The Almanack of Naval Ravikant| Eric Jorgenson |दौलत और खुशियाँ हासिल करने के लिये गाइड

0

 The Almanack of Naval Ravikant

Eric Jorgenson

दौलत और खुशियाँ हासिल करने के लिये गाइड



दो लफ्जों में

द आल्मानैक ऑफ नवल रविकांत (2020) फिलोसोफर और एंटरप्रेन्योर रविकांत के  लाइफ एक्सपीरियंसेस और उनके नॉलेज को रेडी टू यूज फॉर्म में हमारे सामने पेश करती है. हालांकि रविकांत ने जिंदगी के कई पहलुओं को कवर किया है, लेकिन इस समरी में वह हमारी जिंदगी के दो सबसे इंपॉर्टेंट सवालों के जवाब में कहते हैं कि यह दोनों ही स्किल्स है जिन्हें प्रैक्टिस के जरिए अचीव किया जा सकता है. और वह इंपोर्टेंट सवाल है कि दौलतमंद कैसे बना जाए? और खुशियां कैसे ढूंढी जाएं?

किनके लिए है

-एंटरप्रेन्योर्स या अपने दम पर कुछ करने की कोशिश करने वालों के लिए

- प्रैक्टिकल फिलॉस्फर्स के लिए

- ऐसे लोगों के लिए जिन्हें अपनी जरूरतों के लिए बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है

लेखक के बारे में

Eric Jorgenson प्रोडक्ट स्ट्रैजिस्ट और राइटर हैं. 2011 में वह होमऑनर्स को सर्विस प्रोवाइड करने वाली कंपनी Zaarly से जुड़ गए.


STARTING

अगर आप किसी फैसले को लेकर श्योर नहीं हैं, तो इसका जवाब "न" है।

एक तरह का ओपिनियन है कि विज़डम और वेल्थ एक साथ नहीं चल सकते. एशियंट ग्रीक में फिलॉस्फर के ऊपर जोक के तौर पर कहा जाता है कि फिलॉसफर्स ऊपर आसमान में तारे देखते हुए कुएं में गिर जाते हैं. बहुत सारे दूसरे ओपिनियन की तरह यह भी पूरा सच नहीं है, हालांकि इसके सच होने का एहसास होता है क्योंकि हमने ऐसा कुछ ऑब्जर्व भी किया है लेकिन यह सच नहीं है.


नवल रविकांत इस बात का जीता जागता सबूत है. एंटरप्रेन्योर और इनवेस्टर के तौर पर उनकी कामयाबी पैसे बनाने की प्रैक्टिकल अंडरस्टैडिंग दिखाती है. वहीं दूसरी तरफ एक फिलॉसफर के तौर पर वह जिंदगी के अलग अलग सीक्रेट को एक्सप्लोर करने की कोशिश भी करते रहते हैं. इस समरी में हम वेल्थ और हैप्पीनेस के बारे में जानने के साथ ही, इसे रविकांत के नजरिया से समझने की कोशिश भी करेंगे. हम जानेंगे, कि क्यों एक दौलतमंद को जलन नहीं करनी चाहिए? आजादी पाने के लिए पैसों का इस्तेमाल कैसे किया जाए, और कैसे एक शांत माइंड ही हैप्पी माइंड है?


तो चलिए शुरू करते हैं!


अगर आप किसी फैसले को लेकर श्योर नहीं हैं, तो इसका जवाब "न" है।


इस धरती पर 7 बिलियन लोग रहते हैं. इंटरनेट की सहूलियत की वजह से हम कहीं से भी किसी से भी कांटेक्ट कर सकते हैं. जैसे साथी, दोस्त और बिजनेस पार्टनर को. आज काम करने का तरीका भी बदल गया है. आज के जमाने में हजारों नौकरियां किसी ऐसे शख्स के लिए भी अवेलेबल है जिसके पास बस इंटरनेट मौजूद हो. मतलब मॉडर्न सोसाइटी में बहुत सारे ऑप्शन अवेलेबल हैं, जब ऑप्शंस अवेलेबल हैं तो मतलब बहुत सारे सवालों के बहुत सारे जवाब भी होंगे, जैसे कि कहां रहा जाए, किससे शादी की जाए, कौन सा करियर चुना जाए?


