How Champions Think | Dr. Bob Rotella and Bob Cullen एक चैंपियन की तरह सोचना सीखो!

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How Champions Think
Dr. Bob Rotella and Bob Cullen
एक चैंपियन की तरह सोचना सीखो!
दो शब्दों में
साल 2015 में आई ये किताब एक छोटी गाइड की तरह है जो हमें एथलीट और बिजनेस की फील्ड से जुड़े लोगों की सफलता के पीछे छिपे मनोविज्ञान के बारे में बताती है। इसमें इतने बेहतरीन उदाहरण और ट्रिक्स हैं जिनकी मदद से आप रोज अपनी बेस्ट परफार्मेंस देना सीख सकते हैं। ये किताब किनको पढ़नी चाहिए
- जो लोग अपने लिए मोटिवेशन की तलाश में हैं
- ऐसे एथलीट जो अपनी स्पोर्ट्स स्किल्स को अपने जीवन में उतारना चाहते हैं
- बिजनेस मैनेजर और कर्मचारी जो रोज एक नई सफलता पाना चाहते हैं 
लेखकों के बारे में
डॉक्टर बॉब ने यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया में 20 साल तक स्पोर्ट्स साइकोलॉजी के डायरेक्टर के पद पर काम किया है। उन्होंने गोल्फ में पुरुष, महिला और सीनियर प्रोफेशनल वर्ग की सत्तर से ज्यादा बड़ी चैंपियनशिप्स के साथ-साथ टेनिस, बास्केटबॉल, बेसबॉल और फुटबॉल के लिए बहुत से अच्छे खिलाड़ी तैयार किए हैं। बॉब क्यूलेन एक पत्रकार और लेखक हैं जो डॉक्टर बॉब के साथ कई सालों से जुड़े हुए हैं।हमें चाहे कितने ही लोगों से कॉम्पिटिशन करना पड़े लेकिन सबसे बड़ा कॉम्पिटीशन खुद के साथ ही होता है।
आप चाहे किसी कंपनी के CEO हों, एक स्टूडेंट हों,  सेल्स मैन हों या फिर स्पोर्ट्स में हों आप अपने क्षेत्र में हर रोज सबसे बेहतर परफार्म करना चाहते हैं। जिंदगी भर आप इसी के लिए कोशिश करते हैं कि किस तरह अपनी मैक्सिमम पोटेंशियल इस्तेमाल करके अपनी बेस्ट परफॉर्मेंस दें। फिर भी इस बात के बहुत चांस रहते हैं कि आप उस लेवल तक न परफार्म कर सकें। हममें से बहुत लोग ऊंचा मकाम हासिल नहीं कर पाते क्योंकि हमारा नेगेटिव एटीट्यूड हमें पीछे खींचता है। इसके अलावा कई तरह के सामाजिक दबाव होते हैं जो हमारे पांव की बेड़ियां बन जाते हैं। अक्सर ऐसा भी होता है कि अपना गोल हम अपनी सोच या अपनी काबिलियत के हिसाब से नहीं बल्कि उस उम्मीद को देखते हुए तय कर लेते हैं जो दूसरों ने हमसे लगाई होती है। लेकिन ये एक गलत अप्रोच है। इस किताब को पढ़कर आप अच्छे से समझ सकते हैं कि सही अप्रोच क्या है। और आप जो भी करें उसे चैम्पियन की तरह कैसे करें। इस समरीं को पढ़कर आप जानेंगे कि सफलता का रास्ता आप खुद बनाते हैं, सभी चैंपियंस आशावादी क्यों होते हैं? और दुनिया में ऐसी कोई भी बाधा नहीं है जिसे आप पार नहीं कर सकते। 

तो चलिए शुरू करते हैं! 

