Jon Kabat-Zinn
जिंदगी खुलकर जीना सीखिए
दो लफ्जों में
जीवन में तरह-तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और हम चाहकर भी इनसे बच नहीं सकते। जिंदगी सबसे कठिन परीक्षा है क्योंकि हमें इसका सिलेबस ही नहीं पता होता। ये किताब आपको इसके सिलेबस के बारे में बताने का झूठा दावा नहीं करती बल्कि कुछ ऐसे तरीके बताती है जिनकी मदद से आप किसी भी सवाल को आसानी से हल करने के लिए तैयार हो जाते हैं। वैसे तो इस किताब को तीस साल से ज्यादा हो चुके हैं पर ये आज भी बहुत ज्यादा पढ़ी जाती है।
ये किताब किनको पढ़नी चाहिए
- जो लोग शारीरिक या मानसिक परेशानियों से गुजर रहे हैं
- जिनको अक्सर तनाव रहता है
- जिनका मन कभी शांत नहीं रहता
लेखक के बारे में
जॉन कबात-ज़िन को माइंडफुलनेस का मास्टर कहा जाता है। वे एक वैज्ञानिक, लेखक और मेडिटेशन गुरु के रूप में उनका दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। MBSR यानि Mindfulness-Based Stress Reduction technique दुनिया को देने में उनका बहुत बड़ा योगदान है। जिसकी वजह से हजारों लोग अपनी जिंदगी पहले से ज्यादा शांति से जी पा रहे हैं।
माइंडफुलनेस की मदद से आप वर्तमान में जीने का तरीका सीख सकते हैं।
अगर आपने फिल्म Zorba The Greek देखी है तो आपको याद होगा कि उसका हीरो अपनी जिंदगी को एक लाइन में इस तरह बताता है “The Full Catastrophe!” Zobra बहुत खुशमिजाज है। वो नकारात्मक विचारों वाला कैरेक्टर बिल्कुल भी नहीं है। बल्कि वो इस बात को मानता है कि जिंदगी में हर तरह के रंग होते हैं। कभी मीठा तो कभी कड़वा अनुभव होता है। इन सबको स्वीकार किए बिना आप जीवन का भरपूर आनंद नहीं ले सकते। आप आगे बढ़कर परेशानियों को गले लगाइए और देखिए किस तरह खुशियां भागी-भागी आप तक आती हैं। लेकिन ये सुनने में जितना आसान है, प्रेक्टिकली उतना ही मुश्किल। भला ऐसा कौन है जो परेशानियों का स्वागत दिल खोल कर करने की हिम्मत रखता हो? ऐसा न भी हो तो कम से कम इतना तो किया जा सकता है कि आप परेशानियों का सामना आराम से कर लें। आपकी मदद के लिए माइंडफुलनेस तकनीक है ना। ये ध्यान का ही एक तरीका है जिसमें आप माइंड और बॉडी का इतनी अच्छी तरह तालमेल बिठाते हैं जिससे खुशियों का एहसास बढ़कर दुख और दर्द का एहसास कम होता जाता है। इस समरी में हम जानेंगे ऐसी ब्रीदिंग टेक्नीक जिनसे माइंडफुलनेस बढ़ती है, तनाव के चंगुल से किस तरह निकला जाए? और अपने हर पल को जीने का तरीका!
तो चलिए शुरू करते हैं!
जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है। बस हमें ये नहीं पता होता कि आखिरी पल कब आएगा। मान लीजिए किसी तरह से ये पता चल जाए कि आखिरी समय आ गया है तब क्या करना चाहिए? बाहर चलती ठंडी हवा को महसूस करें, अपने भोजन का अच्छी तरह आनंद लें या चहचहाती चिड़ियों की आवाज सुनें। असल में हमारा जीवन ऐसा ही होता है। जिंदगी एक के बाद एक आने वाले छोटे-छोटे पलों से ही तो बनती है। बीता हुआ पल लौटकर नहीं आता इसलिए हर पल आखिरी पल ही होता है। अगर इस पल में आप कुछ मिस कर देंगे तो नुकसान आपका ही है। माइंडफुल होकर रहें और हर पल का भरपूर आनंद उठाऐं। आपके मन में सवाल आएगा कि हम तो वक्त बिताकर हर पल को जीते ही हैं, तो इसे अलग से सीखने की क्या जरूरत है?
