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Daniel J. Siegel
मेडिटेशन के मेरेकल्स के बारे में जानिए

दो लफ्जों में
अवेयर (2018), मेडिकल प्रैक्टिशनर से नहीं बल्कि मोंक्स से जुड़ी ट्रेडिशनल डिसिप्लिन, "मेडिटेशन", की बुनियादी बातें बताती है. लेटेस्ट न्यूरोसाइंटिफिक रिसर्च के आधार पर, डेनियल जे सीगल बताते हैं कि माइंडफूलनेस आजकल की जिंदगी में अपनाये जाने वाले हैक से कहीं ज्यादा है, यह मेंटल और फिजिकल हेल्थ के लिए फायदेमंद है. इसके और क्या फायदे हैं? यह आपके लाइफ एक्सपीरियंस को ज्यादा मीनिंगफुल, मजेदार और गहन (प्रोफाउंड) बना सकता है.

किनके लिए है
- साइकैटरिस्ट्स और साइकोलॉजिस्ट्स के लिए
- मेडिटेशन करने वालों के लिये
- परेशान और स्ट्रेस्ड लोगों के लिये

लेखक के बारे में
डेनियल जे सीगल कैलिफोर्निया की डेविड गफ्फेन स्कूल ऑफ़ मेडिसिन में साइकैटरिस्ट हैं. वह माइंडफूलनेस और मेडिटेशन की स्टडी में स्पेशलाइज्ड हैं साथ ही "पेरेंटिंग फ्रोम द इंसाइड आउट" और "माइंडसाइट" जैसी कई पॉपुलर बुक के राइटर भी हैं.

मेडिटेशन से सिर्फ आपको अच्छा ही नहीं महसूस होता बल्कि यह बढ़ती उम्र के असर को रोकता है और इससे सेल्फ कंट्रोल भी बढ़ता है
आज की जिंदगी डिस्ट्रैक्शंस से भरी पड़ी है. जब हम अपने रोजमर्रा के काम नहीं कर रहे होते या फिर उन पर ध्यान नहीं देते, तब हम या तो सोशल मीडिया पर स्क्रोल कर रहे होते हैं या नेटफ्लिक्स पर कुछ देखते हैं. और जब यह भी नहीं कर रहे होते तो अपनी प्रॉब्लम और फिक्र की सोच में डूबे होते हैं. हम अक्सर अपनी जिंदगी ऑटोपायलट( अपने आप चलना) पर चलाते हैं, हमारे सामने मौजूद मोमेंट को अप्रिशिएट करने की कोशिश कभी नहीं करते.

यह एक स्टेबल लाइफस्टाइल नहीं है. तो हम क्या कर सकते हैं? मेडिटेशन कैसा रहेगा? इन लेसंस में बताया गया है कि मेडिटेशन सिर्फ हमारे दिमाग के लिए ही नहीं बल्कि हमारी फिजिकल हेल्थ के लिए भी फायदेमंद है. इससे भी ज्यादा, माइंड को अवेयर रहने की ट्रेनिंग देकर हम अपनी मौजूदा दुनिया और अपने ख्यालों की दुनिया के कनेक्शन को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं. यही खुशहाल और मीनिंग फुल जिंदगी का तरीका है.

इसके अलावा आप जानेंगे कि कैसे अपने सेंस के ज़रिए जानें कि आस पास क्या चल रहा है? क्यों दूसरों की मदद करना आपको उनके लिए बुरा एहसास करने से ज़्यादा खुशहाल बनाएगा? और कैसे मेडिशन आपको एडिक्शन से बाहर निकाल सकता है?

यह सुनकर आप हैरत में नहीं पड़ेंगे कि मेडिटेशन से सेहत अच्छी होती है. इसके बारे में लगभग हम सब जानते हैं. लेकिन शायद आप मेडिशन की अच्छाइयों को ना जानते हों. यहां तक की साइंटिस्टों ने भी मेडिटेशन के लाजवाब फायदों को जानना शुरु ही किया है.

हाल में मेडिटेशन और माइंडफूलनेस के बारे में की गई स्टडी को ही ले लीजिए, माइंडफूलनेस एक तरह का मेडिटेशन है जो हमारे दिमाग को बैकग्राउंड में चल रही चीजों को नजरअंदाज करके किसी एक चीज पर फोकस करने के लिए ट्रेन करता है, यह हमारे हेल्थ के लिए भी बहुत फायदेमंद है.

