W. Chris Winter, M.D.
जानिए नींद की गड़बड़ी की वजह और इसे ठीक करने के उपाय
दो लफ्जों में
2017 में आई ये किताब नींद से जुड़ी कुछ बेसिक बातें करती है। ये समझाती है कि सोने के समय और अवधि पर ध्यान देना इतना जरूरी क्यों है। आप ये भी पढ़ते हैं कि नींद न आने की पीछे "नींद" के साथ साथ आपकी अपनी जिम्मेदारी किस तरह बनती है। आप अपनी नींद के पैटर्न को सुधारने के बारे में सीखेंगे और इसकी मदद से अपने जीवन को बेहतर बना सकेंगे।
ये किताब किनको पढ़नी चाहिए?
• जिनको नींद न आने की समस्या है
• जो लोग नींद की गोलियां लेते हैं ताकि उनको थोड़ा आराम मिल सके
• हर वह व्यक्ति जो रात की अच्छी नींद का महत्व नहीं जानता है
लेखक के बारे में
डब्ल्यू क्रिस विंटर एक जानेमाने नींद विशेषज्ञ और न्यूरोलॉजिस्ट हैं। वे बड़े व्यावसायिक घरानों, खेल संगठनों और अमेरिकी सेना को अपनी सर्विस देते हैं। ताकि यहां के सदस्य नींद को सुधारकर अपनी परफार्मेंस बेहतर कर सकें। वे हफिंगटन पोस्ट, रनर वर्ल्ड और डीटेल्स में एक लेखक के तौर पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं।
नींद का असर आपके पूरे स्वास्थ्य पर पड़ता है।
क्या आप भी उनमें से एक हैं जो अच्छी नींद के लिए तरसते हैं? आपके आसपास का माहौल शांत रहता है। दिन भर एक्टिव भी रहते हैं। सोते हुए कमरे में पूरी तरह से अंधेरा भी होता है। फिर भी नींद आपके दरवाजे पर दस्तक नहीं देती। ये सब इतना सामान्य बन गया है कि इसकी वजह से दिन भर छाई रहने वाली थकान और आलस की आपको आदत बन गई है। अगर सच में ऐसा है तो आपको अपनी दिनचर्या के बारे में गंभीरता से सोचना होगा। क्योंकि रात की अच्छी नींद लेना आपके जीवन के हर पहलू के लिए आवश्यक है। ये आपके वजन, सेहत और मूड को भी प्रभावित करती है। अच्छी नींद के लिए महंगी दवाओं की जरूरत नहीं होती है। बल्कि इनके नतीजे बुरे हो सकते हैं। कुछ आसान से बदलाव करके आप भी अपनी नींद को बेहतर बना सकते हैं। इस समरी को पढ़कर आप जानेंगे Insomnia से जुड़े कुछ मिथ के बारे में, थकान और नींद न आने में क्या अंतर है? और सोते समय मोबाइल दूर क्यों रखना चाहिए?
तो चलिए शुरू करते हैं!
नींद के फायदे अनगिनत हैं। हम आपको इसके कुछ मुख्य फायदे बताते हैं। हमारे शरीर की तरह मस्तिष्क में भी वेस्ट प्रोडक्ट्स बनते हैं। इनको बाहर करने के लिए मस्तिष्क के पास ग्लाइम्फेटिक सिस्टम होता है। इस सिस्टम की खोज 2015 में Aleksanteri and Antoine Louveau नाम के दो रिसर्चर्स ने की थी। हालांकि ये इंडिपेंडेंट रूप से अपनी-अपनी रिसर्च कर रहे थे। ग्लाइम्फेटिक सिस्टम कई तरह के टॉक्सिन एलिमिनेट करता है। इनमें एमाइलॉयड बीटा नाम की प्रोटीन भी शामिल है। ये अल्जाइमर के रोगियों के दिमाग में पाई जाती है। सोते वक्त ये सिस्टम 60 प्रतिशत ज्यादा तेजी से काम करता है। इसलिए नींद पूरी करना बहुत जरूरी है। वरना मस्तिष्क को वेस्ट प्रोडक्ट्स से छुटकारा पाने का पूरा मौका नहीं मिलेगा। अगर आप अपने मस्तिष्क की सफाई की रफ्तार को बढ़ाना चाहते हैं तो करवट लेकर सोना सबसे अच्छा रहता है। न्यूयॉर्क के स्टोनी ब्रुक विश्वविद्यालय में rodents (चूहे, गिलहरी और खरगोश जैसे जीव) पर हुई एक स्टडी में ये तथ्य सामने आया है कि जब आप