तो आप इन सवालों के सही जवाब कैसे हासिल करते हैं? अगर हम इंर्पोटेंट डिसीजन लेते वक्त प्रिंसिपल का सही इस्तेमाल करें तो हमें हर सवाल के सही जवाब मिल सकते हैं. हमारा इवोल्यूशन कुछ इस तरीके से हुआ है कि हमारा दिमाग बहुत सारे ऑप्शन से भरे एनवायरनमेंट से कोप करने के लिए तैयार ही नहीं है. हमारे एंसेस्टर्स एक छोटे से ट्राइब में रहते थे और उनकी जिंदगी किल्लतों या कमियों में गुजरी. मिसाल के तौर पर, पार्टनर की तलाश भी रोमांस या नहीं बल्कि अवेलेबिलिटी का सवाल थी. जॉब भी जरूरत का सवाल थी. उस दौरान किसी भी हालत में इतना खाना ले ही आना होता था जितने में आप खुद को और अपनों को अगले दिन तक जिंदा रख सकें. आज के जमाने में मौजूद ऑप्शंस के हिसाब से हमारा इवोल्यूशन प्रॉब्लम क्रिएट करता है. जब कोई बड़ा फैसला लेने की बात आती है तो हम लंबे वक्त तक उसमें फंसे रहते हैं. शहर बदलने या कोई जॉब एक्सेप्ट करने का फैसला आपके पूरे करियर की दिशा ही बदल सकता है. रिलेशनशिप के मामले में भी ऐसा ही है. एक गलत फैसला और आपका बहुत सारा वक्त बर्बाद. कहने का मतलब यह है कि इस तरह के फैसलों का हमारी जिंदगी पर बहुत असर पड़ता है, इसलिए इनका सही होना बहुत जरूरी है. इसलिए सिंपल Heuristic यानि थम्ब रुल का इस्तेमाल कर प्रॉब्लम का अंदाजा लगाया जा सकता है. Heuristic के मुताबिक अगर आप किसी फैसले में कंफ्यूज हैं तो उसका जवाब "ना" ही होता है.


हालांकि हम फ्यूचर नहीं जान सकते इसलिए इस बात का पूरा दावा नहीं कर सकते कि क्या फैसला सही है और क्या गलत, मिसाल के लिए, कोई घर खरीदना या किसी से शादी करने का फैसला लेना सही ऑप्शन हो सकता है.  बस अपने डाउट पर भरोसा करने के लिए कहा जा रहा है. अगर आप स्प्रेडशीट को घूरते हुए इसके नफे नुकसान की कैलकुलेशन कर रहे हैं तो समझ लीजिए इस मामले में आपका जवाब "ना" है.


यह बहुत सीधा सा रूल है लेकिन बहुत इफेक्टिव भी है. सबसे अच्छी बात यह है कि इस तरीके से आप टाइम वेस्ट और पछतावे से बच सकते हैं.

अच्छी रेपुटेशन बेशकीमती ऐसेट है।

मान लीजिए कि आप 10% के इंटरेस्ट पर एक लाख रुपये इन्वेस्ट करते हैं. सिंपल इंटरेस्ट बहुत सिंपल तरीके से काम पड़ता है, जितने लंबे वक्त तक आप अपना पैसा इन्वेस्टेड रखेंगे उतने  वक्त हर साल आपको 10 हजार इंटरेस्ट के तौर पर मिलते रहेंगे. कंपाउंड इंटरेस्ट इसके उलट है.


कंपाउंड इंटरेस्ट बहुत तेजी से पैसे बनाता है. यह 30 सालों में एक लाख को 17 लाख 44 हजार बना सकता है. वही सिंपल इंटरेस्ट इसी वक्त में 1 लाख को को सिर्फ 4 लाख ही बना सकता है. कंपाउंडिंग का मतलब एक लंबे गेम के लिए तैयार रहना है. ऐसा नहीं है कि आप सिर्फ पैसों को ही कंपाउंड कर सकते हैं. आप अपने रिलेशनशिप पर भी इसे अप्लाई कर सकते हैं. मल्टीनेशनल कंपनी के सीईओ और अपने क्लाइंट की तरफ से मिलियंस सम्भालने वाले इन्वेस्टर्स जैसे दुनिया के बड़े-बड़े बिजनेसमैन के बारे में सोचिए. इन लोगों के पास अपनी जिंदगी में ऐसे उहदे क्यों है, यकीनन वह टैलेंटेड और हार्डवर्किंग है, लेकिन सवाल यह उठता है कि उनके जैसे ही डेडीकेटेड और हार्ड वर्किंग लोगों के पास वह जॉब्स क्यों नहीं हैं? इसका सही जवाब है क्योंकि वह यकीन के काबिल हैं उन पर यकीन किया जाता है. उन पर यकीन किए जाने का जवाब बहुत सिंपल है, उन्होंने लोगों के साथ जो रिश्ता बनाया है और जो काम किया है वह आपस में कंपाउंड हो जाता है. उन्होंने लंबे वक्त तक अपना काम किया और अपने आपको यकीन करने लायक साबित किया है. और यही रेपुटेशन है, अपने आप को काबिल साबित करने के लोंग टर्म इन्वेस्टमेंट का कंपाउंड इंटरेस्ट. सोच कर देखिए इंडिविजुअल लेवल पर कैसे काम करता होगा. अगर आपका किसी के साथ 5 से 10 सालों तक वर्किंग रिलेशन होता है तो आप उन पर यकीन करने लग जाते हैं. और यह यकीन बिजनेस वर्ल्ड में होने वाले नेगोशिएशन को बहुत आसान बना देता है. आपको पता होता है कि आप दोनों साथ मिलकर काम कर ही लेंगे.


