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अपने पैशन को एक इम्पैक्टफुल बिज़नस में बदलने की क्रिएटिव गाइड

दो लफ़्ज़ों में 
‘मेक योर मार्क’ पिछले कुछ सालों के 21 सबसे क्रिएटिव और सक्सेसफुल इंटरप्रेन्योरों के नॉलेज और टिप्स को मिलाकर बनी एक बेहतरीन बिज़नस गाइड है. लेखक से बातचीत के दौरान इन क्रिएटिव राइटर, कोडर, आर्टिस्ट और डेवलपर्स नें अपने आइडियाज और सीक्रेट शेयर किये कि उन्होंने अपने बिज़नस को कैसे मार्केट में आने वाले तूफ़ान से बचाया. इन्हीं सीक्रेट्स को लेखक नें एक किताब के रूप में पेश किया है.ये किताब किसके लिए है?
- क्रिएटिव इंडस्ट्री में काम करने वालों के लिए.
- जो लोग अपने क्रिएटिव स्किल्स को एक सक्सेसफुल बिज़नस में बदलना चाहते हैं.
- लीडर्स, सीईओ, और मैनेजर्स के लिए.

लेखक के बारे में
जोस्लिन के.ग्लई (Jocelyn K. Glei ) 99U के एडिटर इन चीफ हैं. 99 U एक ऐसी आर्गेनाइजेशन है जो क्रिएटिव लोगों को वो सब सीखने का प्लेटफार्म देती है जो किसी स्कूल या कॉलेज में नहीं सिखाया जाता है ना हीं किसी किताब में कहीं लिखा है. इसके साथ-साथ उन्होंने 99U की लिखी किताब ‘मैनेज योरसेल्फ डे-टू-डे एंड मैक्सीमाइज योर पोटेंशियल’ नाम की किताब को एडिट भी किया है.


हर सक्सेसफुल बिज़नस के पीछे एक पर्पस होता है जो कि लोगों की जरूरतों पर आधारित होता है
अपनी क्रिएटिविटी को लोगों तक पहुँचाने का आज के समय से बेहतर समय कभी नहीं था. इंटरनेट के बढ़ते उपयोग नें लोगों को अपने अन्दर छुपे टैलेंट को बिज़नस में बदलने का मौका दिया है. हमारे सामने इतना बड़ा मौका होने के बाद में भी हममे से बहुत से लोगों को इस बात का कोई आईडिया नहीं कि अपने पैशन को एक प्रॉफिटेबल बिज़नस में बदलने की शुरुवात कैसे की जाए. इस किताब के अध्यायों के जरिए सेठ गोडिन (Seth Godin) , क्रिस गुइलेब्यू (Chris Guillebeau ) और वारेन बफ़ेट (Warren Buffet)जैसे सदी के महान बिजनेसमैन आपको एक अच्छा इंटरप्रेन्योर बनने के हुनर और स्किल्स सिखायेंगे.

हलांकि सुनने में ये एक बेतुकी सी बात लगे लेकिन बहुत से इंटरप्रेन्योर इस सवाल का जवाब नहीं दे पाते कि ‘आखिर उनका बिज़नस क्यूँ एक्सिस्ट करता है?’ इस सवाल के जवाब में बहुत से लोग या तो अपने प्रोडक्ट के फीचरों को गिनाने लगते हैं या फिर ये बताने लगते हैं कि उनका प्रोडक्ट मार्केट में सबसे सस्ता है. लेकिन इनमें से कोई भी इस सवाल का सही जवाब नहीं है.

इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके प्रोडक्ट में क्या फीचर हैं आप लोगों को क्या दे रहे हैं या आपका प्रोडक्ट बाकियों से बेहतर कैसे है, जब तक आप इस आसान से सवाल का जवाब नहीं दे पाएंगे तब तक आप अपने बिज़नस को सक्सेस की बुलंदियों तक नहीं ले जा सकते. क्यूँ? क्यूंकि इसी सवाल के जवाब में आपका पर्पस छुपा है.

