलावा अपने अलग अलग पहलुओं पर ध्यान देने से आपको अपना मकसद मिल सकता है। अगर आप सिर्फ एक पहलू पर ध्यान देंगे तो आपको असल में पता ही नहीं लगेगा कि वो कौन सी चीजें हैं जो आपको अच्छी लगती हैं और वे कौन से काम हैं जिन्हें करना आप पसंद करते हैं।
मैरी क्यूरी दुनिया की सबसे मशहूर साइंटिस्टों में से एक हैं। लेकिन वे जब पैदा हुई थीं उस समय महिलाओं को ज्यादा पढ़ने की आजादी नहीं थी और ना ही प्रयोग करने की। लेकिन फिर भी उन्होंने वो किया जो उन्हें असल में अच्छा लगता था और उनका नतीजा यह हुआ कि 100 साल बाद भी हम उनकी बात कर रहे हैं।
हम अपनी इमेज की बहुत चिंता करते हैं और इज्जत पाने की ख्वाहिश रखते हैं।
मानिए या ना मानिए, हम सभी ने कभी न कभी खुद को किसी काम को करने से पहले रोक लिया था क्योंकि हमें डर लग रहा था का अगर हमने वो काम किया तो लोग हमारे बारे में बुरा सोचेंगे। हम सभी में "लोग क्या कहेंगे" वाली भावना होती है जिसकी वजह से हम सभी वही काम करना पसंद करते हैं जो सारे लोग कर रहे होते हैं।
इससे बचने के लिए आप रिएलिटी ग्रुप का हिस्सा बनिए। इसका मतलब यह है कि आप कुछ खास तरह के नियम मानिए जो सभी पर लागू हो सके और जिसमें किसी एक के पास फैसले करने का हक ना हो। इन नियमों का मकसद होना चाहिए एक दूसरे के साथ काम कर के ज्यादा से ज्यादा कामयाबी हासिल करना, ना कि एक दूसरे पर उंगली उठाना।
इसके अलावा हम चाहते हैं कि हमें इज्जत मिले, भले हम उसके लायक हों या ना हों। बहुत से लोग इज्जत की मांग सिर्फ इसलिए करते हैं क्योंकि वे एक ऊँचे खानदान में या अमीर घर में पैदा हुए हैं। वे उसे कमाने की कोशिश नहीं करते, बल्कि अपने खानदान के नाम पर उसकी माँग करते हैं।
हमें मेहनत कर के उस काबिल बनना चाहिए कि हमें इज्जत मांगनी ना पड़े, वो खुद ही हमें दे दें। इस दुनिया में आप सब कुछ हासिल कर सकते हैं, अगर आप उसके लायक बन जाएं तो।
हम अपने गुस्सैल स्वभाव को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।
दुनिया में बहुत से कामयाब लोग हुए हैं जिनसे शुरुआत में लोगों ने कहा कि वे कभी कुछ नहीं कर पाएंगे। इसमें थामस अल्वा एडिसन की माँ शामिल थीं। जब एडिसन को मंद बुद्धि कह कर स्कूल से निकाला गया तो उनकी माँ ने कहा कि स्कूस इतना काबिल नहीं है कि वो उनके बेटे जैसे होनहार व्यक्ति को पढ़ा सके। उन्होंने खुद एडिसन को पढ़ाया, लिखाया और उन्हें दुनिया के सबसे महान वैज्ञानिकों में से एक बना दिया।
हम सभी के अंदर एक गुस्सैल स्वभाव होता है। हम कुछ बातों पर भड़क जाते हैं और गुस्सा करने लगते हैं। लेकिन अगर हम चाहें तो हम उस गुस्से से निकलने वाली एनर्जी को इस्तेमाल कर सकते हैं और उसे किसी काम में लगा सकते हैं। जैसा कि एडिसन की माँ ने किया। जब स्कूल ने उनके बच्चे को मंद बुद्धि कहा तो वे उन्हें खुद ही पढ़ाने लगी।
अगर आप अपने अंदर के गुस्से को दबा कर बैठेंगे तो उसका नतीजा अच्छा नहीं होगा। गुस्से में बहुत एनर्जी होती है और अगर आप उसका इस्तेमाल नहीं करेंगे तो वो आपको अंदर से मारने लगेगी।
इसके लिए सबसे पहले यह देखिए कि आपको गुस्सा किन किन बातों पर आता है और उनकी वजह क्या है। क्या यह इसलिए होता है क्योंकि इससे आपकी कोई पुरानी याद जुड़ी हुई है जिससे आपको तकलीफ होती है या यह इसलिए होता है क्योंकि आप अपने माहौल को काबू करना चाहते हैं। इसे समझ कर आप इसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं और उन लोगों को खुद को उकसाने से रोक सकते हैं जो आप से बार बार यह बातें बोल कर आपको परेशान करते हैं। एक बार आप ने कुछ कर दिखाया, तो वे खुद आपको कुछ नहीं बोलना चाहेंगे।