मिसाल के तौर पर जो लोग रोज़ मेडिटेशन करते हैं, उनका इम्यून सिस्टम अच्छा होता है और वह इंफेक्शन से लड़ने के काबिल होते हैं. मेडिटेशन हमारी बॉडी में टेलोमिरेज ( यह एक तरह का एंजाइम है जो क्रोमोसोम को ठीक करता है और एजिंग प्रोसेस की स्पीड धीमी कर देता है) की मात्रा को बढ़ाता है.

अगर यह भी फायदे बहुत नहीं है तो आगे आने वाली तीन बातें आपको आज से ही मेडिटेशन करने के लिए तैयार कर देंगी, स्टडी बताती है कि मेडिटेशन कोलेस्ट्रॉल लेवल बेहतर करने, बेहतर ब्लड प्रेशर और हेल्थी हार्ट में भी मददगार है. मेडिटेशन सिर्फ फिजिकल हेल्थ के लिए ही अच्छा नहीं है बल्कि या आपकी दिमागी परफॉर्मेंस भी बढ़ा देता है. माइंडफूलनेस की वजह से आप सेल्फ रेगुलेशन और प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल में महारत हासिल कर सकते हैं. यह आपको नई और अनजानी सिचुएशन का सामना करने के काबिल भी बनाता है.

लेखक अपने एक्सपीरियंस से बताते हैं कि मेडिटेशन एजुकेशन में कितना इंपॉर्टेंट हो सकता है, जहां "अटेंशन" ही सक्सेस का रास्ता है. जब वह टीचर और स्टूडेंट के साथ काम करते हैं तो मेडिटेशन के फायदों को बताने के लिए बहुत सिंपल तरीके का इस्तेमाल करते हैं. इमेजिन कीजिए कि अवेयरनेस के सेंट्रल हब के चारों तरफ एक बड़ा सा सर्कल है और यह सर्कल आपके आसपास चल रही चीजों से भरा हुआ है. अब इस हब के बाहर और सर्कल के अंदर एक फोकस नाम का एरो इमेजिन कीजिए. मेडिटेशन इसी फोकस नाम के एरो को कंट्रोल करता है. आप एरों को सर्कल के अंदर मौजूद चल रही किसी भी चीज पर ले जा सकते हैं, या फिर सेल्फ अवेयरनेस बढ़ाकर इसे सेंट्रल हब की तरफ भी ले जा सकते हैं.

इस मेथड का इस्तेमाल कर रही एक प्राइमरी स्कूल की टीचर ने बताया कि इस मेथड ने पढ़ाई में मुश्किलों का सामना कर रही, बिली नाम की स्टूडेंट की बहुत मदद की है. बिली ने अपने टीचर को बताया कि मेडिटेशन ने कैसे अपने मन पर कंट्रोल करने में उसकी मदद की है. जब वह अपने क्लासमेट से लड़ना या उस पर गुस्सा करना चाहता, तब अपने हब पर फोकस करके वह उस प्रॉब्लम का बेहतर सलूशन ढ़ूंढने की कोशिश करता. अपनी फीलिंग और अपनी जिंदगी के सर्कल में चल रही चीजों को बेहतर तरीके से जानकर, बिली ने सेल्फ- कंट्रोल सीख लिया.

माइंडफूलनेस की प्रैक्टिस में इस्तेमाल किए जाने वाले, माइंड ट्रेनिंग के 3 पिलर्स
आप रेगुलर माइंडफूलनेस प्रैक्टिस के सारे फायदों के बारे में जान गए हैं, लेकिन असल में यह है क्या? माइंडफूलनेस अपने दिमाग को उस तरीके से काम करने की ट्रेनिंग देना है, जिस तरीके से रोजमर्रा की जिंदगी की वजह से यह काम नहीं करता. चलिए इसे तीन हिस्सों में बांट लेते हैं, जिसे आप माइंडफूलनेस के 3 पिलर की तरह समझिये.

पहला पिलर फोकस्स अटेंशन है, बैकग्राउंड में चल रही चीजों को पूरी तरीके से ब्लॉक कर के, किसी एक काम, चीज पर फोकस करने की एबिलिटी.

दूसरा पिलर अवेयरनेस है, यह अपने माहौल से ट्विनिंग का एक तरीका है, किसी एक खास चीज पर ठहरे बिना अपने आसपास चल रही हर चीज को एक्सेप्ट करने के लिए तैयार रहना है.

