Focus..... ___🎭

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Focus

Al Ries
अपनी कंपनी के लक्ष्य पर फोकस करें और अपनी कंपनी की वैल्यु बढ़ाएं।

दो लफ़्ज़ों में -:
फोकस (Focus) में बताया गया है कि क्यों अपनी कंपनी को बढ़ाना आपके लिए फायदेमंद नहीं है। यह किताब आपको बताती है कि कैसे आप अपनी कंपनी के मुख्य लक्ष्य पर फोकस कर के अपनी कंपनी की वैल्यु बढ़ा सकते हैं और कैसे अपने ग्राहकों का भरोसा जीत सकते हैं।

यह किसके लिए है -:
- वे जो सोचते हैं कि कंपनी को बढ़ाने से उन्हें ज़्यादा फायदा होगा।
- वे जो सही मायने में अपनी कंपनी को आगे ले जाना चाहते हैं।
- वे जो एक इंन्प्रीन्युवर हैं और अपनी कंपनी को अच्छे से नहीं संभाल पा रहे हैं।

लेखक के बारे में -:
अल राईस (Al Ries) राईस एंड राईस (Ries & Ries) कंसल्टिंग फर्म के को-फाउंडर होने के साथ साथ एक लेखक और एक मार्केटिंग प्रोफेशनल भी हैं। उन्होंने मार्केटिंग के फील्ड में अपने बहुत से योगदान दिए हैं। उन्होंने दूसरे लेखकों जैसे जैक ट्राउट (Jack Trout) और लॅारा राईस (Laura Riess) के साथ मिलकर बहुत सी बेस्ट सेलिंग किताबें भी लिखी हैं। 

यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए? अपनी कंपनी के लक्ष्य पर फोकस करें और अपनी कंपनी की वैल्यु बढ़ाएं।
क्या आपको भी लगता है कि अपनी कंपनी को बढ़ाने से आप ज़्यादा फायदा और ज़्यादा ग्राहक पा सकते हैं? 

ज़्यादातर कंपनियां सोचती है की अगर वो बड़ी कंपनियों में बदल जाएँ तो उनके फायदे भी बड़े फायदों में बदल जाएंगे और साथ ही उनके ग्राहकों की संख्या भी बढ़ जाएगी। यह किताब आपको बताती वे क्यों गलत सोचते हैं।

इन सबक को पढ़कर आप सीखेंगे कि कैसे आप अपनी कंपनी को फोकस कर के उसे फायदेमंद बना सकते हैं और क्यों ग्लोबलाइज़ेशन आपकी कंपनी के लिए एक श्राप साबित हो सकता है। साथ ही यह आपको अपनी कंपनी को अच्छे से मैनेज करने के लिए कुछ टिप्स भी देती है।

 

मैनेजर्स अपने कंपनी को बढ़ाने पर फोकस करते हैं।
सबसे पहले तो हम यह देखते हैं कि क्यों हर कंपनी अपने आप को बढ़ाना चाहती है। इस सवाल के बहुत सारे जवाब हो सकते हैं जो कि नीचे दिए गए हैं। 

कंपनी को बढ़ने से प्रोडक्ट की मैन्युफैक्चरिंग कॉस्ट कम हो जाती है जिसकी वजह से प्रॉफ़िट्स बढ़ जाते हैं। अगर आपकी मैन्युफैक्चरिंग कॉस्ट कम है तो आप अपने प्रोडक्ट की प्राइस भी कम रखकर ज़्यादा ग्राहक बना सकते हैं।   

मान लीजिये कि आप एक आइस क्रीम फैक्ट्री चला रहे हैं जिसमे हर एक आइस क्रीम को बनाने में 5 रुपये का सामान लगता है। आइस क्रीम को ज़माने के लिए आप जिस फ्रीज़र का इस्तेमाल करते हैं उसकी कीमत 5000 रुपये है।