करवट लेकर सो रहे होते हैं तो यह सबसे अच्छी तरह काम करता है। अच्छी नींद आपके दिल और इम्यूनिटी को भी मजबूत बनाती है। बहुत सी स्टडीज से ये पता चला है कि खराब नींद से हाई बीपी, दिल के दौरे, स्ट्रोक और हार्ट फेल होने का खतरा बढ़ जाता है। इसकी वजह से दिल की धड़कनें भी अनियमित हो जाती हैं। ये आगे चलकर आपके सिस्टम में ब्लड क्लॉट बना सकता है जो कि स्ट्रोक की एक प्रमुख वजह है। अच्छी नींद का एक और फायदा ये है कि इससे आपका इम्यून सिस्टम स्ट्रांग बनता है। यानि अगर कभी बचपन में बीमार पड़ने पर आपके माता-पिता ने आपको सो जाने के लिए कहा होगा तो उनकी बात सही थी।
2015 में कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में हुई एक स्टडी में पाया गया कि जो लोग सर्दी-जुकाम के वायरस के संपर्क में आने के बाद छह घंटे या उससे कम सोते थे उनमें सात घंटे या उससे ज्यादा सोने वालों की तुलना में सर्दी लगने की संभावना ज्यादा थी। यानि नींद के महत्व को कम नहीं समझा जाना चाहिए। बहुत से लोग मानते हैं कि वे कम नींद लेकर भी फिट रह सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं है। इसके बारे में आप आगे पढ़ेंगे।
लोग अक्सर नींद की कमी और थकान के बीच फर्क करने में गल्ती कर जाते हैं।
कुछ लोग ये मानते हैं कि वो कम सोते हैं। जबकि कुछ का मानना है कि उन्हें नींद बिल्कुल ही नहीं आती है। ये लोग अक्सर अपने दोस्तों या डॉक्टर से भी यही बताते हैं। लेकिन सच्चाई ये है कि हर कोई सोता है। बस कुछ लोग सही तरह से सो नहीं पाते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्सिल्वेनिया स्कूल ऑफ मेडिसिन में 2003 में हुई एक स्टडी इस बात को साबित करती है। इस स्टडी में चार घंटे, छह घंटे और आठ घंटे सोने वालों के ग्रुप्स बनाए गए। इस स्टडी की शुरुआत और अंत में टेस्ट किए गए। छह घंटे सोने वाले लोगों के ग्रुप में फाइनल टेस्ट के दौरान 25 प्रतिशत लोग सो गए। जबकि उनका मानना था कि वो अपनी नींद पूरी कर रहे थे। हालांकि टेस्ट रिजल्ट कुछ और ही कहते थे। इनसे यही साबित हुआ कि आपको सही तरह से काम करने के लिए नींद की जरूरत है। इसके बिना आपकी जान पर बन सकती है। अगर रात को नींद की कमी रहे तो दिन भर नींद आती है। सुस्ती होती रहती है। इस तरह की फीलिंग का मतलब ही है कि आप और सोना चाह रहे हैं। जबकि थकान का मतलब होता है एनर्जी में कमी होना। ये दोनों शब्द अलग-अलग हैं लेकिन अक्सर इनको एक दूसरे की जगह इस्तेमाल कर लिया जाता है।
नींद की कमी के कारण थकान हो सकती है। लेकिन इसके और भी कारण हो सकते हैं। थकान से पीड़ित व्यक्ति में विटामिन बी12 की कमी, डायबिटीज या डिप्रेशन हो सकता है। इसलिए जो लोग नींद की कमी से परेशान हैं या इसे ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं और फिर भी उनको थकान महसूस होती है उन्हें अपने डॉक्टर से इस बारे में बात करनी चाहिए। स्लीपीनेस के तीन अलग-अलग कारण होते हैं। पहली है दवाइयां। कुछ दवाओं की वजह से आपको नींद सकती है। दूसरी वजह नींद की कमी है। ये तब होती है जब आप जरूरत से कम सोते हैं। नींद पूरी न होने पर सोने की इच्छा बढ़ जाती है। बिल्कुल वैसे ही जैसे पेट भरा न होने पर आपको भूखे रहने का एहसास होता है। तीसरा कारण है नींद की गड़बड़ी। इसका मतलब है कि आप सोते तो हैं लेकिन सही तरह से नहीं। यानि जब आपके दिमाग को सो जाना चाहिए तब उसका एक हिस्सा जाग रहा होता है। अगले भाग में आप पढ़ेंगे कि नींद के दौरान वास्तव में क्या होता है।