हर सक्सेसफुल और महान बिज़नस की नीव में एक ऐसा पर्पस होता है जो लोगों की लाइफ को आसान बनाये और इस सोसाइटी को जीने की एक बेहतर जगह बनाये. आपके प्रोडक्ट और सर्विसेज का फोकस इसी पर्पस को पूरा करने पर होना चाहिए. चाहे आपका प्रोडक्ट कितने भी मॉडर्न फीचरों से भरा क्यूँ ना हो लेकिन अगर वो किसी की लाइफ की कोई प्रॉब्लम नहीं सौल्व करेगा तो वो ज्यादा दिन तक मार्केट में नहीं टिक पायेगा.

इससे पहले कि आप अपना बिज़नस शुरू करें आपका ये जानना बहुत जरुरी है कि आपके  बिज़नस का पर्पस क्या है. आप अपने प्रोडक्ट और सर्विसेज से लोगों की जिंदगीयों को कैसे आसान बनाने वाले है.  जैसे स्पोर्ट्स एक्सेसरीज की फेमस ब्रांड नाइकी (Nike) को ले लीजिये जो लोगों के बीच स्पोर्ट्स स्टार्स और अपनी कूल इमेज लिए जाना जाता है. लेकिन इन सब ताम-झाम के बीच सबसे जरुरी है उसका पर्पस है जो है लोगों को उनके अथेलेटिक पोटेंशियल तक पहुँचने में मदद करना.

अपने बिज़नस को बढाने के साथ-साथ ये याद रखना भी जरुरी है कि आपनें उसे स्टार्ट किस पर्पस के साथ किया था. इसके लिए सबसे आसान है कि आप समय-समय पर खुद से पूछते रहें कि ‘आखिर मैं ये क्यूँ कर रहा हूँ?’

जैसे अगर आप अपने प्रोडक्ट में कोई नया फीचर ऐड करना चाहते हैं तो पहले खुद से पूछें कि क्या ये मेरे पर्पस से रिलेट करता है.

उदाहरण के तौर पर अगर आप अपनी इलेक्ट्रिक केतली में वौइस् कमांड का फीचर ऐड करना चाहते हैं तो पहले ये सोच लें कि इसकी क्या जरूरत है. ‘ये फीचर काफी कूल है’ या ‘ये किसी और के पास नहीं है’ ऐसी बातें नहीं चलेंगी. लेकिन अगर आप ये सोच कर इसे बनायेंगे कि केतली में वौइस् कमांड होने से एक आर्थराइटिस का पेशेंट भी आसानी से अपने लिए चाय बना सकता है तो ये आपके पर्पस से जरुर मेल खायेगा और आप ज्यादा बेहतर तरीके से इसे बना पाएंगे.

आपकी कंपनी का ऑपरेटिंग सिस्टम फ्लेक्सिबल होना चाहिए
ये बात बिलकुल सच है कि आपके बिज़नस को सक्सेसफुल बनाने के लिए पर्पस का होना बहुत जरुरी है लेकिन अपने बिज़नस को बुलंदियों तक ले जाने की ये तो बस पहली सीढ़ि है. असल मंजिल तक पहुँचने के लिए आपको कई और सीढ़ियाँ चढ़नी होंगी.

उनमें से एक है आपके बिज़नस में एक फ्लेक्सिबल ऑपरेटिंग सिस्टम का होना. एयर बी.एन.बी., फेसबुक और ड्राप बॉक्स जैसी कई सफल कंपनियाँ रेस्पोंसिवे ऑपरेटिंग सिस्टम (responsive operating system) को अपना कर अपने बिज़नस को ऊँचाईयों तक ले गयीं.

ऑपरेटिंग सिस्टम यानी किसी भी कंपनी का डीएनए, वो मेथड जिससे कंपनी अपना सारा काम करती है. अगर आपका ऑपरेटिंग सिस्टम रिस्पांसिव हैं तो इसका मतलब उसमें फ्लेक्सिब्लिटी है और वो बिज़नस में होने वाले रिस्क को बर्दाश्त कर सकता है. रिस्पांसिव ऑपरेटिंग सिस्टम के होने से कंपनी रिस्क लेते हुए अपने एक्सपीरियंस से कुछ नया सीख सकती है.