तो एक काम कीजिए अपना पूरा फोकस सिर्फ इस पल पर ले आइए। हममें से ज्यादातर लोग वर्तमान में रहते हुए भी कहीं और ही पंहुच जाते हैं। हमें पता भी नहीं चलता और वर्तमान पर अतीत की यादें कब्जा कर लेती हैं या भविष्य की प्लानिंग। हावर्ड यूनिवर्सिटी में साल 2012 में हुई एक स्टडी बताती है कि अगर हम अतीत या भविष्य की जगह वर्तमान पर ही ध्यान रखें तो ज्यादा शांत, स्टेबल और खुश रहते हैं। ये माइंडफुलनेस का पहला कदम है। ये ध्यान की एक विधि है जिसमें हम अपनी सारी अटेंशन अभी इसी पल पर देने का तरीका सीखते हैं। इसकी मदद से विचारों का तूफान शांत होने लगता है। मन पर लगाम लगनी शुरु हो जाती है। इस वजह से वर्तमान को पूरी तरह से जीना संभव हो जाता है। हम अपने शरीर से मिल रहे संकेतों को अच्छी तरह समझना शुरु कर देते हैं। इस वजह से डिप्रेशन, तनाव और गुस्से जैसी भावनाओं को शुरुआती दौर में ही समझ पाना आसान हो जाता है। एक छोटा सा उपाय करिए। एक किशमिश लीजिए। इसे अच्छी तरह देखिए। इसकी खुश्बू महसूस कीजिए। इसको अच्छी तरह छूकर महसूस करिए। अब इसे धीरे-धीरे चबाना शुरु करिए। इसका स्वाद आपको कैसा लगा? अब दो और किशमिश इसी तरह खाइए। हर बार अपना ऑब्जर्वेशन गहरा करते रहिए। आपको हर बार पहले से ज्यादा अच्छा फील होगा। आज से पहले आपने न जाने कितनी बार किशमिश खाई होगी पर क्या सच में इतना स्वाद आया था? जीवन की हर छोटी-छोटी और मामूली लगने वाली बातों में भी खुद को पूरी तरह इन्वॉल्व करना ही माइंडफुलनेस की शुरुआत है।
मेडिटेशन दिमाग को शांत रखने में मदद करता है।
हम दिन भर किसी न किसी काम में बिजी रहते हैं। ऑफिस का काम, मीटिंग्स और घर के ढेरों काम। ये "doing" स्टेट होती है। दिन खत्म होते-होते शरीर थक चुका होता है लेकिन दिमाग तरह-तरह की उधेड़बुन में लग जाता है। आज दिन भर क्या किया, कल के लिए कौन से काम रह गए हैं, ये टेंशन, वो टेंशन और ऐसी ही ढेरों चीजें दिमाग पर कब्जा कर लेती हैं। माइंडफुलनेस इस "doing" स्टेट को "being" स्टेट में ले आती है। लेकिन इसके लिए दिमाग का शांत होना सबसे जरूरी और पहला कदम है। यहां बात आती है मेडिटेशन की। सबसे पहले अपने शरीर पर नियंत्रण करना सीखिए। इस तरह बैठिए कि आपका सर, गर्दन और पीठ एक सीध में हो। कंधे ढीले और हाथ अपनी गोद या घुटनों पर रखें। अब धीरे-धीरे सांसों पर ध्यान लगाइए। आती-जाती सांसों को महसूस कीजिए। अपने अंदर हो रहे बदलाव महसूस कीजिए। आपका पेट स्ट्रेच होगा, लंग्स फैलेंगे, गले में हवा महसूस होगी। सांस छोड़ते हुए ये सब हल्का लगेगा। हर सांस के साथ एक नई ताजगी महसूस होगी। अब लगातार आ-जा रहे विचारों को पकड़िए। आपको दिमाग के इस ट्रैफिक को कंट्रोल करना है। ट्रैफिफ जाम होने पर एक-एक गाड़ी को निकाला