मौत के बारे में सोचने से हम अपनी जिन्दगी को ज्यादा अच्छे से जी सकते हैं।
बहुत से लोग इस बारे में सोचना पसंद नहीं करते हैं लेकिन हम सभी को एक न एक दिन मर जाना है। हम सारे काम कुछ इस तरह से करते हैं कि हमारे पास बहुत समय हो, लेकिन असल में यह हमारी सबसे बड़ी गलतियों में से एक है। आपके पास कितना समय है यह आपको खुद नहीं पता, इसलिए बेहतर है कि आपको जो भी समय मिला है उसे हँसते खेलते हुए बिताइए।
मौत हमें यह बताती है कि चिंता करने में समय बरबाद करना बिल्कुल अच्छी बात नहीं है। मौत हमें यह बताती है कि तरह तरह की परेशानियों को सिर पर उठा कर जीने का कोई फायदा नहीं है। यह जिन्दगी हमें सिर्फ एक बार मिलती है और इसी में हमें सब कुछकर के जाना होता है। इसलिए हर वक्त मौत को अपने दिमाग में रखिए और जिन्दगी का मजा लीजिए।
इसके अलावा हम 14वीं शताब्दी के एक इतिहासकार इब्न खल्दुन ने बताया कि इंसानों में चार तरह की पीढ़ियाँ पाई जाती हैं। सबसे पहले एक क्रांतिकारी पीढ़ी आती है जो कि बहुत सारे बदलाव लाती है और चीज़ों को सुधारती है। इसके बाद की पीढ़ी उनके बनाए गए नियमों के हिसाब से चलती है। तीसरी पीढ़ी आराम पर ध्यान देती हैं और चौथी पीढ़ी इन बनाए गए नियमों को तोड़ती है और उनपर सवाल उठाती है।
एक्ज़ाम्पल के लिए अमेरिका में 20वीं सदी की शुरुआत की पीढ़ी के लोगों ने बहुत सारी परेशानियाँ सही। उन्होंने विश्व युद्ध देखा और तरह तरह की महामारियाँ सही। उन्होंने कुछ खास नियम बनाए। इसके बाद की पीढ़ी बेबी बूमर्स की थी जो कि उन नियमों को तोड़कर अपने हिसाब से काम करने शुरू किया और बहुत सारी कामयाबी हासिल की। इसके बाद जनरेशन एक्स पैदा हुई जो कि अपने माता पिता को छोड़कर खुद से जीने की कला सीखने लगे। अंत में मिलेनियल्स का जन्म हुआ जो कि टीम के साथ काम करने के फायदों को समझ रहे हैं और इसकी मदद से आगे बढ़ रहे हैं।
अगर आप यह पता कर सकें कि इस पीढ़ी के बाद की जो पीढ़ी आएगी उसका स्वाभव कैसा होगा और वे किन चीज़ों में दिलचस्पी रखेंगे तो आपको इससे बहुत फायदा हो सकता है। आप भविष्य जान कर उसका इस्तेमाल कर सकते हैं। इसलिए इन बातों को समझना बहुत जरूरी है। इसकी मदद से आप भविष्य के लिए खुद को तैयार कर सकते हैं।
कुल मिलाकर
हमारे अंदर जलन और प्रतियोगिता की भावना होती है और हम कुछ खास तरह की बातें सुनकर गुस्सा हो जाते हैं। लेकिन हम इस गुस्से का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर सकते हैं। हम वही काम करते हैं जो सब कर रहे होते हैं और हम खुद को ज्यादा काबिल समझने की गलती करते हैं जो कि किसी भी तरह से सही नहीं है। हम नेगेटिव चीज़ों पर ज्यादा ध्यान देते हैं और उस काम को करने लगते हैं जो हमारे सामने करने के लिए रखा होता है।
जिन्दगी जीने का तरीका सबलाइम से सीखिए।
पिछले अरबों सालों में ना जाने कितने सारे तूफान और भूकंप आए। लेकिन उन सभी का कुछ नतीजा हुआ और अंत में सारी चीजें ठीक जगह पर वापस आ गई और आज आप यह लाइन पढ़ रहे हैं। एक के बाद एक जो घटनाएं घटी, उन सभी का नतीजा यह है कि हम आज अपने आस पास ये पहाड़ और नदियाँ देख रहे हैं। इसे ही सबलाइम कहते हैं। तो अगर आपकी जिन्दगी में भी कुछ बातें अच्छी नहीं हो रही हैं तो चिंता मत कीजिए, सबलाइम से सीखिए और अपनी जिन्दगी को जीते रहिए।