ट्रेडिशनल ऑपरेटिंग सिस्टम वाली कंपनियाँ एक लेवल तक पहुँचने के बाद बस अपनी इमेज और पोजीशन को बरक़रार रखने पर काम करती है. यानी वो कुछ नया इनोवेट करने का रिस्क नहीं लेती. अपने पहले से चल रहे प्रोडक्ट में हीं जोड़ तोड़ करती रहती हैं.

जबकि रेस्पोंसिव ऑपरेटिंग सिस्टम वाली कंपनियों की एप्रोच इससे बिलकुल अलग होती है. वो रोज़ कुछ न कुछ नया करते हैं ताकि उन्हें कुछ इनोवेट करने का और अपने एक्सपेरिमेंट से कुछ नया सीखने का मौका मिल सके.

जैसे मान लें एक रेस्पोंसिव ऑपरेटिंग सिस्टम की कंपनी नें अपना कोई नया प्रोडक्ट या सर्विस मार्केट में लौंच किया. ऐसे में अगर उसनें मार्केट में धूम मचा दी तो कंपनी को प्रॉफिट हीं प्रॉफिट मिलेगा. अगर प्रोडक्ट कस्टमर्स का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में फेल हो गया तब भी कम से कम कंपनी को ये पता चल गया कि फ्यूचर में कौनसी फील्ड में काम नहीं करना है.

इनोवेशन करते रहने के लिए रेस्पोंसिव ऑपरेटिंग सिस्टम वालि कंपनियाँ अपने स्ट्रक्चर को छोटा और रिएक्टिव रखती है. ताकि वो जल्द से जल्द डिसिशन ले सके और अपनी फ्लेक्सिब्लिटी कायम रहे जिससे कि वो आसानी से नए एक्सपेरिमेंट्स कर सके. जबकि ट्रेडिशनल ऑपरेटिंग सिस्टम की कंपनियाँ हर डिसिशन के लिए बहुत सारा पैसा और रिसोर्सेज खर्च करती है जिसके कारण वो स्लो हो जाती हैं और रिस्क से दूर रहने की कोशिश करती हैं.

रेस्पोंसिव ऑपरेटिंग सिस्टम की कंपनियाँ अपने डिसिशन को फ़ास्ट रखने के लिए ‘टू पिज़्ज़ा रूल’ को फॉलो करती हैं. यानी जिन टीमों को दो पिज़्ज़ा के साथ आसानी से खिलाया जा सकता है उन्हें हीं मीटिंग में बुलाया जाता है. इससे रिसोर्सेज की बर्बादी भी नहीं होती और डिसिशन भी फटाफट लिए जाते हैं.

सक्सेस एक ऐसे प्रोडक्ट को डिजाईन करने के साथ शुरू होती है जो कस्टमर्स को का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर सके.

जब हम किसी क्रिएटिव जीनियस या इंटरप्रेन्योर के बारे में सोचते हैं तो हमारे दिमाग में एक ऐसे आदमी का चेहरा आता है जो आइडियाज का भंडार हो जिसके दिमाग में रोज़ नए इन्वेंशन और आईडिया आते हों. लेकिन बिज़नस में ऐसा नहीं होता, एक सक्सेसफुल बिज़नस बनाने के लिए आपको बहुत से ब्रिलियंट आइडियाज की नहीं बल्कि एक अच्छे आईडिया की जरुरत पड़ती है. अगर आप बहुत से आइडियाज पर काम करते रहे तो आप किसी को पूरा नहीं कर पाएंगे और आपके सारे रिसोर्सेज ख़त्म हो जायेंगे आपके हाथ में केवल कुछ अधूरे प्रोजेक्ट्स के अलावा कुछ नहीं बचेगा.

इसलिए एक बार में आप अपना फोकस केवल एक ऐसे आईडिया पर रखें जिसे लोग पसंद कर सकते हैं. जब उसे मार्केट में अच्छा रिस्पांस मिलने लगे तो आप जितना चाहें उसे रीफाइन कर सकते हैं.