जाता है। आप भी एक-एक करके इन विचारों को जाने दीजिए। जैसा भी विचार हो उसे गुजरने दीजिए। ये बस विचार हैं। ये आपकी पर्सनालिटी या सोच का हिस्सा नहीं हैं। पहले कुछ दिन आपको ध्यान करने में मुश्किल आएगी। आपको सीधे बैठने में तकलीफ होगी, उलझे हुए विचारों को सुलझाना नहीं आएगा, बेचैनी सी होगी। ऐसे में गिव अप नहीं करना है। ये बहुत सामान्य बात है। इस बात पर ध्यान दीजिए कि कौन सी चीज आपका फोकस बिगाड़ देती है ताकि अगली बार उसे खुद पर हावी न होने दें। ध्यान का रूटीन चलने दें। जब आप सीधे बैठने, सांसों के अभ्यास और विचारों को कंट्रोल करने के आदी हो जाएंगे तो समझिए आपने पहला कदम पार कर लिया।
जैसे-जैसे आप ध्यान की गहराई में उतरने लगेंगे माइंडफुलनेस की तरफ बढ़ते जाएंगे। क्या कभी आप छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान देते हैं?नहाते हुए पानी की ठंडक, सही तरीके से जमाई हुई स्टडी टेबल या फिर पेड़ों की झूमती हुई पत्तियों से आपको खुशी मिलती है? जब आप माइंडफुलनेस को अपने जीवन में शामिल कर लेते हैं तो अपने आसपास की हर चीज को देखने और समझने का नजरिया बदल जाता है। आप हर चीज को आराम से ठहर कर देखते हैं, उसे महसूस करते हैं और उसमें खुशी ढूंढ लेते हैं। लेकिन इसमें वक्त और मेहनत लगती है। जैसे आप जिम और एक्सरसाइज की मदद से बॉडी को सही शेप में लाने के लिए मेहनत करते हैं उसी तरह अपनी सोच और विचारों को सही शेप में लाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है।आप जितना ध्यान करेंगे उतना ही माइंडफुल होते जाएंगे। माइंडफुलनेस का मतलब है माइंड और बॉडी का संतुलन। इसका एक बेसिक स्टेप है बॉडी स्कैन मेडिटेशन। आइए समझते हैं ये कैसे किया जाता है। पीठ के बल लेट जाइए। सांसों पर ध्यान केंद्रित करिए। विचारों पर ध्यान दिए बिना उनको आने जाने दीजिए। अपना पूरा ध्यान उल्टे पैर की उंगलियों पर ले आइए। दिमाग में जो चल रहा है उसे चलने दीजिए। आपका ध्यान उंगलियों पर ही रहना चाहिए भले ही वहां आपको दर्द महसूस हो या ऐसा लगे कि उंगलियां सुन्न पड़ गई हैं।
आप इन सेन्सेशन्स को अच्छे या बुरे का नाम मत दीजिए। अब ये सोचिए कि आपकी सांसें इन उंगलियों तक पंहुच रही हैं। अब अपना फोकस लेग पर ले आइए। यही प्रोसेस दुहराइए। एक-एक करके इस तरह शरीर के हर हिस्से पर ध्यान देना है। जब आप इस बॉडी स्कैन का अभ्यास सीख लें तब सांसों की जगह जिंदगी में मिलने वाले इमोशन्स को अपने शरीर में उतारिए। किसी हिस्से में आपको गुस्सा महसूस होगा कहीं डर और कहीं शांति। अब इन हिस्सों तक दया, करुणा, प्यार और ताकत जैसी सकारात्मक ऊर्जा भेजिए। इस मेडिटेशन का नियमित अभ्यास करने पर आप doing स्टेट से being स्टेट तक पंहुच जाते हैं। आपको पहले से जियादा स्थिर, शांत और भावनात्मक रूप से मजबूत बनाने में ये आपकी मदद करता है।