इस तरह अगर आप 100 आइस क्रीम बनाते हैं आपको एक आइस क्रीम को बनाने के 55 रुपये लगेंगे। लेकिन अगर आप 1000 आइस क्रीम बनाते हैं तो एक आइस क्रीम बनाने की कीमत सिर्फ 10 रुपये होंगे। इस तरह आप अपनी मैन्युफैक्चरिंग कॉस्ट को कम कर अपने प्रेफिट्स को बढ़ा सकते हैं।

मैनेजर्स अपनी कंपनी को बढ़ा कर ज़्यादा से ज़्यादा प्रॉफिट कमाना चाहते हैं। क्योंकि उन्हें लगता है कि कंपनी को बढ़ने से उनके फायदे बढ़ सकते हैं , इसलिए वे अपनी कंपनी को एक्सपैंड करते रहते हैं। लेकिन क्या वाकई ऐसा होता है? आइये देखते हैं।

 

अगर आपकी कंपनी फोकस्ड नहीं है तो उससे आपको प्रॉफिट नही हो सकता।
आइये एक उदाहरण के ज़रिये यह देखते हैं कि कैसे कंपनी के बढ़ने से उसकी कीमत नहीं बढ़ती।

पेप्सिको कोका-कोला से बड़ी कंपनी है। पेप्सिको ने एक साल में लगभग 28 बिलियन डॉलर्स की सेल की थी जबकि उसी साल कोका-कोला ने 16 बिलियन की सेल की। लेकिन अगर हम कोका-कोला की स्टॉक मार्केट प्राइस की तुलना पेप्सिको की प्राइस से करें तो हमें पता चलता है कि कोका-कोला की स्टॉक मार्केट में कीमत 93 बिलियन डॉलर्स है जब की पेप्सिको की सिर्फ 44 बिलियन डॉलर्स।  

अब आइये देखें कि आखिर ऐसा क्यों है कि कोका-कोला से बड़ी कंपनी होने के बावजूद भी पेप्सिको की कीमत उससे कम है।

  कोका-कोला ने सिर्फ एक ही प्रोडक्ट पर अपना फोकस किया है जिससे वो अपनी कंपनी को अच्छे से संभाल पा रहा है और उससे होने वाले प्रॉफिट के साथ साथ अपनी कंपनी की कीमत को भी बढ़ा रहा है 

दूसरी तरफ पेप्सिको के बहुत सारे प्रोडक्ट्स आपको मार्केट में देखने को मिलेंगे। पेप्सिको माउंटेन ड्यु, 7up और पेप्सी जैसे कोल्ड ड्रिंक्स बनाता है। पेप्सिको की फ्रिटो ले नाम की एक स्नैक कंपनी भी है और पेप्सिको के बहुत सारे फ़ास्ट फ़ूड कॉर्नर्स जैसे केएफसी, पिज़्ज़ा हट और टैको बेल भी है।  

लेकिन ज़्यादा प्रोडक्ट्स होने से ज़्यादा ग्राहक होंगे और ज्यादा ग्राहक होने से ज़्यादा फ़ायदे भी होने चाहिये। ऐसा इसलिए नहीं है क्यों कि ऐसी कंपनी को मैनेज करना बहुत ही मुश्किल है जो सिर्फ एक ही प्रोडक्ट पर फोकस नहीं करती ।

अगर हम पेप्सिको के मैनेजर्स की तुलना कोका-कोला के मैनजर्स से करें तो हमें पता लगेगा कि कोका-कोला के मैनेजर्स के पास ज़्यादा एक्सपीरियंस है क्योंकि वो एक ही फील्ड के स्पेशलिस्ट है। जबकि पेप्सिको के मैनेजर्स किसी भी फील्ड में स्पेशलिस्ट नहीं है। इसलिए वे अपनी कंपनी को संभाल नहीं पाते। 

 

कंपनियां अपने आप को कई तरह से एक्सपैंड कर सकती हैं।
जब हम कंपनी को बढ़ने की बात करते हैं तो हमारे मन ये सवाल उठता है कि आखिर हम अपनी कंपनी को कितने तरह से बढ़ा सकते हैं। कंपनी दो तरह से एक्सपैंड की जा सकती है। 