हम हमेशा चैंपियन बनना चाहते हैं। चाहे हम जो भी करें हमें लगता है हमसे बेस्ट कोई नहीं होना चाहिए। हर कोई एक्सेप्शनल बनने का सपना तो देखता है पर आखिर में ज्यादातर लोग एवरेज पर्सन बनकर क्यों रह जाते हैं? इसकी बड़ी वजह यह है कि हम खुद को अंडरएस्टीमेट कर लेते हैं। यानि हमारे अंदर ज्यादा पोटेंशियल होते हुए भी हम बहुत छोटा टारगेट सेट कर लेते हैं। और हम में से ही कुछ ऐसे लोग हैं जो बहुत ऊंचा लक्ष्य लेकर चलते हैं। उनके पास एक प्रोसेस गोल होता है जिसके लिए वे मेहनत करते हैं। इससे उनका सपना एक दिन हकीकतत में बदल जाता है। प्रोसेस गोल आपको आपकी सही शक्ति का एहसास दिलाता है। आपको किसी तरह का टारगेट या कमिटमेंट सेट करने के लिए मोटीवेट करता है और उसको बनाए रखने के लिए मेहनत भी करवाता है। 

आप अपना प्रोसेस गोल किस तरह सेट कर सकते हैं? एक सीढ़ी की कल्पना कीजिए। इसके हर स्टेप को एक दिन समझ लीजिए, एक चैलेंज समझ लीजिए और एक पॉसिबल रिजल्ट समझ लीजिए। इस पर चलकर एक दिन आप सबसे ऊपरी पायदान पर यानी आपने लक्ष्य तक पंहुचेंगे। मान लीजिए आप स्पोर्ट्स पर्सन हैं और आपका गोल है आने वाली एक चैंपियनशिप को जीतना। जाहिर है इसके लिए बहुत मेहनत और ट्रेनिंग की जरूरत पड़ेगी। हर रोज अभ्यास भी करना होगा। आप अपना डेली रूटीन प्लान करेंगे। एक अच्छा एक्सपर्ट कोच ढूंढेंगे जो आपको सही तरह से तैयारी करने में मदद करे। डाइट और फिटनेस एक्सपर्ट से सलाह मशवरा करेंगे ताकि आप पूरी तरह से उस चैम्पियनशिप के लिए अपने आपको तैयार कर पाएं और कहीं कोई भी कमी न रह जाए। मान लीजिए आप एक सेल्स पर्सन हैं और आपका टारगेट है कि इस साल डेढ़ लाख डॉलर की कमीशन आपको हर हाल में कमानी है। इसके लिए आप अपने कॉल रिकॉर्ड तय करने के साथ शुरुआत कर सकते हैं। देखिए कि सुबह दस बजे तक आपने इतनी कॉल की, बारह बजे तक इतनी और दो बजे तक आपने इतनी कॉल पूरी कर लीं। आखिर इन्हीं में से तो आपके सक्सेसफुल कन्वर्जन होंगे। इससे आपको अपने एक दिन की क्षमता का अंदाजा लग जाता है। हो सकता है कि कुछ लोगों के लिए ये प्रोसेस गोल बहुत ज्यादा मुश्किल हों। इसलिए जिन लोगों को हार या असफलता से डर लगता है वो अपने लिए छोटे-छोटे टारगेट सेट करते हैं। और इसके विपरीत अगर आप अपने लिए कुछ ऐसा गोल सेट करते हैं जो बाकी लोगों के हिसाब से रियलिस्टिक नहीं है तो आप उन लोगों से कहीं ज्यादा ऊपर जाकर रुकते हैं जिन्होंने अपने लिए आपसे कम टारगेट सेट किए थे। इससे हम ये सीखते हैं कि कभी भी अपने लिए उस लिमिट को तय मत कीजिए जो आप आसानी से पार कर सकते हैं। अगर आपका इरादा पक्का है तो आप कुछ भी पा सकते हैं।