नींद के बारे में अभी बहुत जानना बाकी है। लेकिन हमें इतना जरूर पता है कि अच्छी नींद के लिए तीन चरण जरूरी हैं। हल्की नींद, चेतना और गहरी नींद के बीच की अवस्था है। इस स्टेज से जाग जाना आसान है। हल्की नींद को भी N1 और N2 स्लीप में बांटा जा सकता है। आप अपनी कुल नींद का सिर्फ पांच प्रतिशत ही N1 स्लीप लेते हैं। जबकि N2 स्टेज इसका लगभग 50 प्रतिशत बनती है। मस्तिष्क में बन रहे पैटर्न में फर्क के आधार पर इन दोनों चरणों को अलग किया जा सकता है।
अगला चरण है गहरी नींद या N3 स्लीप। जैसे आप किसी मशीन को restore करते हैं, इस दौरान शरीर भी restoration से गुजरता है। इस वजह से ही आप सुबह उठने पर आराम महसूस करते हैं। रात की नींद के पहले आधे हिस्से में आप गहरी नींद का ज्यादातर कोटा पूरा कर लेते हैं। एक वयस्क इंसान की नींद का 25 प्रतिशत भाग गहरी नींद से बनता है। लेकिन ये उम्र के साथ घटती जाती है। ग्रोथ हार्मोन की ज्यादातर मात्रा इस दौरान ही बनती है। इसलिए आपकी इम्यूनिटी को बढ़ाने, चोट ठीक करने और आपकी हड्डियों और मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए ये चरण महत्वपूर्ण है।
लेखक सपनों वाली नींद को तीसरे चरण में गिनते हैं। हालांकि इसका वैज्ञानिक नाम REM स्लीप है। REM का फुल फार्म है रैपिड आई मूवमेंट। इस दौरान आपकी आई बॉल्स पलकों के अंदर तेज गति करती हैं। वैज्ञानिक अभी भी यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि ऐसा क्यों होता है। REM के दौरान आपका मस्तिष्क उसी तरह काम करता है जैसे वो जागने के दौरान करता है लेकिन मांसपेशियों की एक्टिविटी कम होती है। ये चरण आपकी रात की नींद का 25 प्रतिशत भाग बनाता है। हर रात इसके 20 से 40 मिनट के चार से पांच साइकिल होते हैं। इनकी तीव्रता रात के दूसरे हिस्से में बढ़ जाती है। इस चरण के दौरान आपके शरीर का तापमान नियंत्रित होना बंद हो जाता है और आप सपने देखने लगते हैं। एक रात में आप N1 से N2 में, फिर गहरी नींद में, उसके बाद फिर N2 में और फिर REM स्लीप में आते जाते हैं।
अच्छी नींद के लिए आपकी बॉडी क्लॉक का सही रहना जरूरी है।
सर्केडियन रिदम, शरीर में हो रही एक्टिविटीज का एक सिस्टम है। ये 24 घंटे के साइकिल पर काम करती है। इससे आपका सोना और जागना भी तय होता है। जेट लैग इसकी रिदम बिगड़ने की एक आम वजह है। उदाहरण के लिए एक टाइम जोन से दूसरे टाइम जोन में जाने के बाद आपका रूटीन बदल जाता है। ऐसा भी हो जाता है कि जब आपको सोना चाहिए तब आप खाना खा रहे हों। लेकिन आपका शरीर इस वक्त पाचन के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं होगा। सर्केडियन रिदम मनुष्यों के अलावा दूसरे जीवों में भी पाई जाती है। ये पौधों और कवक (fungus) तक में भी होती है। जैसे कि हीलियोट्रोप फूल दिन में सूरज की रोशनी के हिसाब से खुलता और बंद होता है। लेकिन ये रात में भी खुलता और बंद होता है। यानि ये अपनी खुद की रिदम भी फॉलो करता है। 