तनाव रोकना हमारे हाथ में नहीं है पर रिस्पांस देना हमारे हाथ में है।
तनाव मौसम की तरह ही है। इसे आना है तो आएगा ही। इसको रोक पाना हमारे बस में नहीं है। तूफान या मौसम बदलने का अंदाजा तो हम फिर भी लगा लेते हैं पर तनाव का अनुमान लगाने का कोई तरीका नहीं है।
फिर भी खराब मौसम से कहीं बेहतर ढंग से हम इससे निपट सकते हैं। तनाव में दो चीजों का रोल होता है। एक जो इसे क्रिएट करती हैं जिसे हम स्ट्रेसर कहते हैं। और दूसरा जो हमारा रिएक्शन होता है। स्ट्रेसर की गिनती में तरह-तरह की सिचुएशन्स, लोग, काम, टार्गेट जैसा बहुत कुछ रखा जा सकता है। रिएक्शन में आता है इनके प्रति हमारी फीलिंग और बर्ताव। स्ट्रेसर पर हमारा जोर नहीं चलता पर रिस्पांस हमारे बस में होता है। हालांकि अधिकतर हम इस बात को भूल ही जाते हैं। मान लीजिए आपकी बस छूट गई। अब आप चिड़चिड़ाने लगते हैं, खीझ जाते हैं, गुस्सा आप पर हावी होने लगता है। ये तो एक शॉर्ट टर्म स्ट्रेस का रिस्पांस है। अगर लंबे समय से तनाव बना हुआ हो तो आप डिप्रेशन की तरफ बढ़ने लगते हैं। जैसे किसी बीमारी या आर्थिक तंगी के हालात में। ये दोनों कंडीशन नुकसान करती हैं। आप तनाव का सामना करने या उससे निपटने का तरीका नहीं सीखते बल्कि इसके साथ जीना सीखने लगते हैं। समय के साथ ये आदत और गहरी होती जाती है। इनका असर तनाव पैदा करने वाली चीजों से ज्यादा बुरा होता है। इनको maladaptive coping strategies का नाम दिया गया है। इनमें ओवर ईटिंग, इग्नोरेंस, काम में पूरी तरह डूब जाना, शॉपिंग की लत जैसी आदतें शामिल हैं। जब हम इनका सहारा लेने लगते हैं तो एक ऐसे चक्र में फंस जाते हैं जहां ये बचाव की आदतें ही तनाव को जन्म देने लगती हैं। आगे हम इस चक्र से बाहर निकलने का तरीका समझेंगे।
तनाव होने पर रिस्पांस देना रिएक्शन देने से बेहतर है और आप इसका तरीका सीख सकते हैं। आपने बचपन में अक्सर ऐसी पहेलियां हल करी होंगी जहां चार-पांच रास्ते आपस में उलझे रहते हैं। एक छोर पर एक बच्चा होता है और दूसरी तरफ मिठाई। आपका टास्क होता है सही रास्ता ढूंढ कर बच्चे को मिठाई तक पंहुचाना। हालांकि वो सिर्फ एक खेल था लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा कि इतनी परेशानी से अच्छा है कि मिठाई से बच्चे तक एक सीधी लकीर बना दी जाए? जीवन भी ऐसे ही टेढ़े-मेढ़े और उलझे रास्तों की यात्रा है। लेकिन ये आपके ऊपर है कि आप इसे पार करने में इन्हीं रास्तों से गुजरते हैं या कोई नया तरीका सोचते हैं। तनाव का सामना करने के लिए हमारे पास चॉइस होती है। हम चाहें तो रिएक्ट कर सकते हैं या फिर रिस्पांड कर सकते हैं। दोनों में फर्क है थॉटफुलनेस और