लाइन एक्सपैंशन - लाइन एक्सटेंशन में एक ही कंपनी अपने एक ही नाम से अपने अलग अलग प्रोडक्ट बेचती है। इस तरह एक एक्सपैंशन में कंपनी का मुख्या उद्देश्ये ये होता है कि वो अपने ग्राहकों के लिए ऐसे प्रोडक्ट्स लाये जो उनकी उन ज़रूरतों को पूरा कर सके जो उनके इस समय के प्रोडक्ट से नहीं पूरे हो पा रहे हैं।  

उदाहरण के लिए आप एक डिटर्जेंट कंपनी को ले लीजिये जो कि अपने उसी ब्रांड नेम से वाशिंग बार, वाशिंग ब्रश्, वाशिंग लिक्विडस, हैंड वाश या दूसरी चीज़ें भी बनती है ।

डायवर्सिफिकेशन - डायवर्सिफिकेशन में एक कंपनी नए मार्केट्स में अपने नए प्रोडक्ट्स लांच करती है। इस तरह के एक्सपैंशन में जो नए प्रोडक्ट्स बन कर आते है उनका कंपनी के ओरिजिनल प्रोडक्ट से कोई लेना देना नहीं होता है। 

उदाहरण के लिए आप टाटा कंपनी को ले लीजिये। टाटा के बहुत सारे प्रोडक्ट्स हमें मार्केट में देखने को मिलते हैं जैसे कि नमाक, सीमेंट और दूसरे इक्विप्मेंट्स।  

आइये देखते हैं कि किस तरह से ये एक्सपैंशन आपकी कंपनी के लिए नुकसानदायक हैं। कंपनी बढ़ने से कंपनी को नए मार्केट का सामना करना पड़ता है। नए मार्केट में उनके नए कॉम्पिटीटर्स बन जाते हैं और एक साथ इतने सारे कॉम्पिटीटर्स को संभाल पाना मुश्किल हो जाता है। 

कंपनी को एक्सपैंड करने से कंपनी अपना फोकस खो देती है और क्योंकि उसका फोकस एक जगह नहीं है, इसलिए वो धीरे धीरे घाटे की तरफ बढ़ने लगती है।   

 

आपकी कंपनी हर जगह सफल हो ऐसा ज़रूरी नहीं है।
आज बहुत सी कंपनियां अलग अलग देशों में खुद को एक्सपैंड कर रही हैं। दूसरे देशों में अपनी कंपनी को एक्सपैंड करना ही ग्लोबलाइज़ेशन कहलाता है। 

ग्लोबलाइज़ेशन की वजह से कंपनियों को बहुत से टैक्स अडवांटेज मिलते हैं और साथ ही ट्रेड बैरियर्स हट जाते हैं। ट्रेड बैरियर हट जाने की वजह से कंपनी के इंपोर्ट और एक्सपोर्ट के खर्चे कम हो जाते हैं। इसके बहुत से उदाहरण हैं।  

• आसियान-भारत मुक्त व्यापार क्षेत्र (ASEAN-India Free Trade Area))

• यूरोपियन फ्री ट्रेड एसोसिएशन (European Free Trade Association, EFTA) 

• एशिया पैसिफिक इकोनोमिकक कार्पोरेशन ( APEC) 

इसके अलावा भारत के श्रीलंका, मलेशिया और सिंगापुर के साथ मुक्त व्यापार समझौते हैं. ये समझौते मुक्त व्यापर करने में मदद करते हैं.