अगर आपको अपनी रिपोटेशन पर कोई रिटर्न चाहिए तो आपको बहुत ध्यान देकर अपनी रिपोटेशन बनानी होगी. अगर आप सालों से इन्वेस्ट करते आए हैं तो जब आपको एहसास होगा कि आपकी इन्वेस्टमेंट का कोई फायदा नहीं हो रहा है, तो आप बहुत जल्दी उससे बाहर निकल सकेंगे.


मिसाल के तौर पर, अगर आप ऐसा कुछ पढ़ रहे हैं जिसके बारे में आपको मालूम है कि आप इसे अपनी जिंदगी में इस्तेमाल नहीं करने वाले, तो वह क्लास छोड़ दीजिए. यह टाइम और एनर्जी को  बर्बाद करेगा और आप उस चीज को हासिल करने का चांस भी खो रहे होंगे, जो आपके लिए ज्यादा वैल्युएबल हो सकती है.

अगर आप दौलत की इज्जत नहीं करते, तो यह आपसे दूर हो जाएगी।

वेल्थ का नाता सिर्फ पैसा, बाजार और इन्वेस्टमेंट से नहीं है, यह आपके साइकोलॉजी से भी जुड़ा हुआ है. जलन को ही ले लीजिए. जब आप अपने आप को किसी से कम्पेयर करते हैं और उसकी कामयाबी से जलते हैं, तो आप ऐसे ही माइंडसेट में फंस जाते हैं. अगर आप पैसे बनाना चाहते हैं तो आपको ऐसे लोगों के साथ काम करना होगा, जो आप से बेहतर है. एक इंसान होने के नाते हमें इस बात से बहुत फर्क पड़ता है कि सामने वाला हमारे बारे में क्या सोचता है. और जब हम किसी से जलते हैं तो यह पता चलती है. और अगर आप अपनी जिंदगी में वेल्थ चाहते हैं, तो यह किसी भी तरह के रिलेशनशिप की बेहतर शुरुआत नहीं है. हम लोग सोसाइटी में दो तरह के "खेल" जरूर खेलते हैं.


पहला है मनी गेम. हां पैसा खुशियों नहीं खरीद सकता और यह आपकी सभी प्रॉब्लम नहीं सॉल्व कर सकता, लेकिन यह पैसों से जुड़ी प्रॉब्लम जरूर सॉल्व कर सकता है. और मनी गेम खेलने के लिए यह वजह काफी है. वही बहुत सारे लोगों को लगता है वह पैसे नहीं बना सकते, दरअसल यहां पैसे बनाने के रास्ते में प्रॉब्लम नहीं होती बल्कि उनके माइंडसेट में प्रॉब्लम होती है. वह अपना साइटोलॉजिकल ब्लॉक क्लियर करने के बजाए पैसों में कमियां ढूंढने पर फोकस करते हैं. ऐसे लोगों का मानना है कि पैसा अच्छी चीज नहीं होती, इसलिए इसे हासिल करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. और इसे स्टेटस गेम कहते हैं. यह कहकर पैसे रिजेक्ट कर देना कि चाहिए नहीं या जरूरत नहीं है, बस दूसरों की नजरों में ऊंचा बनने का एक तरीका है.