रीजनिंग का। मान लीजिए आपके पार्टनर से आपकी लड़ाई हो गई। आप बिना सोचे-समझे चीखेंगे, घर की चीजें उठा पटक करने लगेंगे या फिर दरवाजा उसके मुंह पर मारकर बाहर चले जाएंगे। ये आपका रिएक्शन है। लेकिन उस वक्त अगर आप शांत रह जाते हैं, उसका नजरिया समझने की कोशिश करते हैं या फिर बातचीत करके मामले को सुलझाना शुरु करते हैं तो ये आपका रिस्पांस है। लड़ाई तो देर सवेर खत्म हो जाएगी पर क्या आपको नहीं लगता कि दूसरा तरीका अपनाकर आप भविष्य में इस तरह की लड़ाइयों के चांस ही कम कर देंगे।
माइंडफुलनेस आपको सिखाती है कि चीजों को समझने के लिए वक्त देना होता है। और जब आप खुद को ये वक्त देने लगते हैं तो आपका रिस्पांस और फैसले सही होने लगते हैं। मान लीजिए आपने ऑफिस में कोई गल्ती की। अब आपका रिएक्शन क्या होगा? क्या आप अपने बॉस से ही भिड़ जाएंगे कि उसने आपकी गल्ती कैसे निकाली? मन ही मन खुद को कोसेंगे या फिर हफ्ते भर ओवरटाइम करके इसकी भरपाई करेंगे? इसमें से कोई भी तरीका सही नहीं है। असल में किसी भी घटना के लिए ऑटोमेटिक रिएक्शन ठीक नहीं है। माइंडफुलनेस होकर जीना यहां आपके काम आता है। सीधी सी बात है अगर आप माइंडफुल नहीं होते तो माइंडलेस होते हैं। अब ये आपको तय करना है कि आप क्या चुनते हैं।
अगली बार कोई गल्ती हो जाए तो दो पल ठहर कर सोचिए। इस बात पर ध्यान दीजिए कि आपकी बॉडी लैंग्वेज क्या होती है। क्या आपको पसीना आने लगा? दिल की धड़कन तेज हो गई? अपने इमोशन्स पर ध्यान दीजिए। आपको बेचैनी हो रही है, डर लग रहा है या रोना आ रहा है? जो भी हो रहा है उसे खुलकर स्वीकार कीजिए। इनको सही या गलत के सांचे में मत रखिए। अब इन सबकी जड़ टटोलिए। ये गल्ती कैसे हुई? इसका नतीजा क्या हो सकता है? आप इससे क्या सबक सीख सकते हैं? और इस परिस्थिति में क्या करना सबसे सही रहेगा? इस तरह खुद को वक्त देकर आप अपने रिस्पांस को बेहतर बनाते हैं। एक के बाद एक चलते हुए विचारों पर लगाम देते हैं।आपको सोचने का वक्त मिल जाता है। इससे ये सच नहीं बदलेगा कि आपसे गल्ती हुई है। शायद आपकी घबराहट भी कम न हो पाए लेकिन आपका अगला कदम क्या होना चाहिए ये बात आपको अच्छी तरह समझ आ जाती है और सिचुएशन कॉम्प्लिकेट होने से बच जाती है। माइंडफुलनेस आपको हर बात पर रिएक्ट करने वाले इस ऑटोमेटिक रवैये से बाहर निकालती है।
माइंडफुलनेस से आप तकलीफों का सामना करना ही नहीं सीखते बल्कि उनसे उभरकर नई शुरुआत करना भी सीख जाते हैं।