इंटेंशन तीसरा पिलर है, इसका मतलब अपने अंदर पॉजिटिव, खुद की और दूसरों की मदद करने वाला एटीट्यूड डेवलप करना है.

एक साथ मिलकर यह 3 प्लेयर माइंडफूलनेस की नींव तैयार करते हैं, माइंडफूलनेस एक स्टेट ऑफ माइंड है जिसे कई तरीके से हासिल किया जा सकता है. उनमें से एक तरीका माइंडफूलनेस ब्रीथिंग है. यह प्रैक्टिस आपके अटेंशन को ब्रीथिंग साइकल के ज़रिए प्रेजेंट में ले आती है. इसका मकसद आपके दिमाग को पूरी तरीके से आपके अंदर जाने वाली और बाहर निकलने वाली हवा पर कंसंट्रेटेड रखना है. ओपन अवेयरनेस माइंडफूलनेस हासिल करने का दूसरा तरीका है, मिसाल के तौर पर, इसका मकसद आपके आसपास चल रही आवाज़ को सुनने के बावजूद उसे अच्छा या बुरा कहने की अपनी ख्वाहिश को रोकना है.

और आखरी तरीका कंपैशन मेडिटेशन है, यह प्रैक्टिस आपके मन में दूसरों के लिए अच्छे थॉट्स डिवेलप करने में मदद करती है.

अब हम बात करेंगे अटेंटिवनेस के बारे में, जिसे जान कर जानकार आप ज्यादा फोकस्ड बन सकते हो।

कैमरा के डिस्प्ले को इमेजिन कीजिए, जब आप इसे किसी चीज या लैंडस्केप की तरफ करते हैं तो किसी एक पर फोकस और दूसरे को ब्लर करके आप इमेज का अलग-अलग हिस्सा फोकस में ला सकते हैं. अटेंशन भी कुछ इसी तरह की होती है, यह किसी एक चीज पर से हटाई और फोकस की जा सकती है. यकीनन इस तरह के फोकस का नाम भी है, इसे फोकल अटेंशन कहते हैं. इस तरह के मेडिटेशन को एक्सपीरियंस करने के लिए बस आपको उस कमरे का चक्कर लगाना है जिसमें बैठकर आप यह पढ़ रहे हैं. अपने आसपास मौजूद चीजों के कलर, शेप और दूसरी डिटेल्स पर गहराई से ध्यान दीजिए. अपने आसपास मौजूद चीजों को ध्यान से नोटिस करने को ही फोकल अटेंशन कहते हैं. अब इसी चीज़ को अपनी आम मॉर्निंग रूटीन से कंपेयर कर लीजिए. आप अपने बेड से नींद में उठते हैं, नहा कर तैयार होते हैं और नाश्ता बनाते हैं. मुमकिन है, कि घर से निकलने से पहले आपने अपने आसपास मौजूद चीजों को जरा सा भी ना नोटिस किया हो. यह नॉन फोकल अटेंशन का बेहतरीन एग्जांपल है. यह काफी अच्छा है क्योंकि इसमें आप बहुत ज्यादा दिमाग लगाए बिना, आपने जरूरी काम कर लेते हैं. लेकिन एक बात है. जब यह रूटीन बन जाता है तो हर चीज को पूरी तरीके से नजरअंदाज कर देना बहुत आसान हो जाता है.

अगर आप ज्यादा माइंडफुल होना चाहते हैं तो यही प्रॉब्लम होती है. जब आपकी जिंदगी ऑटो पायलट पर चल रही होती है और हर चीज नॉन-फोकल तरीके से कर रहे होते हैं तो आप अपने प्रेजेंट मोमेंट से दूर हो जाते हैं. और तभी, आप जो काम कर रहे हैं उसके बारे में डिसीजन लेने के बजाय, नेगेटिव थॉट्स और तरह-तरह की चीजों के बारे में सोचने लगते हैं. अपने प्रेजेंट मोमेंट पर फोकस कीजिए आप नोटिस करेंगे कि धीरे-धीरे आप पॉजिटिव चीजें और पॉजिटिव डिसीजन लेने लगे हैं. क्यों ना आज आप अपने उस कलीग से बात करें जिसे आप हमेशा इग्नोर कर देते हैं? यह करके देखिये, जिंदगी अच्छी लगने लगेगी.