यहां पर स्टेटस गेम ह्यूमैनिटी जितना ही पुराना है और इसका नाता रिलेटिव माइंडसेट से है. इसका मकसद लोगों के बीच ऊंचे उहदे वाला और उससे कम की हैसियत रखने वालों को आइडेंटिफाई करना है. इसे zero-sum गेम कहते हैं. कोई जीतता है तो किसी को हारना पड़ता है, दूसरे नंबर वाला सिर्फ पहले नंबर वाले के जगह खाली करने पर उसकी जगह ले सकता है.


इसके अपने इस्तेमाल हैं. मिसाल के तौर पर, अगर हम पॉलिटिक्स में इसका इस्तेमाल नहीं करते तो हमें नहीं पता चल पाएगा कि कौन किस चीज का इंचार्ज है. हालांकि फंडामेंटली देखा जाए तो यह एक ऐसी जरूरत है जो गलत भी है. इसलिए आपको अपनी जिंदगी में इससे बचना चाहिए. अगर आप लगातार इसका इस्तेमाल करते हैं, तो आप जलन रखने वाले, बेचैन और दूसरों को नीचा दिखाने की फिराक में रहने वाले बन जाएंगे. मनी गेम कुछ अलग है, यह zero-sum नहीं बल्कि positive-sum है. आप बिना किसी को हराए जीत सकते हैं, बिना किसी को गरीबी में ढ़केले अमीर बन सकते हैं. कामयाब लोगों के रिश्ते इसी बुनियाद पर टिके होते हैं. वह ऐसे लोगों के साथ रहते हैं, जो इस बात को समझें कि जब मनी गेम की बात आती है तो यह हर किसी के लिए win-win सिचुएशन ही होती है.


अगर आप आजाद रहना पसंद करते हैं, तो पैसा आपको आजादी भी दे सकता है। पैसों से सब कुछ नहीं खरीदा जा सकता. ना ही यह आपकी हेल्थ प्रॉब्लम सॉल्व कर सकता है और ना ही सच्चा प्यार ढूंढने में आपकी मदद. इससे ना आप इनर पीस हासिल कर सकते हैं और ना ही फिट हो सकते हैं. लेकिन जो एक चीज या आपको दे सकता है वह है फ्रीडम यानि आजादी. पैसा आपकी जिंदगी से बहुत सारी प्रॉब्लम और रुकावट को दूर कर देता है जो आपके मन चाहे काम के बीच आ रही थीं. बुद्ध एक प्रिंस के तौर पर ही पैदा हुए थे. पहले दौलत आई उसके बाद वह इससे मिली फ्रीडम का इस्तेमाल कर जंगलों में जाकर मेडिटेशन के सहारे अपनी जिंदगी बिताने लगे.


दूसरे शब्दों में कहें तो पैसा अंत की तरफ ले जाता है, इसकी असल कीमत कहीं और है. और जब आप इस हकीकत से मुंह मोड़ लेते हैं तो पैसा फ्रीडम का नहीं बल्कि फ्रीडम से दूर ले जाने का जरिया बन जाता है. पैसा बुराइयों की जड़ नहीं है. असल में यह ना अच्छा है ना बुरा, इसके इस्तेमाल पर डिपेंड करता है कि पैसा अच्छा है या बुरा. कुछ लोगों के लिए पैसा ही सब कुछ है. वह पैसे के लिए पैसा चाहते हैं. ऐसे में यह सिर्फ पैसों का लालच है और कुछ नहीं। वह आपके लिए बुरा है- आपकी मोरैलिटी के लिए नहीं बल्कि प्रैक्टिकली  आपकी हेल्प और हालात के लिए. इसे हमें बहुत सारे एडिक्शन का पता चलता है.