नेगेटिव विचारों से दूर रहें।
ऐसा नहीं हो सकता कि अखबार या टीवी की बुरी खबरों का आप पर कोई असर ही न हो। आप अनजाने ही इस नेगेटिविटी को अपने मन में भरते चले जाते हैं। इस वजह से आप पर उदासी और निराशा कब्जा करने लगती है। आपको शायद इस बात का एहसास भी नहीं होता होगा। पर ये आपकी सफलता की राह में बहुत बड़ी बाधा बन जाती है। असल में हम आज तक जो कर चुके हैं या जो कुछ पा चुके हैं उसी के आधार पर आगे का रास्ता देखते हैं। हम कुछ नया ट्राई करने से डरते हैं। हमें इस बात का डर लगता है कि अगर हम हार गए तो लोग क्या कहेंगे। साल 1954 तक एक्सपर्ट्स का ये कहना था कि कोई भी इंसान चार मिनट के अंदर एक मील नहीं दौड़ सकता है। और इस वजह से किसी एथलीट ने इस लिमिट को पार करने की कोशिश ही नहीं की। लेकिन Roger Bannister नाम के एक व्यक्ति ने कड़ी मेहनत और लगन से ये रिकॉर्ड तोड़कर दुनिया को ये बताया कि अगर आप ठान लें तो कुछ भी मुश्किल नहीं है। उनके बाद बहुत से एथलीटों ने इस लिमिट को पार कर दिखाया। हो सकता है कि आशावादी होने और सफल होने के बीच कोई संबंध न हो पर निराशावादी होने और असफल होने के बीच गहरा नाता है। इसलिए आप भी सकारात्मक रहिए। आशावादी बनिए। आपको बस अपना नकारात्मक रवैया बदलना है। आशावादी होना कुछ हद तक वैसा ही है जैसा आप किसी चीज पर फेथ रखते हैं। फेथ के लिए आपको किसी सबूत या गवाह की जरूरत नहीं होती। बस आपका मन कहता है और आप मान लेते हैं। इसी तरह ये मान लीजिए कि सब कुछ संभव है। और एक दिन वाकई आप ये कर दिखाएंगे। इसका एक बड़ा आसान सा तरीका है। जब कभी तनाव हो आप मुस्कुरा दीजिए। इस तरह आपके ब्रेन को ये सिग्नल जाता है कि आप खुश और रिलैक्स्ड हैं। और इस सिचुएशन के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। 

आत्मविश्वास सफलता का ताला खोलने वाली चाबी है। इसे बढ़ाने के लिए रोज मेहनत करनी पड़ती है। हमें लगता है कि आत्मविश्वास कामयाबी हासिल करने के बाद आता है। लेकिन अगर ऐसा होता तो कोई भी पहली बार कामयाब कैसे हो पाता? आत्मविश्वास भी आशावाद की तरह ही है। ये एक तरह का स्वभाव या आदत ही है जिसे आप खुद चुनते हैं। अपने गोल्स चुनकर उनकी दिशा में लगातार कोशिश कीजिए। इस रास्ते में आप जो भी छोटी-बड़ी कामयाबी हासिल करें उसका रिकॉर्ड बनाते रहें। इस तरह आपका आत्मविश्वास बढ़ता जाएगा। जो आपको और मेहनत करने की ताकत देगा। याद रखिए कि आपके गोल से भी ज्यादा महत्वपूर्ण उसकी दिशा में बढ़ते रहना और कोशिश करते रहना है। जानेमाने बास्केटबॉल प्लेयर LeBron James भी अपने शुरुआती दौर में कुछ खास परफार्म नहीं कर पाते थे। थ्री पाइंट शॉट उनके लिए मुश्किल होता था। इसका सक्सेस रेशियो बस 29% था। वे इसके लिए डॉक्टर बॉब से मिले। बॉब ने उनको इस शॉट के 400 अलग-अलग तरीके रोजाना प्रेक्टिस करने को बोला। प्रेक्टिस करते हुए जेम्स अनजाने ही अपने गोल को विजुअलाइज करने लगे। और जब सच में किसी मैच का वक्त आता तो उनका सबकांशस माइंड ओवरटेक करके ये शॉट आसानी से लगवा देता। जेम्स ने थ्री पाइंट शॉट में अपनी परफार्मेंस 40% तक बेहतर कर ली थी। उनको ये भी समझ में आ गया कि स्पोर्ट्स में नैचुरल टैलेंट से ज्यादा मेहनत की जरूरत होती है। अमेरिकन फुटबॉल कोच Vince Lombardi ने एक बार कहा था "जीतना ही सब कुछ नहीं होता, जीतने की इच्छा होना बड़ी बात है।" आप इस बात को किस तरह समझते हैं इससे आपका भविष्य तय होता है। अगर आप चैंपियन बनकर उभरना चाहते हैं तो आपको बस जीत और अच्छी यादें साथ लेकर चलना होगा। और कोई भी हार, खराब परफार्मेंस या बुरी याद भुलानी होगी। हमें स्कूल में गल्ती होने पर उसे सुधारने का काम दिया जाता था। जैसे कोई स्पेलिंग मिस्टेक हुई तो उसे 10 बार लिखो। लेकिन इस तरह हम अपनी स्किल्स को ही भूलने लगते हैं। आप असफलताओं पर ही अटके मत रहिए। अपनी ताकतों, सफलताओं और क्वालिटीज पर फोकस कीजिए। उनको एन्जॉय कीजिए। देखिए कि आप किस पोजीशन पर हैं और यहां से कितना ऊपर जा सकते हैं।