1938 में नथानिएल क्लेटमैन जिन्हें मॉडर्न स्लीप रिसर्च का फादर कहा जाता है और उनके साथी ब्रूस रिचर्डसन ने सर्केडियन रिदम पर एक प्रयोग किया। उन्होंने केंटकी में स्थित मैमथ गुफा में 32 दिन बिताए। यहां उन्होंने अपनी बायोलॉजिकल क्लॉक को 24 घंटे के बजाय 28 घंटे के साइकिल पर शिफ्ट करने की कोशिश की। उनकी कोशिश बेकार रही। अगर वो कामयाब होते तो ये साबित होता कि मानव शरीर सिर्फ पृथ्वी पर होने वाले 24 घंटे के दिन-रात के चक्र के हिसाब से काम करता है। हालांकि बाद में हुई रिसर्च से पता चला कि सभी मनुष्यों में इंटरनल साइकिल 24 घंटे 11 मिनट का होता है। सर्केडियन रिदम को ठीक से काम करने के लिए आपको जीटगेबर्स की जरूरत होती है। ये इस तरह के सिग्नल्स हैं जो आपकी इंटरनल क्लॉक को सेट करने में मदद करते हैं। इनमें सूर्य सबसे प्रभावशाली है। एक्सरसाइज, नींद और सही समय पर भोजन इसके और उदाहरण हैं। आप जितने अधिक जीटगेबर्स के संपर्क में रहेंगे आपकी सर्केडियन रिदम उतनी ही सही रहेगी। अपनी सर्केडियन रिदम को कंट्रोल में रखना अच्छी नींद के लिए जरूरी है।
एक अच्छी और रिफ्रेशिंग नींद के लिए स्लीप हाइजीन जरूरी है। हाइजीन शब्द से हर कोई परिचित है। पर अब ये स्लीप हाइजीन कहां से आ गई? ये शब्द आपके आसपास के वातावरण और सोने से पहले आपके रूटीन और एक्टिविटीज को सही करने के बारे में बताता है। ताकि आप बेस्ट नींद ले सकें। इसकी शुरुआत आपको अपने सोने वाले कमरे की तैयारी से करनी चाहिए। रौशनी आपको जगाए रखती है। इसलिए आपके सोने वाले कमरे में पूरी तरह से अंधेरा होना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि अंधेरा होने पर आपकी आंखें, मस्तिष्क को संकेत भेजती हैं। मस्तिष्क, पीनियल ग्लैंड को मेलाटोनिन बनाने के लिए कहता है। मेलाटोनिन एक हार्मोन है जो बिल्कुल लोरी का काम करता है। यानि आपको नींद का एहसास कराता है। अगर आपके आसपास थोड़ी सी भी रौशनी है तो ये प्रोसेस बिगड़ जाएगा। इसलिए सोते समय अपने फोन को बंद करने या दूर रखने और टीवी न देखने को कहा जाता है। इस बात पर ध्यान देना भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि आप अपने बेडरूम में आराम महसूस करें। आपके पास गद्दों के ढेरों ऑप्शन्स हैं। जो आपको सही लगे वो लें। बिस्तर की भी न जाने कितनी वेरायटी मिल जाएंगी। अगर आपको कमरे में कोई नकारात्मक वेव या घुटन लगती है तो बदलाव का समय आ गया है। नए पर्दे लगा लें। फर्नीचर की जगह बदल दें। दीवारों को नए रंग में रंग दें। आपका शरीर रूटीन से चलना पसंद करता है। इसलिए स्लीप रूटीन का आइडिया मददगार साबित हो सकता है। बचपन में आपने जरूर एक रूटीन बनाया होगा। डिनर किया, नहाए, स्टोरी बुक पढ़ी और फिर सो गए। भला बड़े हो जाने पर ऐसे किसी रूटीन को क्यों छोड़ना? आप सुबह की शुरुआत एक्सरसाइज से कर सकते हैं। रात को कोई किताब पढ़ते रहिए जब तक नींद न आ जाए। आप बस अपने रूटीन पर डटे रहें। ताकि आपका शरीर इसमें ढल सके। स्लीप हाइजीन, नींद को सुधारने का एक बढ़िया तरीका है लेकिन अनिद्रा से निपटने के लिए कुछ और कदम उठाने की भी आवश्यकता है।
अनिद्रा का मतलब नींद की कमी नहीं है। ये नींद की खराब क्वालिटी को बताती है।