लेकिन क्या ग्लोबलाइज़ेश से कंपनी को ज़्यादा फ़ायदा हो सकता है? जवाब है, नहीं। ग्लोबलाइज़ेश से भी कंपनी अपने फोकस को खो देती है और फिर उसे संभालना मुश्किल हो जाता है।

अगर आपका प्रोडक्ट आपके देश में लोगों को पसंद आ रहा है तो ज़रूरी नहीं है की वो हर जगह के लोगों को पसंद आए। इसका सबसे अच्छा उदाहरण है कॅामर्स कंपनी  ई-बे  (Ebay) जो कि अमेरिका की एक बहुत ही सफल कंपनी है।  

जब ईबे ने अपना बिज़नेस चाइना में एक्सपैंड किया तो वो वहां के कंपनी ताओबाओ से मुकाबला नहीं कर पायी और फ्लॉप हो गयी। फिर ईबे ने अपना बिज़नेस जापान में एक्सपैंड किया लेकिन वहाँ के लोगों को ईबे के तरीके पसंद नहीं आए।   

 

आप एक ही कंपनी को स्पेशिलाइज़ कर के लोगों का भरोसा जीत सकते हैं।
तो अब तक हमने देखा कि किस तरह से सभी कंपनियों अपने आप को एक्सपैंड करती हैं और किस तरह से ये उनके लिए एक खतरा है। इस सबक में हम देखेंगे कि किस तरह से फोकस करना आपकी कंपनी के लिए फायदेमंद हो सकता है। 

अगर आप एक ही प्रोडक्ट में स्पेशिलाइज़ करेंगे तो आपके प्रोडक्ट पर लोग भरोसा करेंगे। लोग आपके प्रोडक्ट को एक अच्छा ब्रांड मानेंगे और इस तरह से आपके ग्राहक बढ़ेंगे।

अगर हम आज की बड़ी बड़ी कंपनियों को देखें तो हमें पता चलता है कि वे सिर्फ एक ही प्रोडक्ट पर फोकस करती हैं। उदाहरण के लिए एप्पल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां सिर्फ आईटी प्रोडक्ट्स ही बनाती हैं। 

माइक्रोसॉफ्ट आईटी की सबसे बड़ी कम्पनियों में से एक है जिसका मेन प्रोडक्ट कम्प्यूटर्स के लिए विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम है। लेकिन माइक्रोसॉफ्ट लुमिआ जो कि माइक्रोसॉफ्ट के मोबाइल फ़ोन्स है, मार्केट में ज्यादा सक्सेसफुल नहीं हैं। कम्प्यूटर्स की दुनिया का बादशाह होने के बावजूद भी माइक्रोसॉफ्ट मोबाइल की दुनिया के एंड्राइड से टक्कर नहीं ले पाया।

इसका मतलब अगर आप अपनी कंपनी को एक्सपैंड करते हैं तो आप लॉस की तरफ बढ़ रहे हैं। दूसरे उदाहरण में टॉयज आर अस ( Toys"R"us ) आता है। 

टॉयज आर अस शुरुवात में बच्चों के लिए खिलौने बनाया करती थी लेकिन बाद में उसने बच्चों के फर्नीचर भी बनाने शुरू कर दिए जिसकी वजह से वो काफी घाटे में चली गायी। बाद में टॉयज आर अस ने सिर्फ खिलौनों पर फोकस किया और आज वो एक अच्छे खिलौनों के ब्रांड के नाम से जानी जाती है।

 

अगर आप एक ही फील्ड में स्पेशिलाइज़ करेंगे तो आपके ग्राहक आपको अच्छे ब्रांड के नाम से जानेंगे।
अक्सर लोगों को जब एडवाइस की ज़रूरत होती है तो वे किसी स्पेशलिस्ट के पास ही जाते हैं। और एक स्पेशलिस्ट वो होता है जो सिर्फ एक ही फील्ड पर फोकस करता है।

अगर आपको एक घर बनवाना है तो आप एक सिविल इंजीनियर के पास जाएंगे। अगर आपको घर में इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई करवानी है तो आप एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के पास जाते हैं। आप ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि आप जानते हैं कि वे इस काम में माहिर हैं और इस काम को अच्छे से कर सकते हैं। 