मेडिटेशन आपको दुनिया के बारे में अवेयर होना सिखा सकता है
अनजानी जगहों में रास्ता ढूंढने के लिए मैप जरूरी होता है. वह सिर्फ आपको पॉइंट A प्वाइंट Z तक पहुंचाते नहीं हैं, बल्कि आप इस रास्ते में और भी कुछ पा सकते हैं. मतलब आपनी अगली जर्नी के लिए मैप बना लेना एक अच्छा आईडिया हो सकता है, अवेयरनेस का यह फायदा होता है. चलिए डेफिनेशन से समझते हैं, इसका मतलब अपने आसपास चल रही दुनिया को ऑब्ज़र्व करना है.

किसी एक चीज पर अटेंशन देने के 4 तरीके हैं, सबसे पहले हमारी पांच इंद्रियां(सेन्सेज़) देखना, सुनना, सूंघना, टेस्ट करना और टच करना. इसके बाद हमारे शारीरिक सेंसेशंस आते है, जैसे कि जब हम भूखे होते हैं तो हमारे पेट की मरोड़ या फिर जब हम किसी चीज को लेकर एक्साइटेड होते हैं या डर जाते हैं तो हमारी हार्टबीट का बढ़ जाना. उसके बाद कुछ मेंटल एक्टिविटीज आती हैं जैसे कि महसूस करना, सोचना या याद रखना. और आखिर में, चीजों से या आप के बाहर मौजूद लोगों के साथ आप का कनेक्शन आता है. मेडिटेशन, एक्सपीरियंस और अवेयर होने के इन तरीकों पर फोकस करने का एक बेहतरीन ज़रिया है. इस सिंपल एक्सरसाइज को समझिये.

आपको एक कंफर्टेबल जगह चाहिए जहां आप आधे घंटे सुकून से बैठ सकें. अपने सेंसेज़ और प्रसेप्शन पर फोकस कीजिए, शुरुआत अपनी 5 इंद्रियों पर ध्यान देने से कीजिए. देखने से पहले उन चीजों पर ध्यान दीजिए जिनकी आवाज आप सुन सकते हैं (इसके लिए आपको अपनी आंख खोलने की जरूरत पड़ेगी). सूंघना, टेस्ट करना और महसूस करना. इन पांचों इंद्रियों पर कम से कम 30 सेकंड के लिए ध्यान दीजिए. बस ऑब्जर्व करिये और कोशिश कीजिए कि आप कोई नतीजा ना निकालें.

अब बॉडी को होने वाले एक्सपीरियंस की तरह आइए, अपने मसल्स और ऑर्गन को महसूस कीजिए. अपने बॉडी के हर पार्ट को कम से कम 15 सेकंड दीजिए. जब आप यह कर लें, तो अपने दिमाग और थॉट्स पर ध्यान दीजिए. आपके दिमाग में जो भी थॉट्स आते हैं उन्हें आने और जाने दीजिए रोकने की कोशिश मत कीजिए. और आखिर में अपनों के साथ कनेक्शन बनाने के लिए कुछ वक्त लीजिए चाहे वह आपके फैमिली, फ्रेंड्स और कलीग हों, चाहे कोई अंजाना इंसान. हर किसी के लिए अच्छा सोचिए और अपने दिल में उनके लिए प्यार महसूस कीजिए.   

अब अपनी आंख खोलिए, आप पीसफुल और कनेक्टेड महसूस करेंगे. 

दुसरों के लिये बुरा महसूस करने से अच्छा मदद करना है, यह आपके बॉडी और दिमाग के लिए भी फायदेमंद है। हम सब दूसरों के साथ एक मीनिंग फुल कनेक्शन का एहसास चाहते हैं, लेकिन जब यह कनेक्शन बनाने की बात आती है तो हम गलती कर बैठते हैं. इसकी वजह? हम अक्सर एंपैथी यानि हमदर्दी और कंपैशन यानि मदद करने के एहसास में फर्क नहीं कर पाते. एक जैसे होने के बावजूद यह दोनों एक नहीं है. चलिए जानते हैं कि ऐसा क्यों है.

कंपैशन को समझने के लिये इसे रिलिजियस ट्रेडीशन के ज़रिए समझना होगा. बहुत सारे धर्मों की सेंट्रल वैल्यू कंपैशन है, इनमें से बहुत सारे रिलीजन बताते हैं कि कंपैशन मदद करने वाले और पूरी कम्युनिटी, दोनों के लिए फायदेमंद होता है. इसकी वजह जानना मुश्किल नहीं है. कंपैशन, दूसरों की तकलीफ समझने,  मदद का ऑफर देने, और सबसे जरूरी उनकी तकलीफ को कम करने के लिए कुछ करने को कहते हैं.