ठीक ऐसा हीं कदम जेंट्स क्लोथिंग ब्रांड बोनोबोस (Bonobos) नें उठाया. उनकी मार्केट रिसर्च में पता चला कि  स्टोर्स में मिलने वाले कोई भी पैन्ट्स लोगों को उतने कम्फ़र्टेबल नहीं लगते. इसलिए उन्होंने अपना पूरा एफर्ट एक कम्फर्ट फिटींग की पैंट बनाने में लगाया. शुरुवात में उन्होंने एक हीं स्टाइल की पैंट को अलग-अलग कलर्स और साइजों में ऑनलाइन लांच किया. पहले हीं साल में उनकी कमाई $10,00,000 पहुँच गयी और अगले 6 महीनों में दुगनी होकर $20,00,000 हो गयी. अपनी इतनी बड़ी सक्सेस से रिसोर्सेज इक्कठा करने के बाद हीं उन्होंने अपने कलेक्शन में में वैरायटी लाने के बारे में सोचना शुरू किया.

गौर करने वाली एक बात ये भी है कि केवल एक बेहतरीन प्रोडक्ट बना देने से हीं सबकुछ नहीं हो जाता आपको उसे लगों की नोटिस में भी लाना होगा.

उसका एक तरीका  ये हो सकता है कि उसकी पैकिंग अच्छी हो. जैसे एक किताब का कवर इंटरेस्टिंग हो तो लोग उसे पढ़ना चाहते हैं वैसे ही अगर आपका प्रोडक्ट अच्छे से पैक होगा और उसे इस्तेमाल करना और समझना आसान होगा तो लोग उसकी ओर आकर्षित होंगे.

जाने माने इंटरप्रेन्योर स्कॉट बेल्सकी का कहना है कि एक बार आपने कस्टमर का ध्यान अपनें प्रोडक्ट की ओर आकर्षित कर लिए तो उसे आपके प्रोडक्ट को खरीदने में केवल 15 सेकंड लगेंगे. ये आपकी जिम्मेअदरी है कि आप अपने प्रोडक्ट और उसकी पैकेजिंग को ऐसे डिजाईन करें की अटेंशन मिलने से खरीदने तक की प्रोसेस फ़ास्ट और आसान हो सके.

आप किसी महान प्रोडक्ट से शुरुवात नहीं करते बल्कि अपने एक्सपेरिमेंट, फेलियर और फीडबैक से एक सिंपल प्रोडक्ट को महान बनाते हैं
जब आप किसी स्टोर में एक बेहतरीन प्रोडक्ट को देखते हैं तो क्या सोचते वो कैसा बनाया गया होगा. क्या किसी रिसर्च एंड डेवलपमेंट टीम के जीनियस को एक ब्रिलियंट आईडिया आया और वो बन गया?

सच तो ये है कि कोई भी प्रोडक्ट जब एक आईडिया के रूप में किसी के दिमाग में आता है तो वो कभी भी फिनिश्ड फॉर्म में नहीं होता वो बस एक बेसिक आईडिया होता है जिसे डेवलपमेंट और रिसर्च की जरुरत पड़ती है. ऐसा बिलकुल नहीं है कि एक बेहतरीन प्रोडक्ट किसी चमत्कार की तरह किसी के दिमाग में आ जाये मानो भगवान नें उसके कान में बताया हो. उसके लिए सालों की मेहनत लगती है.

आपका इनिशियल प्रोडक्ट हीं एकदम परफेक्ट निकल कर आये ऐसा बहुत कम होता है. लेकिन अच्छी बात ये है कि हमारे पास उसे सुधरने और उसे इनोवेट करने के बहुत से मौके हैं. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपका शुरुवाती प्रोडक्ट या आईडिया कितना साधारण है आप टेस्ट और एक्सपेरिमेंट करके उसे असाधारण बना सकते हैं.