ठीक उसी तरह अगर आपको एक कंप्यूटर लेना है तो आपके दिमाग में एचपी या डेल जैसे ब्रांड्स आते हैं। कुछ साल पहले अगर आपको मोबाइल लेना होता था तो आपके दिमाग में नोकिआ का नाम आता था।

अब मान लीजिये कि आपकी एक जूतों की कंपनी है। तो अगर आप सिर्फ अपने जूतों की कंपनी पर फोकस करेंगे तो जब भी लोगों को जूता लेना होगा, उनके दिमाग में आपके ब्राण्ड नाम आएगा। 

आप स्पेशिलाइज़ेशन के साथ ही अपने प्रोडक्ट की क्वालिटी पर ख़ास ध्यान दीजिए। अच्छी क्वालिटी के प्रोडक्ट लोगों को ज़्यादा पसंद आते हैं और अच्छी क्वालिटी के प्रोडक्ट्स बेचने पर आप लोगों का भरोसा बहुत जल्दी जीत सकते हैं।

उदाहरण के लिए आप कोका कोला और पेप्सी ले लीजिये। कोका कोला सिर्फ कोल्ड ड्रिंक्स पर फोकस करती है जिससे वो कोल्ड ड्रिंक की सबसे बड़ी कंपनी है। जब लोगों से पुछा गया कि उनके कोका कोला क्यों पसंद है तो उन्होंने कहा कि उन्हें कोका कोला का स्वाद पसंद है।

तो इस तरह आप बहुत जल्दी अपने बहुत सारे ग्राहक बना कर अपनी कंपनी को नयी ऊचाइंयों पर ले जा सकते हैं।   

 

बदलते वक्त के साथ आपको भी बदलना होगा।
अपनी कंपनी पर फोकस करने का ये मतलब नहीं है कि आप अपने प्रोडक्ट में किसी भी तरह का बदलाव न ला कर सिर्फ अपने उसी पुराने प्रोडक्ट पर फोकस करें।

हम इनफार्मेशन एज में जी रहे हैं जहां हर रोज़ एक नया आविष्कार हो रहा है। हर रोज़ एक नया बदलाव आ रहा है।  टेक्नोलॉजी हर रोज़ बढ़ रही है, बदल रही है और इसके साथ ही आपको अपने आप को और अपने प्रोडक्ट्स को बदलना होगा।  

इस बात को अच्छे से समझने के लिए आप नोकिआ फ़ोन्स का उदाहरण लीजिये। अगर आपकी उम्र 20 साल से ज़्यादा है तो आपको नोकिआ का नाम ज़रूर याद होगा। नोकिआ अपने ज़माने की सबसे बड़ी और सबसे अच्छी मोबाइल फ़ोन कंपनी थी।

समय के साथ मार्केट में एंड्राइड फ़ोन्स आ गए लेकिन नोकिआ फिर भी अपने पुराने मोबाइल फोन्स को मार्केट में चला रहा था। इससे नोकिआ धीरे धीरे घाटे में जाने लगा। बीच में उसने माइक्रोसॉफ्ट ने एक एग्रीमेंट किया जिसमे माइक्रोसॉफ्ट और नोकिआ ने मिलकर नोकिआ लुमिअ नाम के विंडोज बेस्ड मोबाइल फोन्स मार्केट में लाने शुरू किये। लेकिन एंड्राइड के सामने माइक्रोसॉफ्ट भी नहीं टिक पाया।

नोकिआ जब नोकिआ में कमज़ोर पड़ने लगा तब दूसरी कंपनियों ने इसका फायदा उठा कर नोकिआ पर अपना कब्ज़ा जमा लिया। नोकिआ अब अपने नए एंड्राइड बेस्ड मोबाइल फोन्स मार्किट में लेकर आया है पर ये पहले जितने सक्सेसफुल नहीं है।

तो नोकिआ से हमें यह सबक मिलता है की आप बदलती टेक्नोलॉजी के साथ अपने प्रोडक्ट को जितनी जल्दी मॉडिफाई करके मार्किट ला सकते हैं आपकी कंपनी उतनी ही ज़्यादा और उतने ही समय तक सक्सेसफुल रहेगी।