अगर आप पैसों से प्यार करते हैं तो आपके लिए पैसे कभी भी काफी नहीं होंगे. कोई भी अमाउंट हासिल कर लेने पर आप कभी सेटिस्फाइड नहीं होंगे. ऐसे में पैसा आपके दिमाग पर सवार हो जाता है और आप सिर्फ पैसों के बारे में ही सोच पाते हैं आपका हर फैसला पैसों की कैलकुलेशन पर बेस्ड होता है. आप जितना भी कमा पा रहे हैं उसको लेकर नाखुश और जो भी आपने बनाया है उसे खो देने के डर में रहने लगते हैं. डिसेटिस्फेक्शन कि यह सिचुएशन पैसों की लालच रखने की वजह से एक सजा है और यह पैसों के जरिए ही आती है. यह मनी गेम को अपनी जिंदगी में जगह देने का गलत तरीका है. याद रखिए पैसा पैसों के लिए नहीं होता पैसा आपकी एक्सटर्नल प्रॉब्लम सॉल्व करने के लिए आता है. इस गलत मनी गेम से बाहर निकलने के लिए आप ज्यादा पैसे कमाने के बावजूद अपनी लाइफ स्टाइल में इंप्रूवमेंट करने से बचने की कोशिश कर सकते हैं. जब आप ज्यादा कमाते रहेंगे और आपका खर्चा बहुत ज्यादा नहीं रहेगा तो आप फाइनेंशियल फ्रीडम अचीव कर सकते हैं. लगातार अपनी लाइफ स्टाइल को और ज्यादा चमक-दमक बनाके रहने से प्रॉब्लम्स बढ़ती हैं और इस प्रॉब्लम को सॉल्व करने के लिए आपको तेजी से पैसे कमाने और उसी साइकल से गुजरने की जरूरत पड़ेगी.

आप प्रेजेंट मोमेंट में जी कर खुश रहना चुन सकते हैं।

खुशियां क्या हैं? इसका एक जवाब सदियों पुराने taoism और buddhism जैसे एशियन रिलिजन देते है जिनका कहना है कि खुशी या दुख दोनों ही हमारे जजमेंट होते हैं हमारा नजरिया होता है. हकीकत यह है कि हमारे दिमाग के बाहर की दुनिया न्यूट्रल है. हमेशा से नेचर ने कॉज़ एंड इफेक्ट यानि वजह और उसका असर, के नियम को फॉलो किया है. नेचर के नजरिए से देखा जाए तो कुछ भी सही गलत और अच्छा बुरा नहीं होता. जिंदगी साउंड, टेंपरेचर और लाइट जैसे सेंसेशन का छोटा सा एक्सपीरियंस है. Taoism और buddhism बताता है कि अगर जजमेंट हमारे दिमाग के अंदर होता है तो खुशियां सिर्फ इस न्यूट्रल वर्ल्ड में रिस्पांस करने का एक तरीका है. शॉर्ट में कहें तो खुश रहना एक चीज है और हम इसे चुन सकते हैं.


हम अक्सर खुशियों और पॉजिटिव थॉट को एक समझ लेते हैं. लेकिन Taoists और buddhists इसमें फर्क करना जानते हैं. 6 सेंचुरी BCE चाइनीज़ सेंट laozi के लिये असाइन, tao te ching नाम के फिलॉसफिकल और रिलीजियस टेक्स्ट का taoist और buddhist ट्रैडिशन पर काफी गहरा असर रहा है. इसमें बताया गया है कि हर पॉजिटिव थॉट या जजमेंट में एक नेगेटिव थॉट की बीज जरूर होती है. मिसाल के तौर पर, अगर कहा जाये कि आप खुश हैं, तो इसका मतलब है इससे पहले आप उदास थे. अगर आप किसी को अट्रैक्टिव कहते हैं, तो आपके बातों का एक मतलब किसी दूसरे को बैड लुकिंग ठहराना भी है. इसी तरह अगर आज के मौसम को लेकर नेगेटिव जजमेंट या रिमार्क दिया जाता है तो इसका मतलब है कि कल धूप होने की पॉसिबिलिटी भी है. इन दोनों ही ट्रेडीशन में, ऐसे किसी भी जजमेंट या रिमार्क की गैरमौजूदगी को हैप्पीनेस कहते हैं, और इसमें ख्वाहिशों की भी गैर मौजूदगी भी शामिल होती है. आपके अंदर जितनी कम ख्वाइशें होंगी आप उतना ही ज्यादा चीजों को उसके असल रूप में एक्सेप्ट कर पाएंगे. और इससे आपका मन शांत होता है आपका दिमाग ना ही पीछे मुड़कर पास्ट के बारे में सोचता है ना आगे बढ़कर फ्यूचर के बारे में जानने की ख्वाहिश रखता है, इंसान बस प्रेजेंट मोमेंट में जीता है.