गौगल ग्लास बनाने वाले सेबास्टिन थरुन का कहना है कि एक नया प्रोडक्ट बनाना एक ऐसे पहाड़ को चढ़ने जैसा है जिसपर आजतक कोई नहीं चढ़ा. आप चाहे जितना ही मैप का इस्तेमाल कर लो या रूटचार्ट बना लो लेकिन फिर भी रास्ता आपके लिए अनजान हीं रहेगा क्यूंकि जो आप करने जा रहे हो वो पहले किसी नें भी नहीं किया है. ऐसे में बेहतर यही है कि आप अपना रास्ता खुद चुनें उसपर चलें अगर वो सही नहीं हुआ तो वापस स्टार्टिंग पॉइंट पर आ जायें और एक नया रास्ता ढूँढें. अगर वो रास्ता सही निकला तो बस आप अपने गोल के और नजदीक पहुँच जायेंगे.

प्रोडक्ट के केस में सारे एक्सपेरिमेंट्स आपको खुद करने की जरुरत नहीं कुछ काम आपके कस्टमर्स भी आपके लिए कर सकते हैं. अगर आप डेवलपमेंटल स्टेज में हीं अपने कस्टमर्स को अपने प्रोडक्ट का एक्सेस दे देंगें तो आपको उनके फीडबैक से ये पता चलता रहेगा कि क्या काम करता है और क्या नहीं. कहाँ क्या दिक्कतें आ रही है.

उदाहरण के तौर पर मोल्डेबल ग्लू सुगरू (Sugru) को बनाने वाली जेन नी धुलशोइंटीघ (Jane ni Dhulchaointigh) नें अपने इनिशियल प्रोडक्ट को अपने कस्टमर्स के साथ टेस्ट किया और पाया कि उनके ग्लू को देख कर लोग उसे क्ले मोल्ड समझ रहे हैं. जिससे उन्हें ये पता चला कि ग्लू के पैक पर उसे इस्तेमाल की क्लियर इंस्ट्रक्शन भी होनी चाहिए. उसके बाद उनका प्रोडक्ट सुपरहिट हो गया.

अपने कस्टमर्स को एक्स्ट्रा फेवर देकर अपने ब्रांड का फैन बनायें और अपने लिए सपोर्टरों की एक आर्मी तैयार कर लें.

जब भी आपकी कंपनी कोई ऑफर या कैंपेन शुरू करती है तो आप सोचते हैं कि कस्टमर्स का अटेंशन पाने के लिए पहले उस ऑफर का वायरल होना जरुरी है.

जबकि बड़ी कंपनियाँ कैंपेन और ऑफर्स किसी उम्मीद से नहीं बल्कि अपने फैन्स के एक्सपेक्टेशन को पूरा करने के लिए रिलीज़ करती हैं. यानी उनके फैन्स को उनके ऑफर का इंतज़ार होता है इसलिए उन्हें अपने ऑफर को वायरल किए बिना ही कस्टमर्स का रिस्पांस मिल जाता है. उदाहरण के तौर पर जब इंटरप्रेन्योर और लेखक क्रिस गुइलेब्यू (Chris Guillebeau)नें एक पोस्ट लिखा कि वो ‘क्लीन वाटर फॉर इथोपिया’ नाम का कैंपेन चला रहे हैं और उसके लिए डोनेशन चाहते हैं तो एक हीं दिन में उन्होंने $22,000 का चंदा इक्कठा कर लिया वो भी बिना वायरल हुए. आखिर ऐसा हुआ कैसे?

क्यूंकि पास उनके फैन्स की पूरी आर्मी है जो उनके लिए सपोर्टर का काम करते हैं. आईये देखते हैं कि आप अपने बिज़नस के लिए ऐसी फैन फौलोविंग कैसे तैयार कर सकते हैं.

क्रिस गुइलेब्यू कहते हैं कि फौलोअर बनाने का सबसे आसान तरीका है कि आप अपने कस्टमर्स को वो दें जो वो चाहते हैं. वो कुछ भी हो सकता है जैसे टेड अपने कस्टमर्स को अपने पेड कंटेंट का फ्री एक्सेस देते हैं. हालाँकि उनके इवेंट में जाने के लिए टिकेट लेनी पड़ती हैं पर उस इवेंट के कुछ घंटों बाद हीं वो उस कंटेंट को अपने कस्टमर्स के लिए ऑनलाइन रिलीज़ कर देते हैं. इसलिए लोग उनके दीवाने हैं.