यूएस में अनिद्रा यानि insomnia एक महामारी की तरह बन गई है जिसने 20 प्रतिशत से ज्यादा आबादी को जकड़ लिया है। फिर भी ऐसा लगता है कि इसको लेकर अभी भी लोग इतने क्लीयर नहीं हैं। बहुत सी भ्रांतियां हैं। ज्यादातर लोग मानते हैं कि अनिद्रा का मतलब है सो न पाना। लेकिन आप पिछले भागों में पढ़ चुके हैं कि हर व्यक्ति सोता है। वरना वो जी नहीं पाएगा। अनिद्रा का मतलब है नींद पूरी न हो पाना और इससे जुड़ी परेशानियां। अनिद्रा की पहचान का मापदंड ये है कि तीन महीनों के दौरान सप्ताह में कम से कम दो बार आपकी नींद खराब हो। हालांकि ये मापदंड भी गड़बड़ है। अगर महीने में दो बार भी आपकी नींद इतनी खराब हो कि आप परेशान हो जाएं तो भी आपको अनिद्रा होने की संभावना है। अनिद्रा का पहला लक्षण है कि जब आप सोना चाहते हैं तो सो नहीं पाते हैं। इसके दो रूप देखने को मिलते हैं। पहला ये कि जब आप सोने जाएं तो आपको नींद ही न आए। इसे स्लीप ऑनसेट इनसोमनिया कहते हैं। दूसरा ये कि आपको नींद तो आ जाती है पर आप रातभर या लंबे समय तक सो नहीं पाते। इसे स्लीप मेंटेनेंस इनसोमनिया कहा जाता है। नींद कि इस गड़बड़ की वजह से आप चिड़चिड़ाने और झुंझलाने लगते हैं। कुछ लोग महीने में दो बार सही से नहीं सोते और उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ता। जबकि कुछ ऐसे भी हैं जिनकी नींद महीने में एक बार भी बिगड़ गई तो बुरी तरह परेशान हो जाते हैं। यही अनिद्रा का लक्षण है। इस स्थिति की जड़ में अक्सर चिंता, तनाव या कुछ मेडिकल रीजन होते हैं। हालांकि इन वजहों को समझकर और इनसे निपटने के तरीके ढूंढकर इसे ठीक किया जा सकता है। कई लोग नींद की गोलियों की तरफ हाथ बढ़ा लेते हैं। जबकि ये कोई बेहतर उपाय नहीं है।
आजकल हर व्यक्ति नींद की कमी से जुड़े खतरों को समझता है। लोगों को इस बात के लिए जागरुक किया जा रहा है कि नींद की कमी उनकी सेहत के साथ खिलवाड़ कर रही है और उन्हें मोटापे की तरफ ढकेल रही है। इस बात को सपोर्ट करने के लिए बहुत सी स्टडीज हैं। रात में छह घंटे से कम सोना मोटापे की संभावना बढ़ा देता है। साल 2015 में स्लीप नाम के जर्नल में एक स्टडी छपी थी। इसमें लिखा था कि जैसे-जैसे किसी व्यक्ति की नींद का समय कम होता है उसमें ghrelin नाम के हंगर हार्मोन का लेवल बढ़ता है। इस वजह से ओवरईटिंग और फिर मोटापा बढ़ता है। इस तरह की जानकारी से प्रभावित होकर लोग ऐसे उपाय ढूंढने लगते हैं जिनसे उनको तुरंत नींद आ जाए। उनके दिमाग में पहला नाम आता है नींद की गोलियों का। लोग सोचते हैं कि ये गोलियां चमत्कार कर देंगी। हालांकि ज्यादातर स्टडीज में यही सामने आया है कि इनका असर भी एक सीमा तक होता है। स्टडीज में आमतौर पर ये देखा जाता है कि ये गोलियां सोने में लगने वाले समय को थोड़ा से कम कर देती हैं और नींद लेने के समय को थोड़ा बढ़ा देती हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नींद की गोलियां, उस गहरी नींद का समय कम कर देती हैं जो हमारे लिए सबसे ज्यादा जरूरी है। ऐसी गोलियां टेम्परेरी या कम समय के इस्तेमाल के लिए बनाई गई थीं। और जब इनको इसी तरह से लिया जाता है तो ये फायदा पंहुचाती हैं। मान लीजिए कि आपके किसी प्रिय का निधन हो गया है और आप बहुत दुख में हैं। ऐसे में नींद की गोली अच्छा विकल्प हो सकती है। नींद की गोलियां सही तरह से प्लान करके लेनी चाहिए। आपको अपने डॉक्टर से इस बारे में जरूर बात करनी चाहिए। आपके लिए ये समझना जरूरी है कि ये गोलियां कब लेनी हैं, कब तक लेनी हैं, इनको कब बंद करना है और कब लेना नुकसानदायक हो सकता है। नींद की गोलियों से बेहतर उपाय ये है कि सोने का समय तय करके उसको फॉलो किया जाए। इसके बारे में आप अगले भाग में जानेंगे।