आप जितना ज्यादा प्रेजेंट मोमेंट में जियेंगे उतना ज्यादा खुश रहेंगे. "मैं तो खुश हूं", जैसा पॉजिटिव रिमार्क भी आपकी शांति को खराब कर सकता है. अचानक से आप अपने फ्यूचर और इस खुशी को बचाए और बनाए रखने के बारे में सोचने लगते हैं. इससे आपके मन में टेंपरेरी चीज को परमानेंट बनाने की ख्वाहिश जगती है, और आपका दिमाग तेजी से चलने लगता है. आप खुशी के उस प्रेजेंट मोमेंट से भटक जाते हैं. प्रेजेंट मोमेंट में जीना खुशियों को चुनना है. इस तरीके से जीने के लिए आपको मोंक बनने की जरूरत नहीं है, बस छोटे से बच्चे के बारे में सोच कर देखिए. उनकी लाइफ में खुशियों का बैलेंस होता है, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वह अपने दिमाग में दुनिया भर की बातें सोचने के बजाय प्रेजेंट मोमेंट में रहते हैं.


खुशियां कैसी होती हैं? इस सवाल के जवाब में फ्रेंच फिलॉसफर  Blaize pascal कहते हैं कि अकेले किसी एक कमरे में बैठना ही खुशी है. उनका मानना है कि हम इंसानों में इतनी प्रॉब्लम इसलिए होता है क्योंकि  हमारे लिए अकेले रहना या बिना कुछ सोचे बैठना बहुत मुश्किल काम है. Buddhist भी ऐसा ही सोचते हैं. असल खुशी 30 मिनट शांति से बैठना है. ऐसा कर पाना इसलिए मुश्किल है क्योंकि हमें हमारी ख्वाहिशें डिस्ट्रैक्ट कर देती हैं.


हमें लगता है कि खुशियां हमारे बाहर इस दुनिया में मौजूद हैं हम तब खुश होंगे जब हमें नई गाड़ी मिल जाएगी, ज्यादा कमा लेंगे या फिर हम अपना सोलमेट ढूंढ लेंगे. यह ख़याल कुछ और नहीं बल्कि हमारा खुद से किया गया वह वादा है कि जब तक हमें हमारी मनपसंद चीज नहीं मिल जाती हम खुश नहीं होंगे. लेकिन हम खुद के साथ ऐसा करते ही क्यों हैं? क्योंकि हमारा दिमाग एक के बाद दूसरी चीजों के बारे में सोचता रहता है.


बुद्ध ने कहा था कि हमारे ख्याल पेड़ की डालियों जैसे हैं. और हमारा दिमाग उस बंदर की तरह है जो एक डाल से दूसरे डाल पर कूदता रहता है. और हमारा यह दिमागी बंदर कभी शांति से बैठता नहीं है. दुनिया भर के ख़यालों में डूबा रहता है. कहीं मेरी वाइफ़ डिवोर्स तो नहीं चाहती? मैं यह कैंडी क्यों खा रहा हूं, मुझे तो अपना वजन कम करना था? क्या मैं अपनी रिटायरमेंट के लिए ठीक ठाक पैसे बचा पा रहा हूं? क्या मैंने अपने कलीग को नाराज कर दिया? तो क्या हुआ? वह तो हमेशा बदतमीजी से बात करता है. अगर मेरी सैलरी बढ़ जाए तो मैं ज़्यादा खुशहाल रह पाऊंगा, शायद मुझे नई नौकरी के लिए अप्लाई करना चाहिए.. वगैरह वगैरह. 


दिन भर में हमारा दिमाग बंदर की तरह हजारों ख़यालों की डालियों पर कूदता रहता है. कुछ थॉट्स जजमेंट होते हैं, तो कुछ कल या 10 साल पहले क्या हुआ था उस बारे में होते हैं. और ज्यादातर फ्यूचर के उस वक्त के बारे में होते हैं जब हमारी सभी ख्वाहिशें पूरी हो जाएंगी. हमारे दिमाग के लगातार चलते रहने का फायदा भी है, हम इसी तरीके के जरिए फ्यूचर प्लान बनाते या प्रॉब्लम सॉल्व करते हैं. लेकिन यह हमारी खुशियों के लिए अच्छा नहीं है.


जब हमारे दिमाग में कोई खयाल बस जाता है तो हम अपने प्रेजेंट मोमेंट पर ध्यान नहीं दे पाते. हमारे दिमाग में एक अलग तरीके का शोर घर कर लेता है, हम कोई भी काम करने के लिए पहले से ही बिजी, एग्ज़ॉस्टेड, स्ट्रेस्ड और दुखी होते हैं. इन सभी प्रॉब्लम का एक ही सल्यूशन है, मेडिटेशन के जरिए अपने दिमाग को प्रेजेंट मोमेंट पर रहने के लिए ट्रेन कीजिए. 