शरीर के किसी हिस्से में दर्द आपको बेचैन कर देता है। तब आप सोचते हैं अगर हमारे पास पेन रिसेप्टर ही नहीं होते तो कितना अच्छा होता ना। लेकिन congenital analgesia के साथ जन्म लेने वाले लोग भी होते हैं। इनको शरीर में किसी तरह का दर्द महसूस नहीं होता है। लेकिन इस वजह से उनको जाने-अनजाने चोट लगती रहती है। दर्द एक तरह का वार्निंग साइन है जो आपको ज्यादा बड़ी मुश्किल से बचाता है। आपको सब्जी काटते हुए छोटा सा कट लग जाता है तो आप बैंडेड लगा लेते हैं और अगली बार ज्यादा सावधान हो जाते हैं। एक्सरसाइज करते हुए आपकी मसल्स दर्द करने लगती हैं तो आप ब्रेक ले लेते हैं ताकि परेशानी और न बढ़े। पर इन लोगों के बारे में सोचिए कि इनके लिए दुनिया में जीना कितना मुश्किल है। दर्द हमको बहुत कुछ सिखाता है। हमें ये समझ आ जाता है कि हमारे बर्दाश्त करने की हद क्या है। हम खुद को किस तरह सुरक्षित रख सकते हैं। हालांकि इस सबक की कीमत बहुत बड़ी होती है। इसे समझना तब मुश्किल होने लगता है जब आप लगातार दर्द का सामना कर रहे होते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि हर तरह का दर्द तकलीफ ही देता है। इससे सेहत का नुकसान होता है, इसे मैनेज करने के पैसे लगते हैं और हमारा मन भी हारने लगता है। और छोटे-मोटे दर्द को छोड़ दें तो ज्यादातर इससे बचना नामुमकिन होता है। हम भले ही इसे अवॉइड न कर पाएं इसे मैनेज तो कर ही सकते हैं। आप ये याद रखिए कि माइंडफुलनेस से आप दर्द का मैनेजमेंट सीख रहे हैं न कि उसे दूर करना। दर्द एक प्राकृतिक अनुभूति है उससे बचना संभव नहीं है। ये आपकी चेतना के सही होने का प्रतीक है। हां इसकी अनुभूति को कम जरूर किया जा सकता है। हम दर्द को शारीरिक अनुभव समझते हैं। लेकिन ये किसी एक दायरे में नहीं बंधा है। ये हमें शारीरिक, मानसिक, कॉग्नीटिव हर तरह के अनुभव देता है। माइंडफुलनेस की मदद से हम इन सबकी इन्टेन्सिटी कम कर सकते हैं। बॉडी स्कैन शुरु कीजिए। दर्द की जड़ तक जाइए। आप समझिए कि किस तरह का दर्द हो रहा है। थ्रॉबिंग, पियर्सिंग या डल।
क्या आप इसे बर्दाश्त कर पा रहे हैं? या कहीं ऐसा तो नहीं आपने खुद ही सोच लिया हो कि हालात बेकाबू हो रहे हैं? जितना दर्द है उसे उतना ही महसूस करिए। इस फिजिकल पेन पर ध्यान देते हुए अब अपनी भावनाओं को टटोलिए। आपके मन में क्या चल रहा है? आपके दिमाग में कैसे विचार आ रहे हैं? जो भी है उसे चले जाने दीजिए। उसमें डूबे मत रहिए। आपके विचार या आपकी भावनाएं तो दर्द नहीं हैं ना।
माइंडफुलनेस भावनात्मक परेशानियों को दूर करके खुशियों का रास्ता खोल देती है। अगर लोगों से ये सवाल किया जाए कि क्या वो खुश रहते हैं तो शायद ही कोई हां में जवाब देगा। असल में जो जीवन हम जीने लगे हैं वहां खुश होना तो संभव है पर खुश रहना बहुत मुश्किल है। सबके दिल पर कोई न कोई चोट लगी हुई है। हर कोई हर्ट हो चुका है। एक छोटी सी कोशिश कीजिए। दिमाग को शांत करिए। अभी इस पल में रहने की कोशिश कीजिए। हर अच्छे बुरे और सही गलत को सोचे बिना बस दो पल सिर्फ अपने साथ रहकर सोचिए। अब आपको जरूर खुशी महसूस होगी।