ऐसा करने का पहला तरीका एंपैथी यानि हमदर्दी है, आखिरकार, हमदर्दी का मतलब ही खुद को दूसरों के हालात पर रख कर देखना है. लेकिन यह काफी नहीं है, दूसरों की तकलीफ को समझना और उनकी तकलीफ कम करने के लिए कुछ ना करना, बेचैनी की वजह बनता है. इसके बजाय, अगर आप कदम बढ़ा कर दूसरों की तकलीफ कम करने की कोशिश करें, तो आप अपनी भी तकलीफ कम कर पाएंगे.

इसे अंग्रेजी में विन-विन सिचुएशन कहते हैं, मतलब दोनों ही तरफ के लोगों का फायदा होना. रिसर्च बताती है, कि कुछ मिनट निकालकर दूसरों को पॉजिटिव थॉट्स भेजना भी आपके मेंटल और फिजिकल हेल्थ को अच्छा करता है. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि कंपैशन का एहसास आपके दिमाग के अलग अलग हिस्सों को एक कर देता है, जिससे आपके दिमाग के अलग-अलग हिस्सों के बीच बैलेंस बना रहता है. कंपैशनेट मेडिटेशन, एक तरह का मेडिटेशन, जिसमें आप सिर्फ कंपैशन थॉट्स के बारे में सोचते हैं, यह उलझन, स्ट्रेस कम करने, और हार्ट फंक्शन को बेहतर करने में भी कारगर है.

सबसे अच्छी बात यह है कि कंपैशन थिंकिंग आपके काम करने के तरीके पर भी असर डालती हैं. मतलब आप जितना ही दूसरों के बारे में अच्छा सोचेंगे उतना ही बर्थडे जैसे ओकेज़न को याद रख पाएंगे साथ ही समझ जाएंगे कि सामने वाले को मदद की जरूरत तो नहीं.

हमारा दिमाग, बॉडी के लिए काम करता है
कुछ हजार सालों से भी पहले ग्रीक फिज़ीशियन हिपोक्रेटिस ने दावा किया था कि हर तरह के इंसानी एक्सपेरियंस की वजह दिमाग है. इस पुरानी सोच को अब बदला जा रहा है क्योंकि नई साइंटिफिक रिसर्च चौंकाने वाला सच बताती हैं, न सिर्फ हमारी बॉडी दिमाग के लिए काम करती है, बल्कि दिमाग भी बॉडी के लिए काम करता है.

जैसा कि चिकित्सक और न्यूरोलॉजिस्ट एंटोनियो दामासियो लगातार अपनी किताबों और लेक्चरर्स में बताते हैं,  अर्थ यानि धरती की हिस्ट्री के ज़्यादातर हिस्सों में जानदार चीजें बिना नर्वस सिस्टम के ज़िन्दा रही हैं. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हमारे प्लैनेट पर दिमाग और नर्वस सिस्टम बाद मे बने थे. हमारे दिमाग से पहले, हमारी बॉडी का वजूद था, और हम अपने दिमाग का एहसास सिर्फ इसलिए कर पाते हैं क्योंकि उससे हमारी बॉडी इंट्रैक्ट करती है.

मतलब, हमारी जो पुरानी सोच थी कि हमारी बॉडी का सब कुछ हमारा दिमाग कंट्रोल करता है, अब वह बदल रही है. अब हम जानते हैं कि हमारी बॉडी का डेवलपमेंट दिमाग से पहले हुआ था. असल में जब हमारी बॉडी ग्रो करने लगी तो इसकी बायोलॉजिकल एक्टिविटीज़ के लिए इसे नर्वस सिस्टम और ब्रेन के कोऑर्डिनेशन की जरूरत पड़ी. आज साइंटिस्ट इस बात को लॉजिकल नतीजे पर ले जा रहे हैं,  दिमाग, बॉडी का सर्वेंट है.