मेडिटेशन करने के कई अलग तरीके होते हैं, आप Pascal की सलाह पर अकेले एक कमरे में बैठने की प्रैक्टिस कर सकते हैं या फिर मोंक्स से मेडिटेशन सीख सकते हैं. लेकिन आप वाकिंग मेडिटेशन यानी हाइकिंग पर भी जा सकते हैं. जर्नल लिखना राइटिंग मेडिटेशन और प्रेयर करना ग्रिटीट्यूड मेडिटेशन है. यहां तक कि शावर लेना भी एक तरह का एक्सीडेंटल मेडिटेशन ही है. जब तक आपका मन यहां-वहां भागने के बजाय शांत रहेगा, तब तक आप खुशियों की तरफ आगे बढ़ते जाएंगे.

अच्छी आदतें डालना और यह जानना कि क्या चीज आपके मन को शांत रखती हैं, खुशियों का रास्ता हैं।

खुशियां कोई नैचुरल चीज नहीं- यह स्किल है। न्यूट्रिशियन, एक्सरसाइज और पैसे कमाने  की तरह खुशियां भी एक स्किल है जिसे आप वक्त के साथ अचीव कर सकते हैं. और जितना ज्यादा आप प्रैक्टिस करेंगे उतने बेहतर होते चले जाएंगे आखिरकार प्रैक्टिस की हमें परफेक्ट बनाती है. लेकिन शुरुआत कहां से की जाए. प्रैक्टिस का मतलब ही कोशिश करना और नाकाम होना है, सबसे पहले आपको पता करना होगा कि क्या चीजें आपके फेवर में काम करती हैं और क्या नहीं. ऐसा करने के लिए आपको बहुत सारी अलग-अलग चीजें करनी पड़ेगी. जब आप अपने मन को शांत करके अपने आसपास हो रही चीजों पर फोकस करते हैं, तभी खुशियां आती हैं. मंजिल तो यही है, लेकिन इस मंजिल तक पहुंचने के लिए किसी दो इंसान के रास्ते एक जैसे नहीं हो सकते. सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट यह जानना है कि आपके लिए क्या चीजें कारगर साबित होती हैं.


क्या तंत्र मेडिटेशन शांत रहने में आपकी मदद करता है या विपासना मेडिटेशन ज्यादा हेल्पफुल होगा? क्या आपको अपने मन को शांत करने के लिए 10 दिनों का ब्रेक चाहिए या सुबह बस 10 मिनट के मेडिटेशन से आपका मन शांत हो जाता है? इन सवालों के जवाब हासिल करने का एक ही तरीका है, दोनों ही तरीकों पर अमल कीजिए. कुछ लोगों के लिए योगा हेल्पफुल होता है तो कुछ लोगों के लिए काईटसर्फिंग और माउंटेन बाइकिंग ज्यादा इफेक्टिव होता है. हो सकता है कुकिंग से आप अच्छा महसूस करते हों, या फिर जर्नलिंग ज्यादा फायदेमंद लगता हो. अपनी जरूरत पूरी करने के बहुत सारे तरीके हैं लेकिन आपको एक्सप्लोरर करना पड़ेगा. इस एक्सप्लोर करने और पता करने कि क्या चीज आपके लिए इफेक्टिव हैं, के प्रोसेस के लिए आपको एक खास माइंडसेट की जरूरत होती है. हो सकता है आपके सामने ऐसे बहुत सारे आईडिया आ जाएं जो आपको कंफ्यूज कर दें कि आखिर यह दुनिया चलती कैसे हैं काम कैसे करती है. यह तब तक ठीक है जब तक आप नेचुरल चीजों को बदलने की जिद नहीं ठान लेते. याद रखिए प्लेसिबो तब तक कारगर होगा जब तक आप को यह महसूस होता रहेगा कि यह इफेक्टिव है.


कुछ वक्त पहले रविकांत ने प्रेजेंट मोमेंट की अहमियत पर Eckhart Tolle द्वारा लिखी गई "द पावर ऑफ नाउ" नाम की किताब पढ़ी थी. Tolle एक बॉडी एनर्जाइजिंग एक्सरसाइज के बारे में बात करते हैं, जिसके तहत आपको लेट करके अपनी बॉडी में एनर्जी के सरकुलेशन को महसूस करना होता है. जब रविकांत ने इस एक्सरसाइज के बारे में जाना तो उन्हें यह बकवास लगा, लेकिन फिर भी उन्होंने ट्राई किया और इसे ट्राई करने के बाद उन्हें बहुत बेहतर महसूस हुआ.