अगर आप अपनी कमियों और ताकतों को अच्छी तरह पहचान जाते हैं तो हर मुश्किल वक्त का सामना कर सकते हैं।
आपने पढ़ा कि आत्मविश्वास सफलता दिलाता है। असल में आप खुद को जिस तरह देखते हैं वैसे ही बन जाते हैं। आपके जीवन में माता-पिता, टीचर्स और कोचेस बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये लोग आपके रोल मॉडल की तरह आपको मोटिवेट कर सकते हैं पर अपनी ताकत आपको खुद बनना पड़ता है। अपनी बेस्ट परफार्मेंस देने में सबसे बड़ी रुकावट वहीं आती है जहां आपके पास मोटिवेशन नहीं होता। और जैसे ही आप एक स्टैंडस्टिल स्टेज में आ जाते हैं चाहे स्पोर्ट्स हो या आपका डेली रूटीन हर काम से आपका मन उचटने लगता है। कुछ लोग "burn out" जैसी स्टेज तक भी पंहुच जाते हैं और उन कामों से ही दूर हो जाते हैं जो कभी वो बड़ा मन लगाकर किया करते थे। अगर आपके साथ कभी ऐसा हो तो इसके लिए दो रास्ते हैं। या तो उस की पाइंट को याद कीजिए जिसकी वजह से ये काम आपको बहुत पसंद था या फिर अब कोई नया काम शुरु कर लीजिए। सबसे जरूरी ये है कि आप जो भी करें पूरे मन से करें। हम सालों तक कोई जॉब करते हैं। हमारा मन भी नहीं लगता। पर उसे छोड़कर कुछ नया करने में हमें डर भी लगता है। यही बात रिश्तों पर भी लागू होती है। असल में हम कुछ भी नया करने से घबराते हैं। हमें लगता है कि अभी हमारे हाथ में ये जो कुछ भी है वो भी चला जाएगा। पर जो कुछ है भी वो खुशी कहां दे रहा है? इसलिए नई शुरुआत से घबराइए मत। खुद को एक मौका तो दीजिए जिससे आपको अपनी सही पोटेंशियल का अंदाजा हो सके। क्या पता आप पहले से कुछ बहुत बेहतर अचीव कर लें। मान लीजिए आपको अपनी नौकरी पसंद नहीं है। आप जहां भी काम करना चाहते हैं वहां दो महीनों के लिए अनपेड इंटर्न के तौर पर अपनी सर्विस ऑफर कर दीजिए। पर ये फैसला इतना आसान नहीं होता। क्योंकि असफलता का डर तो यहां भी सर पर मंडराता रहेगा। तो आगे जानिए कि इससे कैसे पीछा छुड़ाना है। 