तो, इसका दिमाग को लेकर पहले से बनी सोच पर क्या असर पड़ता है? अब दिमाग को सिर्फ खोपड़ी के अंदर मौजूद ऑर्गन समझना बेवकूफी होगी. लॉजिकल तो यह है, कि हम इसे ऐसा ऑर्गन समझें जो पूरे शरीर में फैला हुआ है. असल में हम सभी के पास कई दिमाग हैं, जो सर में मौजूद ऑर्गन से पहले डिवेलप हो गये हैं. इनमें न्यूरल सिस्टम शामिल है जैसे कि हमारी आंतों के नजदीक "गट ब्रेन" और हमारे दिल के करीब "हर्ट ब्रेन" होता है.

यह छोटे छोटे दिमाग ही माइंडफूलनेस हैं, और मेडिटेशन इन से कनेक्शन बनाने में मदद करते हैं.

ज्यादा सोचने की वजह से हम सेल्फ-ऑब्सेस्सेड हो सकते हैं, जबकि मेडिटेशन बैलेंस बनाता है. कभी ना कभी हम सबको इस बात की फिक्र हुई है कि क्या हम पसंद करने लायक हैं, और हर किसी को अपनी जिंदगी में रिजेक्शन का डर रहा है. जब इस तरह के थॉट आपके दिमाग में घर करने लगे तो अपने काम और अपनी जिंदगी पर दोबारा कंसंट्रेट करना आसान है. आखिर में हर चीज बस आपके बारे में होती है.

नई न्यूरो साइंटिफिक रिसर्च बताती है कि यह हम सब के दिमाग में बसा हुआ है. लेकिन अगर इसे कंट्रोल नहीं किया गया, तो यह सेल्फ-ऑब्सेशन की शक्ल ले सकता है.

चलिए इस रिसर्च के बारे में थोड़ा गहराई से जानते हैं. जब दिमाग का एक हिस्सा, सबसे ऊपर का सिंगुलेट कॉर्टेक्स, एक्टिवेट होता है तो हम खुदके बारे में और दूसरे हमारे बारे में क्या सोचते हैं, सोचना शुरू कर देते हैं. दिमाग का यह हिस्सा बीच में होता है, न्यूरोसाइंस में इसे ब्रेन नेटवर्क कहते हैं और जब हम कुछ नहीं कर रहे होते तो यह एक्टिवेट हो जाता है. अब आपको समझ में आ गया होगा, कि क्यों जब आप सोफा पर खाली बैठते हैं तो दुनिया भर की चीज़ों के बारे में सोचने लगते हैं.

इवोल्यूशन के नजरिये से, इस तरीके का बिहेवियर बहुत मायने रखता है. सेल्फ अवेयरनेस और दूसरों पर नजर रखकर हमारा दिमाग खतरे को पहचानता है, और यह इंश्योर करता है कि कहीं कोई आप पर हमला तो नहीं करने वाला. दिक्कत तब होती है जब आपके दिमाग का यह हिस्सा जरूरत से ज्यादा अंदाज़े लगाने लगता है और आप अपने आप को लेकर बहुत ज़्यादा फिक्रमंद हो जाते हैं.

ऐसे में मेडिटेशन आपकी मदद करता है. मेडिटेशन बैलेंस बनाता और दिमाग के नेगेटिव एफर्टस को रोकता है. क्यों? जैसा कि हमने पीछे लेसंस में जाना कि मेडिटेशन ब्रेन के अलग-अलग हिस्सों को एक करने और उनमें बैलेंस बनाने का काम करता है. जैसे-जैसे डिफॉल्ट मोड इंटीग्रेटेड होने लगता है आप दूसरों के लिए एंपैथी और कंपैशन महसूस करने लगते हैं. और इससे आपका अटेंशन खुद से हटकर दूसरों की तरफ चला जाता है.

मेडिटेशन किसी भी तरह के ऐडिक्शन से बचने का बेहतरीन तरीका है
एडिक्शन आपको बेबसी का एहसास करा सकता है. अगर आप ने कभी एडिक्शन का सामना किया हो, तो आपको मालूम होगा कि यह आपको इतना बेबस कर देता है, कि आप सोचते हैं इसे लेने के अलावा आपके पास कोई ऑप्शन नहीं है. चाहे वह नशा सिगरेट का हो, टेलीविजन हो. लेकिन ऐसा नहीं है. एडिक्शन सिर्फ आपके दिमाग का बनाया हुआ इल्यूजन है. इससे पहले, हम यह जाने की मेडिटेशन कैसे एडिक्शन से बाहर निकलने में मदद करता है, एडिक्शन के बारे में जान लेते हैं.