रविकांत की स्टोरी से पता चलता है कभी कभी कुछ चीजें ठीक नहीं लगतीं लेकिन फिर भी वह हमारे लिए मददगार साबित हो सकती है. यहां पर रूल बहुत सिंपल है अगर यह कारगर साबित होता है तो इसे इस्तेमाल करो और अगर नहीं तो कुछ और तलाशने की कोशिश करो. खुशियों की स्किल को प्रैक्टिस करने का यह एक पहलू है दूसरा पहलू नई आदतें डालना है. मिसाल के तौर पर एल्कोहल, कैफीन, शुगर, सोशल मीडिया से ब्रेक लेने से आपको अपने मूड में स्टेबिलिटी महसूस होगी. इसी तरह से रेगुलर एक्सरसाइ भी आपके माइंड और बॉडी के लिए बहुत बेनिफिशियल होती है. अपने थॉट्स को स्टेबल करके और नई हैबिट अपनाकर आप खुशियाँ ढूंढने के अपने रास्ते पर आगे बढ़ सकते हैं.

कुल मिलाकर

पैसे बनाना और खुश रहना एक तरह की स्किल्स हैं. दोनों के लिए ही आपको अच्छे फैसले लेने पड़ते हैं. चाहे टाइम की बात की जाए या पैसों की आपको इन्हें सही जगह ही इन्वेस्ट करना होगा. अपने अंदर से आने वाले जवाब पर यकीन कीजिए अगर आप कंफ्यूज हैं तो ना में ही जवाब दीजिए. याद रखिए जब आप अच्छा इन्वेस्टमेंट करते हैं तो उसके फायदे भी बहुत होते हैं. यह बात पैसों और रेपुटेशन दोनों पर ही अप्लाई होती है.  खुश रहने के लिए आपको प्रेजेंट मोमेंट में रहना और अपने थॉट्स को यहां वहां भटकने से रोकना चाहिए. और ऐसा करने का बेस्ट तरीका मेडिटेशन है.


 


क्या करें


अपने शॉर्ट टर्म दर्द को जीने और महसूस करने की कोशिश कीजिए


अगर आपके सामने कोई ऐसी सिचुएशन आती है जहां पर किन्हीं दो चीजों में से एक को चुनना पड़ता है तो उस चीज को चुनिये जो फिलहाल के लिए थोड़ी सी तकलीफ देह हो सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि जिस रास्ते पर सल्यूशन होता है वह शॉर्ट टर्म पेन देता है वही दूसरा रास्ता लॉन्ग टर्म में हार्मफुल साबित होता है. यकीनन आपको लग रहा होगा कि हमें शॉर्ट टर्म पेन वाला ऑप्शन ही चुनना चाहिए लेकिन अक्सर मिलने वाली खुशियों को हमारा दिमाग ज्यादा कैलकुलेट कर लेता है. और जब हम दर्द को महसूस करते हैं तो यह हमारे खुशियों की वैल्यू को बढ़ा देता है. मिसाल के तौर पर, एक्सरसाइज के बारे में सोचिए शुरुआत में यह थोड़ा सा तकलीफ देह काम लग सकता है. लेकिन लॉन्ग टर्म में इस इन्वेस्टमेंट का रिटर्न काफी अच्छा और बड़ा होगा.


 


येबुक एप पर आप सुन रहे थे The Almanack of Naval Ravikant By Eric Jorgenson


ये समरी आप को कैसी लगी हमें drchetancreation@gmail.com  पर ईमेल करके ज़रूर बताइये.


आप और कौनसी समरी सुनना चाहते हैं ये भी बताएं. हम आप की बताई गई समरी एड करने की पूरी कोशिश करेंगे.


अगर आप का कोई सवाल, सुझाव या समस्या हो तो वो भी हमें ईमेल करके ज़रूर बताएं.


और गूगल प्ले स्टोर पर ५ स्टार रेटिंग दे कर अपना प्यार बनाएं रखें.


Keep reading, keep learning, keep growing.





Tags

Post a Comment

0Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
Post a Comment (0)

YEAR WISE BOOKS

Indeals

BAMS PDFS

How to download

Adsterra referal

Top post

marrow

Adsterra banner

Facebook

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Accept !