अच्छी और आरामदायक नींद के लिए सोने और जागने का एक रूटीन होना जरूरी है।
अगर आप रोज सुबह अलग-अलग समय पर उठते हैं और इसके हिसाब से अपना बाकी रूटीन बनाते हैं तो आपको थोड़ा रेग्युलर होने की जरूरत है। जागने का समय आपकी नींद को बहुत प्रभावित करता है। अच्छी नींद के लिए आपको सोने और जागने के वक्त पर ध्यान देना चाहिए। एक बार जब आप इसकी आदत डाल लेते हैं तो रात की नींद गड़बड़ होने का कोई असर नहीं होता। अगर आप रात की नींद के हिसाब से अगली सुबह उठते हैं तो आपकी सेहत अब नींद की मुट्ठी में आ जाती है। सबसे पहले जागने के लिए एक समय तय कर लें जो आपको ठीक लगे। हां, इसका ये मतलब भी नहीं कि आपने सुबह दस बजे जागना तय कर लिया। अगर आप शावर में पानी की ठंडक या सुबह की चाय का आनंद लेना चाहते हैं तो थोड़ा पहले उठ जाएं। ये समझना भी जरूरी है कि आपको कितनी नींद की जरूरत है। क्योंकि ये सबके लिए अलग होती है। स्लीप रिस्ट्रिक्शन से इसका पता लगाया जा सकता है। इसके लिए जागने का टाइम सेट करें। मान लीजिए आपने तय किया कि सुबह 6:30 बजे उठना है। इससे साढ़े पांच घंटे पहले का समय देखें। यहां ये समय होगा 1:00 बजे। ये आपके सोने का समय होगा। इस दौरान आपको दिन में झपकी भी नहीं लेनी है। अब आप जितनी नींद ले रहे हैं उसमें 15 मिनट का गैप जोड़ना शुरू करें। इस तरह आपके सोने का समय और पहले होने लगेगा जबकि आपका जागने का समय वही रहेगा। ऐसा तब तक करते रहें जब तक कि दिन में आपको नींद आनी बंद न हो जाए। अब आपको ये समझ आ जाएगा कि आपको कितनी नींद की जरूरत है। ज्यादातर लोगों के लिए यह समय साढ़े छह से आठ घंटे के बीच होता है। सोने और जागने के रूटीन पर चलते रहना थोड़ा मुश्किल लग सकता है लेकिन यह आपकी नींद को सुधारने के सबसे बढ़िया तरीकों में से एक है। जो आखिर में आपकी क्वालिटी ऑफ लाइफ बेहतर बनाती है।
कुल मिलाकर
ये बस एक मिथ है कि कुछ लोग नींद पूरी किए बिना अच्छी तरह जी सकते हैं। अगर आपको नींद से जुड़ी कोई समस्या है तो इसे ठीक करने के लिए आप कुछ उपाय कर सकते हैं। अपनी सर्केडियन रिदम पर ध्यान दीजिए। स्लीप हाइजीन मेंटेन कीजिए और सोने और जागने का वक्त तय रखिए। इससे आपको अपनी नींद और जीवन में सकारात्मक सुधार देखने को मिलेगा।
क्या करें?
अगर जरूरी हो तो झपकी ले लिया करें।
इसका कोई रूल तो नहीं बनाया जा सकता लेकिन कुछ बातें सब पर लागू होती हैं। झपकी लेना रात की नींद का विकल्प नहीं बन सकता है। लेकिन ये नींद के असर को थोड़ा बढ़ा जरूर सकता है। दिन के शुरुआती घंटों में तीस मिनट तक का समय इसके लिए सबसे अच्छा है। नींद की तरह इसका समय भी तय रखने से आप इसका ज्यादा लाभ उठा सकते हैं।
येबुक एप पर आप सुन रहे थे The Sleep Solution By W. Chris Winter, M.D.
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