आप भी अपनी कंपनी की पेड सर्विसेज को अपने कस्टमर्स ले लिए फ्री कर सकते हैं. जैसे यूँ तो पामेला सिम्स अपने कोचिंग सेशंस के लिए मंथली चार्ज करती है लेकिन अपने कस्टमर्स के लिए वो महीने में एक बार ‘ask pam anything’ नाम का प्रोग्राम रखती हैं जिसमें वो कस्टमर्स के सवालों का जवाब फ्री में देती हैं.

अगर अभी तक आपने अपनी कंपनी की फैन फौलोविंग नहीं बनायीं तो निराश होने की कोई बात नहीं. याद रखिये कि हर बड़ी चीज़ की शुरुवात छोटी से हीं होती है, बूंद-बूंद से हीं घड़ा भरता है. अपनी फैन आर्मी तैयार करने के लिए आपको अपने शुरुवाती कस्टमर्स पर थोड़ी एक्स्ट्रा मेहनत करनी होगी. 

हालाँकि ये आम बिज़नस प्रैक्टिस जहाँ हर चीज़ प्रॉफिट के लिए की जाती है उससे बिलकुल उल्टा है. लेकिन आज की गयी आपकी थोड़ी सी एक्स्ट्रा मेहनत हर कदम पर आपकी कंपनी के काम आयेगी.

जैसे जब एयर बीएनबी (Airbnb) नें अपना कांसेप्ट लांच किया तो लोग अनजानों के लिए अपने घर के दरवाज़े खोलने में हिचकिचा रहे थे. इसलिए अपने शुरुवाती कस्टमर्स के साथ एयर बीएनबी मीटिंग्स और सेमिनार आर्गेनाइज किये जहाँ उन्होंने कस्टमर्स की बातें उनकी परेशानियाँ सुनी और सवालों के जवाब के जवाब दिए. धीरे-धीरे लोगों का विश्वास उनपर बढ़ने लगा और उनकी कम्युनिटी भी बढ़ने लगी आज लाखों लोगों नें अपना घर गेस्ट हाउस के तौर पर एयर बीएनबी में रजिस्टर करवाया है.

अगर आप चाहते हैं कि लोग आपकी कंपनी और ब्रांड के बारे में बात करें तो आपको अपने ब्रांड की स्टोरी को उनकी लाइफ से जोड़ना होगा
आपकी जान-पहचान में कोई न कोई तो ऐसा होगा हीं जिसके पास वाइल्डक्राफ्ट या पैंटागोनिया के एडवेंचर क्लोथिंग होंगे. लेकिन उनमें से कितनों नें हीं उन्हें पहन कर कोई एडवेंचर किया या किसी पहाड़ पर चढ़े. शायद कोई नहीं लेकिन फिर भी लोग इन एडवेंचर गियर्स को खरीदते हैं. जानते हैं क्यूँ?

इस सवाल का जवाब कंपनी की स्टोरी में छुपा है. ज्यादातर फेमस ब्रांड्स जो स्टोरी सुनाते है वो कहीं न कहीं सोसाइटी की सोच और मान्यताओं से मेल खाती है, इसलिए लोग उसकी तरफ खुद हीं आकर्षित हो जाते हैं.

वाइल्डक्राफ्ट और पैंटागोनिया जैसी कंपनियाँ अपने आपको एनवायर्नमेंटल एक्टिविस्ट के तौर पर पेश करती है. उनका कहना है कि वो उन चंद कंपनियों में से हैं जो अपने प्रॉफिट का एक हिस्सा रीसाइकल्ड गुड्स बनाने वाली चैरिटी को देती हैं. जिससे जॉब्स बढ़ने के साथ-साथ एनवायरनमेंट को साफ़ रखनें में भी मदद मिलती है. अब कोई भी आम इंसान इसे अपनी सोच और लाइफ के साथ जोड़ सकता है जिसके कारण ये ब्रांड्स इतने फेमस हैं.