 

आप अलग अलग ग्राहकों की अलग अलग ज़रूरतों पर फोकस कर के अपनी कंपनी को बढ़ा सकते हैं।
अब तक हमने देखा कि किस तरह बड़ी बड़ी कम्पनियाँ खुद को बढ़ाने के चक्कर में अपना फोकस खो देती हैं और घाटे की ओर बढ़ने लगती हैं। लेकिन अब तक हमने बहुत सी ऐसी भी कंपनियां देखी हैं जिनके बहुत से प्रोडक्ट मार्केट में हैं लेकिन फिर भी वो प्रॉफिट में हैं।

उदाहरण के लिए आप जनरल इलेक्ट्रिक्स को ले लीजिये। 1993 में जनरल इलेक्ट्रिक्स ने 64 बिलियन की सेल की और 4 बिलियन का फायदा कमाया। इसके साथ ही उसकी गिनती सबसे बड़ी कम्पनियों में होती है।

तो आखिर इन कंपनियों ने कौन से पैंतरे अपना कर अपने आप को सक्सेसफुल रखा है। ये कंपनियां अलग अलग मार्केट्स में फोकस करती हैं जिससे कि इनके कस्टमर्स भी बने रहते हैं और इनके ब्रांड का नाम भी रहता है।

आप जानते है कि हमारी सोसाइटी में अलग अलग क्लास के लोग हैं। इन्हे तीन क्लास में बांटा जाता है- लोअर क्लास, मिडल क्लास और रिच क्लास। हर क्लास के अपने स्टैण्डर्ड और अपनी अलग अलग ज़रूरतें है।   

इसलिए आप तीनों क्लास के लिए अलग अलग प्राइस पर अलग अलग प्रोडक्ट बना सकते हैं। इससे आपके प्रोडक्ट पर कोई असर नहीं होगा क्योंकि आप अलग अलग मार्केट में अपने आप को स्पेशिलाइज़ कर रहे हैं। इस तरह के फोकस को मल्टी लेवल फोकस भी कहा जाता है।  

जनरल मोटर्स ने कुछ ऐसा ही किया था जिससे वो अपने समय की सबसे अच्छी गाड़ियों की कंपनी बन गयी। पहले जनरल मोटर्स के 7 अलग अलग ब्रांड थे। इनमे शेवरले और कैडिलैक भी शामिल थे। अक्सर कंपनी के खुद के ही प्रोडक्ट्स में कम्पटीशन होने लगता था। लोग शेवरले खरीदते थे तो कैडिलैक के ग्राहक घट जाते थे।  

फिर 1921 में अल्फ्रेड स्लोअन (Alfred Sloan) ने जनरल मोटर्स की कमान संभाली। उन्होंने अलग अलग क्लास के लोगों के लिए अलग अलग प्राइस पर अलग अलग ब्रांड बना कर अलग अलग मार्केट्स में फोकस किया जिससे जनरल मोटर्स बहुत फायदे में चली गयी। तो अगर आप अपनी कंपनी को बढ़ाना भी चाहते हैं तो आप कुछ इस तरह से अपनी कंपनी को बढ़ाइए। 

 

कुल मिला कर
अक्सर लोग सोचते हैं कि कंपनी के बढ़ने पर उसका फायदा बढ़ जाता है। लेकिन ऐसा नहीं है। अपनी कंपनी को बढ़ाने के चक्कर में कंपनियाँ अपना फोकस खोकर घाटे में चली जाती हैं। अपनी कंपनी से प्रोफिट कमाने के लिए आप ग्लोबलाइज़ेशन ना कर के स्पेशिलाइज़ेशन कीजिए। इससे आपकी कंपनी एक अच्छे ब्राण्ड के नाम से जानी जाएगी और आपके ग्राहक आपके प्रोडक्ट्स पर भरोसा करेंगे।


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