यह आपके दिमाग की वायरिंग सिस्टम का नतीजा है. जब हम दुखद महसूस करते हैं तो हमारी बॉडी डोपामाइन रिलीज करती है. यह डोपामाइन किसी भी वजह से रिलीज हो सकते हैं, चॉकलेट से लेकर, सोशल मीडिया पर लाइक हासिल करने और रेड वाइन तक. मॉडर्न सोसाइटी में इन चीजों को आसानी से हासिल किया जा सकता है, जिससे इन्हें बार-बार लेने का मन होता है. जब हम अपने दिमाग में किसी चीज के लिए क्रेविंग महसूस करते हैं और वह चीज हमें मिल जाती है, तो हमारी बॉडी डोपामाइन रिलीज करती है.

दिक्कत यह है कि जो चीज हमें सुखद महसूस कराती हैं उन्हें बार-बार करना बहुत आसान है. जितना ज़्यादा आप ऐसा करते हैं, डोपामाइन रिलीज़ होने पर मज़ा कम हो जाता है. नतीजतन आप एक एडिक्शन साइकिल के शिकार हो जाते हैं, मिसाल के तौर पर चॉकलेट खाने या ऑनलाइन वक्त गुजारने से अब आपको वह मजा नहीं मिल रहा जो पहले मिलता था इसलिए मजे को हासिल करने के लिए आप ज्यादा चॉकलेट खाने लगते हैं और ज्यादा वक्त ऑनलाइन गुज़ारने लगते हैं. 

यहां मेडिटेशन आपकी मदद कर सकता हूं. स्टडी बताती है कि मेडिटेशन यह समझने में मदद करता है कि आपको किस चीज की जरूरत है ना कि आप क्या करना पसंद करेंगे. जब यह फर्क क्लियर हो जाता है, तो रेड वाइन पीने की वजह से रिलीज होने वाले डोपामाइन का मजा कम हो जाता है. जब आप यह जानते रहते हैं कि आपको कुछ खास चीज़ की जरूरत नहीं है तो आप उस चीज़ के एडिक्टेड नहीं होंगे.

ख्वाइशों और जरूरतों के बीच का फर्क आपको इस रियलिस्टिक दुनिया को जानने में मदद करता है. किसी भी चीज को जरूरत से ज्यादा करना चाहे वह ड्रग, सेक्स, सोशल मीडिया कुछ भी हो आपको फुलफिलमेंट की तरफ नहीं ले जाएगा. तो क्यों ना इस दुनिया को अच्छे से समझने और अपने आप को बेहतर बनाने के लिए, मेडिटेशन ट्राई किया जाए. यह आपको दूसरों से कनेक्ट करेगा और उस नेगेटिव पैटर्न की समझ आ जाएगी जो आप को खुशियों से दूर ले जाते हैं.

कुल मिलाकर
साइंटिस्ट और रिसर्चर ने उस सच को अब जाना, जो मोंक्स और योगी लंबे वक्त से जानते थे, कि मेडिटेशन माइंड, बॉडी और सोल तीनों के लिए अच्छा होता है. मेडिटेशन इम्यून सिस्टम को बेहतर और एजिंग प्रोसेस को स्लो  करता है, यह आपको बैलेंस महसूस कराता है. इसकी वजह? हमारा दिमाग और बॉडी आपस में जुड़े हुए हैं एक को बेहतर बनाने की कोशिश दूसरे को बेहतर करती है. इसलिए मेडिटेशन सिर्फ दिमाग के लिए फायदेमंद नहीं होता, यह बॉडी को भी बेहतर बनाता है.

 

क्या करें

अपने अंदर हंसने और खुश रहने की कैपेसिटी बढ़ाइये 

कंपैशन का मतलब सिर्फ दूसरों की तकलीफ बांटना नहीं, बल्कि हंसने और खुश रहने में उनकी मदद करना भी है. और आप ऐसा तभी कर सकते हैं जब आपको जॉयफुलनेस का मतलब मालूम हो. इसलिए मजाक कीजिए और खूब हंसिये, मेडिटेशन को इतना सीरियस मत ले लीजिए कि आप दुनिया से ही कट जायें. दलाई लामा को ही ले लीजिए, इतने बड़े स्कॉलर होने के बावजूद वह हर वक्त हंसी मजाक करते रहते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि इस दुनिया में बहुत तकलीफ भरी पड़ी है.

 

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