साथ हीं ये अपने प्रोडक्ट्स को ऐसे पेश करते हैं जो आपको एक्टिव और फिट रहने के लिए इंस्पायर करते हैं.

ऐसे हीं आप भी अपने ब्रांड के लिए कुछ इंस्पायरिंग स्टोरी सोच कर कस्टमर्स को अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं और एक लॉयल फैन फौलोविंग तैयार कर सकते हैं.

हालाँकि चाहे आप कितनी हीं अच्छी इमेज बना लें लेकिन आज के मॉडर्न मीडिया के दौर में सबकुछ इतना वोलेटाइल है कि बस एक गलती और आपकी कंपनी की इमेज तबाह हो सकती है. बस किसी एक कस्टमर के बुरे एक्सपीरियंस का ट्वीट आपकी बरसों की मेहनत पर पानी फेर सकता है. ऐसी सिचुएशन में आपको थोड़ी एक्स्ट्रा सावधानी रखनी होगी और कुछ फ्री सर्विसेज, पोलाइट कस्टमर केयर एग्जीक्यूटिव, फ्री डिलीवरी जैसी चीज़ों देकर सिचुएशन को  संभालना होगा. ऐसे में आपके लॉयल कस्टमर्स आपका सपोर्ट जरुर करेंगे और आप बुरे रिव्यु  से हुए डैमेज को कंट्रोल कर अपनी कंपनी की इमेज बचा सकते हैं.

एक काबिल और जिम्मेदार टीम को लीड करने के लिए ट्रांसपेरेंसी बरतना बहुत जरुरी है.

सोचिये कि आपने अपने ऑफिस अकाउंट से जो मेल किया वो एक हीं बार में आपकी पूरी टीम तक पहुँच गया. आप सोच रहे होंगे कि ऐसे में तो आपकी प्राइवेसी खतरे में पड़ जाएगी और आप अच्छे से काम भी नहीं कर पायेंगे.

लेकिन ये बिलकुल गलत है. क्यूंकि सोशल नेटवर्किंग टीम में ट्रांसपेरेंसी लाता है जिससे टीम का एक दुसरे पर और आपकी कंपनी पर भरोसा बढ़ता है. ऐसे एनवायरनमेंट में काम करने से सबकी वर्किंग एफिशिएंसी भी बढती है. कंपनी में चल रही हर छोटी बड़ी बात मैट्रिक्स से लेकर डिसिशन तक हर फैसला सब तक पहुँचना हीं इस सोशल नेटवर्किंग का मकसद है. इसी सोशल नेटवर्किंग का एक छोटा सा पहलु है ग्रुप ईमेल जिसमें एक क्लिक से आप पूरी टीम तक अपनी बात पहुँचा कर ट्रांसपेरेंसी कायम रख सकते हैं.

जब टीम के मेम्बर खुश और सैटिसफाईड रहेंगे तो टीम की वर्किंग एफिशिएंसी अपने आप बढ़ जाएगी. इस सैटिस्फैक्शन के लिए जरुरी है एक दुसरे पर इस बात का ट्रस्ट कि कंपनी में सबको बराबर ट्रीट किया जायेगा किसी से कुछ छुपा नहीं है.

जैसे अगर आपको किसी से ये पता चला कि आपके जूनियर को सैलरी हाईक मिला है और आपको नहीं तो आपको लगेगा कि आपके साथ चीटिंग हुई है. लेकिन अगर ये इनफार्मेशन सबके साथ शेयर की जाती वो भी सैलरी हाईक का रीज़न देते हुए तो शायद आप इसे इतना पर्सनली लेने की बजाये और मेहनत कर अगला हाईक लेने की कोशिश करते.