मान लीजिए आप अब भी खुश नहीं हैं। तो सोचिए कि ऐसी कौन सी चीज है जो रास्ता रोक रही है? आपका पास्ट! कोई ऐसा वक्त जहां से अब तक आप बाहर ही नहीं निकल पाए। वहीं फंसे रह गए हैं। कोई आपसे ब्रेक अप करके चला गया और आपने ये मान लिया कि आप तो प्यार डिजर्व ही नहीं करते। ऑफिस में कोई गल्ती हो गई और आपने मान लिया आपको कुछ आता ही नहीं। कम नंबर आए और आपको लगा कि ये आपकी सबसे बड़ी असफलता है, आपका करियर चौपट हो गया है। इस तरह के विचार आपकी तकलीफ को बढ़ाते रहते हैं और उससे निपटने में रुकावट बनकर तने रहते हैं।
अगली बार जब इस तरह की बातें आपको परेशान करें तो ठंडे दिमाग और खुले मन से इन पर ध्यान दें। आपके मन में बदले की भावना है, दुख है या मायूसी? ये आपके मन में कहां से आ जाते हैं? कुछ समय बाद ये कहां जाकर छिप जाते हैं? ये भावनाएं लगातार बदलती रहती हैं। एक ही बात याद करके कभी आपको गुस्सा आएगा, कभी दुख होगा और कभी शायद हंसी भी आती होगी। इस तरह एक वक्त ऐसा आएगा जब आप ये सोचकर हैरान होंगे कि इतनी मामूली बात को अब तक दिल से क्यों लगा रखा था? यादों की एक्सपायरी डेट नहीं होती पर उनके असर कम होते-होते बिल्कुल खत्म हो सकते हैं।
अपने विचारों और नजरिए पर ध्यान रखें। आपको न तो इनको जज करना है और न ही इनमें डूब जाना है। जो बीत गया उसे बदल नहीं सकते। भविष्य के बारे में सोचकर बस चिंता ही होती है। एक गाने के बोल हैं "जो भी है बस यही इक पल है" इसलिए इसको जीते रहिए और आगे बढ़ते रहिए। अब खुद से पूछिए कि क्या इस पल में आप खुश हैं, या ऐसा तो नहीं है कि आपने खुशियों का रास्ता ही बंद कर रखा है? अगर अब भी आप खुशी महसूस न कर पा रहे हों तो सोचिए कि इसके दरवाजे को खोलने के लिए आप क्या कर सकते हैं?
अपने दर्द और परेशानियों को अगर आप माइंडफुल होकर समझते हैं तो ये जानने में कोई मुश्किल नहीं आएगी कि ये बहते पानी की तरह आते और जाते रहते हैं। आप इनके गुलाम नहीं हैं या सफर नहीं कर रहे हैं जो ये बोझ आपको अपने सर पर लेकर चलना ही है। आपको इन्हें लेट गो कर देना चाहिए। ये भी सच है कि हर चीज को लेट गो नहीं किया जा सकता। लेकिन माइंडफुल होकर आप चीजों को फिल्टर करना जरूर समझ सकते हैं। आगे पढ़िए कि ये कैसे किया जाता है।
माइंडफुलनेस की मदद से आप अपनी जिंदगी को एक नए नजरिए से देखना शुरु कर देते हैं।
आपने serenity prayer का नाम सुना होगा। इसमें ये प्रार्थना की जाती है कि "मुझे इस बात की शक्ति मिले कि जिन चीजों को बदलना मेरे हाथ में नहीं है मैं उन्हें स्वीकार कर पाऊं और जिन चीजों को बदल पाना मेरे हाथ में है मैं उन्हें बदल पाऊं।" लेकिन सबसे मुश्किल काम तो इन दोनों के बीच के अंतर को समझना ही है। वरना आप उन चीजों को बदलने में अपना समय और ताकत लगाएंगे जिन्हें बदला नहीं जा सकता और आप हर उस बात को ज्यों का त्यों स्वीकार करने लगेंगे जिसे बदला जा सकता है।