अगर आपने खुद को विजेता मान लिया तो आप जीत जाएंगे और अगर हार मान ली तो हार जाऐंगे। इसलिए आज से ही खुद में बदलाव ले आइए। कोई भी हारना नहीं चाहता। लेकिन अगर आप एक बार अपनी हार का बोझ ढोना शुरु कर देते हैं तो हारते ही जाते हैं। इस वजह से आप ये मान लेते हैं कि हारना आपकी किस्मत में है। आप कोशिश करना ही बंद कर देते हैं। क्योंकि उम्मीद छोड़ देना या हिम्मत हार जाना, हौसला बनाए रखने से कहीं आसान होता है। अगर आप भी ऐसे ही दौर में खुद को पाते हैं तो इसी वक्त से बदलाव की शुरुआत करें। सब कुछ आपकी सोच का खेल है। जब आप हार को इग्नोर करके आगे बढ़ जाते हैं तो फिर पीछे मुड़कर कभी नहीं देखते। आपका पहला कदम क्या होगा? सबसे पहले उन चीजों की पहचान करिए जो आपको नकारात्मक दिशा मे ले जाती हैं। अपनी बुरी आदतों, डर, हेजिटेशन को ढूंढिए। मान लीजिए आप वजन घटाना चाह रहे हैं। लेकिन ऑफिस से थककर लौटने के बाद आपके अंदर स्नैक्स लेकर सोफे पर पसरने और टीवी देखने के अलावा किसी और चीज की हिम्मत नहीं बचती। एक्सरसाइज तो बहुत दूर की चीज है। यानि आपने सोच लिया कि आपसे एक्सरसाइज नहीं होगी और ये सोच आप पर हावी हो गई। आपको ये सोच बदलनी है। फिर देखिए। कहते भी हैं कि "मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।" स्टेप बाए स्टेप प्लान करिए और उस पर अमल करिए। कौन कह रहा है कि एक घंटा लगाइए? दस मिनट से शुरुआत करिए। ये दस मिनट, आधे घंटे और फिर उससे भी ज्यादा समय में कब बदल जाएंगे आपको पता भी नहीं चलेगा। आप अपने दोस्तों से भी कह सकते हैं कि वे आपको एक्सरसाइज करने की याद दिलाते रहें। अपने घर पर कह दीजिए कि डिनर के बाद कोई आपको आइस्क्रीम या ड्रिंक ऑफर न करे। अकेले रहते हैं तो ऐसी चीजें अपने घर पर रखिए ही मत जो वजन बढ़ाती हैं। इस तरह आपको समझ आने लगेगा कि कोई भी गोल मुश्किल नहीं है। सकारात्मक रवैया, मेहनत और लगन आपको नई बुलंदियों तक ले ही जाती है। जहां आप चैंपियन बन जाते हैं।

कुल मिलाकर
सफलता आपकी सोच पर निर्भर करती है। गोल बनाइए, खुद में आत्मविश्वास लाइए और अपने डर का सामना कीजिए। इस तरह आप अपने केलिबर से बढ़कर परफार्म करने लगेंगे। फिर चाहे बिजनेस हो, स्पोर्ट्स हो या जिंदगी का कोई भी पहलू, सफलता आपके कदम चूमेगी। 

 

क्या करें?

अपने अचीवमेंट्स नोट करते रहिए।

अगर कभी आपकी परफार्मेंस मन मुताबिक न हो तो निराश न हों। आपने अब तक जो कुछ अचीव किया है, उसे लिख लें। रोज लिखते रहें। एक हफ्ते के बाद इसे पढ़ें। और आने वाले हफ्ते के लिए इन्हीं बातों के साथ शुरुआत करें। सोचिए कि जब आप इतना सब अचीव कर सकते हैं तो इससे आगे भी अचीव कर लेंगे। इस तरह आपमें सकारात्मकता आएगी और आपका सबकांशस माइंड भी इसे ग्रहण करेगा।

येबुक एप पर आप सुन रहे थे How Champions Think by Dr. Bob Rotella and Bob Cullen 

ये समरी आप को कैसी लगी हमें yebook.in@gmail.com  पर ईमेल करके ज़रूर बताइये.

आप और कौनसी समरी सुनना चाहते हैं ये भी बताएं. हम आप की बताई गई समरी एड करने की पूरी कोशिश करेंगे.

अगर आप का कोई सवाल, सुझाव या समस्या हो तो वो भी हमें ईमेल करके ज़रूर बताएं.

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Keep reading, keep learning, keep growing.


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