साथ हीं इनोवेशन के लिए एक खुले माहौल का होना बहुत जरुरी है. अगर आप चाहते हैं कि आपकी टीम का हर मेम्बर आपके प्रोडक्ट और सर्विसेज को डेवलप करने के बारे में सोचे, तो आपको अपने प्रोडक्ट की जानकारी और अपनी बिज़नस स्ट्रेटेजी हर एक के साथ शेयर करनी होगी. अगर आप ये सारी बातें सीक्रेट रख कर कुछ गिने-चुने लोगों को हीं बताएँगे तो हो सकता है आप एक बड़े आईडिया से चूक जाएँ.

इनोवेशन के साथ-साथ प्रोडक्ट डेवलपमेंट में बरती गयी ट्रांसपेरेंसी से आपको अपनी टीम का फीडबैक भी मिलेगा. जब एम्प्लोयीज के पास हर चीज का एक्सेस होता है तो वो आपको अपने ऑनेस्ट ओपिनियन दे सकते हैं जो आपके आइडियाज के सक्सेस होने और उसे और बेहतर बनाने के लिए फायेदेमंद हो सकते हैं.

अगर आप चाहते हैं कि अच्छे लोग लीडर्स बने तो आपको लीडरशिप को पॉजिटिव तरीके से समझना होगा
अगर आप किसी भी क्रिएटिव इंसान से ये पूछेंगे कि क्या वो लीडर बनना चाहता है तो उसका जवाब यही होगा कि, नहीं ‘मैं अपनी क्रिएटिविटी छोड़ कर लोगों के ऊपर हुक्म नहीं चला सकता, ये मैं नहीं हूँ’.

लोग लीडरशिप के रोल को इतना गलत समझते हैं कि ज्यादातर लोग इससे कतराते हैं. लेकिन समझने वाली बात ये हैं कि लीडरशिप केवल लोगों पर हुक्म चलाना नहीं है बल्कि लीडरशिप यानी लोगों को उनके गोल तक पहुँचनें में उनकी मदद करना है.

उदाहरण के तौर पर मान लें आपकी टीम एक ऐसा वैक्यूम क्लीनर बना सकती है जो मार्केट में तहलका मचा देगा. आपके पास बेहतरीन क्रिएटिव डिज़ाइनर हैं, होनहार इंजिनियर हैं. लेकिन इस पूरी टीम को एक शेयर्ड गोल तक पहुँचने के लिए एक मैनेजर यानी लीडर की भी जरुरत पड़ेगी. क्यूँ? क्यूंकि लीडर हीं वो व्यक्ति है जो इन्हें बाँध कर रखेगा जो इनकी प्रोग्रेस को स्केल करेगा और इनकी सभी प्रॉब्लमों को दूर करने में इनकी मदद करेगा. यानी टीम को स्मूथली चलाने के लिए एक मैनेजर की जरुरत पड़ती है. ये पोस्ट बॉसगिरी करने से ज्यादा दूसरों की मदद करने की पोस्ट है.

एक मैनेजर के तौर पर आपका सबसे जरुरी काम है कि आप सबका कम्युनिकेशन बनाये रखें. इसके लिए वीकली मीटिंग्स के साथ-साथ आप एक ऐसा प्लेटफार्म तैयार कर सकते हैं जहाँ लोग रोज़ लिख सकें कि आज वो किस चीज़ पर काम कर रहे हैं. जैसे आप एक कंपनी का ग्रुप फोरम क्रिएट कर सकते हैं जहाँ सब एक दुसरे से कम्यूनिकेट कर सकें.

दूसरा तरीका हैं कि आप अपनी बात को बार-बार रिपीट करें. चाहे आपको एक हीं बात दिन में 50 बार बोलनी पड़े पर आपका मैसेज टीम के हर मेम्बर तक पहुँचना जरुरी है. आप शांत दिमाग से काम लें सब अपने आप हो जायेगा.

इन टिप्स एंड ट्रिक्स का इस्तेमाल करके आप अपने एम्प्लोयीज को उनके हाईएस्ट पोटेंशियल तक पहुँचने में उनकी मदद कर सकते हैं और साथ हीं अपने बिज़नस को भी आगे ले जा सकते हैं.


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