ये समझना भी एक आर्ट है कि किस चीज को बदलें और किसे लेट गो करें। माइंडफुल रहकर आप इस आर्ट के मास्टर बन सकते हैं। मान लीजिए आप हाइकिंग के लिए जाते हैं। मौसम अचानक बदल जाता है और आप किसी ढलान वाली जगह फंस जाते हैं। बारिश की वजह से फिसलन बढ़ गई है। अब आपको डर लगने लगता है। तो अब आपको दो बातें परेशान करेंगी। एक तो ये कि अब आगे क्या करना है और दूसरा है आपका डर। यानि एक है आपकी असल समस्या और दूसरा उससे जुड़ चुका इमोशन। जब भी आप ऐसी किसी परेशानी में घिर जाते हैं तो उसको इसी तरह दो भागों में बांट लीजिए।
पहले अपनी भावना पर ध्यान दीजिए। ये कुछ देर की उठापटक है जो किसी लहर की तरह आकर चली जाएगी। ये फीलिंग बस आपको सावधान करने के लिए आई है। ताकि इस मुश्किल की घड़ी में आप और कोई गल्ती करके उसे बढ़ा न दें। अब लौटिए समस्या पर। कि इससे कैसे निपटना है। इसे एक बड़ी समस्या बनाकर नहीं बल्कि छोटे हिस्सों में बांटकर देखिए। अगर आपके सामने कोई हल नजर आता है तो ठीक है वरना इसे गुजर जाने दीजिए बस। क्योंकि इस वक्त शायद सबसे अच्छा वही है। जहां हैं वहीं रुक जाइए और बारिश थमने का इंतजार कीजिए। अब इस समस्या को उस नजरिए से देखते हैं जहां इसे हल किया जा सकता है। लेकिन ये तभी हो सकता है जब आप खुद पर डर को हावी न होने दें। वरना सुरक्षित रास्ता ढूंढते हुए शायद आप नीचे की तरफ फिसल सकते हैं। हां बहादुरी दिखाने के लिए ऊपर की तरफ दौड़ने भी न लगें। जब आपका डर चला जाएगा तो खुद ब खुद हिम्मत आएगी। फिर आप मजबूती से पैर जमाकर आगे बढ़ने लगेंगे।
कुल मिलाकर
इस दुनिया में ऐसा कोई नहीं है जिसे कोई दर्द या तकलीफ न हो। लेकिन अगर आप दर्द का रास्ता बंद करते हैं तो जाने अनजाने खुशियों का रास्ता भी बंद हो जाता है। जिंदगी आपको कौन से रंग दिखाएगी ये आपके कंट्रोल में नहीं है पर आप हर रंग को सूदिंग जरूर बना सकते हैं। माइंडफुलनेस मेडिटेशन इसमें आपकी मदद करता है ताकि आप हर पल को भरपूर जी सकें।
क्या करें?
Loving-Kindness मेडिटेशन का अभ्यास करें।
अगर आपको कोई पुरानी याद परेशान कर रही है तो आपको प्यार की जरूरत होती है। प्यार हर तरह के दर्द को कम कर देने वाला मरहम है। सबसे पहले खुद को प्यार दीजिए। अब बाहरी दुनिया को अपने प्यार से भर दीजिए। उनको भी प्यार दीजिए जो आपके अपने हैं और उनको भी जिनको आप नहीं जानते। अपने मन में दया और करुणा की भावना जगाइए। धीरे-धीरे आप उस इंसान को भी खुलकर प्यार करने लगेंगे जो कभी आपकी तकलीफ की वजह बना होगा।
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